अशोक का धम्म
अशोक का धम्म -Ashoka’s Dhamma
अशोक के धम्म से क्या अभिप्राय है अशोक का नाम सम्पूर्ण विश्व इतिहास में उसके द्वारा चलाए गए ‘ धम्म ‘ अथवा ‘ धर्म ‘ के कारण प्रसिद्ध है । प्रारम्भ में अशोक शिव का उपासक था । परन्तु कलिंग युद्ध क्या अशोक के अभिलेखों में प्रयुक्त धम्म ‘ शब्द का सम्बोधन बौद्ध धर्म की तरफ है ? इस विषय को लेकर पश्चात् उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया । विद्वानों में कुछ मतभेद हैं । फिर भी अधिकांश इतिहासकार इस बात पर एकमत हैं कि अशोक का धम्म अथवा ‘ धर्म ‘ सभी धर्मों का सार था । डॉक्टर के ० एम ० मुंशी के शब्दों में , ” विश्व के आरम्भ होने से पहले से लेकर अब तक इससे अधिक धार्मिक सहनशीलता के सिद्धान्त को प्रचलित नहीं किया गया था ।
1. सामाजिक एकता बनाए रखने के लिए-For Maintaining Social Unity- मौर्य काल में हिन्दू धर्म में आई कुरीतियों के कारण बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का तीव्रता से प्रसार हो रहा था । ऐसी स्थिति में सामाजिक वातावरण अशान्त था । नए तथा पुराने धर्मों के टकराव की सम्भावना से बचने के लिए अशोक ने धम्म को प्रचलित किया । यह सभी धर्मों के नैतिक सिद्धान्तों का संग्रह था ।
2. धम्म की स्थापना के कारण-Factors for Establishing Dhamma-अशोक के धम्म की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है
- वंश का प्रभाव ( Hereditary Influence ) — आरम्भ से ही मौर्य शासक उदार धार्मिक विचारों वाले थे । उन्होंने अपने धर्म के रीति – रिवाजों का पूर्ण निष्ठा से पालन किया तथा अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता की नीति अपनाई । चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म ग्रहण किया । बिन्दुसार बौद्ध धर्म में श्रद्धा रखता था । मौर्य शासकों के यूनानियों से भी सम्बन्ध स्थापित थे । परिणामस्वरूप अशोक भी उदार धार्मिक विचारों वाला शासक बना ।
3. राजनीतिक एकता के लिए-For Maintaining Political Unity — अशोक ने राजनीतिक कारणों से भी धम्म को प्रचलित किया । उसके समय तक मौर्य साम्राज्य काफ़ी विशाल हो चुका था । इस विशाल साम्राज्य में विभिन्न जातियों को एक सूत्र में बांध कर रखना एक कठिन कार्य था । इसके लिए दो ही उपाय सम्भव थे प्रथम सेना के बल पर , दूसरा धम्म के आधार पर । अशोक ने धम्म को प्रचलित करना ही उचित समझा । डॉक्टर रोमिला थापर के अनुसार , ” अपने धम्म प्रचार के द्वारा अशोक धर्म के संकीर्ण दृष्टिकोण में परिवर्तन करने , दुर्बलों की शक्तिशालियों से रक्षा करने और अपने साम्राज्य में एक विस्तृत सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना को जागृत करने का प्रयत्न कर रहा था , जिसका विरोध कोई भी सांस्कृतिक समुदाय नहीं कर सकता था ।
II . अशोक के धम्म के मुख्य सिद्धान्त-Main Principles of Ashoka’s Dhamma
धम्म प्राकृत भाषा का शब्द है जिसे संस्कृत भाषा में धर्म पुकारते हैं । अशोक के धम्म के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित थे
- बड़ों का सम्मान-Respect of Elders— अशोक के धर्म का मुख्य पहला सिद्धान्त अपने बड़े – बूढ़ों का आदर करना था । बच्चों को माता और पिता की आज्ञा का पालन अवश्य करना चाहिए । शिष्यों को अपने गुरुजनों का आदर करना चाहिए । सभी को ऋषियों और ब्राह्मणों के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए ।
- अहिंसा-Ahimsa — अहिंसा अशोक के धर्म का मूल मन्त्र है । किसी मनुष्य को मन , वचन तथा कर्म से किसी जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए । इसी सिद्धान्त को अपना कर अशोक ने स्वयं भी शिकार खेलना तथा मांस खाना छोड़ दिया । उसने पशुओं के वध पर रोक लगा दी ।
