द्वितीय नगरीकरण क्या है
द्वितीय नगरीकरण क्या है
नगर किसे कहते हैं-
द्वितीय नगरीकरण में नगर किसे कहते हैं इसकी कोई एक परिभाषा देना बहुत कठिन है । मुख्या रूप से नगर उसे कहते हैं जिसके अधीन एक विशाल क्षेत्र हो , जहां बहुत सारी जनसंख्या हो , जहां यातायात एवं संचार के साधन अच्छे हों , जहां लोगों को प्रत्येक प्रकार सुविधाएं प्राप्त हों , जहां के लोग पक्के मकानों में रहते हों , जहां की सड़कें पक्की हों , जो व्यापार के मुख्या केन्द्र हों तथा लोगों को पूर्ण सुरक्षा प्राप्त हो । नगर अनेक प्रकार के होते हैं जैसे धार्मिक,प्रशासनिक एवं व्यापारिक |
द्वितीय नगरीकरण से क्या अभिप्राय है – Meaning of Second Urbanization
प्राचीन भारत में नगरों के उदय एवं विकास की प्रक्रिया को नगरीकरण की संज्ञा दी जाती है । नगरों का अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है कि भारत में नगरों का उदय सर्वप्रथम हड़प्पा संस्कृति के दौरान हुआ । हड़प्पा सभ्यता भारत की प्रथम भारतीय सभ्यता थी । इस सभ्यता के दौरान बड़े ही सुनियोजित नगर बनाए गए थे उसे द्वितीय नगरीकरण कहते है ।
हड़प्पा सभ्यता के पतन के पश्चात् एक लम्बे अन्तराल तक नगरों के अस्तित्व के सम्बन्ध में हमें कोई प्रमाण प्राप्त नहीं है । ऋग्वैदिक सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी । उत्तर वैदिक काल आर्य सभ्यता का एक अत्यन्त परिवर्तनशील काल था । इस काल में भारत में अनेक नगरों का जन्म हुआ । इस काल में हुए नगरों के उदय को द्वितीय नगरीकरण कहा जाता है ।
नगरों के उत्थान के कारण – Causes of the Rise of Towns
उत्तर वैदिक काल भारत में नगरों के उत्थान के लिए अनेक कारण महत्वपूर्ण थे । जो इस प्रकार है
1. लोहे की खोज – Discovery of Iron – प्राचीन भारत में 1700 ई ० पू ० में लोहे की खोज कर ली गई थी । लोहे की खोज ने भारत में नगरों के उत्थान में बहुत अधिक योगदान दिया । मध्य गंगा के मैदानी इलाकों में भारी वर्षा एवं जलोढ़ मिट्टी के कारण विशाल जंगल पाए जाते थे । इन जंगलों को पत्थर एवं कांसे के औज़ारों से साफ़ करना अत्यन्त कठिन था । लोहे की कुल्हाड़ी से इन वनों की सफ़ाई करना सुगम हो गया ।
लोहे के व्यापक पैमाने पर प्रयोग के कारण विशाल भूमि को खेती योग्य बनाया गया । इससे आवश्यकता से अधिक उत्पादन होने लगा । लोहे के प्रयोग के कारण उद्योग – धन्धों का क्रान्तिकारी विकास हुआ । इससे नगरों के उदय का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
2. शिक्षा – Education – शिक्षा के कारण भी अनेक नगरों का उदय हुआ । प्राचीन काल भारत में तक्षशिला , काशी , नालन्दा एवं विक्रमशिला शिक्षा के प्रख्यात केन्द्र थे । यहां शिक्षा प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में विद्यार्थी न केवल भारत के विभिन्न भागों अपितु विदेशों से भी आते थे । इन विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए बहुत से शिक्षक भी नियुक्त किए जाते थे ।
इनके आवास के लिए वहां भवनों का निर्माण किया जाता था तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वहां बाज़ार खोले जाते थे । शिक्षा के प्रसार के साथ – साथ ये स्थान विशाल नगरों का रूप धारण कर गए ।
3. व्यापार – Trade – नगरों के विकास में व्यापार का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान था । भारत की आर्थिक समृद्धि का एक प्रमुख कारण उसका आन्तरिक एवं विदेशी व्यापार रहा है । अतः भारतीय व्यापारी उन प्रमुख व्यापारिक मार्गों एवं बन्दरगाहों के निकट बसने लगे वहां से उन्हें सुविधापूर्वक कच्चा माल मिल सकता था तथा तैयार माल भेजा जा सकता था । शीघ्र ही इन स्थानों पर बढ़ई , लुहार , जुलाहे , धोबी , नाई तथा दर्जी आदि भी आकर बस गए । इसका कारण यह था कि इन स्थानों पर इन वर्गों की बहुत मांग थी । कालांतर में ये बस्तियां नगरों का रूप धारण कर गईं ।
4. भौगोलिक स्थिति – Geographical Location — नगरों के उदय एवं विकास में भौगोलिक स्थिति का महत्त्व किसी प्रकार कम नहीं है । नगरों का विकास उन स्थानों पर हुआ जहां की भूमि काफ़ी उपजाऊ थी , वर्षा सन्तोषजनक होती थी । सिंचाई के साधन उपलब्ध होते थे , बाढ़ अथवा सूखे की सम्भावना नहीं होती थी , कच्चा माल सुविधापूर्वक उपलब्ध होता था तथा तैयार माल आसानी से बिक जाता था , एवं जहां यातायात के साधन पर्याप्त मात्रा में विकसित होते थे ।
