पुरुषों के सम्बन्ध में उत्तराधिकार के सामान्य नियम की व्याख्या |

पुरुषों के सम्बन्ध में उत्तराधिकार के सामान्य नियम की व्याख्या कीजिए तथा उदाहरण दीजिए ( Describe the general rules of succession in the case of males , Give illustrations . )

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 से 13 में पुरुषों के उत्तराधिकार सम्बन्धी नियमों का वर्णन किया गया है ।

हिन्दू उत्तराधिकार – धारा 8 में उत्तराधिकार के वे सामान्य नियम दिये गये हैं जो कि पुरुष के द्वारा निर्वसीयती निजी सम्पत्ति छोड़कर मरने पर लागू होते हैं । यह धारा किसी पुरुष के पृथक् अथवा स्वर्जित सम्पत्ति में न्यागमन की व्याख्या करती है । इस प्रकार इस धारा के अन्तर्गत जब किसी व्यक्ति को सम्पत्ति दाय में प्राप्त होती है तो वह सम्पत्ति उसकी निजी अथवा पृथक् सम्पत्ति मानी जाती है और उसके सम्बन्ध में अपने पुत्रों का कोई जन्मता अधिकार नहीं प्राप्त होता , क्योंकि वह संयुक्त सम्पत्ति नहीं मानी जा सकती ।

इस धारा में दायदों की सम्पत्ति को उत्तराधिकार के उद्देश्य से चार वर्गों में विभाजित किया गया है

( 1 ) अनुसूची के प्रथम वर्ग में उल्लिखित नातेदार ;

( 2 ) अनुसूची के द्वितीय वर्ग में उल्लिखित नातेदार ;

( 3 ) मृतक के सपिण्ड ( गोत्रज ) ;

( 4 ) मृतक के सम्पार्श्विक ( बन्धु ) ।

यदि इनमें से कोई दायद नहीं है तो सम्पत्ति सरकार के निहित होगी । सम्पत्ति सर्वप्रथम अनुसूची के वर्ग 1 के सम्बन्धियों को होगी ।

यदि वर्ग ( 1 ) का कोई सम्बन्धी नहीं है तो सम्पत्ति वर्ग 2 के सम्बन्धियों को मिलेगी । इसी प्रकार यदि वर्ग संख्या 2 का कोई सम्बन्धी नहीं है तो सम्पत्ति गोत्रों को मिलेगी । गोत्रज भी नहीं है तो सम्पत्ति बन्धुओं को मिलेगी ।

हिन्दू उत्तराधिकार
हिन्दू उत्तराधिकार

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम-

वर्ग 1 के उत्तराधिकारी – वर्ग 1 में निम्नलिखित उत्तराधिकारी आते हैं

( 1 ) पुत्र ( Son ) ,

( 2 ) पुत्री ( Daughter ) ,

( 3 ) विधवा पत्नी ( Widow ) ,

( 4 ) माता ( Mother ) ,

 

( 5 ) पौत्र ( मृतक पुत्र का पुत्र )  ( Son of predeceased son ) 

( 6 ) पौत्री ( मृतक पुत्र की पुत्री ) ( Daughter of a predeceased son ) 

( 7 ) पूर्वमृत पुत्री का पुत्र ( Son of a predeceased daughter ) 

( 8 ) पूर्वमृत पुत्री की पुत्री ( Daughter of predecased daughter ) 

( 9 ) पूर्वमृत की विधवा ( Widow of predeceased son ) 

( 10 ) पूर्वमृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र का पुत्र ( Son of predeceased son of a predeceased son ) 

( 11 ) पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र की पुत्री ( Daughter of a predeceased son of predeceased son ) 

( 12 ) पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र की विधवा ( Widow of a predeceased son of predeceased son )

प्रारम्भिक दायदों की उपर्युक्त सूच में 8 नारियाँ और 4 पुरुष हैं जिनमें से एक नाम पूर्वमृत पुत्री का पुत्र , नारी के माध्यम से दाय का दावेदार है ।

