भरण-पोषण शब्द से आप क्या समझते हैं ? 

भरण-पोषण शब्द से आप क्या समझते हैं ? ( What do you understand by the term maintenance ? )

भरण-पोषण क्या है— सामान्यतः हिन्दू विधि में भरण-पोषण को वृहद् रूप लिया गया है और उसके अन्तर्गत भोजन , वस्त्र , आवास , शिक्षा और चिकित्सीय परिचर्या के लिये उपलब्ध खर्चे आते हैं । अविवाहित पुत्री की दशा में उसके विवाह के युक्ति – युक्त प्रासंगिक व्यय भी आते हैं ।

“ Maintenance is a right to necessities which are resonable , e.g. food ; clothing and shelter by a person from another .

भरण-पोषण का अधिकार संयुक्त परिवार , के सिद्धान्त से उत्पन्न होता है । संयुक्त परिवार का सिद्धान्त यह है कि परिवार का मुखिया परिवार के सभी सदस्यों के भरण-पोषण , संस्कारों की पूर्ति तथा विवाह के व्ययों की पूर्ति करने के लिये उत्तरदायी होता है । संयुक्त परिवार के सदस्यों को संयुक्त परिवार के कोष में से भरण-पोषण पाने का अधिकार है चाहे उनकी कुछ भी आयु या संस्थिति क्यों न हो । भरण-पोषण के अधिकार में जीवन की वे युक्तियुक्त आवश्यकताएँ सम्मिलित हैं जिसके बिना मनुष्य का समाज में जीवित रहना असम्भव है । ये आवश्यकता हैं— रोटी , कपड़ा और मकान । यह एक प्रकार का आभार है जो कि विधिक सम्बन्ध से उत्पन्न होता है ।

धर्मशास्त्रों के अनुसार , भरण-पोषण प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

( 1 ) प्रथम वह वर्ग है जिसके विषय में कहा गया है कि उनका भरण – पोषण का दावा उसे प्रदान करने वाले से उसके सम्बन्ध पर आधारित है । प्रथम वर्ग के माता – पिता ; गुरु , पत्नी , सन्तान , अभ्यागत , अतिथि तथा अग्नि आते हैं ।

( 2 ) दूसरे वर्ग में वे लोग आते हैं , जिनके भरण – पोषण का बाध्यकारी दायित्व हैं । इनमें वृद्ध माता – पिता साहनी स्त्री एवं अवयस्क शिशु आते हैं । जिनके विषय में मनु का कथन है कि उनका भरण – पोषण सैकड़ों अपकृत्य करके भी करना चाहिए ।

हिन्दू पत्नी का बिना पोषण का अधिकार खोये अपने पति से अलग रहने का अधिकार –

हिन्दू दत्तक ग्रहण तथा भरण – पोषण अधिनियम , 1956 की धारा 18 के अंन्तर्गत पत्नियों को दो प्रकार के अधिकार दिये गये हैं

( 1 ) भरण – पोषण ,

( 2 ) पृथक् निवास का अधिकार ।

सन् 1956 के अधिनियम के पूर्व प्रत्येक हिन्दू पति का यह कर्त्तव्य था कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करे चाहे उसके पास सम्पत्ति हो या न हो । प्रत्येक पति का यह व्यक्तिगत दायित्व है कि वह पत्नी का भरण-पोषण करे । यह दायित्व पति पत्नी के सम्बन्ध में उत्पन्न होता है । इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि स्वर्जित या पैतृक सम्पत्ति हो । धर्मशास्त्रकारों ने सदैव . से पत्नी के भरण-पोषण के पति के दायित्व को मान्यता दी है । अंग्रेजी शासनकाल में भी न्यायालयों ने पति के दायित्व को मान्यता दी है । यही स्थिति वर्तमान हिन्दू विधि में है ।

पत्नी को भी यह अधिकार नहीं था कि वह बिना युक्तियुक्त कारण के पति से अलग रहकर भरण-पोषण का दावा करे । क्योंकि उस अवस्था में वह स्वयं वैवाहिक धर्म तोड़ने की दोषी होती थी ।

भरण - पोषण क्या है
भरण – पोषण क्या है

धारा 18 ( 1 ) के उपबन्धों के अनुसार , प्रत्येक हिन्दू पत्नी , चाहे उसका विवाह इस अधिनियम के लागू होने के पूर्व में अथवा बाद में हुआ हो , अपने पति से भरण – पोषण पाने की अधिकारिणीं है ।

