भरण-पोषण की धनराशि कौन निश्चित करता है
भरण-पोषण की धनराशि कौन निश्चित करता है और किन सिद्धान्तों के आधार पर यह निर्धारित की जाती है ? ( Who determines the amount of maintenance and on what principles is it determined ? )
भरण-पोषण की धनराशि ( Amount of Maintenance ) – हिन्दू दत्तक ग्रहण तथा भरण – पोषण अधिनियम , 1956 की धारा 23 ने पोषण की धनराशि निर्धारित करने का सर्वोपरि अधिकार न्यायालय को दे रखा है । प्रत्येक मामले के तथ्यों पर विचार करके और उसकी विशेष परिस्थितियों का अध्ययन करके भरण – पोषण दिलाने का निश्चय करना और उसकी राशि निर्धारित करना न्यायालय का कर्तव्य है ।
भरण – पोषण अधिनियम द्वारा भरण – पोषण के हकदार घोषित किये गये व्यक्ति को भी न्यायालय भरण – पोषण दिलवाना अस्वीकार कर सकता है । यदि ऐसा करना उसके सम्मुख उचित कारण है । न्यायालय पोषण की निर्धारण अपने विवेक के आधार पर करेगा । इस सम्बन्ध में अधिनियम की धारा 23 उपबन्धित है
( 1 ) इस बात को अवधारित करना न्यायालय के विवेकाधिकार में होगा कि क्या कोई भरण – पोषण इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन दिलाया जाये और दिलाया जाये तो कितना और ऐसा करने में न्यायालय यथास्थिति उपधारा ( 2 ) या उपधारा ( 3 ) में उपवर्णित बातों को जहाँ तक वे लागू हैं , सम्यक् रूप से ध्यान में रखेगा ।
( 2 ) पत्नी , बालक या वृद्ध माता – पिता के पोषण की धनराशि निर्धारित करते समय न्यायालय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेगा ( अ ) पक्षकार की अवस्था तथा हैसियत ।
( ब ) दावेदार की युक्तियुक्त माँग ।
( स ) यदि दावेदार अलग रह रहा हो तो इस बात को दावेदार का ऐसा करना न्यायोचित है ।
( द ) दावेदार की सम्पत्ति का मूल्य तथा ( 1 ) उस सम्पत्ति से आय , ( 2 ) दावेदार की स्वयं की आय , ( 3 ) किसी अन्य रूप से प्राप्त आय ।
( य ) हिन्दू दत्तक ग्रहण तथा भरण – पोषण अधिनियम के अन्तर्गत पोषण के अधिकारी व्यक्तियों की संख्या ।
( 3 ) इस अधिनियम के अधीन किसी आश्रित को यदि कोई भरण – पोषण की रकम दी जाती है तो उस रकम के अवधारण करने में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जायेगा –
( i ) मृतक का ग्रहण देने के बाद उसकी सम्पत्ति का मूल्य
( ii ) आश्रित के विषय में मृतक द्वारा इच्छा पत्र में कही गई बात ।
( iii ) दोनों के सम्बन्ध की दूरी ।
( iv ) आश्रित की युक्तियुक्त आवश्यकता ।
( v ) मृतक के आश्रित से पूर्व सम्बन्ध |
( vi ) आश्रित की सम्पत्ति का मूल्य तथा उसकी आय , स्वयं का उपार्जन , किसी अन्य प्रकार से आय ।
( vii ) इस अधिनियम के अन्तर्गत आश्रित पोषण के हकदार की संख्या ।
न्यायालय का विवेक न्यायालय भरण – पोषण की राशि के निर्धारण में अपने विवेक का प्रयोग करेगा । न्यायालयों को भरण – पोषण की राशि निर्धारित करते समय पक्षकारों की स्थिति और प्रस्थिति देखनी चाहिए । गोवर्धन बनाम गंगाबाई ‘ के वाद में विधवा की भरण – पोषण की राशि निर्धारित करते हुए न्यायालय ने कहा कि मुख्य बात यह है
कि “ विधवा को जीवन का वही स्तर बनाये रखने के लिए कितनी राशि की आवश्यकता होगी जिस स्तर पर रहने का वह विधवा होने से पूर्व अभ्यस्त थी । ” मगन भाई छोटू भाई बनाम मनीबेन के वाद में भरण – पोषण की धनराशि पर विचार करते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि मामले के तथ्यों के अनुसार पत्नी को पति की आय में से 1/3 अथवा कुछ स्थितियों में 1/2 अंश दिया जाना चाहिए ।
यदि पति की आय अधिक है और उसको अपने को छोड़कर अन्य किसी का भरण – पोषण करना है , उसकी सन्तान उसके साथ रह रही है तो उस स्थिति में पत्नी को पति पूरी आय का आधा हिस्सा दे दिया जाना चाहिए । मालिनी सिंघल बनाम रवि सिंघल ‘ के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भरण – पोषण की धनराशि के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है ।
प्रस्तुत वाद में वादी एक सम्पन्न संयुक्त हिन्दू परिवार की सदस्या थी , विवाह के पश्चात् उसके पति ने अन्य रिश्तेदारों के समक्ष एक समझौता किया था जिसमें पत्नी को प्रतिमाह उसके भरण – पोषण के लिए 40 हजार रुपया देने की बात तय की गई थी । साथ ही उसकी बेटी के अध्ययन के लिए भी सम्पूर्ण ख बात कही गयी थी । विवाह के कुछ समय पश्चात् वादी के पति का देहान्त हो गया था