गुप्तकालीन विज्ञान

गुप्तकालीन विज्ञान-Guptakaaleen Vigyaan

 

1 विज्ञान तथा तकनॉलोजी -Science and Technology

गुप्तकालीन विज्ञान- गुप्त काल में कला और साहित्य की प्रगति के साथ – साथ विज्ञान और तकनॉलोजी के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति हुई । इस काल में गणित , ज्योतिष , चिकित्सा तथा तकनॉलोजी के क्षेत्र में नवीन आविष्कार हुए । भारतीय वैज्ञानिकों ने विश्व को नवीन सिद्धान्त दिये जिनसे विश्व अनभिज्ञ था । गुप्त काल में विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में योगदान देने वाले वैज्ञानिकों में आर्यभट्ट , वराहमिहिर , ब्रह्मगुप्त तथा वाणभट्ट प्रमुख हैं । गुप्त काल में गणित , ज्योतिष , चिकित्सा तथा तकनॉलोजी के क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन निम्नलिखित है I.

गणित और ज्योतिष -Mathematics and Astronomy

1. आर्य भट्ट -Aryabhatta — आ र्य भट्ट गुप्त काल का सबसे महान् गणित शास्त्री और ज्योतिषी था । उसके द्वारा लिखित ग्रन्थ का नाम आर्यभट्टीयम् है । इसमें उसने गणित , बीजगणित और रेखागणित के विषयों पर भरपूर प्रकाश डाला है । उसने दशमलव प्रणाली का आविष्कार करके गणित के क्षेत्र में एक नई क्रान्ति ला दी । आर्यभट्ट ने ही सबसे पहले यह बताया कि वृत्त की परिधि तथा व्यास का अनुपात हमेशा निश्चित होता है जिसे हम पाई ( ग ) कहते हैं । आर्यभट्ट ने खगोल शास्त्र पर दशगीतिक सूत्र नामक ग्रन्थ की रचना की । आर्यभट्ट ने कहा कि पृथ्वी गोल है तथा वह अपनी धुरी पर घूमती है । आर्यभट्ट ने यह सिद्ध किया कि एक वर्ष में 365.35 दिन होते हैं । उसने अपनी और विख्यात् कृति सूर्य – सिद्धान्त में इस बात का खण्डन किया है कि ग्रहण राहु और केतू के कारण लगते हैं । उसने बताया कि सूर्य और चन्द्रमा को ग्रहण चन्द्रमा पर धरती की परछाईं के कारण लगते हैं । में एक

2. वराहमिहिर -Varahamihira  — गुप्त युग का दूसरा महान् गणितज्ञ एवं नक्षत्र – वैज्ञानिक वराहमिहिर था । उसने पंच सिद्धान्तिका तथा बृहत् संहिता आदि ग्रन्थों की रचना की । इनमें उसने खगोल विज्ञान , वनस्पति विज्ञान , भौतिक विज्ञान तथा अन्य विषयों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है । ‘ पंच सिद्धान्तिका ‘ में तात्कालीन ज्योतिष सिद्धान्तों का समावेश है । ‘ बृहत् संहिता ‘ में नक्षत्र विद्या तथा वनस्पति शास्त्र का उल्लेख किया गया है ।

3. ब्रह्मगुप्त -Brahmagupta — ब्रह्मगुप्त भी इस युग का एक महान् ज्योतिषी तथा गणितज्ञ था । उसने ब्रह्म सिद्धान्त नामक महान् ग्रन्थ की रचना की । इसमें उसने शताब्दियों पहले गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त की व्याख्या की । उसने घोषणा की , ‘ ‘ प्रकृति के नियम के अनुसार सभी वस्तुएं पृथ्वी पर गिरती हैं क्योंकि पृथ्वी स्वभाव से ही सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है । ” शताब्दियों पश्चात् न्यूटन ने भी इसी ‘ गुरुत्व आकर्षण ‘ के सिद्धान्त की व्याख्या की ।

गुप्तकालीन विज्ञानगुप्तकालीन विज्ञान

चिकित्सा -Medicine

गुप्त काल में चिकित्सा विज्ञान में भी आश्चर्यजनक उन्नति हुई । वाग्भट्ट इस युग का महान् चिकित्सक था । • उसका अष्टांग संग्रह नामक ग्रन्थ चिकित्सा जगत् के लिए अमूल्य निधि है । इसमें चरक तथा सुश्रुत नामक महान् चिकित्सक की संहिता का सार है । इसके अतिरिक्त आयुर्वेद से सम्बन्धित विख्यात ग्रन्थ नवनीतकम भी लिखा गया । इसमें बीमारियों तथा उनके उपचार के सम्बन्ध में बताया गया है । इसी काल में पालकापय ने ‘ हस्त्यायुर्वेद ‘ की रचना की । इस ग्रन्थ का सम्बन्ध पशु चिकित्सा से है । ऐसा भी विश्वास किया जाता है कि गुप्तकालीन लोग चेचक के टीके से परिचित थे ।

तकनॉलोजी – Technology

गुप्त काल में तकनॉलोजी के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई । इस काल हुई । दिल्ली के निकट महरौली लौह का स्तम्भ गुप्त काल की धातुकला का सबसे बढ़िया उदाहरण है । यह स्तम्भ • धातु कला की तकनीक में बहुत प्रगति लगभग 23 फुट ऊंचा है । यह लगभग 1570 वर्ष पुराना है , परन्तु इसे अभी तक जंग नहीं लगा है । इसी काल की नालन्दा और सुलतानगंज से प्राप्त महात्मा बुद्ध की तांबे की मूर्तियां अपनी कला तथा तकनीक के कारण आज तक आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं । इसके अतिरिक्त सोने तथा चांदी के अनेक सुन्दर सिक्के बनाए गए । इनसे भी हमें गुप्त काल की उन्नत तकनॉलोजी का ज्ञान होता है । अन्त में हम डॉ ० अरुण भट्टाचार्जी के इन शब्दों से सहमत हैं , ” यद्यपि गुप्त साम्राज्य का विनाश हो गया परन्तु इसकी महानता को लोगों ने शताब्दियों तक स्मरण रखा । 

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