समुद्रगुप्त का चरित्र एवं व्यक्तित्व

समुद्रगुप्त का चरित्र एवं व्यक्तित्व | Samudragupt Ka Charitr Evan Vyaktit

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चरित्र किसी भी मनुष्य के जीवन की वास्तविक झांकी होती है । इससे उसके गुणों तथा दोषों का मूल्यांकन होता है । मनुष्य जो कुछ करता है , वह उसके चरित्र का अंश बन जाता है । समुद्रगुप्त को भी चरित्र की इसी परिभाषा से परखना होगा । उसका सारा जीवन बहुमुखी कार्यों से भरा पड़ा है । इलाहाबाद प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त के चरित्र का एक स्पष्ट चित्र खींचा गया है ।

वह वीर , साहसी तथा प्रजा – रक्षक राजा था । इसके अतिरिक्त उसे साहित्य प्रेमी , कलाओं का पोषक , दानी तथा धर्मपरायण व्यक्ति माना जाता है । प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर अश्विनी अग्रवाल के शब्दों में , ” समुद्रगुप्त को अपने युग का सबसे आदर्श सम्राट् माना जाता है तथा उसकी तुलना कुबेर , वरुण , इंद्र तथा यम देवताओं से की गई है क्योंकि उसके गुण महान् थे , उसके कार्य हितैषी थे , उसका प्रताप अद्वितीय था तथा उसका न्याय कठोर था |

समुद्रगुप्त का चरित्र

एक मानव , विजेता तथा शासक के रूप में समुद्रगुप्त –

एक मानव

 1. महान् दानी-Great Philanthropist  — समुद्रगुप्त एक वीर योद्धा होने के साथ – साथ एक उदार हृदय का व्यक्ति भी था । वह दीन दुःखियों की सहायता के लिए सदा तत्पर रहता था । वह बड़ा दानी था और हजारों गौएं तथा सोना दान में दिया करता था । इलाहाबाद प्रशस्ति में उल्लेख आता है कि उसने अश्वमेध यज्ञ के समय ब्राह्मणों को अत्यधिक धन दान में दिया था ।

2. कला – प्रेमी -Lover of Art — समुद्रगुप्त एक महान् कला – प्रेमी भी था । उसे संगीत से विशेष लगाव था । अपनी मुद्राओं पर वह वीणा बजाते हुए दिखाया गया है । इससे सिद्ध होता है कि वह वीणा – वादन में बड़ा प्रवीण था । उसके प्रसिद्ध दरबारी कवि हरिसेन के शब्दों में , ” वह संगीतकला में नारद तथा तुम्बरू को भी लज्जित करता था । ” उसकी मुद्राएं उसकी कलाप्रियता का प्रमाण हैं ।

3. साहित्य प्रेमी -Lover of Literature – समुद्रगुप्त एक उच्चकोटि का कवि तथा साहित्यकार था । उसे कविराज की उपाधि प्राप्त थी । दुर्भाग्यवश आज उसके द्वारा लिखी कोई भी पुस्तक उपलब्ध नहीं है । समुद्रगुप्त ने अपने दरबार में कई विद्वानों को भी संरक्षण प्रदान कर रखा था । हरिसेन उसके समय का एक महान् विद्वान् माना जाता है । हरिसेन की ‘ इलाहाबाद प्रशस्ति ‘ एक प्रसिद्ध साहित्यिक रचना है जो काव्य का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करती है । असंग तथा वसुबन्धु भी उसके दरबार की शोभा थे ।

II . विजेता के रूप में -As a Conqueror

1. एक महान् विजेता -As a Great Conqueror — समुद्रगुप्त एक महान् सफल विजेता था । उसकी दिग्विजय की नीति ने एक बार फिर बिखरे भारत को संगठन एवं एकरूपता प्रदान की थी । उसने 9 नाग राजाओं को पराजित किया । दक्षिण के 12 राजाओं ने उससे मात खाई । अनेक सीमावर्ती राजा बिना लड़े ही उसकी अधीनता में आ गए । समुद्रगुप्त ने यह महान् कार्य थोड़ी – सी अवधि में ही कर दिखाया था ।

वह आजीवन अजेय रहा और उसका साम्राज्य पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी से लेकर पश्चिम में चम्बल नदी तक तथा उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला हुआ था । अतः जी ० इ ० सेन का यह कहना पूर्णत : ठीक है , 14 ‘ समुद्रगुप्त एक जन्मजात सैनिक था तथा उसके बिना गुप्त साम्राज्य सम्भव नहीं था । उसने सभी दिशाओं में बहुत जल्दी अपने विजय अभियान आरम्भ किए तथा आश्चर्यचकित समय में अशोक जितना विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया ।

2. कुशल सेनानायक -Skilled General – समुद्रगुप्त एक कुशल सेनानायक था । अपने काल में होने वाले युद्धों का उसने स्वयं ही संचालन किया तथा विजयें प्राप्त कीं । उसके शरीर पर अनेक घावों के चिन्ह थे । वह अनेक प्रकार के अस्त्र – शस्त्र चलाने में निपुण था । वह अपनी सेना के लिए प्रेरणा का स्रोत था । उस युग में किसी सेना को दक्षिण में सफलता प्राप्त न हो सकी थी । ऐसा कठिन कार्य समुद्रगुप्त ने सफल कर दिखाया । इससे सिद्ध होता है कि वह एक कुशल सेनानायक था ।