किसी भी स्त्री को अपने पति से भरण – पोषण प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि वह उस पुरुष की विधितः विवाहित पत्नी हो अर्थात् उसका और उसके पति का विवाह शून्य न हो । यदि विवाह शून्य है तो पुरुष को पति की हैसियत प्राप्त नहीं होती और उसकी हैसियत एक ऐसी जैसी होती है । स्त्री को पत्नी का औहदा ( हैसियत ) प्राप्त नहीं होता और वह रखैल जैसी – बनी रहती हैं । अतः धारा 18 के अन्तर्गत पत्नी द्वारा पति से भरण – पोषण के लिये यह . प्रथम शर्त रखी गई है कि वह विधितः विवाहित हो ।

धारा 18 ( 2 ) के अन्तर्गत कोई भी हिन्दू पत्नी पोषण का अधिकार खोए बिना अपने पति से पृथक् निवास की अधिकारिणी होगी

( अ ) यदि पति पत्नी के अभित्याग का अपराधी है , अर्थात् वह ( पति ) बिना युक्तियुक्त कारण के या बिना पत्नी की राय के या उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे त्यागता है या इच्छापूर्वक उसकी अवहेलना करता है 1

( ब ) यदि पति ने पत्नी के साथ इस प्रकार निर्दयता का व्यवहार किया जिससे कि उसकी पत्नी के मस्तिष्क में यह युक्तियुक्त सन्देह उत्पन्न हो जाये कि उसका पति के साथ रहना ‘ हानिकारक या घातक है ।

( स ) यदि पति घृणित तथा उम्र कुष्ठ रोग ( Virulent form of léprosy ) से पीड़ित है ।

( द ) यदि उसकी कोई दूसरी जीवित पत्नी है । ( य ) यदि वह जिस घर में उसकी पत्नी रहती है , उसी में एक रखैल स्त्री रखता है या अन्यत्र कहीं उस रखैल के साथ प्रायः रहता है । 1

( र ) यदि वह हिन्दू धर्म त्याग कर कोई और धर्म अपना लेता है ।

( ल ) यदि कोई अन्य कारण से जो उसके पृथक् निवास को न्यायोचित ठहराता है ।

कोई भी हिन्दू स्त्री अपना धर्म त्याग कर दूसरा धर्म जब अपना लेती है या उसका सतीत्व भंग हो जाता है तो वह न तो पृथक् निवास का दावा कर सकती है और न ही भरण – पोषण का ।

रघुवीर सिंह बनाम गुलाब सिंह के बाद में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि पत्नी का भरण – पोषण के अधिकार का जन्म सामाजिक एवं सांसारिक बन्धन के कारण हुआ है । जहाँ पत्नी केवल इस बात से पति से अलग रहती है और भरण – पोषण का दावा करती हैं कि वह शराब पीता है , न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि पति के शराब पीने मात्र से पत्नी को अलग रहने और भरण – पोषण पाने का अधिकार उत्पन्न नहीं हो जाता । यदि पति शराब पीने के साथ – साथ क्रूरतापूर्ण आचरण करता है तो उस स्थिति में वह अलग रह कर भरण – पोषण पाने की अधिकारिणी हो जाती है ।

भरण – पोषण का अधिकार व्यक्तिगत होने से अपने पति के जीवनकाल में उसके किसी अन्य सम्बन्धी से भरण – पोषण की माँग नहीं कर सकती है चाहे वह पति के द्वारा त्याग दी गई हो , किन्तु यदि कोई सम्बन्धी उसके पति की सम्पत्ति पर काबिज है तो वह उससे भरण – पोषण की माँग कर सकती है । केशव भाई बनाम हरिभाई ( ए . आई . आर . 1971 ब . 115 ) के मानले में न्यायालय ने यह कहा कि जहाँ पति उसी घर में एक रखैल स्त्री रखता है जिसमें वह अपनी विवाहित पत्नी के साथ रहता था , अथवा रखैल के साथ सामान्यता रहता हो वहाँ पत्नी को यह अधिकार उत्पन्न हो जाता है कि वह पति से अलग रहकर भरण – पोषण का दावा करे । यदि पति की दूसरी जीवित पत्नी है तो पत्नी को भरण – पोषण का जाता है ।

