अशोक तथा बौद्ध धर्म -Ashoka and Buddhism

अशोक भारतीय इतिहास में बौद्ध धर्म के प्रचारक के रूप में विख्यात है । वह कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था । इस धर्म को अपनाने से उसका अपना जीवन नवीन आदर्शों से ढल गया । अशोक चाहता था कि जिस धर्म ने उसके जीवन को बदला है , वह उसके प्रजाजनों का भी पथ – प्रदर्शन करे । डॉ ० राधा कुमुद मुखर्जी के अनुसार , ” अशोक वंश परम्परा में बौद्ध धर्म का अनुयायी नहीं था , वह तो बाद में इस धर्म में दीक्षित हुआ । ” इस महान् उद्देश्य को लेकर उसने अपना सारा समय , शक्ति तथा साधन बौद्ध धर्म के प्रचार में लगा दिये । परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म देश तथा विदेश दोनों में लोकप्रिय हो गया । अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए निम्नलिखित पग उठाए

1. राज्य जनादेश -State Mandate— अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों को स्तम्भों , गुफाओं तथा शिलाओं पर खुदवाया और इन्हें राज्य के प्रसिद्ध मार्गों पर स्थापित किया , ताकि लोग इन्हें पढ़ सकें । इन लेखों में बड़ों का आदर करना , छोटों से प्रेम करना , सत्य बोलना , जीव हत्या न करना , आदि सिद्धान्त खुदे हुए थे । इन आदर्श नियमों ने लोगों के मन तथा आचरण पर गहरा प्रभाव डाला । फलस्वरूप लोगों का बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षण काफ़ी बढ़ गया । भारतीय इतिहास में अशोक ही प्रथम सम्राट् था जिसने धर्म प्रचार के लिए राज्यादेश का आश्रय लिया ।

अशोक तथा बौद्ध धर्म

2.बौद्ध धर्म के प्रबल अनुयायी-Ardent Follower of Buddhism – बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए अशोक का सबसे बड़ा कार्य स्वयं बौद्ध बनना था । कलिंग युद्ध के पश्चात् वह इस धर्म का एक उत्साही प्रचारक बन गया । उसकी नीतियों से उसकी प्रजा बहुत प्रभावित हुई । फलस्वरूप बौद्ध धर्म का खूब प्रसार हुआ ।

3. सरकारी प्रयास-Government Efforts – बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए सम्राट् अशोक ने सरकारी साधनों का भी प्रयोग किया । उसने सरकारी कर्मचारियों को आदेश दिया कि वे बौद्ध धर्म अपनाएं तथा जनता में उसका प्रचार करें । उसने बौद्ध धार्मिक समारोहों का आयोजन भी किया । शिकार विभाग सदा के लिए बन्द कर दिया गया और पशुओं का वध निषेध घोषित कर दिया गया । इस प्रकार सरकारी प्रयत्नों द्वारा अशोक ने अहिंसा के सिद्धान्त को कार्यरूप दिया । अहिंसा के सिद्धान्त की लोकप्रियता के साथ – साथ बौद्ध धर्म के प्रसार को भी बल मिला ।

4. विहारों और स्तूपों का निर्माण-Building Viharas and Stupas— अशोक ने धर्म के प्रचार के लिए विशाल संख्या में विहार तथा स्तूप बनवाए । फाह्यान लिखता है कि अशोक ने 84,000 स्तूप बनवाए । यद्यपि यह कथन सत्य प्रतीत नहीं होता तथापि यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अशोक ने बहुत बड़ी संख्या में विहार तथा स्तूप बनवाए । इनमें से सांची तथा भारहुत के स्तूप आज भी विद्यमान् हैं । ये स्तूप तथा विहार बौद्ध धर्म के प्रचार के केन्द्र बने । इनमें रहकर बौद्ध भिक्षुओं ने बौद्ध धर्म का खूब प्रचार किया ।

