हड़प्पा सभ्यता क्या है
हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilization)
सिन्धु घाटी की सभ्यता विश्व की प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण सभ्यताओं में से एक है । इस सभ्यता का सूर्य उस समय उदय हुआ जब संसार के अनेक सभ्य देश अन्धकार की चादर में लिपटे पड़े थे । परन्तु अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतीय भी इस बात से अनभिज्ञ थे । अंग्रेजों द्वारा पुरातत्त्व विभाग की स्थापना के पश्चात् ही ऐतिहासिक खोजें आरम्भ हुईं । 1921 ई ० का वर्ष भारत के लिए विशेष तौर पर गौरवमयी है । इस वर्ष हड़प्पा की खुदाई ने भारत के हजारों वर्ष पुराने इतिहास को अन्धकार प्रकाश में ला दिया ।
भारतीय पुरातत्त्व विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने 1924 ई ० में यह घोषणा करके हलचल मचा दी कि सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) खोज ली गई है । इससे पूर्व भारत का इतिहास आर्यों के आगमन से आरम्भ होता था । खुदाई से मिली वस्तुओं ने पुरातत्त्व विभाग के अधिकारियों को चकित कर दिया । जिनके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि सिन्धु घाटी में रहने वाले लोग जीवन के हर क्षेत्र में उन्नत थे । संक्षेप में , सिन्धु घाटी की सभ्यता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं I.
खोज , विस्तार , काल तथा लोग ( Discovery , Extent , Date and People )
1. खोज ( Discovery ) — सिन्धु घाटी के आरम्भिक मुख्य केन्द्र हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो थे । ये दोनों नगर आज पाकिस्तान में स्थित हैं । हड़प्पा पाकिस्तानी पंजाब के जिला मिन्टगुमरी में तथा मोहनजोदड़ो सिन्ध के जिला लरकाना में स्थित हैं । इन दोनों नगरों में 483 किलोमीटर की दूरी है । हड़प्पा की खोज आर ० बी ० दयाराम साहनी ने 1921 ई ० में की थी , जबकि मोहनजोदड़ो की खोज श्री आर ० डी ० बैनर्जी ने 1922 ई ० में ।
2. विस्तार ( Extent ) – सिन्धु घाटी की सभ्यता के आरम्भिक चिन्ह 1921 ई ० में सिन्धु नदी की घाटी से प्राप्त हुए थे । बाद की खुदाई से इस सभ्यता के अनेक नवीन केन्द्र प्रकाश में आए । इस सभ्यता के पाकिस्तान में मुख्य केन्द्र हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो थे । भारत में इसके मुख्य केन्द्र कोटला निहंग खान रोपड़ ( पंजाब ) में , कालीबंगां राजस्थान में , लोथल गुजरात में , आलमगीरपुर उत्तर प्रदेश में तथा बनवाली हरियाणा में स्थित हैं । स्पष्टतया सिन्धु घाटी की सभ्यता एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी । इस सभ्यता की कुल परिसीमा 1,99,600 वर्ग किलोमीटर थी ।
3. काल ( Date ) – सिन्धु घाटी की सभ्यता कब फली – फूली इस सम्बन्ध में सभी इतिहासकार एकमत नहीं हैं । सर जॉन मार्शल के विचार में सिन्धु घाटी की सभ्यता का विकास 4000 ई ० पू ० से 2500 ई ० था । डॉ ० ह्वीलर तथा डॉ ० वी ० ए ० स्मिथ इस सभ्यता का काल 2500 ई ० पू ० से 1700 ई ० पू ० तक मानते में पू ० हुआ हैं । डॉ ० पुसाल्कर का मत है कि यह सभ्यता 2800 ई ० पू ० से 2200 ई ० पू ० में विकसित हुई । डॉ ० राधा कुमुद मुखर्जी इस सभ्यता का काल 3250 ई ० पू ० से 2750 ई ० पू ० मानते हैं । जो भी हो इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिन्धु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) लगभग 5000 वर्ष पुरानी थी ।
