ह्यूनसांग कौन था | Hyoonasaang Kaun Tha
ह्यूनसांग कौन था | Hyoonasaang Kaun Tha
ह्यूनसांग का वृत्तान्त – ह्यूनसांग एक चीनी यात्री था , जो हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था । उसे ‘ युआन च्वांग ‘ के नाम से भी पुकारा जाता है । इतिहासकार उसे यात्रियों में राजकुमार मानते हैं । उसका जन्म 600 ई ० में चीन के होनान फू नामक नगर में हुआ था । 20 वर्ष की आयु में वह बौद्ध भिक्षु बना । बौद्ध भिक्षु बनने के पश्चात् उसने बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा करने तथा बौद्ध साहित्य का अध्ययन करने के उद्देश्य से भारत की ओर प्रस्थान किया । वह 630 ई ० से 644 ई ० तक भारत में रहा । इस समय के दौरान उसने भारत में प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों की यात्रा की । उसने कुछ समय नालन्दा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की । वह लगभग 8 वर्ष तक हर्षवर्धन के दरबार में रहा । ह्यूनसांग अपने साथ महात्मा बुद्ध की अनेक मूर्तियां तथा 657 हस्तलिखित बौद्ध रचनाएं भी ले गया । उसने अपना शेष जीवन इन ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद करने में लगा दिया । ह्यूनसांग ने अपनी भारत यात्रा का वर्णन अपनी पुस्तक सी – यू- की अर्थात् पश्चिमी जगत् का वृत्तान्त में संगृहित किया है । इस ग्रन्थ में वह सातवीं शताब्दी के भारत के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है । जिसका वर्णन इस प्रकार से है
राजा के विषय में – About The King
- परिश्रमी शासक -Toiling Ruler – ह्यूनसांग आठ वर्ष तक हर्ष के सम्पर्क में रहा था । वह हर्षवर्धन के चरित्र से बहुत प्रभावित हुआ । ह्यूनसांग लिखता है कि हर्ष एक परिश्रमी तथा कर्त्तव्यपरायण शासक था । यद्यपि वह अन्य राजाओं की तरह ठाठ – बाट से रहता था , फिर भी वह अपने कर्त्तव्यों के प्रति उदासीन नहीं था । वह सारा सारा दिन राजकीय तथा प्रजा- हितार्थ कार्यों में लगा रहता था । जनता की भलाई करने के लिए वह प्रायः खाना , पीना और सोना भी भूल जाता था । जनता के दुःखों से परिचित रहने के लिए वह समय – समय पर राज्य का भ्रमण करता तथा इसके निवारण हेतु हर सम्भव पग उठाता था ।
- दानी तथा उदार -Charitable and Generous – ह्यूनसांग के अनुसार हर्षवर्धन एक दानी तथा उदार राजा था । वह भिक्षुओं , ब्राह्मणों तथा निर्धनों को खुले मन से दान देता था । प्रयाग की एक सभा में उसने अपना सारा कोष तथा पहने हुए वस्त्र तक दान में दे दिए थे । तब उसने अपनी बहन राजश्री से गेरुए वस्त्र मांगकर पहने थे । इतिहास में ऐसे दानी शासक का अन्य उदाहरण मिलना अति कठिन है ।
- बौद्ध धर्म का अनुयायी -Follower of Buddhism – ह्यूनसांग लिखता है कि हर्षवर्धन आरम्भ में हिन्दू धर्म का अनुयायी था । वह सूर्य और शिव की उपासना करता था । तत्पश्चात् वह बौद्ध मत की हीनयान शाखा का अनुयायी बन गया । परन्तु ह्यूनसांग के प्रभाव में आकर उसके विचारों में परिवर्तन आया । फलस्वरूप वह बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अनुयायी बन गया । फिर भी वह अपने प्राचीन धर्म के प्रति कभी उदासीन नहीं हुआ था । प्रयाग की सभा में उसने पहले दिन बुद्ध की , दूसरे दिन सूर्य की तथा तीसरे दिन शिव की उपासना की थी । इसी सभा में उसने 500 ब्राह्मणों को भी भोजन कराया था । यह बात हर्षवर्धन की धार्मिक सहनशीलता की ओर सकत करती है ।
राजनीतिक जीवन के विषय में -About Political Life
