दाय कभी प्रसुप्तावस्था में नहीं होता है । इस कथन की व्याख्या कीजिए
दाय कभी प्रसुप्तावस्था में नहीं होता है । इस कथन की व्याख्या कीजिए और कोई अपवाद हो तो बताइये । ( Day never happens in dormancy. Explain this statement and point out any exceptions. )
दाय कभी प्रसुप्तावस्था में नहीं होता है । इस कथन का तात्पर्य यह है कि कोई भी सम्पत्ति का एक क्षण के लिए बिना स्वामी के नहीं रह सकती जैसे ही सम्पत्ति के स्वामी की मृत्यु होती है वैसे ही सम्पत्ति उसके उत्तराधिकारियों में निहित हो जाती है ।
हिन्दू विधि में तो सम्पत्ति उसी वस्तु को कहते हैं जिनका कोई – न – कोई स्वामी हो । किसी सम्पत्ति का थोड़े काल के लिए भी कोई स्वामी न होने पर वह अनधिकृत होगी और फिर उस सम्पत्ति को ले लेने वाला व्यक्ति किसी अपराध का दोषी न होगा । इसलिए जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो विधि प्रक्रम में तुरन्त ही उसकी सम्पत्ति उसके दायद को चली जाती है ।
हिन्दू विधि के अन्तर्गत पिता के मरने के बाद सम्पत्ति का उत्तराधिकारी पुत्र होता है और यदि संयुक्त परिवार की सम्पत्ति है तो वह अपने हिस्से को प्राप्त करने के लिए दावा कर सकता है । दाय का नियम केवल उन लोगों पर लागू होता है जो जीवित पैदा होता है । कोई भी मृतक व्यक्तिवाद में उत्तराधिकार प्राप्त नहीं कर सकता है । इसलिए इस नियम को मान्यता प्रदान की गई है कि गर्भस्थ बच्चा दाय प्राप्त करता है ।
क्योंकि वह दाय के लिए जीवित समझा जाता है जो सम्पत्ति एक बार निहित हो जाती है उसे छीना नहीं जा सकता । यह एक सर्वकालीन नियम है कि सम्पत्ति एक बार निहित हो जाने पर छीनी नहीं जा सकती । मृतक की मृत्यु के बाद जब उसकी सम्पत्ति एक बार उसके निकट के दायद को चली जाती है तो उसके पश्चात् निकटता दायद के जन्म लेने से वह सम्पत्ति अनिहित नहीं हो सकती । हिन्दू विधि में इस नियम के दो अपवाद हैं
( 1 ) गर्भस्थ दायद – किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय यदि उसका कोई निकट दायद गर्भ में हो तो उत्पन्न होने पर वह किसी दूर के दायर में निहित सम्पत्ति को अनिहित कर देगा ।
( 2 ) दत्तक पुत्र – जब सम्पत्ति किसी विधवा को मिल जाती है और वह अपने पति के नाम से दत्तक ग्रहण करती है तो यह नियम लागू नहीं होगा किन्तु इन हिन्दू दत्तक ग्रहण तथा भरण – पोषण अधिनियम , 1956 की धारा 12 ( c ) के अनुसार दत्तक पुत्र किसी ऐसे व्यक्ति को सम्पत्ति अनिहित नहीं कर सकता जो उसके दत्तक ग्रहण के पूर्व किसी व्यक्ति के निहित हो चुकी है ।
गदोधर मलिक बनाम ऑफीसियल ट्रस्टी ऑफ बंगाल के बाद में जुडीशियल कमेटी ने यह निरूपित किया था कि नियम यह है कि “ उत्तराधिकार का हक सम्पत्ति में मृत्यु के तुरन्त पश्चात् निहित हो जाता है । गर्भस्थ संतान तथा दत्तक पुत्र की स्थिति को छोड़कर अन्य सभी स्थितियों में एक बार उत्तराधिकार में सम्पदा निहित हो जाती है तो वह साथ में किसी ऐसे व्यक्ति के नाम से अनिहित नहीं हो सकती जो कि स्वामी की मृत्यु के समय यदि जीवित हो तो अधिमान्य उत्तराधिकारी होता ।