4. लोग ( People ) – सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोगों के विषय में भी इतिहासकार एकमत नहीं हैं । कुछ विद्वानों का विचार है कि वे लोग हिन्दी आर्य थे । दूसरी ओर कुछ अन्य इतिहासकार उन्हें सुमेरियन मानते हैं । इसके अतिरिक्त डॉ ० जे ० एच ० हट्टन के विचार में सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग द्राविड़ थे । इस समस्या के समाधान के लिए हड़प्पा तथा मोहनजदड़ो से प्राप्त मानुषिक अवशेषों का आश्रय लिया गया है । उसके आधार पर यह माना जाता है कि यहां चार नस्लों के लोग बसते थे- ( i ) प्रोटो – आस्ट्रोलायड , ( ii ) भूमध्य सागरीय , ( iii ) मंगोलियन और । II
2. नगर योजना ( Town Planning )
सिन्धु घाटी सभ्यता एक उच्चकोटि की सभ्यता थी । खुदाई से मिले नगरों को देखकर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि उनके नगर एक योजनानुसार ढंग से बनाए जाते थे । वे लोग भवन निर्माण कला में बहुत कुशल थे । उनके मकान पक्की ईंटों के बने होते थे । बाढ़ के खतरे से बचने के लिए वे अपने घरों की नींव काफ़ी गहरी रखते थे । उनके घरों में बड़े – बड़े द्वार , खिड़कियां तथा रोशनदान होते थे ।
कई मकान दो तथा इससे भी अधिक मंज़िलों के होते थे । प्रत्येक मकान में खुला प्रांगन , रसोई घर , कुआं तथा स्नानघर अवश्य होता था । सिन्धु घाटी की खुदाई से मिलने वाला सबसे विख्यात भवन मोहनजोदड़ो में स्थित विशाल स्नानागार था । यह स्नानागार 180 फुट लम्बा और 108 फुट चौड़ा है । इसके मध्य 39 फुट लम्बा , 23 फुट चौड़ा तथा 8 फुट गहरा तालाब भी बना हुआ था । सिन्धु घाटी के लोगों ने गंदे पानी के निकास के लिए नालियों की बड़े वैज्ञानिक ढंग से व्यवस्था की हुई थी । घरों की नालियां गली की बड़ी नालियों में गिरती थीं और वे शहर के बाहर किसी बड़े नाले में जा गिरती थीं ।
इन नालियों को ईंटों से इस प्रकार ढका जाता था कि सफ़ाई करते समय उन्हें आसानी से उठाया जा सकता था । सिन्धु घाटी के लोग सड़कों के निर्माण में भी बड़े कुशल थे । सड़कों की चौड़ाई 13 फुट से लेकर 34 फुट तक होती थी । सड़कों पर चौराहे बनाए जाते थे । इसके अतिरिक्त इन सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था भी की जाती थी ।
3. सामाजिक जीवन ( Social Life )
सिन्धु घाटी सभ्यता का सामाजिक उस समय के लोग खाने पीने के बहुत जीवन मातृ – प्रधान था । स्त्रियों को सिन्धु समाज में मुख्य स्थान प्राप्त था । शौकीन थे । वे मुख्य रूप से गेहूं , चावल , दूध तथा सब्जियों का प्रयोग करते थे । गेहूं उनका प्रमुख आहार था । खुदाई में खजूर की गुठलियां तथा विभिन्न प्रकार के पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई हैं । ये सिद्ध करती हैं कि वे लोग खजूर , मांस , मछली और अण्डे भी खाते थे ।
खुदाई में ही मिली मूर्तियों तथा तकलियों से पता चलता है कि सिन्धु घाटी के लोग सूती तथा ऊनी वस्त्र पहनते थे । पुरुष धोती और कंधों पर शाल अथवा दुपट्टा धारण करते थे । स्त्रियां प्रायः रंगदार और बेल – बूटों वाले वस्त्र पहनती थीं । इसके अतिरिक्त सिन्धु घाटी के पुरुषों तथा स्त्रियों को आभूषण पहनने का बड़ा चाव था । उस समय भी हार , बालियां , अंगूठियां , कंगन , चूड़ियां और पांवों के कड़े पहनने का रिवाज था ।
इन आभूषणों की सराहना करते हुए सर जॉन मार्शल ने कहा है , ” इन सोने – चांदी के जेवरों की चमक तथा बनावट को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये आज से 5,000 वर्ष पूर्व के किसी प्रागैतिहासिक घर से नहीं बल्कि आधुनिक बांड स्ट्रीट ( लन्दन ) के किसी जौहरी की दुकान से लाये गए हैं । स्त्रियां अपने शृंगार के लिए सुरमा , सुर्खी , सुगन्धित तेल का प्रयोग करती थीं । पुरुष भी शृंगार करते थे । तत्कालीन लोगों के मनोरंजन के साधनों में नाच , गाना तथा जुआ को मुख्य स्थान प्राप्त था ।
4. आर्थिक जीवन ( Economic Life )
