हिन्दू स्त्री की सम्पत्ति के उत्तराधिकार के सामान्य नियम क्या हैं ?
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम , 1956 के अन्तर्गत एक हिन्दू स्त्री की सम्पत्ति के उत्तराधिकार के सामान्य नियम क्या हैं ? ( What are the general rules of Succession to the Property of a Hindu Female under the Hindu Succession Act , 1956 ? )
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम , 1956 के पूर्व एक हिन्दू स्त्री दो प्रकार की सम्पत्ति रखती थी- ( 1 ) स्त्री धन , ( 2 ) हिन्दू नारी सम्पदा । स्त्री धन के ऊपर स्त्री का पूर्ण स्वामित्व होता था और उसकी मृत्यु के बाद वह सम्पत्ति उसके वारिसों को चली जाती थी । नारी सम्पदा की वह स्वामिनी तो होती थी किन्तु सम्पत्तिनिर्वतन ( Devolution ) का अधिकार सीमित होता था और उसकी मृत्यु के बाद वह सम्पत्ति उसके वारिसों को न मिलकर गत स्वामी के वारिसों को चली जाती थी ।
अब वर्तमान अधिनियम की धारा 14 ने नारी सम्पदा को समाप्त कर दिया है । अब स्त्री किसी भी सम्पत्ति की सीमित स्वामी न होकर पूर्ण स्वामी हैं ।
धारा 14 के अनुसार , ” हिन्दू नारी द्वारा अधिकृत कोई सम्पत्ति चाहे वह इस अधिनियम के प्रारम्भ होने के पूर्व या पश्चात् अर्जित की गई हो , पूर्ण स्वामी के रूप में न कि सीमित के रूप में धारित की जायेगी ।
स्त्री सम्पत्ति उत्तराधिकार के नियम – धारा 15 के उत्तराधिकार के सामान्य नियम बताये गये हैं तथा धारा 16 में उत्तराधिकार क्रम का उल्लेख किया है ।
धारा 15 इस प्रकार है धारा 15 – ( 1 ) एक ऐसी हिन्दू स्त्री की सम्पत्ति जो निर्वसीयत मरती है ; धारा 16 में निहित उत्तराधिकार क्रम के अनुसार न्यागत होती है –
( क ) सर्वप्रथम ( किसी पूर्व मृत पुत्र या पुत्री की सन्तान के सहित ) पुत्रों और पुत्रियों और पति को ।
( ख ) द्वितीय , पति के दायदों को ,
( ग ) तृतीय , माता तथा पिता को ,
( ड ) अन्त में , माता के दायदों को ।
( घ ) चतुर्थ , पिता के दायदों को ,
( 2 ) उपधारा ( 1 ) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी –
( क ) अपनी माता या पिता से हिन्दू स्त्री द्वारा दाय में कोई सम्पत्ति मृत के ( किसी पूर्वमृत या पुत्र की सन्तान सहित ) किसी पुत्र या पुत्री के अभाव में उपधारा ( 1 ) में निर्दिष्ट अन्य दायदों को उसमें उल्लिखित क्रम से न्यागत न होकर पिता के दायदों को न्यागत होगी ।
( ख ) अपने पति या श्वसुर से हिन्दू स्त्री दाय में प्राप्त कोई सम्पत्ति मृतक के ( किसी पूर्वमृत पुत्र या पुत्री के सन्तान के सहित ) किसी पुत्र या पुत्री के अभाव में उपधारा ( 1 ) में निर्दिष्ट अन्य दायदों का उल्लिखित क्रम में न्यागत न होकर पति के दायदों में न्यागत होगी ।
इस प्रकार धारा 15 की उपधारा 1 ( 2 ) के अन्तर्गत एक मृतक हिन्दू स्त्री की सम्पत्ति को , पुत्र , पुत्री एवं पति का एक साथ दाय में प्राप्त करेंगे । सम्पत्ति का बँटवारा व्यक्तिपरक ( per_capita ) होता है । परन्तु जहाँ मृतक ( हिन्दू स्त्री ) के जीवन काल में उसका पुत्र , अपने स्वयं के पुत्र एवं पुत्री को छोड़कर करता है तो मृत पुत्र के पुत्र एवं पुत्री उपर्युक्त हिन्दू स्त्री की सम्पत्ति को पितृपरक रूप में ग्रहण करेंगे । अर्थात् जो सम्पत्ति उसके पिता को मिलती उसे बराबर ग्रहण कर लेंगे । इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि पुत्र से तात्पर्य उस दस्तक तथा जारज तीनों प्रकार के पुत्रों से है । शून्य विवाह से उत्पन्न पुत्र की इसके अन्तर्गत आता है किन्तु इसमें . सौतेला पुत्र नहीं आता । एक से अधिक पतियों से उत्पन्न हुए सभी पुत्र नारी की सम्पत्ति के दायद होंगे ।
यदि एक पुत्री यह सिद्ध करने के लिए असफल रहे कि वह मृतक स्त्री की पुत्री है और मृतक की सम्पत्ति नजदीकी विशेष अधिकार प्राप्त उत्तराधिकारी की हो जाती है तो उस सम्पत्ति में भी भूमि में कुछ हिस्से का कब्जा उस लड़की को अपने जीवनपर्यन्त इस्तेमाल को दिया जाना न्याय हित में रहेगा ।
