अशोक एक महान् सम्राट् के रूप में-Ashoka as a Great Monarch

अशोक की गणना विश्व के महान् सम्राटों में की जाती है । वह चन्द्रगुप्त मौर्य का पौत्र तथा बिन्दुसार का पुत्र था । उसके जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना कलिंग युद्ध थी जिसने उसकी जीवनधारा ही बदल दी । तत्पश्चात् अशोक ने प्रदेशों को विजित करने के स्थान पर लोगों के दिलों को विजित करने पर बल दिया । उसने अपने शासनकाल में प्रजा हित के लिए इतने कार्य किए कि विश्व इतिहास में उसका नाम एक महान् सम्राट् रूप में सदा के लिए अमर हो गया । प्रसिद्ध इतिहासकार एच ० जी ० वेल्ज़ के अनुसार , के ” इतिहास के पृष्ठों पर हज़ारों लाखों महाराजाओं के नाम भरे पड़े हैं परन्तु इनमें से केवल अशोक का नाम ही सबसे अधिक प्रकाशमान सितारे की भान्ति चमक रहा है । ( अशोक के निम्नलिखित कार्यों से उसकी महानता के दर्शन होते हैं

अशोक एक महान् सम्राट् के रूप मेंअशोक एक महान् सम्राट् के रूप में

1. युद्धों का त्याग -Giving up Wars — इतिहास साक्षी है कि विश्व में प्रत्येक सम्राट् का लक्ष्य अपने राज्य का विस्तार करना रहा है । अशोक ने भी आरम्भ में यही नीति अपनाई और कलिंग राज्य पर आक्रमण कर दिया । भले ही इस युद्ध में अशोक को विजय प्राप्त हुई , तो भी यह युद्ध उसके जीवन का अन्तिम युद्ध सिद्ध हुआ । इस युद्ध में हुए रक्तपात को देखकर अशोक को युद्धों से इतनी घृणा हो गई कि उसने युद्धों का सदा के लिए त्याग कर दिया । उसने अब दिग्विजय ( प्रदेशों की विजय ) की नीति छोड़ धर्म विजय की नीति अपना ली । अशोक को छोड़ कर पूरे विश्व के इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता जिसमें किसी सम्राट् ने विजय प्राप्ति के बाद युद्धों का त्याग कर दिया हो ।

2. पशु संरक्षण-Animal Protection — अशोक मनुष्यों के साथ – साथ पशुओं के प्रति भी दयालु था । डॉ ० डी ० आर ० भण्डारकर के शब्दों में , उसका आदर्श समस्त संसार के मनुष्यों के अतिरिक्त पशुओं तथा अन्य जीव जन्तुओं का भौतिक एवं आध्यात्मिक कल्याण करना था । अशोक का विचार था कि प्रत्येक प्राणि को प्रकृति द्वारा निर्धारित अन्तिम सांस तक जीवित रहने का अधिकार है । परन्तु बाद में उसने पशु – वध पर पूरी तरह से रोक लगा दी । उसने स्वयं भी शिकार खेलना और मांस खाना बन्द कर दिया । उसने पशु – रक्षा के उद्देश्य से अनेक अस्पताल भी खुलवाये जहां पशुओं की चिकित्सा की जाती थी । अशोक के अतिरिक्त विश्व में कोई भी ऐसा सम्राट् नहीं हुआ जिसके मन में पशुओं के प्रति इतना दया – भाव हो । अशोक की यह दया- भावना उसकी महानता की प्रतीक है ।

3. भारतीय एकता की स्थापना -Establishment of Indian Unity — अशोक ने भारत को एक राजनीतिक सूत्र में बांध दिया । अशोक ने अखिल भारतीय स्तर की शासन प्रणाली की स्थापना की । सम्पूर्ण देश में शिलालेख तथा स्तम्भ लेख स्थापित किए गए । लगभग पूरे साम्राज्य में एक समान राज्यादेश लागू थे । पाली भाषा तथा ब्रह्मी लिपि का प्रयोग सर्वत्र होने लगा था । इससे भारत को एक अभूतपूर्व राजनीतिक तथा सांस्कृतिक एकता प्राप्त हुई । निस्सन्देह यह एक महान् उपलब्धि थी ।