सिन्धु घाटी के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था । वे प्रायः गेहूं , कपास और जौ तथा फलों की खेती करते थे । अन्न इकट्ठा करने के लिए उनके द्वारा बड़े – बड़े गोदाम बनाए गए थे और उनके समीप ही अनाज पीसने की व्यवस्था थी । कृषि मुख्य व्यवसाय होने के कारण लोग पशुओं के महत्त्व को भी भली प्रकार समझते थे । इसलिए वे गाय , बैल , हाथी , घोड़े , भेड़ , बकरी , कुत्ते और सूअर पालते थे ।
यहां के लो गों के व्यापार के सम्बन्ध में प्रोफेसर चाइलड का मत है कि इनकी बनाई हुई वस्तुएं दज़ला और फरात की घाटी के बाजारों में बिका करती थीं । वस्तुओं को तोलने के लिए बाटों का प्रयोग किया जाता था । सिन्धु घाटी (हड़प्पा ) के लोग बहुत – से उद्योग – धन्धे जानते थे । वे कांसे , पीतल तथा मिट्टी के बर्तन बनाने में प्रवीण थे । इसके अतिरिक्त वे रुई कातने , कपड़ा बुनने , ईंटें , मकान तथा आभूषण बनाने आदि का काम भी बहुत सुन्दर ढंग से करते थे ।
5. राजनीतिक जीवन ( Political Life )
सिन्धु घाटी के लोगों की राजनीतिक व्यवस्था कैसी थी , इस सम्बन्ध में इतिहासकारों के भिन्न – भिन्न मत हैं । सिन्धु घाटी की नगर योजना , व्यापारिक सम्बन्धों , मुहरों , लिपि तथा माप – तोल के बाटों की एकरूपता को देख कर अनुमान लगाया जाता है कि उस समय की राजनीतिक व्यवस्था काफ़ी अच्छी थी । नागरिकों को उपलब्ध सुविधाओं तथा सफ़ाई प्रबन्ध को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय नगरपालिकाओं की भी व्यवस्था थी । परन्तु हमें उस समय के शासकों के अधिकारों तथा उनके मन्त्रियों के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है ।
6. धार्मिक जीवन ( Religious Life)
सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई से उपलब्ध मुहरों पर एक देवता की मूर्ति बनी हुई है जिसके तीन मुख हैं । यह चार पशुओं के साथ योग मुद्रा में दिखाया गया है । इन पशुओं में एक बैल भी है । सर जॉन मार्शल का अनुमान हैं कि यह शिव की मूर्ति है । खुदाई में मिली मुहरों पर एक अर्ध – नग्न नारी का चित्र भी अंकित है । उसकी कमर पर भाला और शरीर पर विशेष प्रकार का वस्त्र है । जॉन मार्शल ने उसे मातृ – देवी कहा है ।
उसकी बात इसलिए ठीक जान पड़ती है क्योंकि मातृ – देवी की पूजा भारत में प्राचीनकाल से चली आ रही है । इसके अतिरिक्त लिंग और योनि की प्राप्त मूर्तियों से सिद्ध होता है कि उन लोगों को मूर्ति पूजा में विश्वास था । खुदाई में मिली मुहरों पर हाथी , बैल , बाघ आदि के चित्र अंकित हैं । ऐसा विश्वास किया जाता है कि सिन्धु घाटी के लोग इन पशुओं की भी पूजा करते थे । इनके अतिरिक्त वे पक्षियों तथा वृक्षों की भी पूजा करते थे ।
7. देन ( Contribution )
यद्यपि आज सिन्धु घाटी की सभ्यता लुप्त हो चुकी है , परन्तु उसका प्रभाव आज भी भारतीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में देखने को मिलता है । इस सभ्यता से हमने योजनाबद्ध नगर – निर्माण , चौड़ी तथा खुली सड़कें , गलियां बनाने का ढंग , सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था , आभूषण , मुहरें , मूर्तियां तथा खिलौने बनाने की कला , महिलाओं के शृंगार का ढंग तथा चरखे व आटा चक्की बनाना सीखा है । उनकी सबसे बड़ी देन तो धार्मिक क्षेत्र में है । उस समय के देवी – देवताओं जैसे कि मातृ देवी , शिव , अग्नि , जल , सूर्य , वृक्षों तथा नाग आदि की पूजा आज भी हिन्दू धर्म में प्रचलित है ।
7. कला ( Art )
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों ने मूर्तिकला , मिट्टी के बर्तन बनाने की कला , आभूषण बनाने की कला तथा चित्रकला के क्षेत्रों में विशेष रूप से उन्नति की थी । इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार से है