- सत्य भाषण-Truthfulness – अशोक का कथन है कि मनुष्य को सत्यभाषी होना चाहिए । बगुला भक्ति से सत्य भाषण कहीं अच्छा है ।
- छोटों के प्रति उचित व्यवहार-Proper Treatment to the Youngers — अशोक के धर्म का दूसरा मुख्य सिद्धान्त यह था कि बड़ों को छोटों के साथ और स्वामी को सेवकों के साथ दया तथा प्रेम का व्यवहार करना चाहिए । उसने दासों तथा नौकरों के प्रति विशेष रूप से अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया ।
- पाप रहित जीवन-Sinless Life — मनुष्य को पाप के मार्ग से दूर रहना चाहिए । ईर्ष्या , अत्याचार , क्रोध , अहंकार तथा झूठ आदि बुराइयों के कारण मनुष्य पाप करने लगता है । पाप – रहित जीवन व्यतीत करने के लिए मनुष्य को इन बुराइयों से बचना चाहिए ।
- दान-Charity — अशोक के धर्म में ‘ दान ‘ के सिद्धान्त का बड़ा महत्त्व है । अशोक का विचार था कि दान धर्म का सर्वोत्तम रूप है । अतः विद्वानों , वृद्ध पुरुषों और ऋषियों आदि को गुणों का प्रसार करना चाहिए । यह धर्म – दान है और यह दान सोने – चांदी के दान से कहीं अच्छा है ।
- सच्चे रीति – रिवाज-True Ceremonials — अशोक ने समाज में प्रचलित झूठे रीति – रिवाजों का खण्डन तथा सच्चे रीति – रिवाजों का प्रचार किया । इसके अनुसार जन्म , विवाह , व्रत तथा तीर्थ यात्रा सम्बन्धी रीति – रिवाज मिथ्या हैं । मनुष्य को इन झूठे रीति – रिवाजों के जाल में नहीं फंसना चाहिए । उसे चाहिए कि वह शुद्ध तथा सदाचारी जीवन व्यतीत करे । दान , दया और सहानुभूति की भावनाएं मनुष्य को सदाचारी बनाती हैं और यही सच्चे रीति रिवाज हैं ।
- धार्मिक सहनशीलता-Religious Toleration — धार्मिक सहनशीलता भी अशोक के धर्म का मूलमन्त्र थी । इसके अनुसार मनुष्य को सभी धर्मों का आदर करना चाहिए , क्योंकि प्रत्येक धर्म में कोई – न – कोई अच्छाई अवश्य है । मनुष्य को चाहिए कि वह इस अच्छाई को अपनाने का प्रयास करे ।
- आत्म विश्लेषण-Self – Analysis — अशोक ने इस बात पर विशेष बल दिया कि सभी मनुष्य समय समय पर अपने – अपने कार्यों का विश्लेषण करें । इस प्रकार वह अपने अन्दर समाए हुए गुणों तथा अवगुणों को भली – भान्ति परख सकते हैं । केवल आत्म – विश्लेषण से ही मनुष्य अपने जीवन को अवगुणों से मुक्त कर सकता है । संक्षेप में हम कह सकते हैं कि अशोक का धम्म अथवा धर्म कोई नवीन धर्म नहीं था । उसने सभी प्रचलित धर्मों के मुख्य नैतिक सिद्धान्तों का संग्रह किया ताकि उनका अनुसरण करके उसकी प्रजा अपना परलोक सुधार के धर्म के सिद्धान्त को दृष्टि में रखते हुए के ० ए ० नीलकण्ठ शास्त्री ने ठीक ही कहा है , ” इस प्रकार अशोक का धर्म सामाजिक सदाचार के नियमों का व्यावहारिक रूप में संग्रह था और इसका धर्म अथवा धर्मशास्त्र से बहुत कम सम्बन्ध था । अशोक अपने धम्म का प्रसार साम्राज्य के प्रत्येक कोने तक करना चाहता था । इस उद्देश्य के लिए उसने कई कार्य किए । डॉ ० आर ० के ० मुखर्जी के अनुसार , ” अशोक की मौलिकता इस बात में इतनी नहीं है कि उसने इस धर्म के विषय में सोचा , अपितु इस बात में है कि उसने इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए क्रियात्मक पग उठाए ।
- कर्म सिद्धान्त-Theory of Karma — अशोक के धर्म के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है । इसलिए उसे अच्छे कर्म करने चाहिएं । वह चाहता था कि प्रत्येक मानव अपने परलोक को सुधारे ताकि मृत्यु के पश्चात् उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो । शिलालेख नं ० 10 में वह स्वयं कहता है , ” मेरे ये सभी प्रयास परलोक के लिए ही हैं ।
