हिन्दू विधि के अन्तर्गत एक वैध गोद हेतु क्या – क्या आवश्यकताएँ हैं ?

हिन्दू विधि के अन्तर्गत एक वैध गोद हेतु क्या – क्या आवश्यकताएँ हैं ? What are the essentials of a valid adoption under Hindu Law ? 

दत्तक ग्रहण ( Adoption ) – मनु के अनुसारदत्तक ग्रहण ( Adoption ) किसी पुत्र के अभाव में एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है । दत्तक ग्रहण ( Adoption )  से हमारा अभिप्राय है ” किसी पुत्र को उसके माता – पिता के घर से दत्तक ग्रहण ( Adoption ) करने वाले व्यक्ति के घर में उसके पुत्र के रूप में नियोज करना है जिसके अनुसार यह समझा जाता है कि दत्तक ग्रहण में ग्रहीत पुत्र का दत्तक ग्रहण ( Adoption )  करने वाले पिता के घर फिर से जन्म हुआ तथा पूर्व पिता के घर से उसका सम्बन्ध विच्छिन्न हो गया है ।

मनु  के अनुसार , “ वह पुत्र जिसे उसके माता – पिता किसी ऐसे व्यक्ति को पुत्र दान कर देते हैं , जो पुत्रहीन है तथा प्रदत्त पुत्र की जाति का हो , तथा विधि के साथ स्नेहपूर्वक गया हो , तो दत्तक पुत्र माना जाता है ।

धार्मिक उद्देश्य गौण है , बौद्धायन के अनुसारदत्तक ग्रहण ( Adoption ) करने वाला पुत्र को इस प्रकार के शब्दों से ग्रहण करता है- ” मैं तुमको धार्मिक क्रियाओं की पूर्ति के लिए ग्रहण करता हूँ , मैं तुमको अपने पूर्वजों की श्रृंखला को बनाये रखने के लिए ग्रहण करता हूँ । ” दत्तक मीमांसा में दत्तक ग्रहण में ले लेना चाहिए यह कहा गया है कि ” पितरों को पिण्डदान , जलदान देने तथा धार्मिक संस्कार को पूरा करने के लिए एवं अपने नाम को कायम रखने के लिए एक व्यक्ति को यदि वह पुत्रहीन है ।

” दत्तक चन्द्रिका में यह कहा गया है कि हो , वहाँ भी एक पुत्र को ग्रहण कर लेना चाहिए जिससे अपना नाम चल सके तथा वंश परम्परा चलती रहे । वस्तुतः दत्तक ग्रहण के सब प्राचीन दृष्टान्त जो प्राप्त होते हैं , उनमें पुत्रियों को भी दत्तक में ग्रहण किया जाता है , जिससे यह सिद्ध होता है कि दत्तक ग्रहण में धार्मिक दृष्टिकोण भौतिक दृष्टिकोण को बहिष्कृत न कर सका ।

नरसिंह बनाम पार्थसारथी अप्पाराव के वाद के प्रिवी कौंसिल ने यह कहा है कि किसी पुत्र को ग्रहण करने के अधिकार सम्बन्धी इच्छा – पत्र को समझने के लिए धार्मिक दृष्टिकोण की सहायता देना आवश्यक नहीं है । किन्तु अमरेन्द्र मानसिंह बनाम सन्तान सिंह में प्रिंसी कौंसिल ने पुत्र की पूर्ति की भावना में धार्मिक दृष्टिकोण के सिद्धान्त को सन्निहित माना । इस वाद में यह कहा गया है कि “यह स्पष्ट है कि दत्तक ग्रहण ब्राह्मणवादी सिद्धान्त का आधार प्रत्येक हिन्द का अपने पूर्वजों के प्रति कर्तव्यों की पूर्ति करना है जिसमें वंश श्रृंखला को कायम रखना तथा आवश्यक संस्कारों को सम्पन्न करना सम्मिलित हैं।

इस प्रकार दत्तक़-ग्रहण में माता-पिता द्वारा अपने पुत्र का दान कर दिया जाता है। का अर्थ है प्राकृतिक परिवार से अवयस्क को समूल उखड़ कर दत्तक लेने वाले परिवार में रोपण करना जिसका तात्पर्य होता है कि दत्तक परिवार में उसकी सब नातेदारियाँ स्थापित हो गई हैं। और प्राकृतिक परिवार से सब नातेदारियाँ समाप्त हो जाती हैं। प्राकृतिक परिवार से इतना सम्बन्ध अवश्य रह जाता है कि वह प्राकृतिक परिवार की किसी स्त्री से विवाह नहीं करता है। जिससे दत्तक के पूर्व नहीं कर सकता था।

वैध दत्तक ग्रहण के लिये आवश्यकताएँ –

दत्तक हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 6 में वैध दत्तक ग्रहण के लिये निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना आवश्यक है—

