भारतीय इतिहास के स्त्रोत्र

भारतीय इतिहास के स्त्रोत्र

भारत का इतिहास बहुत पुराना है और यह किसी एक स्त्रोत्र की देन नहीं है भारत में यूनान की तरह कोई हेरोडोटस पैदा नहीं हुआ जो यूनान की भांति भारत का इतिहास लिखता भारत का इतिहास अनेको धार्मिक ग्रंथो में लिखा गया परन्तु सम्पूर्ण देश का इतिहास किसी भी ग्रन्थ में नहीं लिखा गया ये अभिलेखों , सिक्को , प्राचीन, भावनाओ आदि के दामन में लिपट कर रह गया |

भारत के इतिहास को जानने  के लिए हमे भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रंथो , पुरातत्व सामग्री , विदेशियों के हिसाब , मुद्रए , सिक्को के प्रकार, आदि के बारे में जाना होगा जब ही हम भारत के इतिहास के स्त्रोत्रो के बारे में सही प्रकार से समझ सकते है |

भारतीय इतिहास के स्त्रोत्र

1.   ऐतिहासिक स्त्रोत्र (historical resource)

ऐतेहासिक ग्रन्थ – प्राचीन इतिहास में ऐतेहासिक ग्रन्थ लिखे गए है ये इतिहास के अध्यनो को जोड़ने में बड़े उपयोगी सिद्ध हुए है महाकवि बाण भट्ट , हरिसेन, विशाखदत आदि की रचनाओ में भरतीय इतिहास के निर्माण में  महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसका वर्णन इस प्रकार है

  1. कल्हण की राजरंगनी से हमे कश्मीर इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है प्राचीन कल से लेकर 12वी शताब्दी तक के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है कश्मीर में किस राजा के कितने समय तक शाशन क्या सभी के बारे में हमे इस ग्रन्थ से पता चलता है |
  2. कालिदास गुप्तकाल के एक प्रशिद्ध कवि है उनके नाटको से भी हमे इतिहास के स्त्रोत्रो के बारे में जानकारी मिलती है उन के नाटक ‘रघुवंश’ , ‘मेघदूत’ तथा ‘अभिज्ञान शाकुंतलम ‘ से भी हमे भारत के गुप्तकाल के बारे में जानकारी मिलती है
  3. चंदरबरदाई की ‘पृथवीराज रासो ‘ से भी हमे इतिहास के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है इस ग्रन्थ से हमे प्रथ्वीराज चौहान के समय के बारे में जानकारी मिलिती है |
  4. ‘रामचरित’ तथा ‘भोज प्रबंध’ आदि ग्रंथो से भी हमे इतिहास के स्त्रोत्र के बारे में जानकारी मिलती है
  5. हर्ष के ‘रत्नावली’ , नागानंद तथा प्र्यदार्शिका सातवी शताब्दी के भारत के बारे में जानकारी मिलती है
  6. दक्षिण भारत के बारे में हमे संगम साहित्य से बहुत सी जानकारी मिलती है संगम साहित्य तमिल भाषा में लिखा गया है जो हमे दक्षिण भारत के इतिहास को जाने में हमारी मदत करता है तोलकापिप्यम, मणिमेकले, संगम साहित्य के प्रशिद्ध ग्रन्थ है |

  2. राजनितिक रचनाए (Political Composition)——एतिहासिक ग्रंथो तथा नाटको के अलावा कुछ राजनीतिक रचनाए भी प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी देती है राजनीतिक रचनाओ में कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र ‘ इतिहास के बारे में काफी महत्वपूर्ण जानकारी देते है कौटल्य ने मौर्य-कालीन भारत के बार में जानकारी दी है हमे इससे इतिहास के मौर्या काल के बारे में पता चलता है

व्याकरण सम्बन्धी ग्रंथो में पाणिनि का ‘अष्टाध्यायी’ तथा पतंजलि के ‘महाभाष्य’ का नाम भी लिया जा सकता है इन सभी ग्रंथो से भी हमे इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है|