III . धम्म प्रचार के पग-Measures to Spread Dhamma
अशोक ने अपने धम्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित पग उठाए
- अपने धम्म का प्रचार करने के लिए उसने धर्ममहामात्र नामक कर्मचारियों की नियुक्ति की । इन अधिकारियों का कार्य जनता को धर्म के सिद्धान्तों से परिचित करवाना तथा यह देखना था कि लोग उन्हें व्यावहारिक जीवन में अपना भी रहे हैं या नहीं । यह बात भी धर्म के प्रचार में काफ़ी सहायक सिद्ध हुई ।
- अशोक ने समय – समय पर अनेक धार्मिक यात्राएं कीं । फलस्वरूप उसके धर्म का शीघ्र प्रसार होने लगा था । इससे लोगों में धम्म के सिद्धान्तों का गहन प्रभाव पड़ने लगा ।
- उसने अपने धम्म के सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप दिया और लोगों के सामने व्यक्तिगत उदाहरण प्रस्तुत किया । उसने शिकार खेलना तथा मांस खाना छोड़ दिया और धार्मिक सहनशीलता की नीति को अपनाया सम्राट् के इन आदर्शों से लोग बहुत प्रभावित हुए ।
- उसने अपने धम्म के मुख्य सिद्धान्तों को शिलाओं तथा स्तम्भों पर खुदवाया , ताकि जनता उन्हें पढ़कर अपने व्यावहारिक जीवन में अपना सके । अशिक्षित जनता की सुरक्षा के लिए वर्ष में कई बार इन नियमों को ऊंचा ऊंचा पढ़कर सुनाया जाता था ।
IV . साम्राज्य नीति पर प्रभाव ( Effects on his Imperial Policy ) अशोक के धम्म के उसकी साम्राज्य नीति पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े
1. सदाचारी जीवन-Moral Life – अशोक का धर्म नैतिक सिद्धान्तों का संग्रह था । इन सिद्धान्तों को अपनाकर उसकी प्रजा का नैतिक उत्थान हुआ । परिणामस्वरूप सभी लोग सदाचारी का जीवन व्यतीत करने लगे ।
2. धर्म विजय-Dharma Vijay— अशोक ने दिग्विजय के स्थान पर धर्म विजय को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया । अब वह अपना तथा प्रजा का परलोक सुधारना चाहता था । इसलिए उसने अपना शेष जीवन अपने धर्म के प्रसार में लगा दिया ।
3. अपराधों का अन्त-End of Crimes — अशोक के धर्म के कारण राज्य में अपराधों का अन्त हो गया । लोग सुखी एवं समृद्ध थे । उन्हें किसी प्रकार की कमी अनुभव नहीं होती थी । फलस्वरूप उनके मन में अपराध करने का विचार भी नहीं आता था ।
4. प्रजाहितार्थ कार्य-Work of Public Welfare – अशोक की साम्राज्य नीति पर उसके धम्म का एक मुख्य प्रभाव यह था कि सभी राज्याधिकारी प्रजा के साथ नम्रता तथा दयालुता का व्यवहार करने लगे । उनके द्वारा प्रजा की भलाई के लिए असंख्य कार्य किए गए । परिणामस्वरूप प्रजा सुखी तथा समृद्ध हो गई ।
5. सम्राट् की प्रतिष्ठा में वृद्धि-Increase in the Prestige of the Emperor — अशोक ने अपने धर्म का पूर्णतया पालन किया और प्रजा की भलाई के लिए अनेक कार्य किये । परिणामस्वरूप सभी लोग राजा का बड़ा आदर करने लगे । इससे अशोक की प्रतिष्ठा में भारी वृद्धि हुई ।
6. सामाजिक तथा धार्मिक एकता-Social and Religious Unity – अशोक का धर्म सभी धर्मों के मुख्य सिद्धान्तों का संग्रह था । इस धर्म को अपना कर लोग अपने धार्मिक भेद – भाव भूल गए । परिणामस्वरूप देश धार्मिक एकता स्थापित हुई । धार्मिक एकता के साथ – साथ सामाजिक एकता को भी बल मिला ।
7. अशोक को महानता की प्राप्ति ( Greatness फॉर Ashoka ) — अशोक ने विदेशों में अपने धर्म का प्रचार करने के लिए प्रचारक भेजे । फलस्वरूप विदेशों में भी भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का प्रचार हुआ । इस प्रकार अपनी नीति के कारण अशोक भारत का ही नहीं वरन् समस्त विश्व का एक महान् तथा आदरणीय सम्राट् बन गया ।