- मूर्तिकला ( Art of Sculpture ) – सिन्धु घाटी सभ्यता के शिल्पकार मूर्ति निर्माण में बहुत निपुण थे । ये मूर्तियां पत्थर , टेराकोटा ( पक्की मिट्टी ) और धातु से निर्मित की जाती थीं । पत्थर से निर्मित मूर्तियों में से मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक दाढ़ी वाले व्यक्ति की मूर्ति अत्यन्त प्रभावशाली है । यह मूर्ति सफ़ेद पत्थर से निर्मित है । यह 17.5 सेंटीमीटर ऊंची है । व्यक्ति ने अपने शरीर को एक शाल से लपेटा हुआ है
जिस पर तीन पत्तों का नमूना बना हुआ है । उसकी आंखें बड़ी पर अर्ध – खुली हैं । यह मूर्ति किसी शाही व्यक्ति अथवा पुजारी की प्रतीत होती है । उस काल की बनी मूर्तियों में से अधिकांश टेराकोटा से निर्मित हैं । इसमें बहुसंख्या देवी माँ की मूर्तियों की है । इनके अतिरिक्त हमें बच्चों के बहुत – से खिलौने भी प्राप्त हुए हैं । इनमें सांड , कुत्ते , बन्दर , हाथी , भेड़ें , सूअर , गैंडे व कई प्रकार के पक्षी सम्मिलित हैं । उस समय जो धातु से निर्मित मूर्तियां थीं , उनमें मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांसे की नृतकी की मूर्ति सर्वाधिक विख्यात है ।
- मिट्टी के बर्तन बनाने की कला ( Art of Pottery ) — सिन्धु घाटी के लोग बर्तन बनाने की कला में भी बहुत कुशल थे । ये बर्तन अधिकतर पक्की मिट्टी के हैं , परन्तु कुछ बर्तन तांबे तथा कांसे के भी हैं । मिट्टी के बर्तन प्रायः चाक पर बनाए जाते थे । इसके अतिरिक्त कुछ बर्तन हाथ से भी बनाए जाते थे । कुम्हार द्वारा इन बर्तनों पर फूलों पत्तियों तथा पशु – पक्षियों के सुन्दर नमूने बनाए जाते थे । इन बर्तनों को पॉलिश से चमकदार भी बनाया जाता था ।
- आभूषण बनाने की कला ( Art of Making Ornaments ) – सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के आभूषण देखकर व्यक्ति आश्चर्यचकित रह जाता है । ये आभूषण सोने , चांदी , मूल्यवान् पत्थरों , तांबे , घोंघे , हड्डियां तथा हाथी दांत के बने होते थे । उनके द्वारा बनाए गए मनके तो विशेष रूप से प्रसिद्ध थे । इन मनकों को पिरो कर माला बनाई जाती थी ।
- चित्रकला ( Painting ) – सिन्धु घाटी के लोगों को चित्रकला से बड़ा प्रेम था । वे बर्तन , मुहरों तथा घरों की सुन्दर चित्रों से सजावट करते थे । ये चित्र मनुष् यों , फूलों , पत्तियों तथा पशु – पक्षियों के होते थे । इन चित्रों को सुन्दर रंगों से बनाया जाता था । इन चित्रों में तत्कालीन जीवन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है ।
8. मुहरें ( Seals )
सिन्धु घाटी की खुदाई से हमें बड़ी संख्या में मुहरें मिली हैं । मोहनजोदड़ो से ही प्राप्त मुहरों की संख्या 1200 से अधिक है । ये मुहरें विभिन्न आकार की हैं , परन्तु अधिकांश मुहरों का आकार छोटा है । ये मुहरें अधिकतर सेलखड़ी से पत्थर से बनाई गई थीं । इसके अतिरिक्त ये पक्की मिट्टी , चूने तथा हाथी दांत की होती थीं । इन मुहरों पर मनुष्यों , पशुओं और वृक्षों के चित्र बड़ी कुशलता से बनाए गए हैं । पशुओं में से एक सींग वाले पशु , छोटे सींग वाले सांड , शेर , हाथी तथा बारहसिंगे के चित्र अधिक हैं । इन मुहरों के प्रयोग के सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद हैं ।
इतिहासकारों का विचार है कि इनका प्रयोग व्यापारी अपने सामान की सुरक्षा के लिए करते थे । कुछ अन्य के अनुसार इनका प्रयोग केवल घरों की सजावट के लिए किया जाता था । कुछ इतिहासकारों का मत है कि इन मुहरों को पूर्वजों के चिन्ह के रूप में रखा जाता था । कुछ भी हो , ये मुहरें शिल्पकला का उत्तम नमूना पेश करती हैं ।
9. लिपि ( Script )
सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई से प्राप्त होने वाली मुहरों , बर्तनों , पट्टियों तथा दीवारों पर लिखी हुई एक लिपि मिली है । यह लिपि चित्रमयी है । इस लिपि के प्राप्त वर्णों की कुल संख्या लगभग 400 है । यह लिपि अधिकतर दाईं से बाईं ओर लिखी गई है ।
