1955 के अन्तर्गत किन आधारों पर न्यायालय से तलाक की डिक्री पति और पत्नी द्वारा प्राप्त की जा सकती है
हिन्दू विवाह अधिनियम , 1955 के अन्तर्गत किन आधारों पर न्यायालय से तलाक की डिक्री पति और पत्नी द्वारा प्राप्त की जा सकती है | On what grounds Court may pass decree for divorce under Hindu Marriage Act , 1955
तलाक ( Divorce ) – हिन्दू विधि में विवाह – विच्छेद का कोई प्रावधान नहीं था क्योंकि विवाह एक आवश्यक संस्कार माना जाता था परन्तु वर्तमान हिन्दू विधि ( हिन्दू विवाह अधिनियम , 1955 ) ने तलाक के सम्बन्ध में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया है । अधिनियम की धारा 13 में उन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जिनके आधार पर तलाक की डिक्री ( Decree ) प्राप्त की जा सकती है ।
तलाक के आधार ( Grounds of divorce ) – वे आधार जो पति – पत्नी को समान रूप से प्राप्त हैं
( 1 ) जारता ( Adultery ) – विवाह के किसी पक्षकार के लिए विवाह – विच्छेद का प्रथम आधार यह है कि दूसरे पक्षकार ने विवाह के अनुष्ठान के पश्चात् अपनी पत्नी या पति से भिन्न किसी व्यक्ति के साथ स्वेच्छा से मैथुन ( सम्भोग ) कर रहा है . पति अथवा पत्नी का क्रमशः अपनी पत्नी और पति से भिन्न किसी व्यक्ति से यौन सम्बन्ध बनाये रखता है । यह वैवाहिक सम्बन्धों के विघटन का सबसे बड़ा आधार है । इसलिए ही इसे विवाह – विच्छेद का सर्वप्रथम आधार माना गया है ।
[ धारा 13 ( 1 ) खण्ड ( 1 ) ]
थिमप्पा दसप्पा बनाम थिमप्पा फोक थिम्पपा के वाद में प्राय : पत्नी घर से अनुपस्थित रहा करती थी वह अजनबी व्यक्तियों के साथ पाई गई । वह उन व्यक्तियों के साथ अनेक स्थानों पर तथा उनके कमरे में पाई गई कोई जबाव नहीं था । पति द्वारा तलाक की याचिका लाये जाने पर न्यायालय ने यह कहा कि । उन व्यक्तियों के साथ घूमने के लिए उनके पास ऐसी स्थिति में पत्नी की जारता की दशा स्वीकार कर ली जायेगी और उसे तलाक की डिक्री प्रदान कर दी गई ।
( 2 ) क्रूरता ( Cruelity ) – तलाक का दूसरा आधार यह है कि दूसरे पक्षकार ने विवाह के अनुष्ठान के पश्चात् याची के साथ क्रूरता का व्यवहार किया है । [ 13( 1 ) तलाक का यह आधार नया है जो संशोधित अधिनियम , 1976 द्वारा जोड़ा गया है ।] क्रूरता शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार की हो सकती है । क्रूरता केवल शारीरिक आघात नहीं है वरन् मानसिक उत्पीड़न भी क्रूरता है । न्यायालय क्रूरता का निर्धारण प्रत्येक मुकदमे की परिस्थिति को ध्यान में रखकर करता है ।
रमेश चन्द्र बनाम श्रीमती सावित्री के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि जहाँ विवाह व्यावहारिक तथा भावनात्मक रूप से टूट गया है , पत्नी तथा सन्तान के प्रति दायित्वों का निर्वाह पति नहीं कर रहा है वहाँ ऐसे विवाह को कायम रखना पत्नी के प्रति क्रूरता होगी ।
राजन बसन्त रेवान्कर बनाम शोध राजन के मामले में अभी हाल में बम्बई उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि पत्नी द्वारा पति की माँ , बहिन एवं उसके भाई के विरुद्ध गलत , गम्भीर दोषारण बार – बार करना तथा पति द्वारा याचिका दायर करने के बाद भी निश्चित अभिकथन में अनेक प्रकार के गम्भीर चारित्रिक आरोप लगाना पति के प्रति क्रूरता है जिसमें पति को उसके प्रति विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का अधिकार हो जायेगा ।
( 3 ) अभित्याग ( Desertion ) – विवाह – विच्छेद याची प्रस्तुत किये जाने से ठीक पूर्व कम से कम 2 वर्ष तक हो । इस स्थिति में अभित्याग तलाक का आधार बन सकता है । का तीसरा आधार अभित्याग है जहाँ लगातार अभित्याग किया गया
( 4 ) धर्म परिवर्तन ( Conversion ) – धर्म परिवर्तन विवाह – विच्छेद का चौथा आधार . है । यदि प्रत्युत्तरदाता धर्म परिवर्तन द्वारा हिन्दू नहीं रह गया तो याची इस आधार पर तलाक की डिक्री प्राप्त कर सकता है । धर्म परिवर्तन से विवाह – विच्छेद स्वतः नहीं हो जाता । याची को इसके लिए याचिका दायर करके डिक्री प्राप्त कर लेनी चाहिए डिक्री के बाद ही विवाह विच्छेद होगा ।
