गुप्त शासकों के द्वारा कला तथा भवन निर्माण

गुप्त शासकों के द्वारा कला तथा भवन निर्माण कला का विकास | Gupt Shaasakon Dvaara Kala Aur Bhavan Kala Ka Vikaas

 

गुप्त काल अपनी कला के लिए चिरकाल तक स्मरण किया जाता रहेगा । गुप्त सम्राटों के अधीन कला के विभिन्न क्षेत्रों जैसे वास्तुकला , मूर्तिकला , चित्रकला , संगीतकला तथा मुद्रा निर्माण कला में अद्वितीय प्रगति हुई ।

परिणामस्वरूप गुप्त काल को प्राचीन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है । गुप्त कला की सबसे महत्त्वपू बात यह थी कि यह पूर्णतः भारतीय थी । डॉ ० वी ० एस ० अग्रवाल के अनुसार , ” गुप्त काल का गौरव आज भी दिखाई देने वाली इसकी कलाकृतियों द्वारा स्थायी हो गया है ।  गुप्त काल में वास्तुकला , मूर्तिकला , चित्रकला , संगीतकला तथा मुद्रा कला का वर्णन इस प्रकार से है

I. वास्तुकला -Architecture 

वास्तुकला  गुप्त सम्राटों को भवन निर्माण कला से अगाध प्रेम था । लगभग सभी गुप्त सम्राटों ने इस क्षेत्र में विशेष रुचि दिखाई । नगरों को आकर्षक भवनों तथा गगनचुम्बी मन्दिरों से अलंकृत किया गया । गुप्तयुगीन वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मन्दिर ही हैं । वास्तव में मन्दिर के अवशेष हमें इसी काल में मिलते हैं । इन मन्दिरों की मुख्य विशेषताएं थीं –

  1. मन्दिरों का निर्माण ऊंचे चबूतरों पर किया जाता था ।
  2. चबूतरों पर चढ़ने के लिए चारों ओर सीढ़ियां बनी होती थीं ।
  3. अधिकांश मन्दिर दीवारों से घिरे होते थे ।
  4. प्रारम्भिक मन्दिरों की छतें चपटी होती थीं , किन्तु बाद में ऊंचे शिखर बनाए जाने लगे ।
  5. प्रारम्भिक मन्दिर ईंटों के बनाए जाते थे , किन्तु बाद में पत्थरों का प्रयोग किया जाने लगा ।
  6. मन्दिरों को भीतर से अच्छी तरह सुसज्जित किया जाता था , परन्तु ये बाहर से सादा होते थे ।
  7. गर्भगृह में मूर्ति स्थापित की जाती थी ।
  8. गर्भगृह के द्वार स्तम्भों को अलंकृत किया जाता था ।
  9. गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए प्रदक्षिणापथ बना होता था जो छत से ढका रहता था ।

गुप्त काल के निर्मित मन्दिरों में देवगढ़ का दशावतार मन्दिर , भूमरा का शिव मन्दिर , नचना का पार्वती मन्दिर , तिगवा का विष्णु मन्दिर तथा भीतरगांव का मन्दिर अपनी उत्कृष्ट कला के कारण प्रसिद्ध हैं । गुप्त काल में अनेक स्तूपों , विहारों तथा गुफ़ाओं का निर्माण भी किया गया । इनमें सारनाथ का धमेख स्तूप , सारनाथ एवं नालन्दा के विहार , अजन्ता , एलौरा , उदयगिरी एवं बाघ की गुफ़ाएं तत्कालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करती हैं । अतः डॉक्टर एच ० वी ० श्रीनिवास मूर्ति का यह कथन पूर्णतः ठीक है , ” गुप्त काल को भारतीय वास्तुकला के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है ।

II. मूर्तिकला -Sculpture 

मूर्तिकला में गुप्त काल में जहां वास्तुकला के क्षेत्र में अद्भुत विकास हुआ , वहां मूर्तिकला भी पीछे नहीं रही । इस युग में मूर्तिकला को नवीन दिशाएं मिलीं । इस काल की मूर्तिकला की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उसने मौर्य के आदर्शों को त्याग दिया । मौर्य काल में पत्थरों पर केवल पशुओं के चित्र खोदे जाते स्थान मानवीय आकृतियों ने ले लिया ।

गुप्त शासक

इसका कारण यह था कि गुप्त सम्राट् मानवीय देवताओं के उपासक थे । । परन्तु अब पशुओं का इन मूर्तियों के बाह्य आकार पर आन्तरिक भावों को बड़े कलात्मक ढंग से उभारा जाता था । गुप्त काल में मूर्ति निर्माण के प्रमुख केन्द्र मथुरा , सारनाथ तथा पाटलिपुत्र थे । गुप्त काल में सबसे अधिक मूर्तियां महात्मा बुद्ध बनीं । ये मूर्तियां गुप्तकालीन मूर्तिकला के सौन्दर्य की प्रतीक हैं ।

गुप्त युग की तीन बुद्ध मूर्तियां प्रमुख हैं —

  1.  सारनाथ की बुद्ध मूर्ति
  2. मथुरा की बुद्ध मूर्ति
  3. सुलतानगंज की बुद्ध मूर्ति ।