4.मानव सेवा-Service to Mankind — अशोक के जीवन का मुख्य लक्ष्य मानवता की सेवा करना था । कलिंग युद्ध के पश्चात् वह तन – मन – धन से मानव कल्याण में जुट गया । वह अपनी प्रजा को अपनी सन्तान समझने लगा और एक पिता की भान्ति अपने धन को प्रजा के हित में लगाने लगा । उसने सड़कें बनवाई और सड़कों के दोनों ओर छायादार वृक्ष लगवाये । प्यासे यात्रियों की सुविधा के लिए उसने सड़कों के साथ थोड़ी थोड़ी दूरी पर कुएं खुदवाए । उसने अपने राज्य में अनेक बाग भी लगवाये और विश्राम गृह खुलवाये । उसने अनेक दानशालाएं खुलवाईं जहां से दीन – दुःखियों को दिल खोलकर दान दिया जाता था । लोगों की चिकित्सा के लिये अशोक ने अनेक अस्पताल भी खुलवाये । इन अस्पतालों में लोगों को निःशुल्क औषधियां दी जाती थीं । अशोक ने अपने कर्मचारियों को भी प्रजा की भलाई के लिए सदा कार्यशील रहने का निर्देश दिया । इतिहासकार बी ० पी ० शाह तथा के ० एस ० बहेरा लिखते हैं , ” ‘ शायद ही किसी अन्य शासक ने प्रजा के लिये ऐसी अद्वितीय सेवा की हो

5. एक विशाल साम्राज्य -Vast Empire — अशोक का साम्राज्य बहुत ही विशाल था । उसे अपने पिता से विस्तृत साम्राज्य मिला था । परन्तु उसने स्वयं भी कलिंग राज्य को विजय किया और उसे अपने राज्य का एक नया प्रान्त बनाया । इस तरह उसके राज्य की सीमाएं दूर – दर तक फैल गईं । उसका राज्य उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर दक्षिण में मैसूर ( आधुनिक कर्नाटक ) तक फैला हुआ था । पूर्व में यह बंगाल राज्य की खाड़ी तक तथा पश्चिम में अरब सागर तक विस्तृत था । इस समय अशोक समस्त भारत का स्वामी था । भारत के बाहर अफ़गानिस्तान तथा बिलोचिस्तान भी उसके साम्राज्य का अंग थे । भारतीय इतिहास में किसी भी अन्य सम्राट् का राज्य इतना विशाल नहीं था । यहां तक कि मुग़ल सम्राट् अकबर का साम्राज्य भी अशोक के साम्राज्य से छोटा था । यह विशाल साम्राज्य अशोक की महानता का आधार बना ।

6. आदर्श शासन प्रणाली -Ideal System of Government— अशोक शासक के रूप में भी महान् था । इसमें कोई सन्देह नहीं कि उसने अपने दादा चन्द्रगुप्त द्वारा आरम्भ की गई शासन प्रणाली को ही अपनाया । परन्तु जन – कल्याण को बढ़ावा देने के लिए उसने अपनी शासन व्यवस्था में कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए । उसने प्रजा की भलाई को ही प्रशासन का एकमात्र लक्ष्य बनाया । उसने अपने साम्राज्य को चार प्रान्तों में बांटा और कर्मचारियों को जन – सेवा में जुट जाने का आदेश दिया । लोगों के कष्ट जानने के लिए वह स्वयं भी समय – समय पर अपने राज्य का भ्रमण करता था । उसने अपने कर्मचारियों को यह आदेश दिया कि वे प्रजा की भलाई के लिए कोई प्रयास शेष न छोड़ें । अशोक ने कठोर दण्ड समाप्त करके दण्ड – विधान को नर्म बनाया ।