( 5 ) मस्तिष्क की विकृतता ( Unsoundness of Mind ) – विवाह – विच्छेद का पाँचवाँ आधार मस्तिष्क की विकृतता है । ” जब विवाह को दूसरा पक्षकार साध्य रूप के विकृत चित्त रहा है या लगातार या आवश्यक रूप से इस किस्म के और इस हद तक मानसिक विचार से पीड़ित रहा है कि याची से युक्तियुक्त रूप से यह आशा नहीं की जा सकती है कि वह प्रत्युत्तरदाता – के साथ रहे तब याची तलाक की डिक्री प्राप्त करने के लिए अर्जी फाइल कर सकता है ।
व्याख्या — इस खण्ड में मानसिक विकास का तात्पर्य मानसिक बीमारी , मस्तिष्क का अपूर्ण तथा बन्धित विकास , मनोवैज्ञानिक विकास अथवा अन्य मानसिक विकार अथवा अशक्तता से है जिसमें विखण्डित मानसिकता भी सम्मिलित है । जहाँ पत्नी ने विवाह – विच्छेद की याचिका इस आधार पर प्रस्तुत की है कि उसका पति मस्तिष्क विकृतता से पीड़ित है और पति ने न्यायालय के आदेश के बावजूद भी मेडीकल जाँच . नहीं करवायी । न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि ऐसी स्थिति में पति की मानसिक विकृतता का निष्कर्ष निकाला जायेगा और पत्नी को विवाह विच्छेद की डिक्री प्रदान कर दी जायेगी ।
( ए . आई . आर . 1973 पं . और हरि , 271 )
( 6 ) कोढ़ ( Leprosy ) – विवाह – विच्छेद का छठवाँ आधार प्रत्युत्तरदाता का असाध्य कुष्ठ रोग से ग्रसित होना है । विवाह के एक पक्षकार का उग्र और असाध्य कुष्ठ रोग से पीड़ित रहना दूसरे पक्षकार को विवाह – विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का अधिकारी बनाता है ।
( 7 ) यौन रोग ( Venereal disease ) – विवाह का कोई पक्षकार दूसरे पक्षकार के संक्रामक यौन रोग से पीड़ित होने के आधार पर तलाक की डिक्री प्राप्त कर सकता है । शब्द ‘ रति जन्य रोग ‘ से तात्पर्य उस रोग से है जो युगल में से किसी एक को हो जाने पर मैथुन द्वारा दूसरों को भी हो जाय ; जैसे गर्मी ( Syphilis ) , सुजाक आदि ।
( 8 ) संसार परित्याग ( Renunciation of World ) – जब विवाह का कोई पक्षकार संसार का परित्याग करके संन्यास धारण कर लेता है तो दूसरा पक्षकार इस आधार पर तलाक की डिक्री प्राप्त कर सकता है । ऐसी स्थिति में दूसरे का संन्यास ग्रहण करना उसकी सिविल मृत्यु मानी जाती है । ऐसी स्थिति में दूसरे पक्षकार का विवाह के बन्धन से मुक्त होने का अधिकार होता है । में सात वर्ष या इससे अधिक की कालाविधि में उन लोगों के द्वारा इसका जीवित होना नहीं
( 9 ) प्रकल्पित मृत्यु ( Presumed Death ) – यदि “ विवाह के किसी पक्षकार के बारे सुना गया है जो उसके सम्बन्धी हैं और जिन्हें यदि यह व्यक्ति जीवित होता है तो उसके जीवित होने का ज्ञान होता है तो विवाह के दूसरे पक्षकार के लिए विवाह – विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का आधार प्राप्त हो जाता है । इस प्रकार 7 वर्षों के बाद कानून उसकी मृत्यु प्रकल्पित करता है ।
( 10 ) न्यायिक पृथक्करण ( Judicial Separation ) – यदि विवाह के दूसरे पक्षकार जब कम – से – कम एक वर्ष या इससे अधिक समय तक न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के बाद उस व्यक्ति के साथ सहवास पुनारम्भ न किया हो जिसके विरुद्ध डिक्री प्राप्त की गई है तो उसे अवस्था में तलाक याचिका प्रस्तुत की जा सकती है ।
( 11 ) दाम्पत्य अधिकार के पुनर्स्थापना की डिक्री का पालन न करना — जब विवाह का दूसरा पक्ष दाम्पत्य अधिकार की पुनः स्थापना की डिक्री पूर्ति करने को हो तो डिक्री प्राप्त होने के पश्चात् एक वर्ष या इससे अधिक समय तक असफल रहा तो उस दशा में भी विवाह का पक्षकार विवाह – विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता हैं ।
उपर्युक्त आधार जो पति – पत्नी को समान रूप से उपलब्ध हैं । परन्तु इन आधारों के अतिरिक्त पत्नी को विवाह – विच्छेद के चार और आधार उपलब्ध हैं । ये आधार निम्नलिखित हैं –