(1) गोद लेने वाले व्यक्ति में गोद लेने की क्षमता और उसका अधिकार होना चाहिए। (2) दत्तक ग्रहण में देने वाले व्यक्ति में वैसा करने की क्षमता होनी चाहिए।

(3) दत्तक ग्रहण में दिया जाने वाला बालक दत्तक ग्रहण में लेने के योग्य होना चाहिए। (4) हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 11 में विहित अन्य शर्तों को पूरा किया गया हो ।

दत्तक ग्रहण ( Adoption )
दत्तक ग्रहण ( Adoption )

 

(1) गोद लेने की क्षमता (Capacity of a male to take Adoption) – हिन्दू दत्तक ग्रहण तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 7 के अनुसार कोई भी स्वस्थ चित्त वाला हिन्दू, यदि अवयस्क नहीं है, किसी पुत्र अथवा पुत्री को दत्तक ग्रहण में ले सकता है।

परन्तु यदि उसकी पत्नी जीवित है तो जब तक कि पत्नी ने पूर्ण तथा अन्तिम रूप से संसार को त्याग न दिया हो अथवा हिन्दू न रह गई हो अथवा सक्षम क्षेत्राधिकार वाले किसी “न्यायालय द्वारा विकृत चित्त वाली घोषित कर दी गई हो तब तक वह अपनी पत्नी की सहमति के बिना ग्रहण नहीं करेगा ।

स्पष्टीकरण – यदि किसी व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियाँ दत्तक ग्रहण के समय जीवित हैं तो जब तक कि पूर्ववर्ती परन्तुक में विनिर्दिष्ट कारणों में से किसी के लिए उनमें से किसी एक की सम्मति अनावश्यक न होकर, सब पत्नियों की सम्मति आवश्यक होगी।

इस प्रकार किसी भी हिन्दू पुरुष को दत्तक ग्रहण के योग्य होने के लिए दो शर्तों को पूरा करना चाहिए—

(1) उसे वयस्क होना चाहिये ।

(2) उसे स्वस्थ चित्त का होना चाहिए।

इसके अलावा यदि ऐसे गोद लेने वाले व्यक्ति की पत्नी जीवित है तो उसकी सहमति लेना आवश्यक होगी, परन्तु निम्नलिखित दशाओं में सहमति आवश्यक नहीं है—

( 1 ) यदि पत्नी पूर्ण अथवा अन्तिम रूप से संसार से विलग हो गई है ; अथवा ।

( 2 ) वह हिन्दू नहीं रह गई है ; अथवा

( 3 ) किसी सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय ने उसे विकृत – चित्त घोषित कर दिया हो ।

यदि किसी के एक से अधिक पत्नियाँ हैं तो उस पत्नी की सम्मति लेना आवश्यक नहीं है जो उपर्युक्त शर्तों से किसी के भी अन्तर्गत आती है ।

एक नवीनतम वाद भोलूराम बनाम राम लाल  के वाद में उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णित किया गया है कि “ जहाँ एक बालक गोद लिया गया एक पत्नी की सहमति प्राप्त कर ली गई परन्तु दूसरी पत्नी जो अलग रह रही थी उसकी सहमति नहीं ली गई । ऐसी परिस्थिति में गोद अवैध हो जायेगा क्योंकि दूसरी पत्नी की सम्मति भी आवश्यक थी ।

” जहाँ पति – पत्नी के मध्य न्यायिक पृथक्करण की आज्ञप्ति हो चुकी है , वहाँ भी पत्नी की सहमति के बिना पति दत्तक ग्रहण नहीं कर सकता । क्योंकि न्यायिक पृथक्करण से विवाह विच्छेद नहीं होता । किन्तु शून्य विवाह के अन्तर्गत पत्नी की सहमति की कोई आ नहीं है क्योंकि उस स्थिति में पत्नी का वैध पत्नी नहीं होती ।

हिन्दू स्त्री की गोद लेने की क्षमता ( Capacity of a Female to take Adoption ) – इस अधिनियम के द्वारा स्त्रियों को भी दत्तक का अधिकार प्रदान किया गया है । अधिनियम की धारा 8 हिन्दू नारी की गोद लेने की क्षमता के बारे में उपबन्धित है । इसके अनुसार कोई भी हिन्दू नारी जो

( क ) स्वस्थ चित्त हैं , ( ख ) अवयस्क नहीं है ,

( ग ) विवाहिता नहीं है या यदि विवाहिता है , तो उसका विवाह विघटित कर दिया गया है , जिसका पति मर चुका है या पूर्ण रूप से अन्तिम रूप से संसार का त्याग कर चुका है . या हिन्दू नहीं रह गया है या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित कर दिया है कि वह विकृत चित्त का है । वह पुत्र या पुत्री को दत्तक लेने की सामर्थ्य रखती है ।

