हर्षवर्धन का धर्म

हर्षवर्धन का धर्म , साहित्य तथा शिक्षा का संरक्षण | Harshavardhan Ka Dharm , Saahity Tatha Shiksha Ko Sanrakshan

1. धर्म को संरक्षण -Patronage to Religion- हर्षवर्धन आरम्भ में हिन्दू धर्म का अनुयायी था । वह शिव तथा सूर्य की उपासना करता था । परन्तु दिवाकर नामक बौद्ध भिक्षु के प्रभाव में आकर वह बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा में विश्वास रखने लगा । तत्पश्चात् वह ह्यूनसांग के सम्पर्क में आया । उससे प्रभावित होकर वह बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अनुयायी बन गया । शीघ्र ही हर्ष ने इसे संरक्षण भी प्रदान किया तथा इसके प्रचार के लिए विशेष पग उठाए ।

सर्वप्रथम उसने राज्य में पशु वध निषेध घोषित कर दिया । द्वितीय , उसने बौद्ध भिक्षुओं को जी खोलकर आर्थिक सहायता प्रदान की । तृतीय , उसने पुराने बौद्ध मठों की मरम्मत करवाई तथा अनेक नवीन मठों की स्थापना की । चौथा , बौद्ध धर्म में सुधार लाने के लिए उसने प्रतिवर्ष बौद्ध भिक्षुओं की एक सभा बुलानी आरम्भ कर दी । इस सभा में आचरणहीन भिक्षुओं को दण्ड दिया जाता तथा चरित्रवानों को पुरस्कृत किया जाता था ।

इसके साथ ही हर्ष ने अन्य धर्मों के प्रति धार्मिक सहनशीलता की नीति अपनाई । प्रयाग की सभा में उसने पहले दिन बुद्ध की , दूसरे दिन सूर्य की तथा तीसरे दिन शिव की उपासना की थी । हर्ष की सहनशीलता का एक प्रमाण यह भी है कि उसका प्रसिद्ध दरबारी विद्वान् बाणभट्ट एक ब्राह्मण था । हर्ष ने महायान शाखा के विकास के लिए सभाओं का भी आयोजन किया । इन सभाओं का वर्णन इस प्रकार से है

2. कन्नौज की सभा -Kanauj Assembly  — हर्षवर्धन ने बौद्ध मत की महायान शाखा का प्रचार करने के लिए कन्नौज में एक सभा बुलाई । इस सभा में उसने दूसरे धर्मों के अनुयायियों को भी निमन्त्रित किया । उसमें कामरूप के राजा भास्करवर्मन के अतिरिक्त 18 अन्य राजा शामिल हुए । नालन्दा विश्वविद्यालय के एक हज़ार विद्वान् भी इसमें सम्मिलित हुए थे । इस सभा की अध्यक्षता ह्यनसांग ने की थी । सभा का कार्यक्रम ह्यूनसांग के वक्तव्य से आरम्भ हुआ ,

जिसके विरुद्ध किसी को भी बोलने की आज्ञा न दी गई । इस बात से हीनयान शाखा के अनुयायी तथा हिन्दू ब्राह्मण क्रोधित हो उठे । यह सभा 23 दिन तक चली थी तथा प्रत्येक दिन सभा के आरम्भ से पहले एक भव्य जुलूस निकाला जाता था । इस जुलूस में सबसे आगे सुसज्जित रथ पर महात्मा बुद्ध की एक तीन फुट की मूर्ति रखी जाती थी । सभा में विभिन्न धर्मों के विद्वानों में काफ़ी वाद – विवाद हुआ । इस वाद – विवाद में ह्यूनसांग विजयी रहा । वास्तव में कन्नौज सभा का आयोजन महायान शाखा का एकपक्षीय प्रचार करने के लिए किया गया था ।

3. प्रयाग की सभा -Paryag Assembly – हर्षवर्धन के काल में प्रत्येक पांच वर्ष बाद प्रयाग ( इलाहाबाद ) में एक सम्मेलन का आयोजन किया जाता था । 643 ई ० में आयोजित छठे सम्मेलन में स्वयं चीनी यात्री ह्यूनसांग भी उपस्थित था । उसके अनुसार प्रयाग सम्मेलन में 20 राजाओं तथा 5 लाख लोगों ने भाग लिया । इन सभी लोगों के ठहरने तथा भोजन का उचित प्रबन्ध किया गया था ।

हर्षवर्धन का धर्म , साहित्य तथा शिक्षा का संरक्षण 

प्रयाग की इस सभा में प्रथम दिन महात्मा बुद्ध की , दूसरे दिन सूर्य की तथा तीसरे दिन शिव की उपासना की गई । इसमें 10,000 बौद्ध विद्वानों को 100 स्वर्ण मुद्राएं और • वस्त्र दान में दिए गए । इसके अतिरिक्त ब्राह्मणों तथा भिखारियों को बहुत – सा धन दान में दिया गया । इस प्रकार राजकोष में पांच वर्ष तक एकत्रित सारा धन बंट गया । यह सम्मेलन 75 दिनों तक चला था ।