2. धार्मिक साहित्य (Religious Literature)

धार्मिक साहित्यों से भी हमे इतिहास के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है धार्मिक साहित्यों में सर्वप्रथम वेद आते है तो वेदों के बारे में जानते है

  1. वेद (THE VEDAS ) –वेद की संख्या चार है —ऋग्वेद, सामवेद , यजुर्वेद  तथा अर्थववेद | इनमे से सबसे पुराने ऋग्वेद है तथा महत्वपूर्ण वेद है वेदों का वर्णन इस प्रकार है |
  • ऋग्वेद ( The Rigveda) – ऋग्वेद में 1028 सूक्त एक 10 मंडल है | इसमें से 250 मंत्र इंद्र देवता की प्रसंसा में लिखे गए है ऋग्वेद की रचना 1500-1000 ई० पू० के मध्य हुई ऋग्वेद से हमे बहुत जानकारी मिलती है जो इस प्रकार है
  • (1) इनके अध्यन से हमे पता चलता है की आर्य रजा स्वेच्छाचारी नहीं थे
  • (2) इससे हमे आर्यों के धार्मिक जीवन के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलती है
  • (3) इसमें हमे आर्यों से आपसी सम्बन्ध व आपसी संघर्ष के बारे में जानकारी मिलती है
  • (4) ऋग्वेद में वर्णित है की कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से कोई भी धर्म अपना सकता है
  • (5) इसमें हमे प्राचीन भारत की भौगोलिक जानकारी मिलती है
  • (6) इसमें हमे नारी के उच्च स्थान की और संकेत मिलता है |
  • यजुर्वेद ( The Yajurveda) —– यह वेद यग्य-विधियों का सग्रह है | इसमें हमे आर्यों पता चलता है की आर्यों का विस्तार कुरुक्षेत्र तक हो गया था | इसमें हमे आर्यों की आश्रम-व्यस्था का भी पता चलता है की आर्य किस प्रकार आश्रमों में रहा करते थे
  • सामवेद (The Atharvaveda) सामवेद से अभिप्राय है मधुर गीत | इस वेद में हमे भारतीयों के संगीत कला के बारे में जानकारी मिलती है इस वेद को भारतीय संगीतकला का स्त्रोत्र माना जाता है | इसमें 75 नय मन्त्र है शेष सभी मन्त्र ऋग्वेद से लिए गए है |
  • अर्थवेद (The Atharvaveda )——- इस वेद से हमे पता चलता है की प्राचीन काल में आर्यों में अन्धविश्वास बढ  गया था अर्थवेद में दुस्त आत्माओ से बचने के लिए जादू-टोन का उल्लाखे भी किया गया है इसमें अनेक बीमारियों से बचने के लिए औषधियो के बारे में भी लिखा गया है |
  1. पुराण (The Puranas)­­——- पुराण का अर्थ है प्राचीन | ये संख्या में 18  है | प्रत्येक पुराण के 5-5 भाग है इतिहास के अनुसार पुराणों का पांचवा भाग बहुत ही महत्वपूर्ण है इस भाग में हमे प्राचीन राजवंशो का वर्णन मिलता है पुराणों में वायु , ब्रहा , भगवत, विष्णु , तथा मत्श्य पुराण विशेष रूप से जरुरी व महत्वपूर्ण है पुराणों से हमे निम्नलिखित जानकारी मिलती है जो इस प्रकार है

1 .  इसमें हिन्दू देवी देवताओ की स्तुति का वर्णन किया गया है

2 .  ये मौर्य वंश के इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करते है

3 . इसमें बहुत से राजाओ के जीवन के बारे में राजनीतिक, सामाजिक, तथा धार्मिक मिलती है

4 . ये हमे बताते है की प्राचीन काल में विद्यर्थी गुरु के घर शिक्षा लेने जाते थे |