5.जनता की भलाई के लिए काम करें-Work for The Benefit of The People— अशोक के बौद्ध धर्म के प्रचार में उसके प्रजा – हितार्थ कार्यों ने काफ़ी योगदान दिया । उसने प्रजा की भलाई के लिए अनेक कार्य किए बहुत – सी नई सड़कें बनवाई गई और उनके किनारे छायादार वृक्ष लगवाए गए । राज्य में अनेक चिकित्सालय खोले गए जहां लोगों को निःशुल्क औषधियां दी जाती थीं । इन सब बातों का अशोक की प्रजा पर गहरा प्रभाव पड़ा । परिणामस्वरूप लोगों का झुकाव अशोक की ओर होने के साथ – साथ बौद्ध धर्म की ओर भी हो गया ।

6. विदेशों में प्रचार-Preaching in Foreign Countries — अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार केवल भारत में ही नहीं , अपितु विदेशों में भी किया । उसने अपने प्रचारकों को श्रीलंका , चीन , सीरिया , मिस्र , बर्मा ( म्यांमार ) तथा नेपाल आदि देशों में भेजा । इस बात का प्रमाण हमें उसके राज्यादेशों से मिलता है । डॉ ० आर ० के ० मुखर्जी के शब्दों में , ” पत्थर तथा गाथा दोनों ही अशोक के विदेशों में प्रचारक भेजने का समर्थन करते हैं । ‘ ‘ 1 बौद्ध धर्म के विदेशों में प्रचार कार्य में अशोक के पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा ने भी भारी योगदान दिया । ‘ महावंश ‘ में उल्लेख मिलता है कि , “ महेन्द्र कुछ अन्य भिक्षुओं के साथ धर्म प्रचार के लिए लंका गया । लंका के राजा की प्रार्थना पर अशोक की पुत्री संघमित्रा भी बौधि वृक्ष की शाखा लेकर लंका पहुंची । उन दोनों के प्रभाव में आकर लंका नरेश , उसकी रानी तथा अन्य चालीस हज़ार व्यक्तियों ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया । ” इसी प्रकार अशोक द्वारा अन्य देशों में भेजे गए प्रचारकों ने बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार किया ।

7. व्यक्तिगत आदर्श-Personal Ideal– सम्राट् अशोक ने अपनी प्रजा के सम्मुख व्यक्तिगत आदर्श प्रस्तुत किया । उसने जिन सिद्धान्तों का प्रचार किया उनका स्वयं पालन किया । उसने मांस खाना छोड़ दिया और शिकार खेलना बन्द कर दिया । सम्राट् होकर भी उसने भिक्षुओं जैसा जीवन व्यतीत किया । वह भोग – विलास का जीवन त्याग कर सारा – सारा दिन प्रजा हितकारी कार्यों में लगा रहता था । इन सब बातों का अशोक की प्रजा पर गहरा प्रभाव पड़ा । वे अशोक के पद – चिन्हों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए । इस प्रकार सम्राट् अशोक के व्यक्तिगत आदर्श ने बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।

8. बौद्ध धर्म को संरक्षण-Patronage to Buddhism — अशोक ने बौद्ध धर्म का केवल प्रसार नहीं किया , अपितु उसे संरक्षण भी प्रदान किया । उसने बौद्ध धर्म को राज्य धर्म घोषित कर दिया । परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग बौद्ध धर्म में सम्मिलित होने लगे । अशोक ने इसकी प्रतिष्ठा के लिए इसका अनुशासन भंग करने वाले के लिए विशेष दण्ड नियत किए थे । सारनाथ के स्तम्भ लेख में स्पष्ट लिखा है , ” देवानाम प्रिय , प्रियदर्शी राजा यह आदेश देते हैं कि कोई भी संघ में फूट डालने का प्रयास न करे । यदि किसी भिक्षु अथवा भिक्षुणी ने ऐसा करने का प्रयास किया तो उसे श्वेत वस्त्र पहना कर वह स्थान दिया जाएगा जो भिक्षु भिक्षुणियों के योग्य नहीं है । ” इसके अतिरिक्त अशोक द्वारा तीसरी बौद्ध सभा का आयोजन करना भी उसके बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान करने की ओर संकेत करता है । बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान करना अशोक की बौद्ध धर्म के प्रति एक महान् सेवा थी । सच तो यह है कि अशोक ने बौद्ध धर्म की सेवा करके इतिहास में अमर स्थान पा लिया । संसार में महात्मा बुद्ध की वास्तविक प्रतिष्ठा स्थापित करने का श्रेय उसी को ही प्राप्त है । उसने अपनी जनता के सम्मुख महात्मा बुद्ध का एक निखरा हुआ रूप प्रस्तुत किया । 