वर्ग 2 के उत्तराधिकारी – यदि अनुसूची के वर्ग ( 1 ) में उल्लिखित उत्तराधिकारी नहीं है तो वर्ग 2 के उत्तराधिकारी होंगे

( 1 ) पिता ,

( 2 ) ( अ ) पुत्र की पुत्री का पुत्र , ( b ) पुत्र की पुत्री की पुत्री , ( स ) भाई , ( द ) बहन ।

( 3 ) ( अ ) पुत्री के पुत्र का पुत्र , ( ब ) पुत्री के पुत्र की पुत्री , ( स ) पुत्री की पुत्री का पुत्र , ( द ) के पुत्री की पुत्री ।

( 4 ) ( अ ) भाई का पुत्र ( ब ) बहिन का पुत्र ( स ) भाई की पुत्री ( द ) बहिन की पुत्री ।

( 5 ) पितामह ( पिता का पिता ) , दादी ( पिता की माता ) ।

( 6 ) पिता की विधवा , भाईं की विधवा ।

( 7 ) चाचा ( पिता का भाई ) , बुआ ( पिता की बहिन ) ।

( 8 ) नाना ( माता का पिता ) , नानी ( माँ की माँ )

( 9 ) मामा ( माता का भाई ) , मौसी ( माता की बहिन ) = योग 23

स्पष्टीकरण – इस अनुसूची में भाई माता या बहिन के प्रति निर्देशों के अन्तर्गत उस अर्थ या बहिन के प्रति निर्देश नहीं हैं जो केवल एकोदर रक्त के हैं ।

इस प्रकार अधिनियम की अनुसूची के वर्ग 2 में दिये गये दायदों की कुल संख्या 23  है जिन्हें 9 समूहों में रखा गया है , परन्तु जब तक अनुसूची के वर्ग 1 का एक भी दायद जीवित रहेगा तब तक अनुसूची 2 का कोई भी दायद उत्तराधिकार नहीं हो सकता ।

अनुसूची वर्ग 3 के उत्तराधिकार- मृतक का कोई भी प्रारम्भिक अथवा परिवर्ती न होने की स्थिति में सम्पत्ति मृतक के पितृ बन्धुओं को प्राप्त होगी । पितृ बन्धु चाहे कितनी ऊँची या निम्न श्रेणी के हों जो अन्तिम स्वामी के पूर्णतः रक्त के द्वारा या दत्तक सम्बन्धित हैं । पितृ बन्धुओं पर पीढ़ियों का कोई सीमा बन्ध नहीं है ।

अनुसूची वर्ग 4 के उत्तराधिकार – मृतक के किसी प्रारम्भिक दायद , परवर्ती दायर के गोत्रज के न होने की स्थिति में सम्पत्ति अन्त में उसके बन्धुओं को प्राप्त होती है । बन्धु मृतक के वे सम्बन्धी हैं जो मृतक से एक अथवा अधिक नारियों से सम्बन्धित हैं । अनुसूची वर्ग 4 के उत्तराधिकारी सीमा मातृ बन्धु चाहे कितनी ऊँची श्रेणी के हों , जो अन्तिम स्वामी है रक्त या दत्तक के कारण पूर्णत : पुरुषों के द्वारा नहीं सम्भवत एक या दो या अधिक स्त्रियों द्वारा सम्बन्धित हैं ।

अनुसूची में वारिसों के बीच उत्तराधिकार का क्रम – धारा 7 के अन्तर्गत वर्ग 1 के सम्बन्धी एक साथ और अन्य सभी सम्बन्धियों को अपवर्जित करके अंश भागी होंगे । वर्ग 2 के प्रथम प्रविष्टि में वे सभी सम्बन्धियों की अपेक्षा अधिमान्य होंगे । दूसरी प्रविष्टि में वे वारिसों को तीसरी प्रविष्टि के वारिस की अपेक्षा अधिकार प्राप्त होगा और इसी प्रकार आगे क्रम से अधिकार प्राप्त होगा ।

