जैन धर्म का आरम्भ कैसे हुआ

                                        जैन धर्म की प्राचीनता ( Antiquity of Jainism )

जैन धर्म का आरम्भ कैसे हुआ ?

जैन धर्म का आरम्भ –प्रायः महावीर स्वामी जी को ही जैन धर्म का संस्थापक समझा जाता है । साधारण व्यक्तियों की यही धारणा है कि जैन धर्म का आरम्भ महावीर स्वामी से ही हुआ है । परन्तु यह धारणा गलत है । जैन धर्म का अस्तित्व तो वैदिक काल में भी था । जैन धर्म के कुल 24 तीर्थकर हुए हैं । जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव जी माने जाते हैं । तीर्थंकर का अर्थ हम सद्गुरु अथवा महापुरुष से ले सकते हैं । जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी का जन्म अयोध्या में हुआ था । वह राजा थे और अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने प्रजा के कल्याण के लिए कई कार्य किए । शीघ्र ही उन्होंने अपना राजपाठ अपने पुत्र भरत को सौंप दिया और स्वयं वन में तपस्या हेतु चले गए । वन में ही उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ ।जैन धर्म आरम्भ

ऋषभदेव जी के पश्चात् हुए जैन धर्म के 21 तीर्थंकरों के सम्बन्ध में हमें विशेष ज्ञान नहीं है । जैन धर्म को आधुनिक रूप देने में पार्श्वनाथ जी का बड़ा योगदान है । वह जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर थे । जैकोबी ने उन्हें ही जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक स्वीकार किया है । वह काशी के राजा अश्वसेन के पुत्र थे । उनका जन्म स्वामी महावीर के जन्म के 250 वर्ष पूर्व हुआ था । उनका लालन – पालन बड़े ऐश्वर्य से हुआ था । 30 वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग दिया और संन्यासी हो गए । उन्होंने 83 दिन तक घोर तपस्या की थी । 84 वें दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ । तत्पश्चात् उन्होंने ज्ञान का प्रचार किया । 100 वर्ष की आयु में इन्होंने देह त्याग दी ।

उनकी मुख्य शिक्षाएं चार थीं-

( 1 ) अहिंसा का पालन करो

( 2 ) सत्य बोलो ,

( 3 ) चोरी न करो ,

( 4 ) सम्पत्ति न रखो ।

पार्श्वनाथ जी यज्ञों तथा देवी – देवताओं को मानने का विरोध करते थे । वह जाति प्रथा में भी विश्वास नहीं रखते थे । जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी थे । उनका जन्म भी राजघराने में हुआ था और उन्होंने कड़ी तपस्या के पश्चात् ज्ञान प्राप्त किया । ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् वह ‘ जिन ‘ ( विजयी ) कहलाए । ‘ जिन ‘ शब्द के कारण उनके शिष्य ‘ जैनी ‘ कहलाए । महावीर स्वामी ने पार्श्वनाथ की शिक्षाओं को अपने उद्देश्यों में सम्मिलित कर लिया । उनके प्रयास से जैन धर्म का काफ़ी प्रचार और प्रसार हुआ । आज जैन धर्म जो कुछ भी है , उसका वास्तविक श्रेय उन्हें ही प्राप्त है ।

जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों का क्रमानुसार वर्णन इस प्रकार है

( 1 ) ॠष्भदेव

( 2 ) अजित

( 3 ) सम्भव

( 4 ) अभिनन्दन

( 5 ) सुमति

( 6 ) पद्मप्रभु

( 7 ) सुपार्श्व

( 8 ) चन्द्रप्रभु

( 9 ) पुष्पदन्त

(10) शीतला

(11) श्रेयासम 

(12) वासुपूज्य 

( 13 ) विमल

( 14 ) अनन्त

( 15 ) धर्म

( 16 ) शान्ति

( 17 ) कुंथ

( 18 ) अरह

( 19 ) मल्लि

( 20 ) मुनिसुव्रत

( 21 ) नामि

(22) नेमि 

(23) पार्श्वनाथ 

(24) महावीर |

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