- प्रजा हितैषी शासन -Welfare State – ह्यूनसांग लिखता है कि हर्षवर्धन के शासन का आधार प्रजा की भलाई करना था । राजा प्रजा के हित को सदा ध्यान में रखता था । इसके लिए वह राज्य के विभिन्न भागों का दौरा करता तथा सरकारी कर्मचारियों के कार्यों का निरीक्षण करता था । ह्यूनसांग के शब्दों में , ” उसके ( हर्ष ) लिए दिन बहुत छोटा था । उसने इसे तीन भागों में बांटा हुआ था , जिसमें से उसका एक भाग शासन सम्बन्धी कार्यों में व्यतीत होता था तथा शेष दो भाग धार्मिक कार्यों में व्यतीत होते थे । वह कार्य के दौरान थकावट अनुभव नहीं करता था । अच्छे कार्य करते समय सोना तथा खाना – पीना भी भूल जाता था । ” चीनी यात्री के अनुसार सारे शासन प्रबन्ध पर उसका व्यक्तिगत नियन्त्रण था । परन्तु वह प्रजा पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं करता था । जनता को काफ़ी स्वतन्त्रता प्राप्त थी । लोगों से बेगार नहीं ली जाती थी और न ही उन पर कोई अनुचित प्रतिबन्ध लगाया जाता था । राज्य के कर हल्के थे । इसके अतिरिक्त सरकारी कर्मचारी व्यर्थ में लोगों को तंग नहीं करते थे ।
- सरकारी आय का विभाजन -Classification of Govt . Income – ह्यूनसांग लिखता है कि हर्षवर्धन के समय सरकारी आय चार भागों में विभक्त थी । पहले भाग की आय . राजकीय कार्यों पर व्यय की जाती थी । दूसरे भाग की आय से मन्त्रियों तथा अन्य कर्मचारियों को वेतन दिया जाता था । तीसरे भाग की आय भिक्षुओं तथा ब्राह्मणों में दान के रूप में बांट दी जाती थी । आय के चौथे भाग से विद्वानों को पुरस्कार दिए जाते थे ।
- दण्ड विधान -Penal Code -ह्यूनसांग के अनुसार हर्ष का दण्ड विधान काफ़ी कठोर था । साधारण अपराध पर केवल जुर्माना किया जाता था । सामाजिक सिद्धान्तों के विरुद्ध कार्य करने वाले अपराधी के नाक और कान आदि काट दिए जाते थे । देश निकाला तथा मृत्युदण्ड भी प्रचलित थे । अपराध स्वीकार करवाने के लिए अपराधी को अनेक प्रकार के शारीरिक कष्ट दिए जाते थे । इसके लिए अग्नि , पानी तथा विष का प्रयोग किया जाता था । यदि अपराधी पूछताछ के समय साफ़ – साफ़ उत्तर देता था , तो उसका दण्ड घटा दिया जाता था ।
- सेना -Army – ह्यूनसांग लिखता है कि हर्षवर्धन ने एक विशाल सेना का संगठन किया हुआ था । उसकी सेना में 50 हज़ार पैदल सैनिक , 60 हज़ार हाथी तथा एक लाख घुड़सवार थे । इसके अतिरिक्त उसकी सेना में कुछ रथ भी सम्मिलित थे , परन्तु रथों की संख्या कम थी । ह्यूनसांग ने उसकी सेना के प्रबन्ध तथा युद्ध शस्त्रों का भी वर्णन किया है ।
- अभिलेख विभाग -Record Department – ह्यूनसांग के अनुसार हर्षवर्धन ने एक अभिलेख विभाग की व्यवस्था की हुई थी । यह विभाग उसके शासनकाल की प्रत्येक छोटी – बड़ी घटना का रिकार्ड रखता था । सभी सरकारी कार्यों का लिखित ब्योरा भी इसी विभाग के पास रहता था । निश्चित रूप से यह एक प्रशंसनीय कार्य था । को हर समय चोर डाकुओं का भय लगा रहता था । ह्यनसांग को भी यात्रा के दौरान दो बार लूट लिया गया था ।
- असुरक्षित सड़कें -Unsafe Roads – ह्यनसांग लिखता है कि उस समय सड़कें सुरक्षित नहीं थीं । यात्रियों
- कन्नौज के विषय में -About Kanauj – ह्यूनसांग के अनुसार हर्षवर्धन की राजधानी पहले थानेश्वर थी , परन्तु बाद में कन्नौज बन गई । वहां के निवासी समृद्ध एवं सम्पन्न थे । चीनी यात्री के अनुसार इस नगर में 100 / से भी अधिक बौद्ध मठ थे , जिनमें 1,000 से भी अधिक भिक्षु रहते थे । इसके अनुसार कन्नौज में हर्ष ने विशाल सभा का आयोजन किया था । इस सभा में अनेक बौद्ध भिक्षु तथा ब्राह्मण सम्मिलित हुए थे । इस सभा में होने वाले वाद – विवाद में स्वयं ह्यूनसांग ने भी भाग लिया था । एक