7. धार्मिक सहनशीलता -Religious Tolerability  — अशोक की धार्मिक सहनशीलता भी उसके महान गुणों में से एक थी । स्वयं बौद्ध धर्म का अनुयायी होते हुए भी उसने सभी धर्मों के प्रति उदारता की नीति अपनाई । उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए हर सम्भव पग उठाया , परन्तु उसने किसी भी व्यक्ति को बौद्ध बनने के लिए विवश नहीं किया । उसने बौद्ध धर्म के साथ – साथ जैन धर्म तथा हिन्दू धर्म को भी उन्नति के समान अवसर दिए । उसने लोगों को आदेश दिया कि वे बौद्ध भिक्षुओं , हिन्दू – ब्राह्मणों और जैन ऋषियों सभी का आदर करें । अशोक ने जैन आजीविकों को गया के समीप बारबर की पहाड़ियों में तीन गुफाएं सौंपी थीं । यह बात उसकी सहनशीलता की नीति का बहुत बड़ा प्रमाण है । अशोक की सहनशीलता उसके एक शिलालेख से प्रकट होती है जिसमें लिखा है , ” हमें अपने धर्म का आदर अवश्य करना चाहिए , दूसरे धर्मों की निन्दा नहीं । हमें अपने धर्म के साथ – साथ अन्य धर्मों का भी आदर करना चाहिए । ऐसा करने से व्यक्ति अपने धर्म को बढ़ावा देता है और दूसरे धर्म का भी हित करता है ।

8. बौद्ध धर्म का प्रचार -Propagation of Buddhism — कलिंग के पश्चात् अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था । उसने अपना सर्वस्व इस धर्म के प्रचार में लगा दिया । उसने एक भिक्षु की भान्ति बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा की और लोगों में महात्मा बुद्ध के उपदेशों का प्रचार किया । उसने बौद्ध भिक्षुओं के लिये अनेक स्तूप तथा मठ बनवाए और इनकी आर्थिक सहायता की । उसने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को शिलालेखों तथा स्तम्भों पर खुदवाया ताकि इन्हें साधारण जनता तक पहुंचाया जा सके । सबसे बढ़कर उसने विदेशों में बौद्ध प्रचारक भेजे । अशोक का पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा बौद्ध धर्म के प्रसार के लिये श्रीलंका गए । अशोक के इन अथक प्रयत्नों से बौद्ध धर्म विश्व के अनेक देशों में फैल गया । डॉ ० आर ० सी ० मजूमदार के शब्दों में , । ” वह अशोक एक मार्ग दर्शक के रूप में प्रकट हुआ । वह बौद्ध धर्म को एक गांव से दूसरे गांव , एक नगर से दूसरे नगर , एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त तक , एक देश से दूसरे देश और एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक ले गया । 11 राजा होकर एक अहिंसावादी धर्म को अपनाना , एक भिक्षु जैसा जीवन बिताना और एक छोटे से धर्म को विश्व धर्म बना देना किसी महान् गुणों वाले सम्राट् का कार्य ही हो सकता है ।

9. शिक्षा तथा साहित्य का विकास -Development of Education and Literature– सम्राट् अशोक के समय में शिक्षा तथा साहित्य में भी बड़ा विकास हुआ । उसने शिक्षा के प्रसार के लिए उचित व्यवस्था की । प्रसिद्ध इतिहासकार वी ० ए ० स्मिथ के अनुसार उसके राज्य में शिक्षित लोगों की संख्या अंग्रेजों के अधीन शिक्षित लोगों से अधिक थी । शिक्षा प्रायः मठों तथा गुरुकुलों में दी जाती थी जिनका खर्चा सरकारी सहायता से चलता था । तक्षशिला तथा बनारस विश्वविद्यालय उस समय संसार भर में प्रसिद्ध थे । कई देशों के विद्यार्थी यहां शिक्षा पाने के लिए आते थे । इन विश्वविद्यालयों में वेद , बौद्ध ग्रन्थ , ज्योतिष शास्त्र , गणित , चिकित्सा तथा पशु विज्ञान के विषय पढ़ाए जाते थे । अशोक के शासनकाल में पाली साहित्य ने भी काफ़ी उन्नति की । प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ ‘ कथावथु ‘ तथा जैन धर्म की अनेक पुस्तकें भी इसी भाषा में लिखी गई थीं ।

