अशोक का शासन प्रबन्ध
अशोक का शासन प्रबन्ध -Ashoka’s Administration
अशोक के शासन प्रबन्ध का आधार उसके दादा चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन प्रणाली थी । परन्तु कलिंग युद्ध के कारण अशोक के व्यक्तिगत तथा राजनीतिक जीवन में क्रान्ति आ गई । इससे अशोक के राज्यधर्म के दृष्टिकोण में और अधिक विस्तार हुआ । नागरिकों की नैतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति उसके जीवन का परम लक्ष्य बन गया । इसी कारण उसने शासन प्रबन्ध में कई आवश्यक सुधार किये जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार से है
1. प्रजा की सेवा का आदर्श -Ideal to Serve his Subject — कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक के विचारों में भारी परिवर्तन आया तथा इसका प्रभाव उसके राजनीतिक आदर्शों पर पड़ा । कलिंग विजय से पूर्व वह भी अपने बाप – दादा की भान्ति साम्राज्यवादी नीति का समर्थक था । परन्तु अब उसने प्रजा की सेवा को अपना एकमात्र ध्येय बना लिया । अशोक ने कलिंग शिलालेख क्रमांक 2 में उसने स्पष्ट रूप लिखा है , ” सभी मनुष्य मेरी सन्तान हैं । जिस प्रकार मैं चाहता हूं कि मेरी सन्तान इस लोक तथा परलोक में सब प्रकार की समृद्धि तथा सुख भोगे , ठीक उसी प्रकार मैं अपनी प्रजा की सुख – समृद्धि की कामना करता – कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने भोग – विलास के जीवन को त्याग कर दिन – रात प्रजा की भलाई की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया । प्राचीन हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार प्रत्येक मनुष्य तीन ऋणों से दबा होता है – धर्म के प्रति , ऋषियों के प्रति तथा पूर्वजों के प्रति । परन्तु अशोक के अनुसार राजा पर इन तीन ऋणों के अतिरिक्त एक चौथा ऋण भी है- प्रजा का ऋण । अशोक ने शिलालेख क्रमांक 6 में उसने इस प्रकार कहा है , “ मैं जो भी प्रयास करता हूं , वह इसलिए कि प्रजाजनों के प्रति जो मेरा ऋण है उससे मैं मुक्त हो जाऊं ।
2. प्रान्तीय प्रबन्ध-Provincial Administration — अशोक ने चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा स्थापित प्रान्तीय शासन प्रबन्ध को जारी रखा । चन्द्रगुप्त मौर्य के समय सारा साम्राज्य चार प्रान्तों में विभक्त था । परन्तु कलिंग – विजय के पश्चात् इनकी संख्या पांच हो गई थी । इन प्रान्तों की राजधानियां क्रमश : पाटलिपुत्र , तक्षशिला , उज्जयिनी , सुवर्णगिरि तथा तोशाली थीं । पहले की भान्ति अब भी प्रत्येक प्रान्त एक गवर्नर के अधीन होता था जिसे ‘ कुमार ‘ कहा जाता था । प्रत्येक गवर्नर के अधीन कुछ मन्त्री तथा अन्य कर्मचारी होते थे , जो प्रान्त के शासन प्रबन्ध में उसकी सहायता करते थे ।
3 . नए अधिकारियों की नियुक्ति ( Appointment of New Officers ) — अशोक के शासन काल में प्रादेशिक , राजुक , युक्त तथा महामात्य आदि नए अधिकारियों ने शासन प्रबन्ध में सक्रिय भाग लेना आरम्भ कर दिया था । इन अधिकारियों के कार्यों का संक्षिप्त विवरण इस प्र कार है –
- प्रादेशिक – प्रादेशिक छोटे – छोटे प्रान्तों के मुखिया थे । प्रादेशिक के कार्यों में अपने प्रदेश से कर वसूल करना , फौजदारी मुकद्दमे का निपटारा करना , चोरियों का पता लगाना तथा सरकारी कर्मचारियों के कार्यों का निरीक्षण करना आदि प्रमुख थे । प्रत्येक 5 वर्ष पश्चात् ये भ्रमण करके शासन प्रबन्ध का निरीक्षण करते थे ।
- राजुक – राजुक का पद बहुत महत्त्वपूर्ण था । स्तम्भ लेख क्रमांक 4 में बताया गया है कि उनके अधीन हज़ारों मनुष्य हुआ करते थे । डॉ ० रोमिला थापर ने तो उन्हें ‘ ग्राम्य प्रबन्ध की आधारशिला ‘ कहकर पुकारा है । उनके मुख्य कार्य भूमि की पैमाइश करना , न्याय सम्बन्धी कार्य करना तथा नदियों की देखभाल करना था । अशोक ने राजुकों के अधिकार काफ़ी बढ़ा दिए थे ।
- युक्त – युक्त कोषाध्यक्ष थे । वे मालगुज़ारी की वसूली , सम्पत्ति का निरीक्षण तथा आय – व्यय का ब्यौरा रखते थे । कुछ विद्वानों ने युक्त को महामात्यों के कार्यालय का मन्त्री बताया है । उनके अनुसार वे राज्य की आज्ञाओं का संकलन करते थे
- महामात्य – अशोक के समय में प्रत्येक विभाग का अलग – अलग अध्यक्ष होता था जिसे महामात्य कहा जाता था । अन्तःपुर के अध्यक्ष को गणिकाध्यक्ष , नगर के अध्यक्ष को नगराध्यक्ष , खज़ाने के अध्यक्ष को कोषाध्यक्ष तथा खानों के अध्यक्ष को खानाध्यक्ष कहा जाता था ।