( 2 ) दत्तक ग्रहण में देने में समर्थ व्यक्ति — हिंन्दू दत्तक ग्रहण तथा भरण – पोषण • अधिनियम , 1956 की धारा 9 के अन्तर्गत उन व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है जो दत्तक ग्रहण में बालक को देने के लिए सक्षम है । धारा 9 इस प्रकार है

( i ) बालक की माता अथवा पिता अथवा पिता या संरक्षक के सिवाय कोई भी व्यक्ति बालक को दत्तक ग्रहण में देने के लिए समर्थ नहीं है ।

( ii ) यदि पिता जीवित हो तो उपधारा ( 3 ) और उपधारा ( 4 ) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए केवल उसे ही दत्तक में बालक देने का अधिकार होगा किन्तु जब तक माता से पूर्ण तथा अन्तिम रूप से संसार नहीं त्याग दिया है या वह हिन्दू नहीं रह गई है अथवा सम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय द्वारा विकृत – चित्त की घोषित न कर दी गई हो , ऐसा अधिकार माता की सहमति के बिना प्रयोग में न लाया जायेगा ।

यदि पिता मर चुका है अथवा पूर्ण तथा अन्तिम रूप से संसार त्याग चुका है अथवा सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यार्यालय द्वारा विकृत मस्तिष्क का घोषित किया जा चुका है तो माता बालक को दत्तक – ग्रहण में दे सकेगी ।

( 3 ) जहां माता और पिता दोनों मर चुके हों पूर्ण और अन्तिम रूप में संसार का त्याग कर चुका हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उनके बारे में यह घोषित कर दिया हो कि वह विकृत – चित्त है या जहाँ कि अवयस्क की जनता ज्ञात न हो तो उस बालक का संरक्षक चाहे वह इच्छा – पत्र द्वारा नियुक्त संरक्षक हो अथवा न्यायालय द्वारा नियुक्त अथवा घोषित संरक्षक हो , न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा लेकर बालक को दत्तक ग्रहण में दे सकेगा ।

( 4 ) न्यायालय इस प्रकार की अनुज्ञा देने के पूर्व बालक की इच्छा तथा साझेदारी पर विचार करेगा । इसके अतरिक्त न्यायालय बालक के हितों को ध्यान में रख कर आज्ञा प्रदान करेगा । न्यायालय यह भी देखेगा कि दत्तक ग्रहण में पुत्र को देने के फलस्वरूप कोई देनगी या इनाम ऐसी किसी देनगी या इनाम के सिवाय जैसा कि न्यायालय मंजूर करे , अनुज्ञा के लिए आवेदन करने वाले ने न तो प्राप्त किया है और न प्राप्त करने का करार किया है और न किसी भी व्यक्ति से आवेदन करने वाले को किया या दिया है और न ही करने या देने के लिए करार उससे किया है ।

स्पष्टीकरण – इस धारा के प्रयोजनों के लिए

( 1 ) “ माता ” और “ पिता ” पदों के अन्तर्गत दत्तक ग्रहीता माता तथा दत्तक ग्रहीता पिता नहीं आते ।

( 2 ) ‘ संरक्षक ‘ में वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसकी देख – रेख में किसी अवयस्क का शरीर या उसका शरीर और सम्पत्ति दोनों उसके अन्तर्गत आते हैं

( क ) अवयस्क के पिता या माता की वसीयत द्वारा नियुक्त , संरक्षक तथा ।

( ख ) किसी न्यायालय द्वारा नियुक्त या घोषित संरक्षक तथा

( 3 ) न्यायालय से अभिप्राय उन नगर व्यवहार न्यायालय या जिला न्यायालय से है जिनके क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के अन्तर्गत दत्तक ग्रहण में लिया जाने वाला व्यक्ति साधारणतः निवास करता है । 4 इस प्रकर इस धारा के अन्तर्गत तीन प्रकार के व्यक्तियों को दत्तक ग्रहण में पुत्र देने का अधिकार प्राप्त है

( 1 ) प्राकृतिक पिता , ( 2 ) प्राकृतिक माता , ( 3 ) संरक्षक ( इच्छा पत्र द्वारा अथवा न्यायालय द्वारा नियुक्त किया हुआ ) या घोषित किया । 

जहाँ बालक के अविभावकों ( माता – पिता ) नहीं हों वहाँ बालक का संरक्षक ( चाहे इच्छा – पत्र • द्वारा नियुक्त किया गया हो अथवा न्यायालय द्वारा नियुक्त किया गया गया हो न्यायालय की अनुमति से बालक को दत्तक ग्रहण में दे सकता है ।