5 . इनसे हमे राजाओ की शाशन पद्धति का परिचय मिलता है |

  1. इसमें हमे प्राचीन नगरो तथा उनमे परस्पर दूरी के बारे मे पता चलता है |

कुछ इतिहासकार पुराणों के बारे में कल्पित व झूटी कहानिया बनाते है परन्तु आज ये बात सही सिद्ध हो चुकी है की पुराणों से हमे प्राचीन भारत के बारे में जानकारी मिलती है ये इतिहास का बहुमूल्य कोष है

  1. स्म्रतिया ( The Samritis)——- स्मृतिया धार्मिक साहित्य का मुख्य अंग है ये आर्यों के कानूनों का एक ग्रन्थ है जिसमे हमे आर्यों के कानूनों के बारे में पता चलता है | इनमे से मनु स्मृति को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है मनु स्मृति को विश्व की पहली क़ानूनी पुस्तक माना जाता है मनु ने की थी इसमें अलावा विष्णु स्मृतिया भी प्रशिद्ध है |  ये ग्रन्थ हमे आर्यों के जीवन के बारे में जानकारी देते है और उनकी दिनचर्या के बारे में भी बताते है इनमे हमे आर्यों के नियमो के बारे में जानकारी मिलती है इसके अतरिक्त हमे आर्यों के सामाजिक, राजनीतिक, तथा धार्मिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है |
  2. महाकाव्य (The Epics) महाकाव्यों की रचना उत्तर वैदिक काल में की गयी थी इनमे रामायण एवं महाभारत के नाम प्रशिद्ध है |

रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि जी ने की थी  इसमें 24,000 श्लोक है | इसमें मुख्य विषय रामचंदर एवं रावण के बीच लड़ाई का है

महाभारत की रचना महर्षि वेद व्यास जी ने की थी | इसमें 1 लाख  से अधिक श्लोक दिए गए है | भगवद्गीता महाभारत का ही एक अंग है महाभारत का मुख्य विषय कौरवो एवं पांडवो के मध्य लड़ाई है | इन महाकाव्यों से हमे वीरकाल में भारतीय जीवन के विषय में निम्नलिखित बातो का पता चलता है |——

  1. ये महाकाव्य उस समय की उच्च संस्कृति का परिचय देते है |
  2. राजा का जीवन बड़ा अच्छा व समृद्ध होता था तथा राज्य की सलाह के लिए राजा के पास मंत्री होते थे |
  3. समाज में बहु-विवहा प्रथा प्रचलित थी |
  4. समाज में स्वयंवर की प्रथा भी प्रचलित थी |
  5. समाज में स्त्रियों का सम्मान किया जाता था |
  6. समाज में जुआ खेलने जेसी कुप्रथाए भी प्रचलित थी |
  7. उस समय अश्वमेध यग्य की प्रथा भी प्रचलित थी |
  8. उस समय समाज 4 वर्गो मै बटा हुआ था समाज में ब्रहामनो को सव्रोच्च स्थान दिया जाता था |

कुछ इतिहासकार रामायण तथा महाभारत के बिषय में एकमत नहीं है जहां एक और कुछ इतिहासकार इससे काल्पनिक मानते है वाही दूसरी और कुछ इतिहासकारो का कहना है कि ये ग्रन्थ एक ऐसा दर्पण है जिसमे उस समय के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, तथा सांस्कृतिक जीवन का प्रतिबिम्ब स्पस्ट देखा जा सकता है |

 