इस लिपि के सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अभी तक कोई विद्वान् इस लिपि को पढ़ने में सफल नहीं हो सका । बहुत से विद्वान् इस लिपि को पढ़ने का प्रयास कर रहे हैं । 1992 ई ० में बिहार के दो विद्वानों श्री एन ० के ० वर्मा तथा अरुण पाठक ने इस बात का दावा किया कि उन्होंने सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि को पढ़ने में सफलता प्राप्त कर ली है । परन्तु इस बात की अन्य विद्वानों द्वारा पुष्टि की जानी अभी बाकी है । अगर उनकी यह बात सच्ची हो तो निःसन्देह इसे आधुनिक काल की एक महान् उपलब्धि माना जाएगा । इससे सिन्धु घाटी की सभ्यता के विषय में भरपूर प्रकाश डाला जा सकेगा ।
11. पतन एवं लुप्त होने के कारण ( Causes of Decay and Disappearance )
सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन और उसके लुप्त हो जाने के सम्बन्ध में इतिहासकारों में बहुत मतभेद हैं । कुछ इतिहासकारों का मत है कि इस सभ्यता का पतन बहुत समय तक वर्षा न होने तथा सूखा पड़ जाने के कारण हुआ । कुछ अन्य इतिहासकारों के विचारानुसार बार – बार आने वाले भयानक भूकम्पों के कारण सिन्धु घाटी सभ्यता का सर्वनाश हो गया । कुछ एक इतिहासकारों का यह विश्वास है कि इस सभ्यता का पतन संक्रामक रोग फैल जाने के कारण हुआ
इस कारण बड़ी संख्या में लोग मारे गए व शेष लोग इन स्थानों को छोड़कर चले गए । इतिहासकार इस सभ्यता का अन्त आर्यों के आक्रमणों से हुआ मानते हैं । आर्य युद्ध लड़ने में सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों से अधिक निपुण एवं शक्तिशाली थे । अतः उन्होंने सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों को पराजित कर दिया । वस्तुतः जब तक विद्वान् सिन्धु लिपि को पढ़ने में पूर्णतः सफल नहीं हो जाते , सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन एवं लुप्त होने के बारे में निश्चित रूप से कुछ कहना अत्यन्त कठिन है ।
प्रमुख नगर ( Major Cities )
हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी । इस सभ्यता के पाकिस्तान और भारत में अब तक 300 केन्द्रों की खोज की जा चुकी है । इन केन्द्रों में से प्रमुख नगरों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है
1. हड़प्पा ( Harappa ) — सिन्धु घाटी की सभ्यता के अवशेष सर्वप्रथम हड़प्पा में आर ० बी ० दयाराम साहनी द्वारा 1921 ई ० में प्राप्त किए गए थे । हड़प्पा पश्चिमी पंजाब ( पाकिस्तान ) के मिण्टगुमरी जिले में रावी नदी के बाएं तट पर स्थित है । यह लाहौर शहर से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर है । इसकी जानकारी सर्वप्रथम चार्ल्स मर्सन द्वारा 1856 ई ० में मिली । यह सिन्धु घाटी सभ्यता के मिलने वाले नगरों में सर्वाधिक विशाल था इसी कारण सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है । यह नगर पांच किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था ।
इस नगर की छः सतहें प्राप्त हुई हैं जिसके आधार पर इतिहासकार यह अनुमान लगाते हैं कि इसका निर्माण छः बार हुआ । यह नगर आधुनिक ढंग बना हुआ था । मकान , सड़कें तथा गलियां बड़े ही व्यवस्थित ढंग से बनाये गए थे । अब तक हड़प्पा से 891 से अधिक मुहरें प्राप्त हो चुकी हैं । यह कुल प्राप्त मुहरों का 36.12 प्रतिशत है । यहां से नग्न पुरुष के धड़ तथा नर्तकियों की दो ऐसी मूर्तियां भी मिली हैं जिन्हें कला प्रेमियों ने अत्यधिक सराहा है । हड़प्पा से प्राप्त बर्तन , आभूषण , मूर्तियां , मुहरें तथा अन्य अवशेष सिन्धु घाटी सभ्यता की नगर योजना , सामाजिक जीवन , आर्थिक जीवन , राजनीतिक जीवन , धार्मिक जीवन तथा कला की प्रगति पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं ।