9. धर्म महामात्रों की नियुक्ति-Appointment of Dharma Mahamatras — स्वयं द्वारा प्रतिपादित धम्म अथवा धर्म का प्रचार करने के लिए अशोक ने ‘ धर्म महामात्र ‘ नामक विशेष कर्मचारियों की नियुक्ति की । वे देश के विभिन्न भागों में घूम – घूम कर लोगों में नैतिक सिद्धान्तों का प्रचार करते और लोगों को उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देते थे । इसके अतिरिक्त ये कर्मचारी देखते थे कि लोग धर्म के नियमों को व्यावहारिक रूप दे रहे हैं अथवा नहीं । इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से भी बौद्ध धर्म का काफ़ी प्रचार हुआ । इसका कारण यह था कि अशोक के ‘ धर्म ‘ तथा बौद्ध धर्म के सिद्धान्त आपस में बहुत मेल खाते थे ।

10. तीसरी बौद्ध सभा-Third Buddhist Council — समय बीतने के साथ – साथ बौद्ध धर्म के भिक्षुओं में मतभेद उत्पन्न हो गए । अशोक ने यह अनुभव किया कि यदि बौद्ध भिक्षुओं के आपसी मतभेद न मिटाए गए तो बौद्ध धर्म शीघ्र ही अस्तित्व खो बैठेगा । अतः 251 ई ० पू ० में उसने बौद्ध धर्म की एक ( तीसरी ) सभा पाटलिपुत्र में बुलाई । इस सभा की अध्यक्षता मोग्गलिपुत्त तिस्स ने की तथा इसमें 1000 बौद्ध भिक्षुओं ने भाग लिया । यह सभा न केवल बौद्ध भिक्षुओं के मतभेद दूर करने में सहायक सिद्ध हुई , अपितु इससे बौद्ध धर्म के प्रचार में काफ़ी सहायता मिली ।

11. बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्राएं -Pilgrimages of Buddhist Places — अशोक ने बौद्धों के लगभग सभी तीर्थ स्थानों की यात्राएं कीं । उपगुप्त आदि भिक्षुओं के साथ उसने लुम्बिनी ( जहां बुद्ध का जन्म हुआ था ) , कपिलवस्तु ( जहां उन्होंने संसार का महान् त्याग किया था ) , गया ( जहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी ) , सारनाथ ( जहां उन्होंने अपना प्रथम धर्मोपदेश दिया था ) , श्रावस्ती ( जहां वे कई वर्ष ठहरे थे ) , कुशीनगर ( जहां उनका देहान्त हुआ था ) आदि स्थानों की यात्रा की । इन यात्राओं के दौरान उसने बौद्ध धर्म का खूब प्रचार किया । पहले लुम्बिनी से आने वाले लोगों को धार्मिक कर देना पड़ता था , परन्तु अशोक ने यह कर समाप्त करके बौद्ध धर्म के प्रचार की दिशा में एक प्रशंसनीय पग उठाया ।

12. व्यापक प्रचार-Extensive Preaching  – अशोक ने बौद्ध मत की शिक्षाओं को शिलाओं , स्तम्भों आदि पर खुदवाया था । ये सिद्धान्त लोगों की बोलचाल की भाषा में खुदवाए गए । इससे जनसाधारण तक बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों को पहुंचाना सरल हो गया । इसके अतिरिक्त इन आदेशों को अशिक्षित लोगों की सुविधा के लिए समय समय पर ऊंची आवाज़ में पढ़कर भी सुनाया जाता था । परिणामस्वरूप अनेक लोग इस धर्म की ओर आकृष्ट होने लगे ।

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