हषवर्धन का जीवन एवं विजय
हषवर्धन का जीवन एवं विजय | Hashavardhan Ka Jeevan Evan Vijay
I. आरम्भिक जीवन -Early Life
हषवर्धन का जीवन एवं विजय- आरम्भिक जीवन- छोटा गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात् उत्तर भारत के राजनीतिक पतन का जो दौर आरम्भ हुआ था , वो हर्षवर्धन के सिंहासन पर विराजमान होते ही थम गया । अपनी उपलब्धियों के कारण हर्षवर्धन ने इतिहास में अपना नाम अशोक एवं समुद्रगुप्त की भान्ति सदैव के लिए अमर कर दिया । हर्षवर्धन थानेश्वर के शासक प्रभाकर वर्धन का पुत्र था । उसका जन्म 4 जून , 590 ई ० को हुआ था । उसकी माता का नाम यशोमति था । हर्ष का बाल्यकाल यशोमति के भतीजे भण्डी तथा मालवराज महासेन गुप्त के बेटे कुमार गुप्त और माधव गुप्त के साथ व्यतीत हुआ था । उसे इन राजकुमारों के साथ तीर कमान , तलवार तथा घुड़सवारी करने की शिक्षा दी गई ।
शीघ्र ही हर्ष युद्ध कला में प्रवीण हो गया । 604 ई ० में जब हूणों ने थानेश्वर राज्य पर आक्रमण किया , तो वह भी अपने बड़े भाई राज्यवर्धन के साथ हूणों का सामना करने के लिए गया था । उस समय उसकी आयु केवल 14 वर्ष की थी । शीघ्र ही हर्षवर्धन के पिता का देहान्त हो गया और यशोमति देवी ने सती होकर अपने प्राण त्याग दिये । हर्षवर्धन के आग्रह पर 605 ई ० में उसका बड़ा भाई राज्यवर्धन थानेश्वर का नया शासक बना । उसी समय गौड़ ( बंगाल ) प्रदेश के शासक शशांक तथा मालवा के शासक देवगुप्त ने मिलकर कन्नौज के शासक गृहवर्मन को मार डाला और उसकी पत्नी राज्यश्री को बन्दी बना लिया । गृहवर्मन , राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन का बहनोई लगता था । अपनी बहन राज्यश्री को बन्दीगृह से छुड़ाने के लिए राज्यवर्धन ने मालवा पर आक्रमण कर दिया । वह युद्ध में तो विजयी रहा परन्तु गौड़ नरेश शशांक की कूटनीति के कारण उसे अपनी जान से हाथ धोने पड़े । ऐसे संकटमयी समय में हर्षवर्धन ने 606 ई ० में राजगद्दी सम्भाली । उस समय उसकी आयु मात्र 16 वर्ष की थी ।
हर्षवर्धन के सामने तब दो प्रमुख समस्याएं थीं- प्रथम अपने भाई तथा बहनोई की हत्या का बदला लेना तथा दूसरा अपनी बहन को कन्नौज के दिया । मालवा के शासक देवगुप्त तथा गौड़ नरेश शशांक यह देखकर भाग खड़े हुए । दूसरी तरफ राज्यश्री किसी कारागार से छुड़वाना । हर्षवर्धन ने इस उद्देश्य से एक विशाल सेना का संगठन किया और कन्नौज पर आक्रमण के • प्रकार कारागार से मुक्त हो गई थी । उसने स्वयं को सती करने का प्रण कर लिया एवं इस उद्देश्य से विन्ध्यावन चली गई । परन्तु हर्षवर्धन ने समय पर पहुंच कर उसे बचा लिया । कन्नौज के लोगों ने हर्षवर्धन का भव्य स्वागत किया और उसे कन्नौज का उत्तरदायित्व सम्भालने का आग्रह किया । कुछ संकोच के बाद हर्षवर्धन ने कन्नौज और थानेश्वर को एक सम्मिलित राज्य बना दिया एवं कन्नौज को अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित किया । हर्षवर्धन ने 647 ई ० तक शासन किया ।
हर्षवर्धन की विजयें -Conquests of Harsha Vardhana