- प्रयाग के विषय में -About Prayaga – ह्यूनसांग लिखता है कि उस समय प्रयाग भी एक प्रसिद्ध नगर था । हर्षवर्धन उस नगर में हर पांच वर्ष पश्चात् एक विशेष सभा बुलाया करता था । उसके अनुसार 643 ई ० में आयोजित इसी प्रकार की सभा में हर्षवर्धन ने अपना सब कुछ दान में दे दिया था । यहां तक कि उसे पहनने के वस्त्र भी अपनी बहन राजश्री से मांगने पड़े थे । इस सभा में भी ह्यूनसांग ने भाग लिया था ।
सामाजिक जीवन के विषय में – About Social Life
- जाति प्रथा -Caste System— ह्यूनसांग लिखता है कि उस समय जाति प्रथा समाज का विशेष अंग थी । उसने ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य तथा शूद्र आदि चार जातियों का वर्णन किया है । उसके अनुसार एक जाति के लोग दूसरी जाति से विवाह नहीं करते थे । ब्राह्मण धर्म – कर्म का कार्य करते थे । क्षत्रिय शासक और अधिकारी थे । वैश्य व्यापारी थे तथा शूद्र खेती आदि का कार्य करते थे । ।
- उच्च नैतिक जीवन -High Moral Life — ह्यूनसांग लिखता है कि उस समय लोग उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करते थे । वे पवित्र कार्य करते थे तथा पाप से दूर रहने का प्रयास करते थे । वे सच बोलना अपना धर्म मानते थे । उन्हें अपना वर्तमान जीवन सुधारने के साथ – साथ अपना परलोक सुधारने की भी चिन्ता रहती थी ।
- भोजन तथा वस्त्र -Food and Dress – ह्यूनसांग के अनुसार लोग पौष्टिक परन्तु सादा भोजन खाते थे । गेहूं की रोटी , दूध , घी , मक्खन , फल तथा सब्जियां उनका मुख्य आहार था । अधिकांश लोग मांस , प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं करते थे परन्तु कुछ लोग मांस खाते थे । बैल , गधे , बन्दर तथा कुत्ते आदि जानवरों का खाने वाले को अछूत समझा जाता था । कुछ लोग अंगूर और गन्ने से तैयार मदिरा का भी सेवन करते थे । ह्यूनसांग ने उस समय के विभिन्न प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख किया है । उसके अनुसार , लोग सूती , ऊनी और रेशमी तीनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे । पुरुषों का पहरावा केवल एक चादर ही थी । उसी से ही वे अपने सारे शरीर को ढांपते थे । स्त्रियां लम्बी पोशाक पहनती थीं । ये सभी वस्त्र भारत में ही तैयार किए जाते थे ।
- आभूषण -Ornaments— ह्यूनसांग लिखता है कि उस समय आभूषणों का बहुत प्रयोग किया जाता था । स्त्रियां मोर के पंखों की मालाओं से अपने शरीर को विभूषित करती थीं । पुरुषों को मूंछें रखने का बड़ा चाव था । वे अपने बालों को भी विशेष प्रकार से संवारते थे । उस समय जूता बहुत कम लोग पहनते थे । अधिकांश लोग नंगे पांव ही घूमते थे ।
- मकान -House — ह्यूनसांग लिखता है कि उस समय साधारण लोग सादे मकानों में रहते थे । परन्तु उनके मकान अन्दर से बहुत ही सुन्दर थे । कई मकान बहुत ही ऊंचे थे । उन मकानों की बनावट चीन के मकानों से मिलती – जुलती थी । नगर की दीवारें ईंटों की बनी होती थीं । छतों के लिए चौरस लकड़ी का प्रयोग किया जाता था । उनके ऊपर चूने का पलस्तर किया जाता था । फर्श को लोग गोह्यबर से लीपते थे । छप्पर वाले मकान प्रायः ईंटों और तख्तों के बने होते थे । की कि
- अन्य सामाजिक बातें -Other Social Facts – ह्यूनसांग ने उपर्युक्त बातों के अतिरिक्त तत्कालीन भारत कुछ अन्य सामाजिक विशेषताओं पर भी प्रकाश डाला है –