II. साहित्य को संरक्षण -Patronage to Literature

हर्षवर्धन स्वयं एक उच्च कोटि का विद्वान् तथा विद्वानों का संरक्षक शासक था । उसने संस्कृत में ‘ रत्नावली ‘ , ‘ प्रियदर्शिका ‘ तथा ‘ नागानंद ‘ नामक तीन विख्यात् नाटकों की रचना की । इन रचनाओं के कारण हर्षवर्धन की तुलना कालिदास से की गई है । हर्ष अपने राज्य की आय का एक चौथाई भाग विद्वानों को पुरस्कार के रूप में बांट देता था । इसी कारण उसके दरबार में अनेक ख्याति प्राप्त विद्वान् थे । इनमें से बाणभट्ट सर्वाधिक विख्यात था ।

उसने ‘ हर्षचरित ‘ तथा ‘ कादम्बरी ‘ नामक दो रचनाएं लिखीं । हर्षचरित सातवीं शताब्दी भारत की राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक तथा धार्मिक दशा पर बहुमूल्य प्रकाश डालता है । ‘कादम्बरी ‘ में बाणभट्ट ने कादम्बरी तथा राजकुमार चन्द्रापीड़ की प्रेम – गाथा का अति सुन्दर वर्णन किया है । हर्षकालीन अन्य विद्वानों में मयूर ने सूर्य देवता की महिमा में ‘ सूर्य शतक ‘ की रचना की । मातंग दिवाकर एक बौद्ध दार्शनिक था । उसकी ‘ रत्नकूट सूत्र ‘ तथा ‘ सर्वदर्शन संग्रह ‘ नामक रचनाएं बहुत प्रसिद्ध हैं । भर्तृहरि रचित ‘ वाक्यपदीय ‘ व्याकरण की एक महत्त्वपूर्ण रचना है । जयसेन हर्षकाल का एक प्रकाण्ड पण्डित था । हर्ष ने उसे 80 गांवों की आय दान स्वरूप देनी चाही थी , किन्तु उसने इन्कार कर दिया ।

III. शिक्षा को संरक्षण -Patronage to Education

हर्षवर्धन ने शिक्षा को भी पर्याप्त संरक्षण प्रदान किया था । आरम्भिक शिक्षा छोटे – छोटे मन्दिरों में दी जाती थी । उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए मठों में जाना पड़ता था । तक्षशिला मठ चिकित्सा विज्ञान तथा गया मठ धार्मिक शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था । हर्षवर्धन के काल में नालन्दा विश्वविद्यालय सबसे प्रसिद्ध था । यह आधुनिक बिहार राज्य के पटना जिला के प्रसिद्ध स्थान राजगृह से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । इसकी स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त ( 414 से 455 ई ० ) ने की थी । आरम्भ में यह बौद्ध विहार था ।

परन्तु कालान्तर में यह एक विश्वविद्यालय का रूप धारण कर गया । यहां न केवल भारत के विभिन्न प्रदेशों से अपितु चीन , लंका , तिब्बत , कोरिया , मंगोलिया तथा जापान इत्यादि से बड़ी संख्या में विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे । हर्ष के शासनकाल में इस विश्वविद्यालय में 10,000 से भी अधिक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे । नालन्दा विश्वविद्यालय के समस्त क्षेत्र के चारों ओर ईंटों की एक ऊंची दीवार बनाई गई थी । विश्वविद्यालय के 8 भव्य भवन थे । विद्यार्थियों के निवास के लिए अलग भवन थे , जहां अध्ययन और निवास की समस्त सुविधाएं उपलब्ध थीं । इनके अतिरिक्त विश्वविद्यालय में एक वैद्यशाला भी थी । नालन्दा विश्वविद्यालय का एक विशाल पुस्तकालय था । इसे धर्मगंग कहते थे । इस पुस्तकालय के तीन भव्य भवन थे – रत्नसागर , रत्नोदधि और रत्नरंजक । नालन्दा विश्वविद्यालय में छात्रों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती थी । ह्यूनसांग के अनुसार यहां 10,000 से भी अधिक विद्यार्थी तथा 1510 शिक्षक रहते थे । इन सभी के निर्वाह के लिए नालन्दा विश्वविद्यालय को शासकों तथा धनी लोगों द्वारा सम्पत्ति तथा भूमि दान दी जाती थी ।

हर्षवर्धन ने 200 गांवों की लगान मुक्त भूमि नालन्दा विश्वविद्यालय के खर्च के लिए दी थी । नालन्दा विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना अत्यन्त दुर्लभ कार्य था । प्रवेश पाने के इच्छुक प्रत्येक विद्यार्थी की ‘ द्वार पण्डित ‘ द्वारा परीक्षा ली जाती थी । नालन्दा में पढ़ाए जाने वाले मुख्य विषय थे – बौद्ध साहित्य , दर्शन , चारों वेद , गणित , ज्योतिष शास्त्र , तर्क शास्त्र , व्याकरण , न्याय , दर्शन , चिकित्सा विज्ञान , रसायन विज्ञान , तन्त्र मन्त्र तथा शिल्प आदि । नालन्दा विश्वविद्यालय के कुछ प्रसिद्ध अध्यापकों में चन्द्रपाल , धर्मपाल , नागार्जुन , प्रभाकर मित्र , जिनमित्र , वसुबन्धु आर्यदेव तथा शांतिरक्षित आदि आते थे । यहां का कुलपति शीलभद्र अपने काल का सुप्रसिद्ध विद्वान् था । प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर आर ० एस ० त्रिपाठी के अनुसार , ” हर्ष को स्मरण किए जाने का मुख्य कारण उसके द्वारा दिया जाने वाला शिक्षा को उदार प्रोत्साहन था ।

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Powered By
100% Free SEO Tools - Tool Kits PRO