( a ) पति द्वारा बहु – विवाह ( Bigamy ) – पत्नी विवाह – विच्छेद के लिए तलाक याचिका इस आधार पर प्रस्तुत कर सकती है कि ” पति ने अधिनियम ( Marriage Act ) के प्रारम्भ होने के पूर्व विवाह कर लिया था , अथवा विवाह में पूर्व पति विवाह की कोई पत्नी विवाह के समय जीवित थी । यह विवाह – विच्छेद का आधार भी लागू होगा जबकि पति की दूसरी पत्नी याचिका प्रस्तुत करने के समय जीवित हो । मण्डल नगम्मा बनाम लक्ष्मीबाई के बाद में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि “ जहाँ तलाक की याचिका इस आधार पर प्रस्तुत की गई है . कि पति ने दूसरा विवाह कर लिया है , वहाँ यह बात कि याचिका प्रस्तुत करने के बाद पति ने दूसरे विवाह की पत्नी को तलाक दे दिया , प्रथम पत्नी के तलाक की याचिका खारिज नहीं करा सकती है ।
( b ) पति द्वारा बलात्कार ( Rape ) , गुदा मैथुन ( Sedomy ) अथवा पशुगमन ( Bestiality ) – पति द्वारा विवाह के पश्चात् किया गया बलात्कार , गुदा मैथुन या पशुगमन पत्नी के लिए विवाह – विच्छेद का एक आधार होता है । “ यदि पति बलात्कार , गुदा मैथुन अथवा पशुगमन के अपराध का दोषी हो तो इन आधारों पर पत्नी तलाक की डिक्री प्राप्त कर सकती है । ” बलात्कार की परिभाषा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 तथा गुदा मैथुन एवं पशुगमन की परिभाषा धारा 377 में दी गई है ।
( c ) भरण – पोषण का आदेश यह आधार 1976 के संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया है । इसके अधीन यह उपबन्धित किया गया है कि जहां हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण – पोषण अधिनियम की धारा 18 के अन्तर्गत अथवा दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के अधीन दावा दायर किये जाने पर कोई डिक्री अथवा आदेश प्रति के भरण – पोषण देने के सम्बन्ध इस बात के होते हुए भी पास हो गया है कि वह अलग रहती थी और ऐसी डिक्री या आदेश के पास किये जाने के समय के पक्षकारों में एक वर्ष या उससे अधिक समय तक सहवास का पुनः आरम्भ नहीं है , पत्नी उस स्थिति में तलाक ले सकती है । में
( d ) विवाह का निराकरण – यह आधार भी 1976 के संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा विवाहोत्तर संभोग हुआ हो या नहीं ) और उसने उस आयु का पूरा करने के बाद किन्तु 18 गया है । इसके अनुसार ‘ जहाँ पत्नी का विवाह 15 वर्ष की आयु के पूर्व हो गया हो ( चाहे की आयु का पूरा करने के पूर्व ही विवाह निराकृत कर दिया जाता है , वहाँ पत्नी को उस आधार पर तलाक की डिक्री पाने का अधिकार हो जाता है ।
पारस्परिक सम्पत्ति से विवाह – विच्छेद – विवाह विधि संशोधन अधिनियम , 1976 की धारा 13 ( ख ) के अन्तर्गत विवाह के पक्षकार पारस्परिक सहमति से विवाह का विघटन कर सकते हैं परन्तु शर्त यह है कि उन्हें एक वर्ष या इससे अधिक समय तक एक साथ नहीं रहना चाहिए ।
संशोधन अधिनियम , 1976 के अन्तर्गत धारा 13 ( क ) दी गई है जिसके अनुसार , ” यदि विवाह अनुच्छेद की याचिका दायर की गई है तो धारा 13 के अधीन कई परिवर्तन संसार परित्याग तथा प्रकल्पित मृत्यु के आधारों को छोड़कर , यदि न्यायालय याचिका के प्रकथन से है तो विवाह – विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकता है ।
के . कृष्णा मूर्ति राव बनाम कमलासी के वाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि इस धारा के अधीन पति – पत्नी द्वारा संयुक्त याचिका दायर करने पर निम्नलिखित बातें साबित की जाती हैं
( 1 ) विवाह के पक्षकार एक वर्ष अथवा 2 वर्ष से अधिक समय – अलग रह रहे हैं ।
( 2 ) वे आपस में एक साथ नहीं रह सकते थे ।
( 3 ) उन्होंने आपस में यह समझौता कर लिया कि वे विवाह – विच्छेद करने तथा
( 4 ) उन्होंने विवाह – विच्छेद की सहमति किसी जोर , दबाव अथवा कष्ट अथवा ब प्रभाव में आकर नहीं दिया । इन मामलों में न्यायालय को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि पत्नी की सहमति जोर – दबाव में अथवा प्रभाव में डालकर नहीं ली गई है । न्यायालय का यह दायित्व और भी बढ़ जाता है जहाँ विवाह पक्षकार विशेषकर पत्नी अशिक्षित है ।