हर्षवर्धन का स्वरूप
हर्षवर्धन का स्वरूप | Harshavardhan Ka Svaroop
हर्षवर्धन का स्वरूप– प्राचीन भारत के इतिहास में सर्वगुण सम्पन्न शासकों के उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं । अधिकतर शासकों में किसी न किसी पक्ष से कमी अवश्य विद्यमान् थी , चाहे वह मानवीय पक्ष से रही हो अथवा सैनिक पक्ष से अथवा शासकीय पक्ष से । परन्तु हर्षवर्धन एक महान् विजेता , एक आदर्श शासक तथा एक सहिष्णु मानव माना जाता है । उसकी तुलना अशोक , समुद्रगुप्त एवं सम्राट् अकबर से की जाती है । उसके चरित्र एवं सफलताओं का चित्र यूं खींचा जा सकता है
मनुष्य के रूप में -As a Man
1. परिवार स्नेही -Lover of Family – हर्षवर्धन परिवार स्नेही व्यक्ति था । उसे अपने माता – पिता तथा भाई बहन से बड़ा लगाव था । पिता की मृत्यु पर उसने अपने भाई के आने की प्रतीक्षा की तथा उसकी अनुपस्थिति में शासन ग्रहण करने से इन्कार कर दिया । अपने भाई की मृत्यु पर उसे बहुत दुःख हुआ था । भाई की मृत्यु के पश्चात् हर्ष को जब अधिक विवश किया गया तब ही उसने सिंहासन ग्रहण किया ।
शत्रुओं से निपटते ही सबसे पहले उसका ध्यान अपनी बहन राज्यश्री की ओर गया । उसने विन्ध्याचल के जंगलों का कोना – कोना छान मारा और अन्त में अपनी बहन को ढूंढ़ने में सफल हुआ । प्राचीन इतिहास में शायद ही किसी शासक ने इतना परिवार स्नेही होने का प्रमाण दिया हो ।
2. कर्त्तव्यपरायण -Dutiful – हर्षवर्धन बड़ा ही कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति था । वह अपना कर्त्तव्य निभाने के लिए सदा तत्पर रहता था । हर्ष द्वारा पूरे देश का भ्रमण करना इस बात का प्रमाण है कि वह अपने कर्त्तव्य के प्रति कितना सजग था । सभी के प्रति अपने कर्त्तव्य निभाने में उसने निःसंकोच भाव का प्रदर्शन किया । अपनी कर्तव्यपराणयता के बल पर ही उसने एक विशाल तथा संगठित साम्राज्य की स्थापना की थी ।
3. उदार तथा दानी -Liberal and Philanthropist — ह्यूनसांग के अनुसार हर्षवर्धन बड़ा उदार तथा दानी व्यक्ति था । वह निर्धनों की खुले दिल से सहायता करता था । अपने राज्यकोष का अधिकांश धन वह दान कर देता था । 643 ई ० के प्रयाग के सम्मेलन में तो उसने अपना सर्वस्व दान कर दिया था । यहां तक कि उसके पास पहनने को भी वस्त्र न रहे थे । इस अवसर पर उसने अपनी बहन राज्यश्री से वस्त्र मांगकर पहने थे । इतिहास में इस जैसी दानशीलता का उदाहरण मिलना कठिन है ।
4. एक महान् प्रचारक -A Great Preacher – हर्षवर्धन एक महान् धर्म प्रचारक था । उसने बौद्ध धर्म का प्रचार करने हेतु महत्त्वपूर्ण प्रयास किए । उसने अहिंसा के सिद्धान्त का पालन करते हुए राज्य भर में पशु वध तथा मांस खाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया । उसने बौद्ध भिक्षुओं को हर प्रकार की आर्थिक सहायता दी ।
उसने बौद्ध धर्म के विकास के लिए प्रत्येक वर्ष एक सभा का आयोजन आरम्भ किया । उसने विभिन्न स्थानों पर बौद्ध प्रचारकों को भेजा । उसने नालन्दा विहार को 200 गांवों की लगान मुक्त भूमि दान में दी । उसने ह्यूनसांग ( चीनी यात्री ) जो भारत में बौद्ध धर्म की जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से आया था , को अपने दरबार में आश्रय दिया । हर्षवर्धन इन प्रयासों के परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म ने पुनः अपना गौरव प्राप्त किया ।
विजेता के रूप में -As a Conqueror
1. वीर योद्धा तथा सफल विजेता -A Brave Warrior and Conqueror – हर्षवर्धन एक वीर योद्धा तथा । सफल विजेता था । सिंहासन पर विराजमान होते समय उसका साम्राज्य अधिक विस्तृत न था । परन्तु उसने एक विशाल सेना का संगठन करके समस्त भारत को जीतने की योजना बनाई । यह ठीक है कि वह अपने दक्षिणी अभियान में असफल रहा , परन्तु उसने समस्त उत्तरी भारत में अपनी वीरता का डंका बजा दिया । उसने पंजाब , बंगाल , कन्नौज , बिहार तथा उड़ीसा ( गंजम ) पर अपनी विजय पताका फहराई । कामरूप के राजा ने भी अधीनता स्वीकार कर ली । इस प्रकार समस्त उत्तर भारत में उसकी वीरता का प्रभाव था ।