सारनाथ की बुद्ध मूर्ति लगभग 2 फुट साढ़े चार इंच ऊंची है तथा इसमें बुद्ध पद्मासन में विराजमान हैं । उनके बाल घुंघराले , कान लम्बे तथा सिर पर अलंकृत प्रभामण्डल है । उसके चेहरे पर बिखरी मुस्कान कारीगरों की कार्य – कुशलता की दाद देती की है । इसी प्रकार मथुरा से प्राप्त खड़े बुद्ध की मूर्ति तथा सुलतानगंज से प्राप्त ताम्र निर्मित बुद्ध मूर्ति में भी गुप्त काल की मूर्तिकला सजीव हो उठी है । बुद्ध की मूर्तियों के साथ – साथ इस काल में विष्णु , शिव , सूर्य आदि देवताओं की अनेक मूर्तियां बनाई गईं । ये मूर्तियां भी गुप्त काल की मूर्तिकला के विकास की प्रतीक हैं । इनमें देवगढ़ के मन्दिर में भगवान् विष्णु की शेषशय्या पर लेटे हुए की मूर्ति तथा उदयगिरि गुफ़ा में वराहावतार की मूर्ति प्रमुख हैं । विष्णु

III. चित्रकला -Painting

गुप्त काल में चित्रकला भी उन्नति की चरम सीमा को छूने लगी थी । गुप्त काल की चित्रकला के दर्शन हमें मध्य भारत में अजन्ता की गुफ़ाओं तथा ग्वालियर में बाघ की गुफ़ाओं में होते हैं । अजन्ता की गुफ़ाओं पर अनेक प्रकार के चित्र चित्रित हैं । इन चित्रों में तात्कालीन चित्रकारों ने महात्मा बुद्ध की जीवनी को बड़ी निपुणता से चित्रित किया है । इसके अतिरिक्त बोधिसत्वों , राजाओं , रानियों , राजकुमारों , देवी – देवताओं , सामान्यजन , पशु पक्षियों , वृक्षों , फलों एवं फूलों के चित्र भी यहां मिलते हैं । सभी चित्रों में बड़े ही गहरे भावों को उभारा गया है ।

भावों को प्रकट करने में चित्रकारों की कार्य कुशलता का सबसे सुन्दर प्रमाण हमें गुफा नं ० 1 के अवलोकितेश्वर बोधिसत्त्व के चित्र श्यामा राजकुमारी के चित्र और गुफ़ा नं ० 16 में मरणासन्न राजकुमारी के चित्र तथा बुद्ध का अपने परिवार से भेंट के चित्र से मिलता है । बाघ की गुफ़ाओं के चित्र भी कला की दृष्टि से कुछ कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं । इसके चित्र प्रायः अजन्ता के चित्रों से मिलते – जुलते हैं । बाघ की गुफ़ा नं ० 3 में झुक रही स्त्री का चित्र विशेष रूप से सराहनीय है । वास्तव में गुप्त काल में चित्रकला के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई । गुप्त चित्रकला के सम्बन्ध में प्रो ० वासुदेवशरण अग्रवाल लिखते हैं ; ” गुप्त काल में चित्रकला अपनी श्रेष्ठता पर पहुंच गई । गुप्त युग में चित्रकला की शिक्षा प्रत्येक नागरिक के सांस्कृतिक जीवन का आवश्यक अंग थी ।

IV. संगीतकला – Music 

विद्वानों का मत है कि गुप्त काल में संगीत कला में भी विकास हुआ । गुप्त सम्राटों के संगीत प्रेम का परिचय हमें इलाहाबाद स्तम्भ लेख तथा गुप्त काल की मुद्राओं से मिलता है । इलाहाबाद स्तम्भ लेख में लिखा है कि सम्राट् समुद्रगुप्त संगीत में नारद और तुम्बरू को भी मात करता था । इसके अतिरिक्त उसकी कुछ मुद्राएं भी प्राप्त हुई हैं जिनमें उसे वीणा पकड़े दिखाया गया है । स्पष्ट है कि उसे संगीत कला से अगाध प्रेम था । संगीत कला प्रेमी सम्राट् ने संगीत के विकास में अवश्य ही विशेष रुचि दिखाई होगी । इस प्रकार स्कन्दगुप्त भी बड़ा संगीत प्रेमी था । उसके संरक्षण में संगीत उन्नति की पराकाष्ठा को छूने लगा । गुप्त इतिहासकारों से पता चला है कि संगीत की विधिवत् शिक्षा दी जाती थी ।

V. मुद्रा कला -Coinage

सोने , चांदी तथा तांबे के बने ये सिक्के गुप्त काल की विकसित मुद्रा कला के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । गुप्तकालीन गुप्त काल ने मुद्रा कला में भी अद्भुत विकास किया हमें लगभग सभी गुप्त सम्राटों के सिक्के प्राप्त हुए हैं । सिक्कों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये पूर्णतया भारतीय रंग में रंजित है । भारतीय भाषा , भारतीय चित्र तथा भारतीय सम्वत् इन सिक्कों की मुख्य विशेषताएं हैं । गुप्तकालीन सिक्कों में चीता प्रकार , वीणावादक प्रकार , तथा दूसरी तरफ प्रमुख देवियों के चित्र अंकित हैं । अश्वमेध प्रकार , हाथी प्रकार तथा छत्र प्रकार आदि प्रमुख हैं । इन सिक्कों के एक तरफ गुप्त सम्राटों के चित्र हैं

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