  1. बौद्ध साहित्य (Buddhist Literature)——- बौद्ध साहित्य से भी हमे भारत के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है इस साहित्य में हमे महात्मा बुद्ध की जीवन-कथाए तथा अन्य ग्रंथो की गणना की जाती है इनका वर्णन इस प्रकार है —
  2. त्रिपिटक (The Tripitakas)—— त्रिपिटक बौद्ध धर्म के सबसे प्राचीन ग्रन्थ है ये पहली भाषा में लिखे गए है इसमें सुतपिटक, विनयपिटक तथा अभिधाम्पिटक समलित है ये बौद्ध समाज में प्रचलित महात्मा बुद्ध की शिक्षाओ का उल्लेख करते है |
  3. जातक (The Jataks)  इन  ग्रंथो में हमे महात्मबुध के पूर्व जन्मो से संबधित कथाए मिलती है इनकी कुल संख्या 549 है ये कथाए उस समय के समाज और साहित्यों को समझने बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई है
  4. बुद्ध चरित एवं सौदरानंद ( The Buddhacharita and Saundrananda)— इन ग्रंथो की रचना अश्वघोष ने की थीइन ग्रंथो से हमे महात्मा बुद्ध की शिक्षाओ तथा जीवन के बे ने पता चलता है इसमें हमे कुषाण वंश के बारे में भी जानकारी मिलती है |
  5. मिलिन्द पन्हो (The MilindaPanho)—- यह भी बौद्ध धर्म से संबधित एक महतवपूर्ण ग्रन्थ है |
  6. ललिता विस्तार (The Lalita Vistara)—- यह भी बौद्ध धर्म की महायान शाखा से संबधित एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है इसमें महात्मा बुद्ध के जीवन का अत्यंत सुंदर वर्णन किया गया है |

6 . जैन साहित्य (JainLiterature ) —- जैन साहित्य से भी हमे इतिहास के बारे में बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है बहुत सी इतिहास की उलझी हुई गुथियो को सुलझाता है जैन साहित्य में 12 अंग ,12 उप-अंग , 10 प्रकिरण , 6 छेद सूत्र तथा 4 मूलसूत्र है अंगो में जैन धर्म के सिधान्तो , जैन भिक्षुओं से संबधित नियमो तथा अन्य धर्मो के खंडन का उल्लेख मिलता है  

3 . विदेशियो के वर्तन्त (Foreign Affairs)

विदेशी लेखको ने भी प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में बहुत सी जानकारी दी है बहुत से विदेशी तो भारत आए और उन्होंने यहाँ पर रहे कर सब कुछ अपनी आखो से देखा और उसका वर्णन किया और उन्हें लिख दिया  परन्तु कुछ इतिहासकार ऐसे भी थे जिन्होंने भारत की यात्रा करने वाले लेखको की बातो को सुन कर उसके आधार पर भारत का वर्णन किया

जिन लेखको ने केवल सुन भारत का वर्णन किया उनके लेखो पर इतना भरोसा तो नहीं किया जा सकता परन्तु इतिहासिक द्रस्टी से से काफी महत्त्व है भारत के इतिहास में विदेशी लेखको का योगदान निम्नलिखित इस प्रकार है —-

  1. चीनी लेखक (The Chinese Writer)­­­——- चीनी लेखको में फाहयान, ह्युसाग तथा इतिसंग के नाम विशेष रूप से लिए जा सकते है ये चौथी शताब्दी से सातवी शताब्दी के बीच भारत आए | इनके वर्तन्त भारत के इतिहास को जाने में काफी फायदेमंद हुए इनका वर्णन इस प्रकार है—–
  2. फाहियान (Fahien )—- फाहियान 405 ई० से 411 ई० तक भारत में रहा उसका एक प्रशिद पुस्तक है जिसका नाम ‘फ़ो-को-की’ (Fo-Ko-Ki) है जिसमे उसमे चंद्र्ग्रुप्त विक्रमादित्य के शासन प्रबंध की जानकारी दी है | इसके अतरिक्त इस पुस्तक से हमे गुप्त काल की सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक दशा के बारे में पता -चलता है |
  3. ह्युसांग (Hieun Tsang)— ह्युसाग 630ई ई० से 644 ई० तक भारत में रहा उसे यात्राओ का राजकुमार कहा जाता है उसने ‘सी-यु-की (Si-Yu-Ki) नमक एक ग्रन्थ लिखा है इस ग्रन्थ में हर्ष काल के बारे में बतया गया है ह्युसांग  इस पुस्तक द्वारा हर्ष , व् उसकी राजधानी तथा प्रयाग व् कन्नौज की सभ्यताओ के बारे में बतलाता है |
  4. इत्सिंग (itsing)—- इत्सिंग के ग्रन्थ सातवी शताब्दी में लिखे गए थे इसके लेखो से भी हमे भारत के इतिहास के बारे में बहुत सी जानकारी मिलती है |

