गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ?
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ? | Gupt Kaal Ko Bhaarateey Itihaas Ka Svarn Yug Kyon Kaha Jaata Hai ?
भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग -Golden Age of Indian History
1. एकता और राष्ट्रीयता -Unity and Nationalism — मौर्य वंश के पश्चात् देश अनेक छोटे – छोटे राज्यों में बंट गया था । इस अवसर का लाभ उठाकर शक , कुषाण आदि विदेशी जातियों ने भारत के अधिकांश भागों पर अधिकार कर लिया । इन जातियों ने भारत में लगभग 500 वर्ष तक राज्य किया । चौथी शताब्दी ई ० में गुप्त शासकों ने भारत को इन विदेशी शक्तियों से मुक्त करवाया । समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय के प्रयत्नों से लगभग 500 वर्ष के पश्चात् देश में पुनः एक राष्ट्रीय साम्राज्य की स्थापना हुई । ऐसा काल निःसन्देह स्वर्ण युग कहलाने के योग्य है ।
2. आदर्श शासन -Ideal Administration – स्वर्ण युग वही युग कहला सकता है जिसमें शासक जन हितों को प्राथमिकता दे । गुप्त काल में शासक प्रजा के सुख का विशेष ध्यान रखते थे । प्रजा की सेवा करना वे अपना परम धर्म मानते थे । देश के चारों ओर शान्ति थी । लोगों को आने – जाने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी । कर साधारण , दण्ड नर्म तथा अपराध न होने के बराबर थे । सरकारी कर्मचारियों को नकद तथा पर्याप्त वेतन मिलता था । परिणामस्वरूप वे प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट नहीं देते थे । राजा स्वयं उच्च आदर्शों का पालन करता था । उसके मन्त्री भी उसका अनुकरण करते थे । जिला तथा ग्राम प्रशासन का लक्ष्य भी जनता के हितों की रक्षा करना था । इतनी आदर्श शासन व्यवस्था वाले युग को स्वर्ण युग कहना तर्क – संगत ही है । पी ० एन ० चोपड़ा , बी ० एन ० पुरी , एम ० एन ० दास तथा ए ० सी ० प्रधान के शब्दों में , “ गुप्त प्रशासन समूचे रूप से अच्छी तरह सुगठित था जिसने लोगों की आर्थिक एवं नैतिक उन्नति को ” ” यकीनी बनाया ।
3. उज्ज्वल सामाजिक स्वरूप -Glorious Social Structure – गुप्त काल के सामाजिक ढांचे का स्वरूप निखरा हुआ था । समाज में जाति बन्धन अधिक कठोर नहीं थे । अन्तर्जातीय विवाह प्रचलित थे । वेश – भूषा तथा खान – पान में भी लोग काफ़ी आगे थे । लोग शिकार , नाटक , पशुओं की लड़ाइयों आदि में अपना मनोरंजन करते थे । सबसे बढ़कर बात यह है कि लोग नैतिक रूप से काफ़ी उन्नत थे । यहां तक कि खाने में प्याज और लहसुन के प्रयोग से भी बचा जाता था । धनी लोगों की सहायता से देश में अस्पतालों की व्यवस्था की गई थी । वहां लोगों को मुफ्त औषधियां दी जाती थीं । लोग अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते थे । समाज में स्त्रियों का मान था । ब्राह्मणों , विद्वानों और सन्तों को पूजनीय समझा जाता था । ऐसे आदर्श समाज को देखकर कोई भी व्यक्ति गुप्त काल को स्वर्ण युग कहे बिना नहीं रह सकता ।
4. उन्नत आर्थिक ढांचा -Developed Economic Structure – देश का आर्थिक ढांचा काफ़ी सुदृढ़ था । कृषकों द्वारा कई प्रकार की फसलें बोई जाती थीं । उद्योग भी काफ़ी फल – फूल रहे थे । कपड़े का उद्योग ज़ोरों पर था । हाथी दांत तथा फर्नीचर उद्योग भी विकसित था । व्यापार आश्चर्यजनक रूप से उन्नत था । ताम्रलिप्ति , चोल , कैम्बे तथा भड़ौच की बन्दरगाहें व्यापार के प्रसिद्ध केन्द्र थे । यूरोप , अफ्रीका और द्वीपसमूह के साथ भारत का खूब व्यापार होता था । भारत से विदेशों को मोती , नील , सन्दल , मखमल , हीरे और गर्म मसाले भेजे जाते थे । बदले में भारत सोना , चांदी , सीसा और रेशम आदि मंगवाता था । इस व्यापारिक उन्नति के फलस्वरूप सारा देश धन धान्य से परिपूर्ण हो गया था । निःसन्देह ऐसा युग स्वर्ण युग कहलाने के योग्य था । में
