मुस्लिम विधि के क्या स्रोत है कानून के स्रोत के रूप में इज्मा के महत्व
मुस्लिम विधि के क्या स्रोत हैं ? विधि के स्रोत के रूप में इज्मा के महत्व की विवेचना कीजिए । (What are the various sources of Muslim Law ? Discuss the importance of ljma as a source of law.)
मुस्लिम विधि के स्रोत (Sources of Mulism Law)
मुस्लिम विधि के स्रोत- मुस्लिम विधि एक धार्मिक विधि है। मुस्लिम विधि इस्लाम के सिद्धान्तों के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। आज भी मुस्लिम विधि के अंतर्गत कुछ ऐसे सिद्धान्त (Theories) हैं जिन्हें सभ्य समाज स्वीकार करने में हिचकिचाहट महसूस करता है। मुस्लिम विधि केवल तकरीवन 1400 वर्ष पुरानी है। पैगंबर मोहम्मद साहब के माध्यम से ईश्वर (अल्लाह) के आदेश एवं पैगम्बर मुहम्मद साहब के आचरण के आधार पर मुस्लिम निधि के सिद्धान्तों की सम्पूर्ण व्याख्या की गई है।
मुस्लिम विधि के स्रोतों को प्रमुखतया दो भागों में विभाजित किया गया है-
(i) प्राचीन स्रोत, एवं (ii) मुस्लिम विधि के आधुनिक स्रोत !
(i) मुस्लिम विधि के प्राचीन (परम्परागत) स्रोत- ये प्राचीन स्रोत प्रमुखतया इस प्रकार हैं- (i) कुरान, (b) सुन्नत एवं हदीस, (c) इज्मा, (d) कियास।
(II) मुस्लिम विधि के आधुनिक स्रोत- मुस्लिम विधि के आधुनिक स्रोत इस प्रकार हैं- (a) प्रथाएँ एवं रूढ़ियाँ, (b) न्यायिक विनिश्चय, (c) विधायन, (d) न्याय, साम्या तथा सद्विवेक ।
मुस्लिम विधि के स्रोत के रूप में इज्मा का महत्व (Importance of lima as a Source of Muslim Law)
कुरान एवं हदीस के बाद मुस्लिम विधि का प्रामाणिक एवं महत्वपूर्ण स्रोत इज्मा है, अर्थात् जिस विषय पर कुरान एवं हदीस तथा सुन्नत में जिक्र (उल्लेख ) नहीं मिलता वहाँ इज्मा काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। इज्मा का शाब्दिक आशय ‘एकमत होने’ से है।
सर अब्दुर्रहीम ने इज्मा की परिभाषा इस प्रकार दी है- “विधि के किसी प्रश्न पर विशेष काल में पैगम्बर मोहम्मद (स.) के अनुयायियों में से विधिवेत्ताओं का मतैनय।” अर्थात् “Agree ment of the Justists among the followers of the prophet Mohammad (S) is a particular age on a particular question.”
इम का सिद्धान्त कुरान के निम्नलिखित आदेशों पर आधारित है- अल्लाह की आज्ञा मानो उसके रसूल की आज्ञा मानो और तुममें से जो प्राधिकारी हों, उनकी आज्ञा मानो यदि तुम्हें जान न हो तो उनसे पूछो जिन्हें ज्ञान है।
इसके अलावा दृष्या का सिद्धान्त इस हदीश पर आधारित है कि, “अल्लाह अपने बंदों को गलती पर सहमत नहीं होने देगा।” समय एवं महत्व की दृष्टि से इज्या विधि का तृतीय स्रोत है समय बीतने, सभ्यता का विकास होने और इस्लाम का प्रसार होने पर बहुत-सी ऐसी समस्याएँ उठीं जिनका हल कुरान एवं अहादिस के निर्देश से नहीं किया जा सकता थ।
