संबंधो के अर्थ और परिभाषाएं | सपिण्ड, बन्धु, सगा, सौतेला |
निम्नलिखित पदों की हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम , 1956 के सम्बन्ध में परिभाषा कीजिए तथा उनका अर्थ भी बताइए |
( 1 ) सपिण्ड ( 2 ) बन्धु , ( 3 ) सगा , ( 4 ) सौतेला , ( 5 ) सहोदर , ( 6 ) उत्तराधिकारी , ( 7 ) बिना वसीयत , ( 8 ) सम्बन्धी ( 9 ) अलीयसन्तान विधि , ( 10 ) मरूमक्कटायम विधि ( 11 ) नम्बूदरी विधि ।
Define the following terms in relation to the Hindu Succession Act , 1956 and show the purpose of them –
( 1 ) Agnate , ( 2 ) Cognate , ( 3 ) Full blood , ( 4 ) Half blood , ( 5 ) Uterme blood , ( 6 ) Heir , ( 7 ) Intestate , ( 8 ) Related , ( 9 ) . Aliysantana Law ( 10 ) Marummakkaataymam Law , ( 11 ) Nambudri Law.
( 1 ) सपिण्ड ( Agnate ) – हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम , 1956 की धारा 3 ( 1 ) के अनुसार एक व्यक्ति दूसरे का सपिण्ड कहा जाता है यदि वे दोनों केवल पुरुष के मध् से रक्त या दत्तक द्वारा एक – दूसरे से सम्बन्धित हों ।
( One person is said to be Agente by blood or adopted wholly through males )
अतः जब एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से रक्त या दत्तक ग्रहण द्वारा सम्बन्धित है वह व्यक्ति दूसरे का सपिण्ड या गोत्रज कहा जायेगा । सपिण्ड सम्बन्ध की कसौटी यह है कि दो व्यक्तियों के बीच नारी को नहीं आना चाहिए । इसमें पूर्वज जैसे पिता , पितामह , वंशज जैसे पुत्र , पौत्र इत्यादि और संपार्श्विक जैसे- भाई – भतीजा इत्यादि आयेंगे ।
( 2 ) बन्धु ( Cognate ) – एक व्यक्ति दूसरे का ‘ बन्धु ‘ कहा जाता है यदि वे दोनों रक्त दत्तक द्वारा एक – दूसरे से सम्बन्धित हों किन्तु केवल पुरुष के माध्यम से नहीं ।
( One person is said to be a cognate of another , if they are related by blood or adoption but not wholly through rules.)
इसका तात्पर्य यह है कि जब दो व्यक्तियों के सम्बन्ध के बीच कोई स्त्री भी आती है तो ये परस्पर बन्धु होंगे । दोनों के बीच पड़ने वाली नारियाँ एक से अधिक हो सकती हैं । इस प्रकार पुत्री की पुत्री का पुत्र और बहिन की पुत्री का पुत्र बन्धु होंगे ।
( 3 ) सगा ( Full blood ) – यदि दो व्यक्ति एक ही माता – पिता से पैदा हुए हों उन्हें सगा ( Full blood ) कहा जायेगा ।
( Two person are said to be related to each other by full blood when they are descended from a common ancestor by the same wife . )
दूसरे शब्दों में कोई दो व्यक्ति एक – दूसरे के सम्बन्धी तब कहलाते हैं कि वे एक ही पूर्वज से उसकी एक ही पत्नी से उत्पन्न हों , जैसे सगा भाई , सगी बहिन , सगा मामा इत्यादि ।
( 4 ) सौतेले ( Half blood ) – कोई भी दो व्यक्ति एक – दूसरे के सौतेले सम्बन्धी तब होते हैं जबकि वे एक ही पूर्वज से उसकी भिन्न – भिन्न पत्नियों से उत्पन्न हों ।
( Two person are said to be related each other by half blood when they are descended from a common ancestor but by different wives . )
दूसरे शब्दों में दो व्यक्तियों को सौतेला तब कहा जाता है जबकि उनका पिता तो एक हो तथा माता अलग – अलग ।
( 5 ) सहोदर ( Uterine blood ) – दो व्यक्ति एक – दूसरे के सहोदर तब कहलाते हैं जब वे एक ही पूर्वज से किन्तु भिन्न – भिन्न पतियों से उत्पन्न हुए हों ।
( Two person are said to be related to each other by uterine blood when they are descended from a common anestreses but by different husbands . )
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिन व्यक्तियों की माँ एक हैं तथा पिता अलग – अलग वे व्यक्ति सहोदर कहलायेंगे ।
( 6 ) उत्तराधिकारी ( Heir ) – उत्तराधिकारी से अभिप्राय किसी ऐसे व्यक्ति से है चाहे वह पुरुष हो या नारी जो निर्वसीयत की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी होने का इस अधिनियम के अधीन हकदार है ।
( The word heir has been defined to mean any person male or female who is entitled to succeed to the property of an intestate under this Act . )