5. हिन्दू धर्म का पुनर्जागरण -Renaissance of the Hinduism – इस युग में हिन्दू धर्म ने विशेष उन्नति की । इसका कारण यह था कि गुप्त वंश के अधिकांश शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे । गुप्त लोग विष्णु , शिव , लक्ष्मी , दुर्गा आदि की पूजा करते थे । हिन्दू देवताओं के वैभवशाली मन्दिरों की स्थापना की गई । भूमरा , देवगढ़ तथा भीतरीगांव आज भी इन मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध हैं । रामायण और महाभारत के रूप निखारे गए । प्रमुख पुराणों की रचना भी इसी काल में हुई । हिन्दू देवी – देवताओं की सुन्दर मूर्तियां बनीं । समुद्रगुप्त और कुमारगुप्त जैसे राजाओं ने अश्वमेध यज्ञ रचाए । इस प्रकार हिन्दू धर्म में नवजीवन का संचार हुआ । केवल इतना ही नहीं , हिन्दुओं ने हूण जाति को शुद्धि द्वारा हिन्दू धर्म में सम्मिलित कर लिया । हिन्दू धर्म भारत तक ही सीमित न रहकर जावा , सुमात्रा इत्यादि द्वीपों में भी फैला । अतः गुप्त काल को हिन्दू धर्म का स्वर्ण काल माना जा सकता है ।
6. धार्मिक सहनशीलता -Religious Tolerance — धार्मिक सहनशीलता की भावना किसी युग की श्रेष्ठता की प्रतीक होती है । गुप्त युग धार्मिक सहनशीलता की भावना से ओत – प्रोत था । यद्यपि गुप्त शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे , तो भी उन्होंने लोगों को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की हुई थी । गुप्त काल में उत्तरी पश्चिमी भारत में बौद्ध धर्म की महायान शाखा लोकप्रिय थी । जबकि पूर्वी भारत के कुछ भागों में हीनयान सम्प्रदाय जोरों पर था । बौद्ध विद्वान् उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त थे ।
देश में बुद्ध की नवीन मूर्तियां बनीं जिनसे आकर्षित होकर अनेक लोगों ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया । जैन धर्म का प्रचार भी स्वतन्त्रापूर्वक चल रहा था । मथुरा तथा वल्लभी जैनियों के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के मुख्य केन्द्र थे । दक्षिण में कर्नाटक दिगम्बर सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र था । जैन धर्म की सभाएं तथा अनेक जैन ग्रन्थों की रचना भी इसी काल में हुई । कहने का अभिप्राय यह है कि गुप्त कोह्यल में धर्म राजनीति से ऊपर था । अतएव जिस युग में सर्व धर्म की पावन गंगा अबाध गति से बह रही हो , उसे स्वर्ण युग कहना न्यायसंगत भी है और तर्कसंगत भी ।
7. भारतीय संस्कृति का विदेशों में प्रचार -Spread of Indian Culture Abroad G — गुप्त काल को स्वर्ण युग कहे जाने का एक अन्य प्रमुख कारण यह है कि इस युग में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को विदेशों में लोकप्रियता मिली । वास्तव में वृहत्तर भारत की नींव इसी युग में रखी गई । भारतीय धर्म प्रचारक जावा , सुमात्रा , बाली , बोर्नियो , इण्डोनेशिया एवं चीन आदि एशिया के अन्य देशों में गए । उन्होंने वहां के लोगों को भारतीय संस्कृति के रंग में रंग दिया । भारतीय संस्कृति का देश की सीमाओं को पार करना निःसन्देह भारतीयों के लिए गौरव का विषय था । उन्नति हुई । गुप्त सम्राटों ने संस्कृत के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।
8. संस्कृत भाषा की उन्नति -Progress of Sanskrit Language – गुप्त काल में संस्कृत भाषा में काफ़ी विद्वान् था । वह इस भाषा के विद्वानों और कवियों की दिल खोलकर सहायता करता था । फलस्वरूप संस्कृत भाषा आश्चर्यजनक प्रगति हुई । इस भाषा की उन्नति का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि इसे राजकीय भाषा घोषित में कर दिया गया था ।
राज्य के सभी कार्य इसी भाषा में किए जाने लगे थे । शीघ्र ही बौद्ध लेखकों ने भी अपनी पुस्तकें | संस्कृत में लिखनी आरम्भ कर दीं । बौद्ध विहारों में अब शिक्षा का माध्यम संस्कृत बन गई । अतः गुप्त काल को संस्कृत भाषा का भी स्वर्ण युग कहा जा सकता है । • संस्कृत साहित्य का भी महत्त्वपूर्ण विकास हुआ । कालिदास , विशाखदत्त , हरिसेन , शूद्रक तथा विष्णु शर्मा इस युग