3. सफल राजनीतिज्ञ -Successful Diplomat  – समुद्रगुप्त की दक्षिणी भारत में विजित प्रदेशों के प्रति नीति उसकी कुशल राजनीति का प्रतीक है । उसने इन प्रदेशों में विजयें प्राप्त कीं , परन्तु उसने इन्हें अपने साम्राज्य में सम्मिलित न किया । वह जानता था कि इन दूरस्थ प्रदेशों पर सीधा राज्य करना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव है । अतः वह इन प्रदेशों से कर वसूल करने में ही सन्तुष्ट हो गया । उसने सभी विजित प्रदेश लौटा दिए तथा उनसे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किए । ऐसा करके उसने उन प्रदेशों के राजाओं को सदा के लिए अपने प्रति निष्ठावान बना लिया ।

III . शासक के रूप में -As an Administrator

1. योग्य शासक -Able Administrator – समुद्रगुप्त केवल एक सफल विजेता ही नहीं वरन् एक कुशल शासक भी था । उसकी शासन व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य प्रजा का कल्याण था । उसने शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए ईमानदार एवं योग्य व्यक्तियों को नियुक्त किया हुआ था । इलाहाबाद के स्तम्भ लेख में भी समुद्रगुप्त के शासन के लिए प्रचण्ड शब्द का प्रयोग किया गया है अर्थात् कठोर एवं सुयोग्य स्थानीय शासन में बहुत कम हस्तक्षेप किया जाता था । न्याय प्रबन्ध भी उत्तम था । परिणामस्वरूप समुद्रगुप्त के काल में प्रजा खुशहाल थी ।

2. सहिष्णु शासक -Tolerant Ruler — समुद्रगुप्त हिन्दू धर्म का समर्थक था । उसके काल में हिन्दू धर्म का पुनः उदार हुआ । वह भगवान् विष्णु का उपासक था । उसने संस्कृत को राजभाषा घोषित किया तथा विष्णु के वाहन गरुड़ को अपनी मुहरों पर अंकित करवाया । परन्तु साथ ही उसने राज्य के अन्य लोगों की धार्मिक स्वतन्त्रता पर भी कोई रोक न लगाई । उसने लंका के राजा मेघवर्ण के आग्रह पर उसे बौद्ध गया में एक मठ बनाने की आज्ञा दी । समुद्रगुप्त ने अपने दरबार में भी बौद्ध विद्वानों असंग तथा बसुबंधु को आश्रय दिया ।

अन्त में हम यहा कह सकते हैं कि समुद्रगुप्त का चरित्र प्रत्येक दृष्टि से उज्ज्वल था । एन ० एन ० घोष का यह कहना सत्य है कि , “ वह ( समुद्रगुप्त ) केवल इसलिए महान् नहीं था कि उसने सभी लड़ाइयां विजित की थीं अपितु इसलिए कि वह शान्ति काल में भी महान् था । ‘ ” ” एक अन्य इतिहासकार डॉक्टर आर ० सी ० मजूमदार के शब्दों में , ” निःसन्देह समुद्रगुप्त का व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावशाली था तथा उसने भारत के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया ।

समुद्रगुप्त भारतीय नैपोलियन के रूप में- Samudragupta As an Indian Napoleon 

समुद्रगुप्त को भारतीय नैपोलियन की उपाधि सर्वप्रथम डॉक्टर वी ० ए ० स्मिथ ने दी थी । बाद में अनेक अन्य इतिहासकारों ने इसका समर्थन किया । समुद्रगुप्त को भारतीय नैपोलियन कहने के कई कारण हैं । पहला कारण तो यह है कि समुद्रगुप्त नैपोलियन की भान्ति वीर , साहसी तथा निर्भीक था । नैपोलियन ने इटली के अभियान में बड़ी तीव्रता का प्रदर्शन किया था । यह तीव्रता तथा दक्षता उसने बाद में ऑस्ट्रिया तथा एशिया के अभियानों दिखाई । ठीक इसी प्रकार की फुर्ति हम समुद्रगुप्त के जीवन में भी देखते हैं । नैपोलियन का सारे यूरोप पर दबदबा छा गया था । वह कुछ देशों का सम्राट् , कुछ का संरक्षक तथा कुछ का मित्र था । बिल्कुल यही अवस्था समुद्रगुप्त की भी थी ।

लगभग समस्त उत्तरी भारत का वह महाराजाधिराज था । दक्षिणी राजाओं से वह कर वसूल करता था तथा देवक , कामरूप , यौद्धेय , आभीर , अर्जुनायन आदि जातियों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी । इसके साथ साथ कई विदेशी राजा उसके घनिष्ठ मित्र थे । परन्तु एक दृष्टिकोण से समुद्रगुप्त नैपोलियन से कहीं आगे था । जीवन में उसे नैपोलियन की भान्ति न तो कभी ‘ ट्राफल्गर ‘ तथा ‘ वाटरलू ‘ के जैसी पराजय का सामना करना पड़ा और न ही उसे आजीवन कारावास का दण्ड मिला । नैपोलियन की विजयों का अन्त ‘ वाटरलू ‘ के युद्ध में ही हो गया , परन्तु समुद्रगुप्त की विजयों ने एक ऐसे महान् साम्राज्य को जन्म दिया जिसमें देश में अभूतपूर्व उन्नति हुई । इस विचार से समुद्रगुप्त नैपोलियन से कई मायनों में बहुत आगे था ।

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