5. प्रशासनिक आवश्यकताएं – Administrative Necessities — प्रशासनिक आवश्यकताओं के कारण भी नगरों का विकास हुआ । प्रशासनिक नगर वे नगर होते थे जहां राजा , राजपरिवार तथा अनेकों प्रशासनिक अधिकारी रहते थे । ऐसे नगरों का विकास राजा की सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया जाता था । दूसरा , ये स्थान ऐसा होता था जहां से सम्पूर्ण राज्य पर प्रशासनिक निगरानी रखी जा सकती थी । राजा , सैनिक एवं अन्य अधिकारियों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए यहां कई उद्योग स्थापित हो जाते थे तथा दुकानें खुल जाती थीं । युद्ध के दिनों में ऐसे नगरों का महत्त्व और भी बढ़ जाता था । धीरे – धीरे ये स्थान बड़े बड़े नगरों में परिवर्तित हो जाते थे
6. जनसंख्या में वृद्धि – Increase in Population – प्राचीन भारत में अधिकतर जनसंख्या गांवों में रहती थी । धीरे – धीरे गांवों में जनसंख्या में वृद्धि होने लगी । इससे गांवों में बेकारी फैलने लगी । अतः रोज़गार की तलाश में लोगों ने नए स्थानों की ओर जाना आरम्भ कर दिया । इन नए स्थानों पर भिन्न – भिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित लोगों ने आकर बसना आरम्भ कर दिया । इस कारण लोगों को विभिन्न प्रकार की सुविधाएं एक ही स्थान में मिलने लगीं । धीरे – धीरे इन स्थानों पर विस्तार होने लगा तथा ये स्थान नगरों का रूप धारण कर गए ।
7. राजाओं के प्रयास – Efforts of the Kings – प्राचीन भारत के अनेक शासक भी नए नगरों के निर्माण में रुचि रखते थे । अत : उन्होंने नए नगरों के निर्माण के लिए धन दिया । उदाहरण के लिए बिम्बिसार ने राजगृह , उद्यन ने पाटलिपुत्र , अशोक ने श्रीनगर एवं ललितापटनम , कनिष्क ने कनिष्कपुर तथा हुविष्क ने हुविष्कपुर की स्थापना की । इस प्रकार अनेक नवीन नगर अस्तित्व में आए ।
8. धर्म – Religion – नगरों के विकास में धर्म ने निस्सन्देह उल्लेखनीय भूमिका निभाई । शासकों एवं बड़े – बड़े जागीरदारों के कारण प्राचीन भारत में अनेक विशाल एवं भव्य मन्दिरों , मठों एवं विहारों का निमार्ण हुआ । इनके निर्माण में कई – कई वर्ष लग जाते थे । अतः बड़ी संख्या में कारीगर , शिल्पकार एवं मज़दूर वहां आकर बसने लगे ।
इनके अतिरिक्त इन पूजा स्थलों की देख – भाल के लिए बड़ी संख्या में पुजारी , संगीतकार , गायक , देवदासियां आदि नियुक्त की जाने लगीं । इन पूजा स्थलों के दर्शनों के लिए दूर – दूर से यात्री आने लगे । ये यात्री बड़ी मात्रा में दान देते । इन यात्रियों की सुविधा के लिए यात्री निवासों का निर्माण किया गया । उनकी सुविधा के लिए वहां दुकानें भी खुल थे गईं । बाद में ये स्थान नगरों में परिवर्तित हो गए ।
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नगरों का पतन – Decline of the Towns
द्वितीय नगरीकरण का पतन-
200 ई ० पू ० के बाद प्राचीन भारत के अनेक नगरों का पतन हो गया । इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे । इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं-
- इस समय भारत का रोमन साम्राज्य एवं मध्य एशिया के साथ होने वाले • व्यापार में बहुत कमी आ गई । इसका नगरीय जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा ।
- प्रशासनिक समस्याओं के समाधान के लिए अनेक शासक अपनी राजधानी बदल लेते थे । इससे पुरानी राजधानी साथ – साथ अनेक व्यापारिक नगरों का महत्त्व कम हो गया । इस कारण उन नगरों लगभग उजड़ जाती थी ।
- समय के का पतन हो गया
- इस समय उत्तरी भारत में कुषाण साम्राज्य का तथा दक्षिणी भारत में सातवाहन साम्राज्य का अन्त हुआ । इन दोनों साम्राज्यों के समय भारत में अनेक नगर फलते – फूलते रहे । इन साम्राज्यों के पतन के कारण अनेक नगर भी अपना अस्तित्व खो बैठे ।
- गुप्तोत्तर काल में भारत में कृषि का बड़े पैमाने पर प्रसार हुआ । इससे ग्रामीण क्षेत्रों का विस्तार हुआ । अतः जीविका की तालाश में अनेक लोग नगरों को छोड़ कर गांवों की ओर जाने लगे ।
- नदियों में आने वाली बाढ़ों के कारण या सूखा पड़ जाने के कारण अनेक नगर नष्ट हो गए ।
- विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत के अनेक नगरों को बर्बाद कर दिया ।
- साम्राज्यों के पतन के कारण अनेक कारीगर एवं ब्राह्मण नगरों को छोड़ कर देहातों को चले गए । इससे नगरों को गहरा धक्का लगा ।
- परस्पर आक्रमणों के दौरान विभिन्न राजाओं ने एक – दूसरे के नगरों को उजाड़ डाला ।
- राजकीय संरक्षण के अभाव के कारण भी अनेक नगर समाप्त हो गए ।