4. राज्याधिकारियों को आदेश-Orders to the State Officers — अशोक न केवल प्रजा को अपनी सन्तान समझ कर उसकी सेवा के आदर्श को अपनाया , अपितु उसने अपने राज्य अधिकारियों को भी इसका पालन करने का आदेश दिया । अशोक ने अपने गवर्नरों की नियुक्ति के उद्देश्य को उसने शिलालेख नं ० 4 में व्यक्त किया है कि यह धाय मेरे बालक को सुख देने की यथाशक्ति चेष्टा करेगी , उसी प्रकार देश के कल्याण तथा सुख ‘ जिस प्रकार मनुष्य अपने बच्चे को निपुण धाय को सौंप कर निश्चिन्त हो जाता है और विचार करता के लिए मैंने गवर्नरों की नियुक्ति की है | अशोक ने अपने राज्याधिकारियों को स्पष्ट रूप से आदेश दे रखा था कि वे जनता के साथ क्रूरता का व्यवहार न करें । इसके स्थान पर वे उन्हें सुखी तथा समृद्ध बनाने का हर सम्भव प्रयास करें ।
5. साम्राज्य में विभिन्न भागों का भ्रमण ( Tour to different parts of the Empire ) — अशोक समय समग्र पर अपने राज्य का स्वयं भ्रमण करता था । उसके इस भ्रमण का एकमात्र उद्देश्य यह देखना होता था कि प्रजा सुख – शान्ति का जीवन व्यतीत कर रही अथवा नहीं । सम्राट् ने अपने राजुकों , प्रादेशिकों , कुमारों तथा युक्तों को भी आदेश दे रखा था कि वे प्रत्येक तीसरे अथवा पांचवें वर्ष प्रजा की वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिए भ्रमण किया करें । इनके भ्रमण का प्रभाव यह पड़ा कि राज्याधिकारियों तथा प्रजा में आपसी सम्पर्क बढ़ा तथा जन साधारण सुख – शान्ति से जीवन बिताने लगा ।
6. दण्ड विधान में सुधार ( Reforms in Penal Code ) — अशोक ने चन्द्रगुप्त मौर्य तथा बिन्दुसार के काल की दण्ड – प्रणाली में भी काफ़ी सुधार किया । उसने दण्ड उदार बनाए । इस क्षेत्र में उसका प्रशंसनीय कार्य मृत्यु दण्ड पाने वाले व्यक्तियों को तीन दिन का समय प्रदान करना था । इसका उद्देश्य यह था कि मृत्यु से पहले अपराधी तीन दिनों में अपने आगामी जीवन को सुधारने का प्रयत्न कर सके ।
7. पड़ोसी राजाओं से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध ( Friendly relations with the Neighbouring Kings ) — अशोक ने अपने पड़ोसी राजाओं से भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किए । उसने उन्हें यह सन्देश भेजा , ” राजा चाहता है कि सीमान्त जातियां उससे भय न खाएं , अपितु उस पर विश्वास रखें । उससे उन्हें दुःख नहीं , अपितु प्रसन्नता की प्राप्ति होगी । ” ” इससे शान्ति और सद्भावना के प्रसार को और बल मिला ।
8. सैन्य व्यवस्था में परिवर्तन ( Changes in Military System ) – अपने शासनकाल के आरम्भिक दिनों में अशोक ने भी चन्द्रगुप्त तथा बिन्दुसार की सैन्य व्यवस्था को अपनाया था । कलिंग युद्ध के पश्चात् यद्यपि अशोक ने सैन्य व्यवस्था की अवहेलना नहीं की , फिर भी सेना का प्रयोग कल्याणकारी कार्यों के लिए किया जाने लगा । अब उसका ध्यान अपनी प्रजा के कल्याण की ओर अधिक तथा सैनिक संगठन की ओर कम हो गया था ।
9. अहिंसा ( Non – Violence ) – कलिंग विजय से पूर्व अशोक को अहिंसा के सिद्धान्त से विशेष लगाव न था । परन्तु इस युद्ध के भयंकर परिणामों को देखकर उसने दिग्विजय के स्थान पर धर्म – विजय को अपना लक्ष्य बनाया । उसने अहिंसा के सिद्धान्त को विशेष महत्त्व दिया । उसके शिलालेखों से पता चलता है कि उसने राज्य में पशु – वध पर रोक लगा दी । राजकीय भोज ों में भी मांस का प्रयोग बन्द कर दिया गया । वर्ष में 56 दिन मछली खाने पर अंकुश लगा दिया गया । जंगलों की सुरक्षा • लिए विभिन्न कानून बनाए गए । इसके अतिरिक्त शिकार यात्राएं समाप्त कर दी गईं । अन्त में हम डॉ ० राधा मुखर्जी के शब्दों से सहमत हैं कि , 24 अपनी पदवी और उत्तरदायित्व से सम्बन्धित ऐसे विचार रखने वाला लोकतन्त्रीय शासन की आधुनिक व्यवस्थापिका अथवा लोकसभा से भी बढ़कर व्यावहारिक रूप में लोगों का प्रतिनिधि है ।
10. प्रजा हितार्थ कार्य ( Works of Public Utility ) — कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक का एक मात्र ध्येय प्रजा की भलाई करना बन गया । उसके स्तम्भ लेखों तथा शिलालेखों से पता चलता है कि अशोक ने अनेक कल्याणकारी कार्य किए । उसने केवल मनुष्यों के लिए नहीं , अपितु पशुओं के लिए भी अस्पतालों का व्यवस्था की । सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाए गए तथा प्रत्येक आधे कोस से अन्तर पर कुएं खुदवाए गए । यात्रियों के विश्राम के लिए विश्राम गृह भी बनाए गए थे ।