3 . मुस्लिम लेखक (Muslim Writers) —— मुस्लिम लेखको ने भी भारतीय इतिहास के निर्माण में महतवपूर्ण भूमिका निभाई है | इन लेखको में ‘अलबेरुनी’  का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है | वह महमूद गजनबी के साथ भारत आया था | उसने भारत के इतिहास के बारे में एक प्रशिद्ध पुस्तक लिखी है जिसका नाम ‘तहकीक-ए-हिन्द ‘ में विस्तृत जानकारी मिलती है इस पुस्तक में उन्होंने बताया है की उस समय तक यज्ञ समाप्त हो गए थे | हिन्दू मुसलमानों के साथ खाते-पीते नहीं थे | उसने उस समय की 16 जातियों का उल्लेख भी किया है अल्बेरुने के अलावा हसन , अलमसुदी , इब्नबतूता, निजामुदीन , आदि मुसलमानों के नाम लिए जा सकते है |

4 . यूनानी लेखक (Greek Writers )—–  प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में हमे यूनानी लेखको से भी पता चलता है हमे सबसे अधिक महतवपूर्ण जानकारी यूनानी लेखको से मिलती है | इन लेखको में हेरोडोटस, मेगास्थनीज, प्लूटार्क, एरियान, डीमेक्स, तथा टालमी के नाम लिए जा सकते है इनका संक्षिप्त में वर्णन इस प्रकार है —–

  1. हेरोडोटस (Herodots)—– भारत के इतिहास के इतिहास को लिखने वाले प्राचीनतम लेखको में हेरोडोटस का नाम लिया जाता है उसने अपनी पुस्तक ‘हिस्टोरिका ‘ (Hisrorica) में भारत की सीमओं प्रान्तों के बारे में जानकारी मिलती है
  2. मैगास्थनीज (Megasthenes) —— मैगास्थनीज भी एक यूनानी इतिहासकार था वह चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में भारत आया था वह 302 ई० पू० से 298 ई० पू० तक एक यूनानी राजदूत के रूप में रहा था | उसने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ (Indica) में भारत का बहुत सुंदर चित्रण किया है खेद की बात है की वह पुस्तक आज उपलब्ध नहीं है परन्तु फिर भी उसके कुछ अंश अनेको यूनानी लेखको के लेखो से मिलते है जिसमे चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन प्रणाली के बारे में जानकारी मिलती है जिससे हमे पता चलता है की उस समय की राजनीतिक वह आर्थिक स्थति केसी थी |
  3. डिमेक्स (Deimachus)——डिमेक्स बिन्दुसार के दरबार में यूनानी राजदूत था उसके लेख से भी हमे भारतीय इतिहास के बारे में महतवपूर्ण जानकारी मिलती है जो भारत के इतिहास को समजने में सहायक सिद्ध होती है |
  4. प्लूटार्क और स्टेब्रो (Plutarch एंड Strabo)—– इन विद्वानों के लेखो से भी हमे मौर्य काल की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है |
  5. एरियन (Arrian) ­­——- एरियन के भारत में सिकंदर के आक्रमण पर प्रकाश डाला है उसने इन आक्रमणों के बारे में सिकंदर के सिपाही से सुना और उसका वर्णन कर दिया यदि  एरियन का विवरण उपलब्ध नहीं होता तो हम सिकंदर के आक्रमणों के बारे में हमे पता ही नहीं चलता  |
4 . पुरातत्व सामग्री (Archeaplogical Evidence)

इतिहास को जानने के लिए हमे एतेहासिक महत्त्व की पुरातत्व सामग्री में प्राचीन स्मारकों, सिक्को तथा अभिलेको आदि की गणना की जाती है ये भारत के इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालते है —–