इस तथ्य से कोई अन्तर नहीं पड़ता है कि पत्नी पूर्व विवाहित थी या . वे शर्ते जिनके अन्तर्गत पत्नी भरण – पोषण का दावा कर सकती है – हिन्दू पत्नी में निहित अधिकार उत्पन्न हो बाद की है । कोई पूर्ण अधिकार नहीं है कि पत्नी द्वारा उसका भरण – पोषण किया जायेगा । यह भरण – पोषण उसके साथ रहने पर और पत्नी के रूप में अपने कर्तव्य पालन पर निर्भर करता है । पत्नी भी भरण – पोषण भत्ता का दावा करने की अधिकारिणी होगी जब तक कि वह अपने पति से अलग रह रही है यदि धारा 18 ( 2 ) में किसी शर्त की पूर्ति की गई है । वह भरण – पोषण की अधिकारिणी है जब तक कि वह हिन्दू है और सती है ।

एक नवीनत वाद मार बनाम सुकुमार निरेशवालिया के बाद में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जहाँ पति अपना मकान तीसरे व्यक्ति को बेच देता है और इस बात की सूचना पत्नी को नहीं दी जाती तथा बाद में वह क्रेता को पत्नी से मकान खाली करवाने के लिए उकसाता है एवं इस प्रकार की उपेक्षा अपनी पत्नी के प्रति करवाता है ऐसी स्थिति में पत्नी का अलग रहना उचित है तथा वह भरण – पोषण की अधिकारिणी होगी  |

इस प्रकार कोई भी हिन्दू पत्नी अपने पति से पृथक् निवास करने तथा भरण – पोषण का अधिकार प्राप्त करने की अधिकारिणी है यदि उसका पति किसी दूसरी स्त्री के साथ रहने लगता है अथवा उसके साथ क्रूरतापूर्वक व्यवहार करता है ।

पति के धर्म परिवर्तन करने से उसकी हिन्दू पुत्नी का उससे भरण – पोषण प्राप्त करने का अधिकार किसी प्रकार भी प्रभावित नहीं होता है और वह ऐसे पति से भरण – पोषण पाने की अधिकारिणी है । पत्नी का भरण – पोषण प्राप्त करने का इतना प्रमुख एवं महत्वपूर्ण है कि यदि एक साहनी पत्नी अन्यायत : पति के घर से निष्कासित कर दी जाती है , अथवा पर्याप्त भरण – पोषण प्राप्त नहीं कर पाती तो वह अपने पति के नाम से ऋण ले सकती है और पति उसके इस प्रकार लिये गये ऋण को अदा करने के लिए बाध्य है

पत्नी कब पृथक् निवास तथा भरण – पोषण की अधिकारिणी नहीं रह जाती — निम्नलिखित परिस्थितियों में पत्नी को पृथक् निवास तथा भरण – पोषण काअधिकार नहीं रह जाता

( 1 ) जब वह धर्म परिवर्तन करके हिन्दू नहीं रह जाती ।

( 2 ) जब वह असाहनी हो गयी है ।

( 3 ) जब वह बिना किसी युक्तियुक्त कारण के पृथक् निवास करती है ।

( 4 ) जब पति – पत्नी आपसी समझौते के फलस्वरूप पत्नी अलग रहती है और अपने भरण – पोषण का दावा त्याग देती है ।

बसन्ती मोहन्ती बनाम परिमित मोहन्ती ( ए . आई . आर . 2003 उड़ीसा 20 ) के वाद में भरण – पोषण के लिए पत्नी द्वारा दावा किये जाने पर पत्नी ने विवाह से इन्कार कर दिया था । साक्ष्य इस बात से स्पष्ट करते थे कि अपीलार्थी और प्रत्यर्थी न सिर्फ उनके परिवार के सदस्यों के बीच बल्कि गाँव वालों की दृष्टि में भी पति – पत्नी जाने जाते थे । जो साक्षी विवाह में उपस्थित थे उनका साक्ष्य सुसंगत तथा विश्वसनीय था और असम्भाव्यता से ग्रस्त नहीं था । सिर्फ इस आधार पर कि पत्नी द्वारा भरण – पोषण के लिए दावा किये जाने वाले आवेदन पत्र में इस बात का उल्लंघन नहीं किया गया कि उसका विवाह कब सम्पन्न हुआ था ? आवेदन पत्र को अस्वीकार करना उचित नहीं है ।

धारा 18 ( 3 ) में उपर्युक्त पहले और दूसरे आधार का ही विवरण दिया गया है जिसके अन्तर्गत पत्नी को भरण – पोषण का और पृथक् निवास का अधिकार नहीं रह जाता अन्य आधारों का विवरण भिन्न – भिन्न न्यायालयों के निर्णयों के परिणामस्वरूप प्राप्त हुआ है ।

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