उदाहरण –

( 1 ) एक हिन्दू पुरुष एक पत्नी तथा पति को छोड़कर निर्वसीयती मर जाता है । विधवा पत्नी को अपवर्जित कर समस्त सम्पत्ति की दायद होगी ।

( 2 ) एक हिन्दू पुरुष निर्वसीयती एक माता तथा पिता को छोड़कर मर जाता है । माता वर्ग ( 1 ) की दायद होने के कारण पिता को अपंवर्जित करके समस्त सम्पत्ति प्राप्त करेगी ।

अनुसूची वर्ग 1 के दायदों में सम्पत्ति का वितरण — हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत अनुसूची के वर्ग 1 दायदों में सम्पत्ति के वितरण सम्बन्धी क्रम का उल्लेख किया गया है । धारा 10 इस प्रकार है – ” निर्वसीयती की सम्पत्ति उसके दायदों में ) अनुसूची में दिये गये निम्नलिखित नियमों के अनुकूल विभाजित की जायेगी  –

नियम 1 – निर्वसीयत विधवा या यदि एक से अधिक विधवा हों तो सब विधवाओं को मिलाकर एक अंश मिलेगा ।

नियम 2 – निर्वसीयत के उत्तरजीवी पुत्र और पुत्रियों और माता प्रत्येक एक – एक अंश प्राप्त करेंगे ।

नियम 3 – निर्वसीयत के पूर्वमृत पुत्र या पूर्वमृत पुत्रियों में से प्रत्येक की शाखा में आने वाले दायद मिलकर एक अंश लेंगे ।

नियम 4- निम्नलिखित 3 में उल्लिखित अंश का वितरण

( i ) पूर्वमृत पुत्र की शाखा के वारिसों के मध्य ऐसे किया जायेगा कि उसकी अपनी विधवा को ( या सब विधवाओं को मिलाकर ) और उत्तरजीवी पुत्रों और पुत्रियों को बराबर भाग प्राप्त हो और उससे पूर्वमृत पुत्रों की शाखा को भी वही भाग प्राप्त हो ।

( ii ) पूर्वमृत पुत्री की शाखा में के वारिसों का भरण – पोषण ऐसे किया जायेगा कि उत्तर पुत्रों और पुत्रियों को बराबर भाग प्राप्त हो ।

नियम 5- इस नियम के अनुसार निर्वसीयत की जिसका पत्नी एक अंश की हकदार है । जहाँ निर्वसीयत एक से अधिक विधवाओं को छोड़कर मरा है वहाँ सभी विधवाएँ एक साथ एक अंश की हकदार होंगी तथा यह एक अंश पुत्र अथवा पुत्री के अंश के बराबर होगा !

उदाहरण –

( 1 ) एक हिन्दू विधवा पत्नी को छोड़कर निर्वसीयत मर जाता है । विधवा पत्नी सम्पूर्ण सम्पति प्राप्त करेगा |

( 2 ) यदि उपयुक्त उदाहरण में वह दो पत्नियों को छोड़ कर मरता है तो प्रत्येक विधवा आधा – आधा अंश प्राप्त करेगी । सम्पत्ति प्राप्त करेगी ।

( 3 ) उपर्युक्त उदाहरण में से यदि दो विधवाओं तथा एक पुत्र को छोड़कर मरता है तो दोनों विधवाएँ 1/2 ( आधा ) अंश प्राप्त करेंगी जिसमें प्रत्येक विधवा 1/4 अंश की हकदार होगी और पुत्र 1/2 अंश प्राप्त करेगा । विधवा जो अंश प्राप्त करेगी उसकी वह पूर्ण स्वामिनी होगी ।