  1. प्राचीन स्मारक(Ancient Monuments ) ——  प्राचीन स्मारकों से हमे पूर्व इतिहास वह सभ्यताओ के बारे में जानकारी मिलती है | हड़प्पा वह मोहनजोदड़ो की खुदाई से भी हमे प्राचीन इतिहास के बारे में पता चलता है हड़प्पा की खुदाई से वहा पर मिले अवशेष इमारते ,मुर्तिया , मिट्टी के बर्तन आदि से हमे सिन्धु घटी की महान सभ्यता के दर्शन हुए है |
  2. इससे हमे पता चलता है की आर्यों से पूर्व ही सिन्धु घटी की सभ्यता काफी उच्च थी पाटलिपुत्र और नालंदा के खंडर  शिक्षा पर प्रकाश डालते है  तक्षशिला अरु सारनाथ के भवनेशो का भी महत्त्व किस्से छुपा है गुप्त काल  के मंदिर, उस समय के लोगो के धार्मिक विश्वासों की जानकारी करवाते है विदेशो से प्राप्त कुछ स्लालेख भी भारत की गौरव गाथा का बखान करते है
  3. अभिलेख (Insriprions) —– इतिहास के बारे में हमे अभिलेखों से भी पता चलता है ये साहित्य के अपेक्षा अधिक विश्वासनिय है जिसका अ अर्थ यह है कि पुरानी इमारतो पर कुछ चित्र छपे हुए थे तथा कुछ लिपिया भी लिखी हुई थी जिसमे परिवर्तन करना संभव नहीं था जिससे हमे इतिहास को समजने में आसानी हुई है | भारतीय इतिहास को समझने में अभिलेखों ने अपनी अहम् भूमिका निभाई है जो इस प्रकार है —-

1  हाथी गुफा अभिलेख तथा प्रयाग स्तम्भ अभिलेख में क्रमशः खारवेल तथा समुंद्र्गुप्त के यश का बखान करते है |

  2  सबसे प्राचीन अभिलेख राजा अशोक के है इसमें हमे अशोक के राज्य-विस्तार , प्रजा तथा धर्म के बारे में पता चलता है |

           3  कुछ विदेशी अभिलेखों में भी भारतीय इतिहास के बारे में पता चलता है बहुत सी ब्रमुख्ह घटनाएँ प्रकाश में आती है                         एशिया माईनर के बोगाजकोई अभिलेखों में इंद्र देवता के बारे में पता चलता है

अत हम कहे सकते है की प्राचीन इतिहास को समझने में अभिलेखों ने अपनी अहम् भूमिका निभाई है जिससे हमे इतिहास को समझने में  मदद  मिलती है|

प्राचीन भारत के इतिहास के स्त्रोत्र के रूप में अभिलेखों के महत्व का मुलांकन-

भारत का इतिहास किसी एक स्त्रोत्र की देन नहीं है इसके निर्माण में साहित्य, सिक्के , अभिलेखों तथा विदेशी लेखको के वर्तन्त ने काफी योगदान दिया है अभिलेख जिसमे से सबसे भरोसेमंद है क्युकी पुस्तके ख़राब हो सकती है तथा उनमे बदलाव भी किया जा सकता है विदेशी यात्रियों के वर्तन्त भी गलत हो सकते है परन्तु अभिलेख सबसे लाभदायक स्त्रोत माने जाते है क्युकी पत्थर पर अथवा लोहे पर खुदी बात नहीं  बदली जा सकती वह जिस रूप में खोदी या लिखी जाती है वह हजारो सालो तक वेसी ही रहेती है जेसे उससे लिखा गया था | अपनी इसी खूबी के कारण अभिलेखों को सबसे महतवपूर्ण माना जाता है अभिलेखों की विशेषताए , प्रमुख अभिलेख तथा उनके ऐतिहासिक महत्व का वर्णन इस प्रकार है ——

1.अभिलेखों की विशेषताए  (Main features of Inscription)