अतः विधिवेत्ताओं ने इज्मा का सिद्धान्त अर्थात् किसी विशेष प्रश्न पर किसी विशेष काल के मुस्लिम विधिवेत्ताओं की सहमति निकाला। हर एक मुसलमान इज्मा के निर्माण में भाग लेने के योग्य नहीं माना जाता था। सिर्फ विधिवेत्ता (मुजतहिद) ही इज्मा के निर्माण में हिस्सा ले सकते थे। मुजतहिद होने के लिए यह जरूरी योग्यता यह थी कि प्रथम, ऐसा व्यक्ति मुसलमान हो, दूसरे, उसे विधि का पर्याप्त ज्ञान हो एवं तीसरे वह स्वतन्त्र निर्णय लेने की क्षमता रखता हो।
विधिवेत्ताओं के मतैक्य से विधिनिर्माण की प्रक्रिया को इज्तिहाद कहते हैं लेकिन मुजतहिद (विधिवेत्तागण ) बिना किसी आधार के निर्णय नहीं दे सकते थे, उन्हें अपनी राय (Opinion) को कुरान या परम्परा के आधार पर न्यायोचित साबित करना जरूरी रहता था।
हालाँकि इज्मा के आधार पर निर्मित नियम भिन्न-भिन्न मुस्लिम सम्प्रदायों में भिन्न हैं, लेकिन यह सुस्थापित है कि एक बार अगर इज्मा स्थापित या सर्वमान्य हो गया तो उसे निरंस्त (cancel) नहीं किया जा सकता। सुन्नी सम्प्रदाय की हनाफी विचारधारा को मानने वालों के लिए इज्मा एक एवं मुख्य स्त्रोत है। मुस्लिम विधि में इज्मा को तीन भागों में बाँटा गया है-
(i) पैगम्बर मुहम्मद साहब के साथियों का इज्मा – मुसलमानों के शिया तथा सुन्नी दोनों सम्प्रदाय इस इज्मा को सबसे अधिक प्रमाणिक एवं महत्वपूर्ण मानते हैं, क्योंकि चूँकि ये लोग मुहम्मद साहब के अधिक निकट रहते थे, इसलिए उन्होंने मुहम्मद साहब की तरह ही तर्क को अपनाया था। इसके लिए यह जरूरी था कि इन इज्माओं को विश्वसनीय लोगों के द्वारा समर्थन दिया गया हो ।
(ii) विधिवेत्ताओं का इज्मा- इस विषय में इन पदों पर मतभेद है – (a) इज्मा की विरचना की ठीक प्रक्रिया, जो कहीं लेखबद्ध नहीं की गई है, (b) इज्मा की विरचना के लिए जरूरी विधिवेत्ताओं की ठीक संख्या (c) क्या इज्मा मतैक्य से होता है या बहुमत के विनिश्चय से, (d) क्या विधिवेत्ताओं के निश्चय के कारणों का भी उल्लेख करना चाहिए, एवं (e) क्या इज्मा होने के लिए सभी विधिवेत्ताओं को एक साथ बैठना चाहिए ? अब्दुर्रहीम के अनुसार, इज्ना को ऐसी किसी औपचारिकता की जरूरत नहीं है, लेकिन विधिवेत्ताओं को इज्मा का महत्व तभी हो सकता है जब वे इसके लिए पूरी तौर से अर्हतावान हों एवं जीवन में अपनी राय न बदलें।
इज्मा को स्वीकार करने के पीछे तर्क यह है कि किसी बात पर एक व्यक्ति तो गलती कर सकता है लेकिन कई व्यक्ति किसी ऐसी बात पर सहमति नहीं जताते जो सच न हो एवं अगर कई विधिवेत्ता किसी बात पर सहमत हो जाएँ तो अत्यधिक सम्भावना रहती है कि वह गलती से बिल्कुल मुक्त हैं या उसके गलत की सम्भावना कम से कम रहती है। इज्मा ने मुस्लिम विधि की निर्माण प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण योगदान किया एवं मुस्लिम विधि का विकास स्थगित नहीं हुआ।
(iii) जनता का इज्मा – मुस्लिम अवाम (जनता) के द्वारा सर्वमान्य सिद्धान्त अर्थात् ऐसे नियम जिन पर साधारण जनता सहमत है वह जनता का इज्मा कहलाता है। इज्मा मुस्लिम जनता की धर्मविषयक सहमति है। हालांकि जनता के इज्मा को विशेष महत्व प्राप्त नहीं है लेकिन इबादत (प्रार्थना) एवं धार्मिक विषय पर जनता के द्वारा अपनाए गए नियम मुस्लिम वर्ग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।