2. मोहनजोदड़ो ( Mohenjoaro ) — मोहनजोदड़ो सिन्धु घाटी सभ्यता का दूसरा सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण नगर है । मोहनजोदड़ो का सिन्धी भाषा में शाब्दिक अर्थ है ‘ मृतकों का टीला ‘ । लगभग 4 किलोमीटर के घेरे में फैला हुआ मोहनजोदड़ो सिन्ध ( पाकिस्तान ) के लरकाना जिले के सिन्धु नदी के तट पर स्थित है । मोहनजोदड़ो की खोज 1922 ई ० में राखलदास बनर्जी ने की थी । इस नगर की खुदाई में सर जॉन मार्शल , अर्नेस्ट मैके , काशी नाथ दीक्षित , हारग्रीव्ज आदि पुरातत्वविदों ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है ।
यह नगर हड़प्पा से 483 किलोमीटर की दूरी पर है । मोहनजोदड़ो भी हड़प्पा की तरह विकसित और व्यवस्थित नगर था । मोहनजोदड़ो से प्राप्त अवशेष हड़प्पा नगर के अवशेषों की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं । इस नगर की सात सतहें प्राप्त हुई हैं जिसके आधार पर इतिहासकार यह अनुमान लगाते हैं कि यह नगर सात बार बसा और उजड़ा । खुदाई से प्राप्त विशाल स्नानागार , अन्नागार , भवन , मुहरें तथा मूर्तियां आदि मोहनजोदड़ो के विषय में महत्त्वपूर्ण सूचनाएं प्रदान करती हैं ।
3. चन्हुदड़ो ( Chanhudaro ) — यह नगर सिन्ध प्रान्त में मोहनजोदड़ो से कोई 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । इसकी खोज 1931 ई ० में एन ० जी ० मजूमदार ने की थी । इस नगर की दो परतें मिली हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि यह दो बार बना और नष्ट हुआ । यह नगर मनके बनाने के लिए सुविख्यात था । इस नगर से हमें बहुत से तांबे से निर्मित औज़ार भी प्राप्त हुए हैं ।
4. कोटला निहंग खान ( Kotla Nihang Khan ) — यह केन्द्र पूर्वी पंजाब ( भारत ) के रोपड़ जिला में स्थित । इसकी खोज 1953 ई ० में वाई ० डी ० शर्मा ने की थी । यह सतलुज नदी के तट पर स्थित था । इस नगर से प्राप्त हुए बर्तन , आभूषण और उपकरण अत्यन्त उत्कृष्ट हैं ।
कालीबंगन ( Kalibangan ) – कालीबंगन राजस्थान प्रान्त के जिला गंगानगर में स्थित है । इस नगर का नाम यहां पर बनने वाली चूड़ियों के कारण पड़ा । इस नगर की खोज 1953 ई ० में ए ० घोष ने की थी । तत्पश्चात् बी ० के ० थापर और बी ० बी ० लाल ने यहां पर खुदाई के काम को जारी रखा । इस नगर की निर्माण योजना हड़प्पा नगर की निर्माण योजना जैसी ही है । यहां से हमें बहुत से बर्तन , आभूषण और खिलौने मिले हैं ।
6. लोथल ( Lothal ) — यह नगर गुजरात प्रान्त के जिला अहमदाबाद में स्थित है । इस नगर की खोज 1954 ई ० में एस ० आर ० राव ने की थी । उसके नेतृत्व में यहाँ खुदाई का कार्य 1955 ई ० से 1960 ई ० तक चलता रहा । यह नगर अपनी बहुत बड़ी बन्दरगाह के कारण सुविख्यात था । इस बन्दरगाह से पश्चिमी एशिया के देशों के साथ व्यापार चलता था । इसके अतिरिक्त यहां पर एक मनके बनाने का उद्योग भी मिला है । यहां से प्राप्त खण्डहरों से हमें सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है ।
7. आलमगीरपुर ( Alamgirpur ) – यह नगर उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में स्थित है । इस नगर की खोज 1958 ई ० में वाई ० डी ० शर्मा ने की थी । यहां से हमें हड़प्पा संस्कृति के आभूषण , मूर्तियां और बर्तन प्राप्त हुए हैं । इतिहासकारों का विचार है कि आलमगीरपुर चार बार बसा और उजड़ा ।
8. संघोल ( Sanghol ) — यह नगर पूर्वी पंजाब के लुधियाना जिला में स्थित है । इस नगर की खुदाई 1968 ई ० में एस ० एस ० तलवाड़ तथा आर ० एस ० बिष्ट ने की थी । यहां से हमें सिन्धु घाटी सभ्यता के बहुत से बर्तन और मूर्तियां प्राप्त हुई हैं । इस नगर के बाहर एक बहुत बड़ी खाई थी जो सदैव जल से भरी रहती थी । ऐसा इस नगर की शत्रुओं से सुरक्षा के लिए किया गया था ।