2. राजनीतिक एकता का संस्थापक -Founder of Political Unity – हर्षवर्धन ने भारत में राजनीतिक एकता की स्थापना की । जब वह सिंहासन पर बैठा तो उस समय देश अनेक छोटे – छोटे राज्यों में विभक्त था । देश की राजनीतिक एकता पूर्णत : भंग हो चुकी थी । ऐसे में हर्ष ने उत्तर भारत के राज्यों पर विजय प्राप्त कर समस्त उत्तरी भारत को एक झण्डे तले ला खड़ा किया । इस प्रकार उसने देश में अशान्ति का अन्त करके राजनीतिक एकता की स्थापना की । डॉक्टर आर ० सी ० मजूमदार के अनुसार , ” वह निःसन्देह प्राचीन भारत के महान् शासकों में एक था । ”
शासक के रूप में -As a Ruler
1. महान् शासन प्रबन्धक -A Great Administrator – हर्षवर्धन एक महान् शासन प्रबन्धक था । उसके शासन का आधार प्रजा की भलाई करना था । वह इतिहास में अपने प्रजा हितार्थ कार्यों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है । प्रजा के दुःखों के प्रति वह सदैव सजग रहता था । प्रजा के दुःखों का पता लगाने के लिए वह राज्य का भ्रमण किया करता था । ह्यूनसांग लिखता है कि वह प्रजा के कार्य करते समय खाना , पीना तथा सोना भी भूल जाता था । हर्षवर्धन अपने राज्य की आय का एक भाग प्रजा हितार्थ कार्यों में व्यय करता था । उसने राज्य में धर्मशालाएं बनवाई , औषधालय खुलवाए तथा सड़कों की व्यवस्था की । परिणामस्वरूप उसकी छत्रछाया में प्रजा सुखी एवं समृद्ध थी । इस प्रकार हर्ष एक उच्चकोटि का शासन प्रबन्धक था ।
2. धार्मिक सहनशीलता -Religiously Tolerant — हर्षवर्धन एक धार्मिक सहनशील सम्राट् था । वह स्वयं बौद्ध धर्म का अनुयायी था । बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए उसने अनेक कार्य किए , परन्तु उसने कभी भी किस ी को बौद्ध मत ग्रहण करने के लिए बाध्य नहीं किया । बौद्ध भिक्षुओं के साथ – साथ वह ब्राह्मणों तथा अन्य धर्मावलम्बियों को दान देना भी अपना कर्त्तव्य मानता था । प्रयाग की एक सभा में उसने धार्मिक सहनशीलता का एक महान् आदर्श प्रस्तुत किया । इस सभा में उसने पहले दिन महात्मा बुद्ध की , दूसरे दिन सूर्य की तथा तीसरे दिन शिव की आराधना की । तत्पश्चात् उसने बौद्ध भिक्षुओं के साथ – साथ ब्राहणों में भी धन बांटा ।
3. साहित्य एवं शिक्षा का संरक्षक -Patron of Literature and Education हर्षवर्धन के काल में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में विशेष प्रगति हुई । वह साहित्य एवं शिक्षा का महान् संरक्षक था । उसके दरबार में कई • प्रसिद्ध साहित्यकार रहते थे । इनमें बाणभट्ट , दिवाकर , मयूर , जयसेन एवं भर्तृहरि का नाम प्रमुख है । हर्ष स्वयं एक उच्च कोटि का विद्वान् था तथा उसने संस्कृत में तीन प्रसिद्ध नाटक लिखे । हर्ष अपने राज्य की आय का एक चौथाई भाग विद्वानों को पुरस्कार के रूप में बांट देता था ।
हर्षवर्धन ने शिक्षा के प्रसार के लिए भी विशेष प्रयत्न किये । नालन्दा • उसके समय का विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था । प्रसिद्ध इतिहासकार एच ० जी ० रालिंसन का कहना है कि , ” ” हर्ष एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति था तथा उसकी गणना अशोक तथा अकबर के अतिरिक्त भारत के अन्य • महान् शासकों में की जाती है । एक सैनिक , प्रशासक , लोक भलाई के कार्यों के लिए अथक प्रयास करने बाला , पवित्र तथा दयालु , साहित्य का संरक्षक , उच्च कोटि का कवि तथा नाटककार के रूप में वह इतिहास के पन्नों पर आकर्षक व्यक्तित्व के तौर पर सामने आता है ।