हषवर्धन का जीवन एवं विजय – 1. गौड़ की विजय -Conquest of Gauda – हर्ष के शासनकाल में गौड़ ( बंगाल ) का शासक शशांक था । उसने हर्ष के बड़े भाई को धोखे से मरवा दिया था । इसके अतिरिक्त वह बौद्धों का कट्टर शत्रु था । उसने गया के पवित्र बोधिवृक्ष को कटवा दिया तथा कुशीनगर और वाराणसी के मध्य स्थित सभी बौद्ध विहार नष्ट करवा दिए । हर्ष ने अपने भाई की हत्या का बदला लेने के लिए अपने प्रधानमन्त्री भण्डी के नेतृत्व में एक भारी सेना भेजी , परन्तु वह शशांक को पूरी तरह पराजित करने में असफल रही । कुछ समय के पश्चात् हर्ष ने शशांक के शत्रु कामरूप के राजा भास्कर वर्मन के साथ सन्धि कर ली । दोनों की सम्मिलित सेनाओं ने एक बार फिर शशांक पर आक्रमण किया । इस बार उन्होंने शशांक को पूरी तरह पराजित किया । शशांक पराजित तो हो गया , पर उसके जीते जी हर्ष गौड़ प्रदेश अपने राज्य में न मिला सका । उसकी मृत्यु के पश्चात् यह प्रदेश अवश्य हर्षवर्धन के राज्य का अंग बन गया ।
2. पांच प्रदेशों की विजय -Conquest of Five Territories – बंगाल विजय के पश्चात् हर्ष ने निरन्तर कई युद्ध किए । ह्यूनसांग के अनुसार 606 ई ० से लेकर 612 ई ० तक उसने उत्तरी भारत के पांच प्रदेशों पर विजय प्राप्त की । ये प्रदेश सम्भवतः पंजाब , कन्नौज , बंगाल , बिहार और उड़ीसा थे । इन विजयों से हर्ष के राज्य काफ़ी वृद्धि हुई । में
3. वल्लभी की विजय -Conquest of Vallabhi – हर्ष के समय वल्लभी ( गुजरात ) काफ़ी समृद्ध प्रदेश था । वहां का राजा ध्रुवसेन द्वितीय था । हर्ष ने वल्लभी पर आक्रमण किया और ध्रुवसेन द्वितीय को पराजित कर दिया । वल्लभी नरेश ने हर्ष के साथ मित्रता कर ली और उसके अधीन रहना स्वीकार कर लिया । ध्रुवसेन द्वितीय के व्यवहार से प्रसन्न होकर हर्ष ने अपनी पुत्री का विवाह भी उसी के साथ कर दिया । इससे वल्लभी हर्ष के विरोधी चालुक्यों के उत्तर में विस्तार में बाधा बन गया । यह हर्ष की महान् कूटनीतिक उपलब्धि थी । डॉ ० बैजनाथ शर्मा के अनुसार , ” हर्ष की वल्लभी पर विजय उसकी एक शानदार उपलब्धि थी और इस विजय से देश में उसकी ख्याति में वृद्धि हुई ।
4. कामरूप के राजा की अधीनता -Subjugation of the King of Kamrupa – हर्ष की कामरूप ( असम ) के राजा भास्कर वर्मन के साथ सन्धि हुई थी । उसी के सहयोग से उसने शशांक के दांत खट्टे किए थे । कन्नौज के सम्मेलन में भास्कर वर्मन ने हर्ष को बहुत से हाथी उपहार के रूप में भेंट किये । स्पष्ट है कि कामरूप का राजा हर्ष के अधीन था । परन्तु कुछ इतिहासकारों का मत है कि हर्ष ने कामरूप प्रदेश पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया था । परन्तु हर्ष ने उसका राज्य उसे लौटा दिया , क्योंकि उसी की सेवाओं से ही वह अपने भाई के वध का बदला ले सका था ।
5. सिन्ध की विजय -Conquest of Sind — बाण के अनुसार हर्ष ने सिन्ध पर आक्रमण किया । सिन्ध पर विजय प्राप्त करके उसने वहां की सारी सम्पत्ति पर अपना अधिकार जमा लिया । ह्यनसांग के अनुसार सिन्ध प्रदेश का शासक शूद्र था तथा उसकी बौद्ध धर्म में आस्था थी ।
