अकमेनियन आक्रमण और उनका प्रभाव
विदेशी आक्रमण -FOREIGN INVASION
अकमेनियन आक्रमण तथा उनका प्रभाव – Achamenian Invasion and Their Impact- छठी शताब्दी ई ० पू ० में भारत का उत्तर – पश्चिमी क्षेत्र छोटे – छोटे राज्यों में विभाजित था । इनमें गान्धार , कम्बोज और मद्र के राज्य प्रमुख थे । इन राज्यों में शक्ति प्राप्त करने के लिए परस्पर संघर्ष चलता रहता था जिसके कारण उनकी स्थिति और दुर्बल हो गई । यद्यपि ये राज्य संगठित नहीं थे , तथापि वे बहुत धनी थे । इन राज्यों पर बहुत सरलतापूर्वक हिन्दूकुश दरों की ओर से आक्रमण किया जा सकता था । इसी समय ईरान में साइरस महान् ने एक शक्तिशाली अकर्मनियन साम्राज्य की स्थापना की । उसने अपने शासनकाल ( 558-530 ई ० पू ० ) में सिन्ध के पश्चिम में निवास करने वाले भारतीय कबोलों को पराजित किया । परन्तु शीघ्र ही मृत्यु हो जाने के कारण भारत पर अधिकार करने का उसका स्वप्न अधूरा ही रह गया । उसके उत्तराधिकारी कैम्बिसस ने आठ वर्ष तक शासन किया , परन्तु वह घरेलू समस्याओं में उलझा होने के कारण भारत पर आक्रमण न कर पाया । तत्पश्चात् डेरियस प्रथम ईरान के सिंहासन पर बैठा । उसने 522 ई ० पू ० से 486 ई ० पू ० तक शासन किया । वह एक महान् विजेता था ।
उसने अपने राज्य का विस्तार करने के उद्देश्य से 516 ई ० पू ० भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्रों पर आक्रमण करके पंजाब , गान्धार तथा सिन्ध पर अधिकार कर लिया और उन्हें अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया । इन्हें संगठित करके ईरान का एक प्रान्त बना दिया गया । यह ईरानी साम्राज्य का 20 वां क्षत्रपी अथवा प्रान्त बना ।
यह ईरान का सबसे उपजाऊ प्रान्त था । इस प्रान्त से ईरानी साम्राज्य को उसे प्राप्त होने वाली कुल आय का तृतीय भाग ( 360 टैलेन्ट ) प्राप्त होता था । इसके अतिरिक्त यहां के बहुत से नौजवान ईरानी सेना में भर्ती हुए । ईरानियों का भारत के इन क्षेत्रों में 330 ई ० पू ० तक प्रभाव रहा । 330 ई ० पू ० में मकदूनिया के राजा सिकन्दर ने ईरानी शासक डेरियस तृतीय को अर्बेला की लड़ाई में पराजित करके अकमेनियन साम्राज्य का अन्त कर दिया ।
अकमेनियन आक्रमणों का प्रभाव ( Impact of Achamenian Invasions )
भारत के पश्चिमोत्तर सीमा क्षेत्र लगभग 200 वर्ष तक ईरानी साम्राज्य के अन्तर्गत रहे । इसके बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े । इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है
1. नई जातियों का उदय -Erise of new castes — ईरानी साम्रज्य के अन्तर्गत होने के कारण भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर अनेक विदेशी आकर बस गए थे । उनमें से अनेकों ने भारतीयों से विवाह करवा लिए । फलस्वरूप भारत में अनेक नई जातियों का उत्थान हुआ । इन जातियों को भारत से कोई विशेष सहानुभूति नहीं थी । इसलिए जब भी कोई विदेशी आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करते तो वे भारत के साथ द्रोह करके उनका साथ देते ।
2. खरोष्ठी लिपि -Kharoshthi Script— ईरानी और भारतीयों के मेलजोल से एक नई लिपि का विकास हुआ जिसे खरोष्ठी लिपि कहा जाता था । यह लिपि अरबी की तरह दायें से बाएं की ओर लिखी जाती थी । पश्चिमोत्तर क्षेत्रों में प्राप्त होने वाले अशोक के सभी शिलालेख इसी लिपि में मिलते हैं । यह लिपि भारत में तृतीय शताब्दी ई ० पू ० तक प्रचलित रही ।
3.व्यापार का प्रचार -Promotion of Business — ईरानी शासन का भारत पर प्रथम महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि उसके ईरान के साथ होने वाले व्यापार को बहुत प्रोत्साहन मिला । ईरानी शासकों ने यातायात के साधनों को विकसित करने और व्यापारियों की सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया । फलस्वरूप भारत के व्यापारियों को बहुत लाभ हुआ ।
4. साम्राज्य का संकल्प -Resolution of The Empire— ईरानियों से पूर्व भारतीय शासकों में विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने की भावना नहीं थी । यह भावना उन्होंने ईरानी शासकों से सीखी । चन्द्रगुप्त मौर्य , डेरियस प्रथम के विस्तृत साम्राज्य से बहुत प्रभावित हुआ । इससे प्रोत्साहित होकर उसने भारत में प्रथम विस्तृत और शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया । इसी कारण चन्द्रगुप्त मौर्य को भारत का प्रथम महान् सम्राट् माना जाता है ।
5. कला और संस्कृति -Art and Culture– ईरानियों ने भारतीय कला एवं संस्कृति को बहुत प्रभावित किया । अशोक के शिलालेखों और स्तम्भों पर ईरानी कला की झलक स्पष्ट दिखाई देती है । स्तम्भों पर बनी शेरों और बैलों की मूर्तियां ईरानी कला की ही देन हैं । इसके अतिरिक्त भारतीयों ने ईरानियों से कई प्रकार के राजकीय रीति – रिवाज भी सीख लिए । चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने दरबार में ईरानी रीति – रिवाजों को प्रचलित किया । उसने ईरानी शासकों की तरह स्त्रियों को अपना अंगरक्षक बनाया था । मन्त्रियों की सभा उस कमरे में बुलाई जाती थी जहां पावन अग्नि जल रही हो ।
6. भारत की राजनीतिक कमजोरी का ज्ञान -Knowledge of India’s political weakness — ईरानी आक्रमणों और भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर उनके दीर्घकाल तक आधिपत्य ने भारत की राजनीतिक दुर्बलता का विदेशियों को ज्ञान करवा दिया । उन्हें यह ज्ञात हो गया कि भारतीय राज्य असंगठित हैं । उनकी सेना विदेशी सेना का सामना नहीं कर सकती । इसने यूनानियों और बैक्ट्रियनों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया ।