गुप्तकालीन साहित्य

गुप्त काल की साहित्यिक सम्बन्धी प्रगति का वर्णन – Gupt Kaal Kee Saahityik Pragati Ka Vivaran

साहित्य और दर्शनशास्त्र -Literature and Philosophy 

गुप्तकालीन साहित्य- गुप्त सम्राटों ने साहित्य को हर सम्भव संरक्षण प्रदान किया । परिणामस्वरूप गुप्त काल में साहित्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई । गुप्त काल में राजभाषा संस्कृत थी अतैव अधिकांश साहित्य की रचना संस्कृत भाषा में हुई । गुप्त काल को संस्कृत भाषा एवं साहित्य का स्वर्ण काल भी कहा जाता है । गुप्त काल में अनेक कवियों , नाटककारों , गद्य – लेखकों , दार्शनिकों , वैज्ञानिकों आदि ने अमर कृतियों की रचना की । इन रचनाओं ने पूरे युग की काया ही पलट दी । डॉ ० आर ० एस ० त्रिपाठी के अनुसार ,  गुप्त काल को अनेक बुद्धिमान् विभूतियों ने विभूषित किया जिनके माध्यम से भारतीय साहित्य की विभिन्न शाखायें अत्यधिक विकसित हुई ।

I. लौकिक साहित्य -Secular Literature

गुप्तकालीन साहित्य- गुप्त काल में लौकिक साहित्य में आश्चर्यजनक प्रगति हुई । इस साहित्य की प्रगति में योगदान देने वाले साहित्यकारों का वर्णन इस प्रकार से है 

1. कालिदास -Kalidasa – कालिदास इस युग का अद्वितीय रत्न था । वह संस्कृत का एक महान् कवि तथा नाटककार था । उसे भारतीय शेक्सपीयर के नाम से याद किया जाता है । संस्कृत साहित्य में उसकी 7 अमर रचनाएं हैं – अभिज्ञान शाकुन्तलम् , मेघदूत , रघुवंश , मालविकाग्निमित्रम् , ऋतुसंहार , कुमार सम्भव तथा विक्रमोर्वशी | ‘ अभिज्ञानशाकुन्तलम् ‘ उसकी अमर कृति है । इस नाटक की प्रशंसा में प्राय : यूं कहा जाता है , ” समस्त कलाओं में नाट्यकला सर्वश्रेष्ठ है , एवं सभी नाटकों में ‘ शकुन्तला ‘ सर्वश्रेष्ठ है । शकुन्तला में चतुर्थ अंक सर्वश्रेष्ठ है और चतुर्थ अंक की वे पंक्तियां सर्वश्रेष्ठ हैं , जिनमें कण्व ऋषि अपनी दत्तक पुत्री को विदा करता है । 

वास्तव में शकुन्तला मै कालिदास की प्रतिभा नवीन ऊंचाइयों को छूती हुई दिखाई देती है । ‘ मालविकाग्निमित्रम् ‘ उसकी प्रथम कृति थी । ‘ मालविकग्निमित्रम् ‘ में राजा अग्निमित्र और उसकी नौकरानी मालविका के प्रेम का वर्णन है । ‘ विक्रमोर्वशीय ‘ नाटक एक परी की कथा है । इसके अतिरिक्त ‘ मेघदूत ‘ , ‘ ऋतुसंहार ‘ , ‘ कुमार सम्भव ‘ एवं ‘ रघुवंश ‘ काव्य रचनायें हैं । इनमें ‘ रघुवंश ‘ की गणना भारत के विख्यात महाकाव्यों में की जाती है । आलोचक यह स्वीकार करते हैं कि कालिदास की रचनायें सुन्दर भी हैं और सरल भी । उनमें जहां कल्पना की उड़ान है , वहां विचारों का भी बाहुल्य है ।

कालिदास अपनी श्रेष्ठ उपमाओं के कारण अधिक प्रसिद्ध हैं । ये उपमायें पात्रों के व्यवहार के अनुकूल तो हैं ही , साथ में सुन्दरता का आंचल भी ओढ़े हुए हैं । डॉक्टर आर ० सी ० मजूमदार कालिदास की प्रशंसा करते हुए लिखा है , ने ” कालिदास गुप्त युग के साहित्यिक आकाश का सबसे चमकदार नक्षत्र है , जिसने सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य पर प्रकाश डाला है । यह सर्वसम्मति से महानतम् कवि और नाटककार था तथा उसकी कृतियां सभी युगों में अत्यन्त प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय रही हैं ।

2. विशाखदत्त -Visakhadatta – गुप्त काल की दूसरी महान् विभूति विशाखदत्त था । उसकी अमर कृतियों में मुद्राराक्षस तथा देवीचन्द्रगुप्तम् के नाम लिये जा सकते हैं । ये दोनों ऐतिहासिक नाटक हैं । ‘ मुद्राराक्षस ‘ में बताया है कि किस प्रकार चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से नन्दवंश का नाश किया । इसमें राजनीतिक षड्यन्त्रों के बड़े रोचक दृश्य प्रस्तुत किए गए हैं । ‘ देवीचन्द्रगुप्तम् ‘ चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल के इतिहास पर गया प्रकाश डालता है ।

3. शूद्रक -Sudraka — शूद्रक भी गुप्त काल का सुप्रसिद्ध नाटककार था । उसने मृच्छकटिक नामक नाटक की रचना की । संस्कृत साहित्य में इस नाटक को काफ़ी उच्च स्थान प्राप्त है ।

4. भास -Bhasa — भास गुप्तकालीन विख्यात नाटककार था । उसने कुल 13 नाटक लिखे । इसमें स्वप्नवासदत्ता नामक नाटक सर्वाधिक विख्यात है ।

5. भट्टी -Bhatti  — भट्टी रचित ग्रन्थ का नाम रावण वध था । इसे भट्टी काव्य के नाम से भी पुकारा जाता है । कुछ लेखकों के अनुसार भट्टी ही वास्तव में भर्तृहरि था ।

6. हरिसेन -Harisena — हरिसेन समुद्रगुप्त का दरबारी कवि था । उसने ही प्रयाग प्रशस्ति लिखी थी । प्रशस्ति में बड़ी सुन्दर कविता लिखी गई है । उसमें गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्त की प्रशंसा करते हुए उसकी विजयों का वर्णन किया गया है ।

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7. विष्णु शर्मा -Vishnu Sharma – विष्णु शर्मा ने इस काल में पंचतन्त्र नामक अमर कृति दी । इसमें जीवन के नैतिक गुणों को कथाओं द्वारा समझाने का प्रयास किया गया है । इस पुस्तक का महत्त्व इस बात से भी जाना जा सकता है कि इसका संसार की लगभग 50 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है । विष्णु शर्मा द्वारा रचित हितोपदेश भी बड़ा शिक्षाप्रद ग्रन्थ है ।

II. धार्मिक साहित्य -Religious Literature

गुप्तकालीन साहित्य -गुप्त काल में धार्मिक साहित्य के क्षेत्र में ‘ रामायण ‘ तथा ‘ महाभारत ‘ महाकाव्यों को अन्तिम रूप दिया गया । इसके अतिरिक्त महत्त्वपूर्ण पुराणों जैसे- विष्णु पुराण , वायु पुराण और भागवत् पुराण की रचना इसी काल में हुई । स्मृतियां भी इस युग की देन हैं । इन स्मृतियों में याज्ञवल्क्य , नारद , कात्यायन तथा वृहस्पति आदि की स्मृतियों के नाम उल्लेखनीय हैं । इन स्मृतियों में हिन्दू कानून और उस समय के प्रचलित रीति – रिवाजों का वर्णन किया गया है ।

III. दर्शन साहित्य -Philosophical Literature

ईश्वर कृष्ण , वात्स्यायन तथा प्रशस्तपाद गुप्त काल के महान् दार्शनिक थे । उनके ग्रन्थों को दर्शन शास्त्र में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । ईश्वर कृष्ण ने सांख्यकारिका की रचना की । इसमें सांख्यदर्शन पर बड़े गहन ढंग से अध्ययन किया गया है । वात्स्यायन ने न्यायसूत्र पर न्याय भाष्य की रचना की । इस प्रकार प्रशस्तपाद ने पदार्थ धर्म संग्रह लिखा । इनके अतिरिक्त असंग , वसुबन्धु , सिद्ध सेन एवं गोदपाय आदि कई बौद्ध तथा जैन दार्शनिक हुए । इन सभी ने दर्शन के सिद्धान्तों की व्याख्या करने का प्रयास किया है ।

IV. व्याकर साहित्य -Grammatical Literature

गुप्त काल में व्याकरण से सम्बन्धित कुछ प्रमुख ग्रन्थों की रचना भी की गई । इनमें चन्द्रगोमी द्वारा रचित चन्द्रव्याकरण , भर्तृहरि द्वारा रचित वाक्यपदीय प्रमुख हैं । इनके अतिरिक्त विख्यात कोषकार अमरसिंह ने अमरकोष की रचना इसी काल में की ।

अन्त में हम पाते हैं कि गुप्त काल में साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में आश्चर्यजनक रूप से प्रगति हुई । अतः अगर हम गुप्त काल को साहित्य का स्वर्ण काल कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी । इस प्रकार डॉक्टर आर ० एस ० दाण्डेकर का यह कहना पूर्णता उचित प्रतीत होता है कि , अगर गुप्त काल को किसी वस्तु ने वास्तविक रूप से अमर बनाया तो वह उस युग में रचा गया साहित्य था ।

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