भगत राम बनाम तेजा सिंह के बाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया । कि जहाँ कोई स्त्री ऐसी कोई सम्पत्ति अपनी माता से दाय में प्राप्त करती हो जो उसने उसके पिंता से प्राप्त की थी और वह स्वयं निःसन्तान मर जाती , वहाँ न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि ऐसी स्थिति में वह सम्पत्ति उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 ( क ) से प्रशासित होगा , अर्थात् उसकी इस प्रकार दाय में प्राप्त सम्पत्ति उसके पति के दायदों में न जा करके बल्कि उसकी माता के दायदों में क्रम से न्यायगत होगी ।
श्रीमती महिन्दर बनाम करतारसिंह में उच्चतम न्यायालय ने यह विनिश्चय किया है कि हिन्दू नारी द्वारा धारित कोई सम्पत्ति जो इन अधिनियम के लागू होने के दिनांक पर एक सीमित सम्पदा के रूप में भी उसकी पूर्ण सम्पत्ति हो गई । तदनुसार उस हिन्दू नारी की मृत्यु पर उसके द्वारा छोड़ी गयी सम्पत्ति धारा 16 के अधीन धारा 15 के खण्ड ( 2 ) ( क ) में उल्लिखित उत्तराधिकारियों द्वारा प्राप्त की जायेगी । इस प्रकार जहाँ एक हिन्दू नारी ने सीमित स्वामी के रूप में अपने पति से कुछ सम्पत्ति दाय में प्राप्त किया है और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के प्रवर्तन के दिनांक पर उसकी पूर्ण स्वामी हो गई है और बाद में मर गई है तब उसके पूर्व मृत पुत्र की पुत्री उसके मृत पति की बहिन के ऊपर वसीयत प्राप्त उत्तराधिकारी हो जायेगी ।
धारा 16- धारा 15 निर्दिष्ट दायदों के मध्य उत्तराधिकार का क्रम तथा उनमें एक निर्वसीयती सम्पत्ति का वितरण निम्नलिखित अर्थात् –
नियम 1- धारा 15 की उपधारा ( 1 ) में उल्लिखित दायदों में से प्रथम प्रविष्टि में , के दायदों को किसी वाद की प्रविष्टि में से दायदों की तुलना में अभिमान्यता प्राप्त होगी तथा एक नियमों के अनुसार होगा प्रविष्टि वाले दायद एक साथ अंशभागी होंगे ।
नियम 2- यदि निर्वसीयता को कोई पुत्र अथवा पुत्री निर्वसीयत की मृत्यु के पूर्व ही मर जाती है तथा निर्वसीयत की मृत्यु के समय उसकी कोई सन्तान , अर्थात् , पुत्र अथवा पुत्री – जीवित रहती है तो ऐसे पूर्व मृत पुत्र या पुत्री की सन्तान परस्पर वह अंश लेगी जिसे यदि निर्वसीयत की मृत्यु के समय ऐसा पुत्र अथवा पुत्री जीवित होती तो वह ग्रहण करता या करती ।
नियम 3 धारा 15 की उपधारा ( 1 ) के खण्ड ( ख ) , ( घ ) , ( ड़ ) और उपधारा ( 2 ) में निर्दिष्ट दायदों को निर्वसीयत की सम्पत्ति उसी क्रम में और उन्हीं नियमों के अनुसार न्यागत होगी और जो यदि सम्पत्ति यथास्थिति पिता – माता अथवा पति की होती है और निर्वसीयत की तुरन्त मृत्यु के पश्चात् उस सम्पत्ति के सम्बन्ध में निर्वसीयत रहकर ऐसा व्यक्ति मर गया होता तो लागू होती ।
इन दोनों उपर्युक्त धाराओं का अध्ययन एक साथ करना अधिक उपयुक्त होगा । धारा ’15 की उपधारा ( 1 ) में दायदों को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है । उनका निर्देश सम्बन्धों के माध्यम से किया गया है । धारा 16 के नियम 3 के अनुसार पति , पिता अथवा माता प्रस्तावक के रूप में माने जाते हैं । मृत निर्वासीयती स्त्री प्रस्तावक नहीं मानी जाती है ।
उपर्युक्त दृष्टान्त में स्त्री , निर्वसीयत अपने पति एक पुत्री , एक पुत्र तथा पूर्वमृत एक पुत्र से दो पौत्र , एक पौत्री तथा पूर्व मृत एक पुत्री से एक पौत्र तथा एक पौत्री छोड़कर करती है
ऐसी दशा में सभी दायदं धारा 15 के खण्ड ( 1 ) के अन्तर्गत आने के कारण एक मात्र सम्पत्ति को प्राप्त होगा । जो पूर्व मृत पुत्र अथवा पुत्री है , उसका अंश उसके पुत्र एवं पुत्रियों में बराबर – बराबर विभाजित होगा । नियम दो अनुसार पौत्र 3 तथा 4 तथा पौत्री 3 न कि व्यक्तिपरक वरन् पितृपरक रूप से ग्रहण करेंगे । इसी प्रकार पौत्र 5 तथा पौत्री 4 प्रत्येक 1/10 अंश ग्रहण करेंगे ।