6. पुलकेशिन द्वितीय से युद्ध -War against Pulakesin II – पुलकेशिन द्वितीय उस समय दक्षिण में चालुक्य वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था । हर्ष ने उत्तरी भारत की विजय के पश्चात् दक्षिणी भारत को जीतने का निश्चय किया । पुलकेशिन द्वितीय का सामना करने के लिए वह स्वयं एक विशाल सेना लेकर नर्मदा के किनारे पहुंचा । ह्यूनसांग के अनुसार , इस युद्ध के लिए उसने पांचों विजित प्रदेशों से सैनिक एकत्रित किए थे । परन्तु युद्ध में हर्ष को पराजय का मुंह देखना पड़ा । परिणामस्वरूप नर्मदा नदी दक्षिण में उसके राज्य की सीमा बन गई । यह हर्ष के जीवन की प्रथम और अन्तिम पराजय थी । पुलकेशिन द्वितीय ने युद्ध में विजय के उपरान्त ‘ परमेश्वर ‘ की उपाधि धारण की ।
7. बर्फ़ीले प्रदेशों पर विजय -Conquest of Snowy Lands — बाण लिखता है कि हर्ष ने एक बर्फ़ीले प्रदेश को विजित किया था । कुछ लेखकों के अनुसार यह बर्फ़ीला प्रदेश वास्तव में नेपाल था । कहते हैं कि उसने कश्मीर प्रदेश को भी जीता और वहां के शासक दुर्लभवर्धन से बुद्ध का एक दांत प्राप्त किया । आधुनिक इतिहासकार इस मत से सहमत नहीं हैं । उनके अनुसार नेपाल तथा कश्मीर हर्ष के राज्य का भाग नहीं थे ।
8. गंजम की विजय -Conquest of Ganjam – पुलकेशिन द्वितीय से पराजय के बाद हर्ष ने पूर्वी भारत के प्रदेश गंजम ( उड़ीसा ) पर आक्रमण किया । उस समय वहां पर शशांक का सामन्त स्वतन्त्र रूप से शासन कर रहा था । हर्ष ने उसे पराजित कर दिया और गंजम को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया । यह विजय हर्षवर्धन की अन्तिम विजय थी ।
9. राज्य विस्तार -Extent of the Empire – हर्षवर्धन ने अपनी विजयों के परिणामस्वरूप एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की । उसकी साम्राज्य सीमा के सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद है । फिर भी माना जाता है कि उसका साम्राज्य हिमालय से लेकर नर्मदा नदी तक तथा कामरूप से पूर्वी पंजाब तक फैला हुआ था । उसके साम्राज्य के मुख्य प्रदेश थानेश्वर , कन्नौज , बंगाल , बिहार , उड़ीसा , मालवा , वल्लभी तथा पूर्वी पंजाब थे । डॉ ० आर ० के ० मुकर्जी के अनुसार ” हर्ष ने उत्तरी भारत के सर्वोच्च सम्राट् की गौरवपूर्ण पदवी धारण की ।
हर्षवर्धन के राजनीतिक सम्बन्ध -Harsha Vardhana’s Political Relations
हषवर्धन का जीवन एवं विजय- हर्षवर्धन एक महान् विजेता ही नहीं बल्कि एक सफल कूटनीतिज्ञ भी था । उसने कामरूप के शासक भास्कर वर्मन से सन्धि करके गौड़ के शासक शशांक को पराजित किया । उसने वल्लभी के शासक ध्रुवसेन द्वितीय के साथ अपनी पुत्री का विवाह करके पुलकेशिन द्वितीय के उत्तर विस्तार पर रोक लगाई । इसके अतिरिक्त हर्षवर्धन के अनेक राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे । उसके चीन एवं ईरान के शासकों के साथ भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे । इस प्रकार हम देखते हैं कि कूटनीतिक स्तर पर हर्षवर्धन ने महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त कीं ।