9. बनावली ( Banawali ) — यह नगर हरियाणा के हिसार जिला में स्थित है । इसकी खोज 1973 ई ० में आर ० एस ० बिष्ट ने की थी । यह नगर भी मोहनजोदड़ो नगर की तरह सुनियोजित ढंग से बनाया गया था । इस नगर से प्राप्त मुहरें , उपकरण , आभूषण , मूर्तियां इत्यादि अत्यन्त उन्नत और विकसित हैं ।
10. अन्य केन्द्र ( Other Centres ) — उपर्युक्त विख्यात केन्द्रों के अतिरिक्त अब तक हमें सिन्धु घाटी सभ्यता के लगभग 300 अन्य केन्द्रों का पता चला है । इन केन्द्रों में अधिक खोज का कार्य अभी जारी है । इन केन्द्रों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिन्धु घाटी सभ्यता पाकिस्तान के सिन्ध , पश्चिमोत्तर सीमा प्रदेश , पंजाब और बलोचिस्तान तथा भारत के पंजाब , हरियाणा , राजस्थान , पश्चिमी उत्तर प्रदेश और गुजरात के क्षेत्रों में फैली हुई थी । इस प्रकार इस सभ्यता की कुल परिसीमा 1,99,600 वर्ग किलोमीटर थी ।
सिन्धु घाटी सभ्यता की नगर योजना ( Town Planning of Indus Valley Civilization )
सिन्धु घाटी की जिस विशेषता ने पुरातत्व विभाग के अधिकारियों को सर्वाधिक चकित किया , वह इसकी नगर – योजना थी । सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज से पूर्व हमारे देश का इतिहास आर्यों के आगमन से आरम्भ होता था । आर्य एक ग्रामीण सभ्यता थी , परन्तु सिन्धु घाटी सभ्यता में नागरिक सभ्यता के दर्शन हुए । खुदाई में जो नगर मिले हैं वे एक योजना के अनुसार बने दिखाई देते हैं ।
नगरों में सड़कों , गलियों , मकानों तथा बाजारों की भी व्यवस्था की गई थी । नगरों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इनको स्वास्थ्य तथा सफ़ाई के नियमों को ध्यान में रखकर बनाया गया था । यह नगर योजना इस बात का प्रतीक है कि उस समय भारत में सभ्यता का उदय हो चुका था । इस अद्वितीय नगर योजना का वर्णन इस प्रकार है
1. व्यवस्थित सड़कें तथा गलियां ( Planned Roads and Streets ) – सिन्धु घाटी की सड़कें तथा गलियां एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं । सम्पूर्ण नगर में छोटी – बड़ी सड़कों का जाल – सा बिछा हुआ था । ये सड़कें 13 फुट से 34 फुट तक चौड़ी होती थीं । सड़कें सीधी थीं और एक – दूसरे को समकोण पर काटती थीं । गलियां भी बिल्कुल सीधी थीं और वे अन्य गलियों तथा सड़कों को समकोण पर काटती थीं ।
परिणामस्वरूपबनाई जाती हैं । जब भी वायु चलती , वह की बनी हुई थीं परन्तु मज़बूत का भी प्रबन्ध था । सम्पूर्ण नगर अनेक वर्गाकार खण्डों में विभाजित नज़र आता था । आधुनिक सभी आदर्श बस्तियां इसी नमूने की सड़कों का कूड़ा – कर्कट उड़ा ले जाती थी । यद्यपि सड़कें कच्ची मिट्टी होती थीं । ऐसा प्रतीत होता है कि सड़कों तथा गलियों में रात के समय रौशनी
2. व्यवस्थित मकान ( Planned Houses ) – सिन्धु घाटी के मकान एक निश्चित योजना के अनुसार बनाए जाते थे । प्रत्येक मकान में एक स्नानागार , सीढ़ियां , आंगन और आंगन के चारों ओर कमरे हुआ करते थे । छोटे मकानों का क्षेत्र 30 × 27 फुट का था । मकानों की दीवारें काफ़ी मोटी होती थीं । मकानों का कोई भी हिस्सा सड़क अथवा गली की ओर निकला हुआ नहीं होता था ।
प्रत्येक मकान के बीच एक फुट का फासला होता था । विद्वानों का अनुमान है कि शायद लोगों को नक्शे पास करवा कर ही मकान बनवाने पड़ते होंगे । इस सारी व्यवस्थित प्रणाली का आधार नगर की सुन्दरता को बनाए रखना था । मकानों की बाढ़ से सुरक्षा के लिए उन्हें प्रायः ऊंचे चबूतरों पर बनाया जाता था तथा इनकी नींव भी काफ़ी गहरी रखी जाती थी ।