- वह लिखता है उस समय पर्दे की प्रथा प्रचलित नहीं थी । हर्ष की बहन राजश्री ने बिना पर्दा किए ही उसके उपदेश को सुना था ।
- समाज में सती प्रथा प्रचलित थी । हर्ष की माता यशोमति अपने पति के बचने की आशा न देख कर सती हो गई थी । हर्ष की बहन राज्यश्री भी अपने पति के वध का समाचार सुनकर सती होने वाली थी , परन्तु हर्ष ने उसे बचा लिया स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते थे । वे भोजन से पूर्व सदा स्नान करते और कभी जूठा खाना नहीं खाते थे ।
- लकड़ी और मिट्टी के बर्तनों को एक बार प्रयोग करने के बाद फेंक दिया जाता था । परन्तु लोग बहुमूल्य धातुओं के बर्तनों का प्रयोग करने के पश्चात् उन्हें साफ़ कर लेते थे । ।
धार्मिक दशा के विषय में -About Religious Condition-
- बौद्ध धर्म -Buddhism – ह्यूनसांग लिखता है कि बौद्ध धर्म में भारी मतभेद पाया जाता था । यह धर्म सिद्धान्त थे । चीनी यात्री लिखता है कि हर्ष ने ” महायान ” वर्ग के प्रचार में बहुत योगदान दिया । उसके अनुसार बौद्धों के कपिलवस्तु और गया जैसे तीर्थ स्थान लगभग उजड़ चुके थे । फिर भी देश के अन्य भागों में अनेक बौद्ध मठ विद्यमान थे । इन मठों में हजारों भिक्षु निवास करते थे । –
- हिन्दू धर्म-Hinduism – ह्यूनसांग लिखता है कि गुप्तकाल से हिन्दू धर्म निरन्तर उन्नति की ओर जा रहा था । चीन में भारत को ब्राह्मणों का देश माना जाता था । हिन्दुओं की भाषा संस्कृत भारत में काफ़ी लोकप्रिय थी । चीनी यात्री के अनुसार इस भाषा की रचना मनुष्य ने नहीं , अपितु ब्रह्मा ने की थी ।
- शिक्षा प्रणाली के सम्बन्ध में -About Educational System- ह्यूनसांग ने उस समय की शिक्षा प्रणाली के विषय में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है । वह लिखता है कि आरम्भिक शिक्षा के केन्द्र ब्राह्मणों के घर अथवा छोटे – छोटे मन्दिर थे । उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए मठों में जाना पड़ता था । प्रत्येक मठ में अलग – अलग विषय पढ़ाए जाते थे । उनके अनुसार तक्षशिला का मठ चिकित्सा विज्ञान तथा गया का मठ धर्म की शिक्षा के लिए विख्यात था । उसने नालन्दा विश्वविद्यालय को शिक्षा का सबसे बड़ा केन्द्र बताया है । वह लिखता है कि यहां लगभग 10,000 छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे । इसमें 1,510 अध्यापक थे । ह्यूनसांग ने स्वयं भी इस विश्वविद्यालय में पांच वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की । ( नोट -नालन्दा विश्वविद्यालय का विस्तृत वर्णन नालन्दा विश्वविद्यालय वाले प्रश्न में अलग से दिया गया – है । )
कला के विषय में -About Art
ह्यूनसांग ने उस समय की निर्माण कला की बड़ी सराहना की है । वह लिखता है कि मठों को बहुत ही सुन्दर ढंग से बनाया गया था । प्रत्येक मठ के चारों किनारों पर एक बुर्ज था । भवन के मध्य एक बहुत ही खुला और विशाल कमरा होता था । इन मठों के दरवाज़े पूर्व की ओर खुलते थे । इनके दरवाजों , खिड़कियों और दीवारों पर बड़ी आकर्षक चित्रकारी की गई थी । सच तो यह है कि ह्यूनसांग इतिहासकारों तथा बौद्ध धर्म के लिए एक वरदान सिद्ध हुआ है । उसने बौद्ध धर्म के अनेक ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद किया । उसकी मृत्यु पर चीन के सम्राट् ने दुःख प्रकट करते हुए कहा था , ” ह्यूनसांग की मृत्यु एक महान् क्षति है , जो शताब्दियों तक पूरी नहीं हो सकेगी ।