अलेख स्तंभों , शैलो , गुफाओं की दीवारों पर खुदे हुए मिले है मुख्य रूप से दो प्रकार के होते है एक सरकारी अभिलेख और गैर-सरकारी अभिलेख | सरकारी भिअभिलेखों की संख्या अधिक है क्युकी उन पैर भूमिदान का वर्णन है ये अभिलेख मुख्य रूप से ताम्र-पत्रों पर खुदे हुए है | गैर-सरकारी अभिलेख मुख्य रूप से जन साधारण जनता के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, तथा उनके आर्थिक जीवन के बारे में है कुछ लेख चट्टानों पर भी मिले है जिसमे राजाओ की सफलताओ का उल्लेख मिलता है अभिलेख एक ही स्थान से प्राप्त नहीं हुए बल्कि अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुए है कुछ अभिलेख तो विदेशो से भी मिले है अभिलेखों की भाषा मुख्या रूप से संस्कृत, प्रक्रति तथा पाली है 

2. प्रमुख अभिलेख 

  1. अशोक के अभिलेख (Inscriptions of Ashoka)—–  अशोक के अभिलेख स्तंभों और गुफाओ की दीवारों पर खुदे मिले है ये हमे मानेसर, कालसी, धौली आदि अनेको स्थानों से प्राप्त हुए है  इन अभिलेखों से हमे इतिहास को समझने में आसानी होती है ये मुख्या रूप से ब्राही तथा खरोष्ठी में लिखे गए है इन्हें सबसे फले प्रिन्सेप ने पढ़ा था |
  2. अशोक के बाद के लेख (Inscription After Ashoka)——  अशोक के बाद के अभिलेखों में राजाज्ञा आती है इनका वर्णन इस प्रकार है —-

1. समन्द्र्गुप्त का इलाहबाद स्तंभ लेख – यह अभिलेख एक ही वाक्य में लिखा हुआ है जिसकी 33 पंक्तिया है जिसकी रचना समन्द्र्गुप्त के                             राजकवि ने की थी

2. गौतमी-पुत्र शत्कारणी  का नासिक अभिलेख |

3. बोग्जकोई नमक विदेशी अभिलेख |

4. कलिंगराज खारवेल का हाथी गुफा अभिलेख |

5. बंगाल के रजा विजयसेन का देवपाडा अभिलेख |

6 . रुद्रदमन का गिन्नर शिलालेख |

3. ऐतिहासिक महत्त्व ( Historical Importance) ——

1 . राजाओ के चरित्र की जानकारी (information about the character of kings) —- अभिलेख सम्बन्धी राजाओ के चरित्र की जानकारी मिलती है अशोक के अभिलेखों से हमे उसमे व्यवहार के बारे में पता चलता है एक अभिलेख में वह खुद कहते है, “जो भी प्रय्तन में कर रहा हु.वे सब इसलिए कर रहा हु  ताकि मै प्रज्जा को कर्ज मुक्त कर सके | ऐसे राजा को भला कोन प्रिजापालक नहीं कहेगा प्रिज्जा पालक के अतरिक्त अशोक को दयावान , पसु रक्षक था परिवार से सिनेह करने वाला कहा जाता है

2. धर्म सम्बन्धी जानकारी (Knowledge of Religion)—- अभिलेखों से भी हमे धर्म सम्बन्धी जानकारी मिलती है प्राचीन काल में संस्कृत भाषा हिन्दू धर्म की प्रतिक समझी जाती है इस तरह प्रकर्त भाषा बौद्ध धर्म से सम्बन्धी समझी जाती थी | इससे इतिहासकार विभिन्न युगों के प्रचलित धर्मो का भी पता लगा लेते है गुप्त काल से पूर्व के अभिलेख अधिकतर प्रकर्त भाषा में सम्बन्ध रखते है इससे यह स्पष्ठ होता कि उन दिनों बौद्ध धर्म जोरो पर  था | गुप्त काल के अभिलेख संस्कृत में लिखे गए थे और वह बात हिन्दू धर्म के उत्थान की और संकेत करते है |