3. भवन निर्माण कला ( Art of Building ) – सिन्धु घाटी के लोग पक्की ईंटों के मकान बनाते थे और उनकी चुनाई गारे से करवाते थे । वे गारे की चुनाई इसलिए करवाते थे ताकि ईंटों को आवश्यकतानुसार अलग करके दूसरे स्थान पर प्रयोग किया जा सके । इन ईंटों का आकार 204 ” x102 ” x 314 ” होता था । मकानों की खिड़कियां तथा दरवाज़े सड़क की ओर नहीं खुलते थे । उन्होंने खिड़कियां तथा दरवाज़ों की व्यवस्था इस ढंग से की थी कि वायु आसानी से अन्दर आ सके । इनकी चौड़ाई 3 से 4 फुट तथा ऊंचाई 6 फुट तक होती थी । कुछ ऐसे दरवाज़े भी मिले हैं जो 18 फुट चौड़े हैं । निश्चित ही ऐसे मकानों में गाड़ियां घुसने की व्यवस्था थी । कुछ दरवाज़ों में सांखल और चटखनी की व्यवस्था भी थी ।
4. मकानों की छतें ( Roofs of the Houses ) — मकानों की छतें लकड़ी की कड़ियों से बनाई जाती थीं । इन कड़ियों पर एक चटाई – सी बिछा दी जाती थी , जो घास या पतली टहनियों की बनी होती थी । इस पर लिपाई कर दी जाती थी । वर्षा के पानी के निकास के लिए छत पर नालियों की व्यवस्था कर दी जाती थी । इन नालियों में ईंटें लगी होती थीं जो पानी को मकानों से दूर फेंकती थीं । मकान के फर्श भी पक्की ईंटों से बनाए जाते थे ।
5. नालियों का प्रबन्ध ( Drainage System ) – सिन्धु घाटी में नालियों की बड़ी सुन्दर व्यवस्था थी । प्रत्येक घर में नालियां थीं । घरों की नालियां , सड़कों की नालियों में आ मिलती थीं । ये नालियां स ड़क के दोनों ओर बनी होती थीं । ये नालियां एक फुट गहरी तथा 9 इंच चौड़ी होती थीं । ये पक्की ईंटों , गारे तथा एक प्रकार के चूने से बनाई जाती थीं । इन नालियों के ऊपर ईंटों को ही ढक्कनों के रूप में प्रयोग किया जाता था । इन नालियों का पानी आगे एक बड़ी नाली में जा गिरता था , जो पानी को शहर से बाहर ले जाती थीं ।
नालियों की इतनी उत्तम व्यवस्था प्राचीन काल में किसी अन्य देश में नहीं मिलती । प्रसिद्ध इतिहासकार ए ० डी ० पुसालकर का यह कहना पूर्णतः ठीक है , की दुनिया 4 ‘ नालियों का विस्तृत प्रबन्ध सिन्धु घाटी सभ्यता की एक विशेषता है तथा उस प्राचीन में किसी अन्य नगर में इस प्रकार की व्यवस्था नहीं मिलती ।
6. सार्वजनिक भवन ( Public Buildings ) – सिन्धु घाटी की खुदाई से हमें कुछ सार्वजनिक भवन भी प्राप्त हुए हैं । उनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है
( i ) विशाल स्नानागार ( The Great Bath ) — खुदाई से प्राप्त सार्वजनिक भवनों में मोहनजोदड़ो स्थित विशाल स्नानागार सर्वाधिक प्रसिद्ध है । यह स्नानागार 180 फुट लम्बा तथा 108 फुट चौड़ा है । इसके बीच 39 फुट लम्बा , 23 फुट चौड़ा तथा 8 फुट गहरा तालाब बना हुआ है । यह तालाब पक्की ईंटों का बना हुआ है । इसमें प्रवेश करने के लिए उत्तरी तथा दक्षिणी छोरों पर ईंटों की सीढ़ियां बनाई गई थीं । तालाब में पानी भरने के लिए निकट ही एक कुआं बनाया गया था । तालाब से गंदे पानी के निकास के लिए नालियों का प्रबन्ध भी किया गया था । तालाब केनिकट ही दो मंजिला कमरे थे ।
( ii ) अन्नागार ( Granaries ) – सिन्धु घाटी की खुदाई से हमें विभिन्न स्थानों पर अनेक अन्नागारों का पता चला है । हमें ये अन्नागार हड़प्पा , मोहनजोदड़ो , लोथल तथा कालीबंगां आदि में प्राप्त हुए हैं । इन अन्नागारों का प्रयोग अनाज को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता था । इनमें सबसे विशाल हड़प्पा स्थित अन्नागार है । यह 169 फुट लम्बा तथा 135 फुट चौड़ा है ।
iii ) अन्य भवन ( Other Buildings ) – सिन्धु घाटी की खुदाई के दौरान ही हमें कई अन्य प्रकार के भवन भी प्राप्त हुए हैं । मोहनजोदड़ो से एक विशाल हाल प्राप्त हुआ है जिसमें 20 स्तम्भ हैं । इसके अतिरिक्त यहां से एक विशाल भवन भी प्राप्त हुआ है जो 230 फुट लम्बा तथा 78 फुट चौड़ा है । ऐसा माना जाता है कि यह किसी उच्चाधिकारी का निवास स्थान अथवा सभागार था , जहां अधिवेशन हुआ करते थे । इनके अतिरिक्त खुदाई से यात्रियों की सुविधा के लिए बनाए गए अनेक विश्रामगृहों का भी पता चला है ।