10. पड़ोसी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध -Friendly Relations With Neighboring States— अशोक का साम्राज्य बड़ा विशाल था और उसके पास एक शक्तिशाली सेना थी । यदि वह चाहता तो पड़ोसी राज्यों को जीतकर अपने साम्राज्य को और भी विशाल बना सकता था । परन्तु उसने सेनाओं की बजाय पड़ोसी राज्यों में प्रचारक भेजे । सीरिया , इराक आदि देशों में उसने दवाइयां भेजीं । उसकी छत्रछाया में चोल , केरलपुत्र , पाण्डेय आह वंशों के राज्य पूर्णतया सुरक्षित रहे । इसका स्पष्ट प्रमाण हमें कलिंग शिलालेख नं ० 2 से मिलता है जिसमें उसने अपने पड़ोसी राज्यों को आश्वासन दिया है कि , ” वे मुझसे भयभीत न हों , निश्चिन्त रहें । वे मुझसे सुख ही पायेंगे दुःख नहीं । ” उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि अशोक एक महान् सम्राट् था । इतिहासकार एच ० जी ० वैल्ज़ ने सत्य ही कहा है , ” इतिहास के पृष्ठों में हज़ारों लाखों सम्राटों के बीच ….. अशोक , अशोक तथा केवल अशोक का नाम ही सितारे की भान्ति चमकता है ।  

11. ललित कलाओं का विकास -Development of Fine Arts – भारतीय कला का वास्तविक विकास अशोक के काल में ही आरम्भ हुआ था । उसके समय की कला के नमूने केवल भारत की नहीं बल्कि विश्व भर की सुन्दर कृतियों में से एक हैं । उसने श्रीनगर तथा ललितापाटन नामक दो नगर बसाये । उनमें 84,000 स्तूप बनवाए गए थे । स्तूपों में सांची का स्तूप मौर्य कला का अद्वितीय उदाहरण है । अशोकं द्वारा बनवाये गए स्तम्भ भी कुछ कम सुन्दर नहीं हैं । इन्हें पहाड़ों से काट कर साम्राज्य के विभिन्न भागों में लगवाया गया था । इन स्तम्भों के मस्तक पर शेर , हाथी , बैल आदि जानवरों की मूर्तियां खुदी हुई हैं , जो बड़ी आकर्षक लगती हैं । अशोक के स्तम्भों में सारनाथ का स्तम्भ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है । इसके प्रशंसकों का कहना है कि कला का इतना सुन्दर नमूना संसार भर में कहीं भी मिलना कठिन है । भारत सरकार ने इसी स्तम्भ के मस्तक को अपने राज्य चिह्न के रूप में अपनाया हुआ है । भवन निर्माण कला तथा मूर्ति कला के अतिरिक्त अशोक के समय में पॉलिश करने की कला में भी अद्भुत उन्नति हुई । इस तरह अशोक के काल में कला के क्षेत्र में हुई अभूतपूर्व उन्नति के कारण उसे महान् कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है ।

12. अशोक का धम्म -Ashoka’s Law of Piety— इतिहास में केवल अशोक ही ऐसा सम्राट् है जिसने प्रजा की भौतिक उन्नति के साथ – साथ नैतिक उन्नति के विषय में सोचा । उसने अपनी प्रजा के सामने नैतिक सिद्धान्तों का संग्रह प्रस्तुत किया , जो अशोक के ‘ धम्म ‘ अथवा ‘ धर्म ‘ के नाम से प्रसिद्ध है । इस धर्म के मुख्य सिद्धान्त थे – बड़ों का आदर , छोटों से प्रेम व्यवहार , सत्य वचन , अहिंसा , दान , सभी धर्मों का आदर तथा आत्म विश्लेषण करना । अशोक ने इन नियमों को शिलाओं तथा स्तम्भों पर खुदवाया और धर्म महामात्र की सहायता से गांव – गांव में इनका प्रचार करवाया । उसने स्वयं भी इन नियमों का पालन किया और लोगों के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया । इन नियमों को अपना कर लोग सदाचारी बन गये । देश में हिंसा का स्थान अहिंसा ने ले लिया और अपरा ध लगभग समाप्त हो गए । ऐसा सम्राट् निःसन्देह ही महान् था जिसने प्रजा का नैतिक उत्थान करने तथा लोगों के परलोक को सुधारने के लिए प्रयत्न किया ।

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