इस प्रकार इस अधिनियम के अन्तर्गत कोई व्यक्ति बिना वसीयत की गई सम्पत्ति को पाने का हकदार है तो वह उत्तराधिकारी कहलायेगा किन्तु इतना ध्यान रखना चाहिए कि किसी मृतक के दायद ( वारिस ) होने का प्रश्न तभी उठता है जबकि मृतक वसीयत किये हुए मरा हो , चाहे पूर्ण सम्पत्ति के सम्बन्ध में अथवा उसके किसी भाग के सम्बन्ध में
( 7 ) निर्वसीयती ( Intestate ) – कोई व्यक्ति निर्वसीयती सम्पत्ति को छोड़कर मरा हुआ माना जाता है यदि उसने अपनी सम्पत्ति का वसीयती निपटारा नहीं कर दिया है । इस प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का थोड़ा भी भाग ऐसा छोड़ता है जिसका वह वसीयत से निपटारा नहीं करता तो उस सम्पत्ति के सम्बन्ध में निर्वसीयत माना जायेगा । यदि उसने सम्पत्ति का वसीयत से निपटारा किया है तो उसे विधिमान्य होना चाहिए । यदि यह विधिमान्य नहीं है तो व्यक्ति निर्वसीयत मरा हुआ माना जायेगा ।
( 8 ) सम्बन्धित ( Related ) – सम्बन्धित से अभिप्राय औरस रक्त सम्बन्ध से है । इस परिभाषा के साथ एक सम्बन्ध है , अवैध सन्तान माता से सम्बन्धित होती है । इसका अर्थ है कि से उत्तराधिकार प्राप्त करने के लिए अवैध और वैध सन्तान में भेद नहीं किया जायेगा । अवैध सन्तान भी वैध के समान माता से ही सम्बन्धित मानी जायेगी । इसके साथ – ही – साथ अवैध सन्तानों परस्पर एक – दूसरे से सम्बन्धित मानी जायेंगी अर्थात् यदि पिता से अनेक सन्तानें उत्पन्न हैं तो वे आपस में भाई – बहिन होंगी । अवैध सन्तानों के औरस वंशज उनसे और परस्पर एक – दूसरे से सम्बन्धित होंगे । इसका तात्पर्य यह है कि अवैध व्यक्ति की वैध सन्तान उससे सम्बन्धित मानी जायेगी ।
( 9 ) अलीय – सन्तान विधि ( Aliysantana Law ) – अलीय – सन्तान विधि से यह विधि अभिप्रेत है जो उस व्यक्ति को लागू है जो यदि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम पारित नहीं हुआ तो मद्रास अलीय – सन्तान अधिनियम , 1949 द्वारा रूढ़िगत अलीय – सन्तान विधि द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होता जिनके लिए अधिनियम में उपबन्ध किया गया है : अलीय सन्तान विधि – दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में प्रचलित मातृ – पक्ष प्रधान विधि थी । इसमें दाय का अधिकार माता के सम्बन्ध के आधार पर निर्धारित होता था । उत्तराधिकार अधिनियम ने इस विधि को अत्यधिक सीमित किया हैं ।
( 10 ) मरुमक्कटायम विधि ( Marummakkattayam Law ) – ” मरुमक्कटायम विधि ” से विधि की वह पद्धति अभिप्रेत है जो उन व्यक्तियों को लागू है
( क ) जो यदि यह अधिनियम पारित नहीं हुआ होता तो मद्रास मरुमक्कटायम अधिनियम , 1932 टावनकोर एज्हवा अधिनियम , ट्रावनकोर नान्जिड बेल्लाला अधिनियम , ट्रावनकोर नायर , अधिनियम , ट्रावनकोर क्षेत्रीय अधिनियम , कृष्णनवक्ता मरुम्मक्कत्तायी अधिनियम , कोचीन मरुक्कतायम अधिनियम , या कोचीन नायर एक्ट द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होते जिनके लिए इस अधिनियम द्वारा उपबन्ध किया गया है , अथवा
( ख ) जो ऐसे समुदाय के हैं जिसके सदस्य अधिकतर तिरुवांकर कोचीन या मद्रास राज्य में , जैसा कि वह 1 नवम्बर , 1956 के तुरन्त पूर्व अस्तित्व में था , अधिवासी हैं और यदि यह अधिनियम पारित न हुआ तो उन विषयों के बारे में जिनके लिए इस अधिनियम द्वारा उपबन्ध किया गया है , विरासत की ऐसी किसी पद्धति द्वारा शासित होते जिसमें नारी परम्परा के माध्यम .. से अवजनन ( desent ) गिना जाता है ,
किन्तु इसके अन्तर्गत अलिय सन्तान विधि नहीं आती ।
( 11 ) नम्बूदरी विधि – नम्बूदी विधि का उस विधि से तात्पर्य है जो कि उत्तराधिकार अधिनियम न पास हुआ होता तो उन विषयों के सम्बन्ध में जिनके लिए उत्तराधिकार अधिनियम में उपबन्ध किया गया है , मद्रास , नम्बूदरी अधिनियम , 1932 ; कोचीन नम्बूदरी अधिनियम या त्रावनकोर मलयाल ब्राह्मण अधिनियम द्वारा प्रशासित होते । नम्बूदरी विधि भी ट्रावनकोर और मद्रास के एक वर्ग में लोगों को रूढ़िगत विधि थी । यदि उत्तराधिकार अधिनियम पारित न हुआ होता तो उन व्यक्तियों को उन अधिनियम में दी गई विधि लागू होती ।