3. राजाओ के अतिरिक्त नाम (Other Names of Kings)—– प्राचीन काल में राजाओ के बहुत से नाम होते थे इस बारे में हमे अभिलेखों से ही पता चलता है इसके बारे में हमे और किसी अन्य  स्त्रोत से पता नहीं चलता उद्धरण के लिए अशोक के लिए ‘देवानाम प्रिय’  तथा प्रियदर्शी आदि नाम भी प्रयोग किये जाते है ये सब जानकारी हमे अभिलेखों से ही पता चलता है ऐसे ही हमे अन्य राजाओ के बारे में भी हमे अभिलेखों से ही पता चलता है |

4.काल-निर्धारण (Determination of Chronology) —– अभिलेख से हमे ऐतिहासिक तिथियो तथा युद्ध के काल निर्धारण में बड़ा योगदान देते है | अभिलेखों की लिपि एव सिक्को की लिपि से मिलकर ही काल निर्धारण का पता लगाया जाता है इसी तरह इतिहास की अनेको घटनाओ का आपसी सम्बन्ध स्थापित किये जाते है अशोको के शिलालेख अनेको ऐसी तिथियां जुटते है जिसमे इतिहासकारों ने अनेको उलझी हुई पहेलीयो को सुलझाया है |

5 . ऐतिहासिक घटनाओ की जानकारी (Knowledge of Historical Events)—– अभिलेखों के अध्यन से हमे ऐतेहासिक घटनाओ के बारे में  पता चलता है   अशोक के शिलालेखो से कलिंगन युद्ध तथा उसके भीषण परिणामो के बारे में पता चलता है इसी प्रकार समन्द्र्गुप्त के जीवन की तभी घटनाएं इलाहबाद प्रशस्ति से जानी जाती है इससे हमे पता चलता है कि समन्द्र्गुप्त ने उत्तर के नौ राजाओं की हराया था तथा दक्षिण के बाहरह राजाओं से टक्कर ली थी इसी तरह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य , राजा भोज , आदि राजाओं के जीवन के बारे में पता चलता है |

6 . राज्य-विस्तार का निर्धारण ( Determination of Extent of Empire) —-  अभिलेखों से हमे किसी हमे राजाओं ने राज्य विस्तार के बारे में पता चलता है इसी तरह हमे पता चलता है की जिस स्थान पर राजा स्तंभ केवेल अपने राज्य की सीमओं के भीतर होते थे अत जिन स्थानों पर जिस राजा के अभिलेख मिले है वे उस राजा के राज्य का ही भाग माने जाते है अशोक महान के ही शिलालेखो को ले लीजिये ये उत्तर-पश्चिम में शाहबाजगढ़ी से लेकर दक्षिण में सिद्धपुर तक अनेको स्थानों पर मिलते है | इसके अतिरिक्त धौली , टोपरा , कालसी, रामपुरवा आदि स्थानों पर भी अशोक ले अभिलेख मिले है इन स्थानों के आधार पर हम अशोक के राज्य विस्तार का सरलता से अनुमान लगया जा सकता है |

7. विदेशी संबंधो की जानकारी (Knowledge of Foreign Relations) —– अभिलेखों से हमे प्राचीन भारत के विदेशो के साथ संबंधो का ज्ञान होता है | अशोक के अभिलेखों से पता चलता है कि उसने लंका, सीरिया, मिश्र आदि अनेक देशो में राजदूत तथा दवाइया भेजी | दूतो ने इस देश के राजाओ तथा जनता को भारतीय संस्कृति के महान सिधान्तो से अवगत करवाते है

यह तो सच है की अभिलेखों से ऐतिहासिक सामग्री के अमूल्य भंडार है इनसे हमे राजाओ , उनके शासन  काल तथा शासन सम्बन्धी कार्यो का पता चलता है ये हमे तत्कालीन धर्म, साहित्य, भाषा की जानकारी प्रदान करवाते है इनसे हमे उस समय के कलाप्रियता के भी दर्शन होते है अत इनकी खोजो के बिना इतिहास के अनेको अध्याय कोरे पड़े रह जाते |

 

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