चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन
चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन-Life of Chandragupta Maurya
चन्द्रगुप्त मौर्य के आरम्भिक जीवन –
राजा के यहां जन्म लेकर राजा बनना तो भाग्य की बात है परन्तु एक साधारण व्यक्ति से राजा बनना व्यक्ति के साहस तथा बाहुबल पर निर्भर करता है । चन्द्रगुप्त मौर्य भी उन शासकों में से था जिसने अपनी भुजाओं के बल पर सिंहासन प्राप्त किया । चन्द्रगुप्त से पहले भारत में कभी कोई राष्ट्रीय सम्राट् नहीं बना था । देश में अनेक छोटे – छोटे शक्तिशाली कबीले थे । देश का उत्तरी पश्चिमी सीमावर्ती भाग यूनानियों के अधीन था । इन कठिनाइयों में उसका एकमात्र सहायक था चाणक्य । चाणक्य के सिद्धान्तों तथा अपने दृढ़ निश्चय का सहारा लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने भारत में प्रथम राष्ट्रीय साम्राज्य की स्थापना की और इतिहास में अमर स्थान पा लिया । चन्द्रगुप्त मौर्य के आरम्भिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
1. वंश-Family — चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश के विषय में विद्वानों के भिन्न – भिन्न मत हैं । कुछ विद्वानों का कथन है कि चन्द्रगुप्त मगध के राजा महापद्मनन्द का पुत्र था और वह मुरा नामक एक नीच जाति की स्त्री से पैदा हुआ था । विशाखदत्त ने ‘ मुद्राराक्षस ‘ तथा सोमदेव ने ‘ कथासरितासागर ‘ में चन्द्रगुप्त को निम्न कुल का बताया है । परन्तु बौद्ध परम्पराओं के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य का सम्बन्ध क्षत्रियों के मोरिया वंश से था । जैन परम्पराओं के • अनुसार चन्द्रगुप्त की माँ एक मोर पालने वाले की बेटी थी । इसी कारण चन्द्रगुप्त ने अपने आपको मौर्य कहलवाया । डॉ ० बुद्ध प्रकाश का कथन है कि चन्द्रगुप्त के पूर्वज पटना जिले में स्थित ‘ मोर ‘ नामक स्थान से सम्बन्धित थे । इसलिए इस वंश के लोग मौर्य कहलाए । आधुनिक इतिहासकार चन्द्रगुप्त को क्षत्रिय मानते हैं । ऐसा कट्टर ब्राह्मण चाणक्य द्वारा उसको समर्थन देने के कारण माना जाता है । अतः स्पष्ट है कि चन्द्रगुप्त क्षत्रिय वंश से सम्बन्ध रखता था और ‘ मोर ‘ शब्द के कारण उसके वंश का नाम ‘ मौर्य ‘ पड़ा ।
2. जन्म तथा बाल्यकाल-Birth and Childhood— चन्द्रगुप्त का जन्म 345 ई ० पूर्व में हुआ था । बौद्ध परम्पराओं के अनुसार उसका पिता उसके जन्म से पहले ही चल बसा था । उसकी माँ अपने भाइयों के पास पाटलिपुत्र आ गई । वहां उसने चन्द्रगुप्त को जन्म दिया । चन्द्रगुप्त को सैण्डोकोटस , सैण्ड्रोकोप्टस , चन्द्रसिरी तथा प्रियदर्शन नामक नामों से भी जाना जाता है । सुरक्षा के लिए बालक को एक ग्वाले को सौंप दिया गया जिसने आगे उसे एक शिकारी के हाथ बेच दिया । शिकारी ने उसे पशु चराने पर लगा दिया । वह गांव के खाली स्थान पर दिन भर बच्चों के साथ खेला करता था । इन खेलों में वह प्रायः राजा बनता था और न्याय करता था । चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को एक बार राजसी खेल खेलते देखा । वह बालक चन्द्रगुप्त की प्रतिभा से इतना प्रभावित हुआ कि उसने तुरन्त ही शिकारी को एक हजार कार्षपन ( उस समय की प्रचलित मुद्रा ) देकर चन्द्रगुप्त को खरीद लिया ।
3. सिकन्दर महान् से भेट-Meeting with Alexander the Great — यूनानी इतिहासकार प्लूटार्क के अनुसार राजा बनने से पूर्व चन्द्रगुप्त की भेंट सिकन्दर महान् से भी हुई । उसने सिकन्दर को मगध पर आक्रमण करने को उकसाया और उसे विजय का वचन दिलाया । यूनानी सम्राट् को उसकी इस बात पर क्रोध आ गया और उसने चन्द्रगुप्त को मार डालने का आदेश दिया । परन्तु चन्द्रगुप्त मौर्य किसी – न – किसी प्रकार जान बचाकर भाग निकला । डॉ ० आर ० के ० मुखर्जी का यह कहना पूर्णतः ठीक है कि , ” चन्द्रगुप्त का जीवन , जो मौर्य वंश का संस्थापक था , प्राचीन भारत के इतिहास का प्रकाश स्तम्भ था , क्योंकि उसे देश को यूनानी दासता से मुक्त करवाने तथा भारत के अधिकांश भाग को एक झण्डे के अधीन इकट्ठे करने का श्रेय प्राप्त है ।
4. तक्षशिला में शिक्षा-Education at Taxila — चाणक्य नन्द वंश से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था । इस कार्य को पूरा करने के लिए चन्द्रगुप्त को शिक्षित करना आवश्यक था । अतः वह चन्द्रगुप्त को तक्षशिला ले गया । वहां चन्द्रगुप्त ने सात – आठ वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की । चन्द्रगुप्त के जीवन के विषय में एक और मत भी प्रचलित है । इसके अनुसार वह नन्द वंश के अधीन नौकरी करता था । किसी कारण उसकी नन्द राजा से अनबन हो गई और वह पाटलिपुत्र छोड़ कर तक्षशिला चला गया । वहां उसकी भेंट चाणक्य से हुई जिसने पहले ही नन्द वंश का नाश करने की शपथ ले रखी थी । इसका कारण यह था कि नन्द वंश के शासक धनानन्द ने कुरूप होने के कारण चाणक्य को भरी सभा से निकलवा कर उसका अपमान किया था । समान उद्देश्यों के कारण दोनों में घनिष्ठता बढ़ी और दोनों ने नन्द वंश से बदला लेने की योजना बनाई ।