9. साहित्य की उन्नति -Progress of Literature — गुप्त काल में संस्कृत भाषा की उन्नति के साथ – साथ | के महान् साहित्यकार थे । संस्कृत में रची इनकी रचनाओं ने संस्कृत साहित्य को चार चांद लगा दिए । कालिदास ने ‘ शकुन्तला ‘ , ‘ रघुवंश ‘ तथा ‘ मेघदूत ‘ आदि विश्व विख्यात रचनाएं इसी युग में रचीं । विशाखदत्त का ‘ मुद्राराक्षस ‘ तथा ‘ देवीचन्द्रगुप्त ’ इस युग की अमूल्य निधि है । हरिसेन का इलाहाबाद का स्तम्भ लेख गुप्त काल की साहित्यिक प्रगति का द्योतक है । सुप्रसिद्ध नाटककार शूद्रक ने ‘ मृच्छकटिक ‘ नामक नाटक की रचना करके साहित्य की शोभा बढ़ाई ।
विष्णु शर्मा ने साहित्य को ‘ पंचतन्त्र ‘ जैसी अमर कृति प्रदान की । रामायण , महाभारत और मनुस्मृति को आधुनिक रूप इसी काल में दिया गया । पुराणों को अन्तिम बार इसी युग में लिखा गया । इसके अतिरिक्त अमरसिंह तथा परमार्थ नामक महान् साहित्यकारों ने भी इस युग में साहित्य की बहुमूल्य सेवा की । साहित्य के क्षेत्र में यह असाधारण प्रगति हमें गुप्त काल को स्वर्ण युग कहने पर बाध्य कर देती है ।
10. वैज्ञानिक उन्नति -Progress in Science – गुप्त काल वैज्ञानिक उन्नति का युग था । इस युग में गणित , ज्योतिष तथा चिकित्सा जगत् ने महान् वैज्ञानिकों के दर्शन किए । आर्यभट्ट गुप्तयुग का महान् गणितज्ञ तथा ज्योतिषी था । उसने ‘ आर्यभट्टीयम ‘ नामक ग्रन्थ में अंकगणित , रेखागणित तथा बीजगणित के विषयों पर प्रकाश डाला । उसने दशमलव तथा पाई सिद्धान्त की खोज की । इसके अतिरिक्त उसने ‘ सूर्य सिद्धान्त ‘ नामक ग्रन्थ में नक्षत्रों के विषय में लिखा ।
उसने सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण के वास्तविक कारणों पर भी प्रकाश डाला । वराहमिहिर भी इसी युग का महान् वैज्ञानिक था । उसने ‘ पंचसिद्धान्तिका ‘ तथा ‘ वृहत् संहिता ‘ नामक ग्रन्थों की रचना की । ब्रह्मगुप्त ने विज्ञान के क्षेत्र में अमूल्य योगदान देते हुए न्यूटन से शताब्दियों पूर्व घोषणा कर दी कि पृथ्वी स्वभाव से ही प्रत्येक पदार्थ को अपनी ओर खींचती है । इसके अतिरिक्त गुप्त युग में रसायन , चिकित्सा तथा धातु विज्ञान में भी अद्भुत प्रगति हुई । ऐसे युग को स्वर्ण युग कहना बिल्कुल उचित है । में
11. ललित कलाओं का विकास -Development of Fine Arts – गुप्त काल में ललित कलाओं के क्षेत्र खूब • विकास हुआ । गुप्त सम्राटों ने प्रत्येक कला को उन्नति की चरम सीमा पर पहुंचा दिया । इस काल में भवन – निर्माण कला विकसित हुई , देश सुन्दर मूर्तियों में अलंकृत हुआ , चित्रकला निखर उठी , संगीत कला ने यौवन में पदार्पण किया एवं धातु कला में नवजीवन का संचार हुआ । भवनों के निर्माण में लकड़ी की अपेक्षा ईंटों एवं पत्थरों का प्रयोग आरम्भ किया गया । देवगढ़ तथा दशावतार मन्दिर , तिगवा का विष्णु मन्दिर , भूमरा का शिव मन्दिर , सारनाथ एवं नालन्दा के विहार , अजन्ता , एलौरा , उदयगिरी तथा बाघ की गुफ़ाएं भवन निर्माण कला के क्षेत्र में हुई प्रगति का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं ।
गुप्त काल में चित्रकला ने भी महत्त्वपूर्ण प्रगति की । अजन्ता तथा बाघ गुफ़ाओं में की गई चित्रकारी ने गुप्त काल को चिरकाल के लिए अमर कर दिया है । ये चित्र बिल्कुल सजीव लगते हैं । मूर्तिकला के क्षेत्र में उसने कुषाण काल की गान्धार कला को भी पछाड़ दिया । गुप्तकालीन मूर्तियां अपनी कलात्मक शालीनता तथा आध्यात्मिकता के कारण प्रसिद्ध हैं । गुप्त काल में संगीत कला , एवं धातु कला के क्षेत्रों की में भी अभूतपूर्व विकास हुआ ।
अतः उपर्युक्त विवरण से यह पूर्ण रूप से स्पष्ट हो जाता है कि गुप्त काल हर पक्ष में एक स्वर्ण युग था । उ आर ० एन ० दाण्डेकर के शब्दों में , डॉ ० ‘ कला और साहित्य , राजनीतिक और आर्थिक , धार्मिक और दार्शनिक क्षेत्रों में हम देखते हैं कि इस युग में प्राचीन भारतीयों ने उन शिखरों को छुआ जिसकी वे योग्यता रखते थे । यह सचमुच ही भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहलाने के योग्य है ।