नियम 6 – दूसरे नियम के अनुसार प्रत्येक उत्तरजीवी पुत्र , उत्तरजीवी पुत्री तथा माता एक – एक अंश की हकदार है अर्थात् वितरण व्यक्तिपरक होगा । – उदाहरण एक हिन्दू तीन पुत्रियों तथा चार पुत्रों को छोड़कर निर्वसीयती मरता है । इस नियम के अनुसार सम्पत्ति समान रूप से इन दायदों में वितरित होगी अर्थात् प्रत्येक सम्पत्ति का 1/7 भाग प्राप्त करेगा ।

नियम 7 – इस नियम के के अनुसार प्रत्येक पूर्वमृत पुत्र तथा पूर्वमृत पुत्री की शाखा में सभी वारिस एक अंश ग्रहण करेंगे । यह वितरण व्यक्तिपरक नहीं वरन् पितृपरक होगा । जैसे यदि पूर्वमृत पुत्र ने एक विधवा पत्नी तीन पुत्र तथा चार पुत्रियों को छोड़ा है वहाँ सभी 8 वारिस एक अंश के हकदार होंगे न कि 8 अंशों के तथा प्रत्येक को 1/8 भाग प्राप्त होगा ।

नियम 8 – नियम 4 के अनुवर्तन के लिए पूर्वमृत पुत्र अथवा पुत्री को प्रस्तावक रूप में माना जाता है । पूर्वमृत पुत्र को प्रस्ताव के रूप में मानने पर उसके पुत्र , पुत्रियाँ तथा विधवा पत्नी उसके दायक हो जाते हैं । पूर्वमृत पुत्र के दायद मिलकर एक साथ अंश प्राप्त करेंगे ।

धारा 11 – यह धारा वर्ग 2 के वारिसों के उत्तराधिकार से सम्बन्धित है । यह धारा तभी लागू होगी जबकि प्रथम वर्ग के वारिस नहीं हों । इस धारा के अनुसार निर्वसीयत की सम्पत्ति अनुसूची के वर्ग 2 में भी किसी एक प्रविष्टि में उल्लिखित वारिसों के मध्य ऐसे विभाजित की जाये कि उन्हें बराबर अंश प्राप्त हो ।

इस धारा में लिखित भाई – बहिन सहोदर मृत पक्ष के भाई बहिन को सम्मिलित नहीं करता ।

कृपण बनाम हरियाणा राज्य में यह वाद अभिनिर्धारित किया गया है कि जहाँ वर्ग द्वितीय के उत्तराधिकारियों में भाई तथा बहिन दोनों हों तो उनमें सम्पत्ति का बँटवारा बराबर – बराबर हिस्सों में होगा ।

धारा 12 के तर्गत पितृ बन्धुओं को यथास्थिति उत्तराधिकारी का क्रम निम्नलिखित अधिमान के नियमों के अनुसार निश्चित किया जावेगा

नियम 1- दो वारिसों में से अधिमान प्राप्त होगा जिसकी जावली की निकटता कम या कुल नहीं है ।

नियम 2 – यदि पूर्व जावली की निकटता वही हैं या बिलकुल नहीं है तो उस वारसि की अधिमानित किया जायेगा जिसकी पूर्व जावली निकटता कम या बिल्कुल नहीं है । .

 नियम 3- यदि ऐसा कोई वारिस नहीं है जिसे , उपर्युक्त नियम 1 या 1 के अनुसार अपमानित किया जा सके , को वे एक साथ प्राप्त करेंगे ।

धारा 13- यह धारा संगणना की विधि करती है । यह धारा इस प्रकार है

( 1 ) गोत्राओं एवं बन्धुओं में उत्तरदायित्व क्रम के निर्धारण के प्रयोजन के लिए निर्वसीयत से वारिसों की नातेदारी की गणना यथास्थिति ऊपर की या नीचे की डिग्री या दोनों के अनुसार होंगी ।

( 2 ) ऊपर भी डिग्री तथा नीचे की गणना निर्वसीयत को सम्मिलित करके की जावेगी ।

( 3 ) प्रत्येक पीढ़ी या तो ऊपर की या नीचे की डिक्री निर्मित करती है ।

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