धर्मदाय से आप क्या समझते हैं ?
धर्मदाय से आप क्या समझते हैं ? वैध – विन्यास के आवश्यक तत्व क्या हैं ? समझाइए ।
धर्मदाय ( Religious Endowments ) – यह सर्वविदित है कि हिन्दू अतिशय धार्मिक व्यक्ति होते हैं । हिन्दुओं में धार्मिक प्रयोजनों के लिये दान इसलिए दिया जाता है कि प्राणी स्वर्ग प्राप्त करे । अति प्राचीनकाल से हिन्दुओं में दान देने की प्रथा रही है । शायद ही संसार का ऐसा कोई देश होगा जहाँ भारतवर्ष के आदर्श मन्दिर , मस्जिद ज्यादा पाये जाते हैं ।
कश्मीर से कन्याकुमारी के बीच यदि भ्रमण करें तो पायेंगे कि एक से बढ़कर एक भव्य और विशाल अनगिनत मन्दिर हैं जो कि हिन्दू के धर्मप्रिय होने के ज्वलन्त प्रमाण उठता है कि धर्मदाय क्या है ? । अब प्रश्न धर्मदाय वह सम्पत्ति है जो किसी विशेष देवता की पूजा अर्चना के लिए अथवा किसी धार्मिक या परोपकारी संस्था की स्थापना के लिए अथवा उसके उदय या निर्वाह के लिए अथवा जनहित के लिए अथवा धर्मज्ञान व्यवहार सुरक्षा अथवा मान जाति के प्रलय के लिए निर्दिष्ट की जाती है ।
राघवाचार्य के अनुसार , “ धार्मिक तथा परोपकारी उद्देश्यों के हेतु सम्पत्ति का समर्पण धर्मदाय कहलाता है जिसके एक कर्ता या एक निश्चित वस्तु होती है जिसको निर्धारित किया जा सकता है । ‘ वास्तविक धार्मिक विधि सम्बन्धी कानून हिन्दू विधि के मूलत : उपलब्ध नहीं है , इसलिए हिन्दू विधि के निर्माताओं ने इस विषय के विशिष्ट कानूनों का सृजन नहीं किया था । कोई हिन्दू जो स्वस्थ मस्तिष्क का है और नाबालिग नहीं है और वह कोई धार्मिक या खैराती संस्था स्थापित करना चाहता है तो वह अपना उद्देश्य व्यक्त कर सकता है ।
धार्मिकदाय निम्न प्रकार के होते हैं
( 1 ) सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत ।
( 2 ) वास्तविक अथवा आभारी ।
( 3 ) आंशिक अथवा पूर्ण |
( 4 ) धार्मिक अथवा परोपकारी ।
( 5 ) वैध तथा अमान्य ।
वैध विन्यास की आवश्यक शर्तें कोई भी व्यक्ति जो स्वस्थ मस्तिष्क का है तथा नाबालिग ( Minor ) नहीं है , अपनी सम्पत्ति का विन्यास कर सकता है । धर्मदाय की स्थापना के लिए उस अवस्था को छोड़कर जबकि वह इच्छा – पत्र द्वारा निर्मित होता है , लेखबद्ध आवश्यक नहीं होता है , यदि धर्मदाय का निर्माण इच्छा – पत्र द्वारा होता है तो इच्छा – पत्र पंजीकृत होना चाहिए तथा दूसरे प्रमाणीकरण के लिए दो व्यक्ति होने चाहिए ।
धर्मदाय के गठन के लिए यह आवश्यक है कि दाता स्पष्ट रूप से यह कह दे कि अमुक सम्पत्ति वह पुण्यार्थ या धर्मार्थ दे रहा है । भारमति बनाम गोपालदास ‘ के बाद में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि धर्मदाय की स्थापना के लिये यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति किसी न्यासकारी में निहित की जाये किन्तु इस प्रकार के न्यास के अभाव में इस आशय का प्रबल साक्ष्य होना चाहिए कि धर्मदाय स्थापित किया गया है । मान्य धर्मदायक के लिए आवश्यक शर्तें निम्न प्रकार हैं
( 1 ) पूर्ण समर्पण । ( 2 ) सुनिश्चित उद्देश्य । ( 3 ) सम्पत्ति की निर्दिष्ट । ( 4 ) धर्मदाय करने वाले की सक्षमता । ( 5 ) धर्मदाय विधि के विपरीत न हो ।
( 1 ) पूर्ण समर्पण – दाता को सम्पत्ति का पूर्ण समर्पण करना चाहिए । दाता उस सम्पत्ति के किसी भी प्रकार के हित से अपने को विलग कर ले । इस प्रकार दाता को धार्मिक विन्यास के निमित्त दी जाने वाली सम्पत्ति से अपने को पूर्णतया पृथक कर लेना चाहिए । देवता के पक्ष में सम्पत्ति का समर्पण किया जाना एक मान्य धर्मदाय के लिए आवश्यक है । इसमें यह साबित किया जाना आवश्यक है कि धर्मदाय के संस्थापक ने सम्पत्ति का पूर्ण समर्पण करके सम्पत्ति को अपने से अलग कर दिया था । यह आवश्यक नहीं है , कि संकल्प तथा निर्माण की धार्मिक क्रियाएँ सामान्य रूप से की जायें 12 3
( 2 ) उद्देश्य सुनिश्चित होना चाहिए— विन्यास का उद्देश्य सुनिश्चित होना चाहिए । धर्म के लिए किये गये दान की सम्पत्ति को अनिश्चित होने के कारण शून्य माना जाता है । किसी देव मूर्ति की पूजा – अर्चना के लिए धार्मिक विन्यास निर्मित्त करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति के समर्पण के समय वह देव मूर्ति अस्तित्व में हो किन्तु इसके लिये सम्पत्ति को न्यासधारियों में निहित करना पड़ेगा ।
( 3 ) सम्पत्ति निर्दिष्ट हो – कोई धर्मदाय तब तक मान्य नहीं होगा जब तक उसमें सम्पत्ति निर्दिष्ट न हो । उत्तरदान भी सम्पत्ति के सम्बन्ध में कोई अनिश्चितता उसकी मान्यता के लिए घातक होती है । धर्मदाय में दी गई सम्पत्ति अथवा उसकी विषय – वस्तु विनिर्दिष्ट होना चाहिए । उदाहरणार्थ यदि किसी व्यक्ति ने अपने इच्छा – पत्र में यह कहा कि सम्पत्ति की आय को धर्मदाय के कार्य के खर्च किया जाना चाहिए । किन्तु उसने यह स्पष्ट कर दिया कि आय का कितना अंश खर्च किया जायेगा तो विन्यास शून्य होगा ।
( 4 ) सक्षमता- धर्मदाय करने वाला व्यक्ति दाय के लिए सक्षम होना चाहिए अर्थात् वह वयस्क होना चाहिए । स्वस्थ मस्तिष्क का हो तथा विधिक अयोग्यता से युक्त नहीं होना चाहिए । ( 5 ) धर्मदाय विधि के विपरीत न हो- धर्मदाय विधि सम्मत होना चाहिए । उसे ऐसा नहीं होना चाहिए कि वह विधि के किसी अभिव्यक्त उपबन्ध बनाये । धर्मदीय दिखावटी अथवा बनावटी नहीं होना चाहिए । जैसे सम्पत्ति को ऋणदाताओं से बचाने के लिए अथवा शाश्वतता के विरुद्ध नियम ( Rule against perpetuity ) से बचाने के लिये स्थापित किया गया धर्मदाय दिखावटी धर्मदाय माना जायेगा और यह विधि मान्य नहीं होगी ।