कौन गोद लिया जा सकता है— अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत उस व्यक्ति के लिए आवश्यक योग्यताओं का विवरण दिया गया है जो दत्तक ग्रहण के पात्र बनाये जा सकते हैं । धारा 10 इस प्रकार है – कोई भी व्यक्ति दत्तक के लिए जाने के योग्य न होगा जब तक * निम्नलिखित शर्तें पूरी न हों , अर्थात्

( 1 ) वह हिन्दू है , 

( 2 ) वह पहले से दत्तक नहीं लिया जा चुका या ली जा चुकी है ,

( 3 ) उसका विवाह नहीं हुआ है , तब के सिवाय जब कि पक्षकारों को लागू होने वाली कोई ऐसी रूढ़ि या प्रथा जो विवाहित व्यक्तियों का दत्तक लिया जाना अनुज्ञात करती हो ।

( 4 ) उसने 15 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है तब के सिनाय जबकि पक्षकारों को लागू होने वाली कोई ऐसी रूढ़ि या प्रथा हो जो व्यक्तियों का जिन्होंने 15 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो , दत्तक लिया जाना अनुज्ञात करती हो ।

इस प्रकार वर्तमान हिन्दू विधि के अन्तर्गत बालक अथवा बालिका किसी को भी दत्तक ग्रहण में लिया जा सकता है । उसे हिन्दू होना चाहिए । बालक और बालिका एक बार ही • दत्तक ग्रहण में लिए जा सकते हैं । इसके साथ ही उसे अविवाहित होना चाहिए किन्तु यदि ऐसी कोई प्रथा अथवा रूढ़ि किसी वर्ग में प्रचलित है तो विवाहित व्यक्ति को भी दत्तक ग्रहण लिया जा सकता है । बालक 15 वर्ष की आयु पूरी की हुई नहीं होना चाहिए किन्तु यह शर्त भी प्रथा तथा रूढ़ियों से शासित हो सकती है ।

वर्तमान विधि में एक अनाथ बालक अथवा बालिका को दत्तक ग्रहण के लिया जा सकता है । इस प्रकार के दत्तक – ग्रहण के अनाथ के संरक्षक को न्यायालय से इस आशय की अनुमति प्राप्त करनी पड़ेगी । अनुमति प्राप्त हो जाने के बाद ही अनाथ का वैध दत्तक ग्रहण किया जा सकेगा । अधिनियम के अन्तर्गत एक पागल पुत्र अथवा पुत्री को दत्तक ग्रहण कर लिया जा सकता है । ऐसे दत्तक – ग्रहण के लिए कोई विनिषेध नहीं है । 1

अन्य आवश्यक शर्तें – इस अधिनियम की धारा 11 के अनुसार प्रत्येक दत्तक ग्रहण में निम्नलिखित शर्तें पूरी होनी चाहिए

( 1 ) यदि दत्तक ग्रहण किसी पुत्र का है तो दत्तक ग्रहीता पिता अथवा माता को ( जिसके समय जीवित द्वारा दत्तक किया जा रहा हो ) कोई हिन्दू पुत्र , पौत्र अथवा प्रपौत्र दत्तक ग्रहण नहीं होनी चाहिए ।

( 2 ) यदि दत्तक ग्रहण किसी लड़की का है तो गोद लेने वाले पिता या माता के हिन्दू या लड़के की लड़की गोद लेते समय नहीं होना चाहिए ।

( 3 ) यदि दत्तक ग्रहण किसी पुरुष द्वारा किसी बालिका का किया जा रहा है तो दत्तक ग्रहीता पिता दत्तक लिये जाने वाली बालिका से आयु में कम – से – कम 21 वर्ष बड़ा होना चाहिए ।

( 4 ) यदि दत्तक ग्रहण किसी स्त्री द्वारा किया जा रहा है तथा दत्तक ग्रहण में किसी बालक • को लिया जा रहा है तो दत्तक ग्रहीता माता को दत्तक किये जाने वाले बालक से कम – से – कम 21 वर्ष बड़ा होना चाहिए । इस प्रकार इस उपधारा के अनुसार दत्तक ग्रहीता एवं दत्तक ग्रहीता की आयु में कम – से – कम 21 वर्ष का अन्तर होना आवश्यक है ।

( 5 ) एक ही बालक एक साथ दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा दत्तक नहीं लिया जा सकता ।

( 6 ) दत्तक लिये जाने वाला बालक सम्बन्धित माता – पिता या संरक्षक द्वारा या उसके अधिकार के अन्तर्गत अपने मूल परिवार से दत्तक ग्रहण वाले परिवार को हस्तान्तरित करने के है । आशय से वास्तविक रूप में दत्तक लिया और दिया जाना आवश्यक परन्तु दत्तक होम का किया जाना किसी दत्तक ग्रहण की मान्यता के लिए आवश्यक नहीं 2 होगा ।

वैध दत्तक – ग्रहण के लिए आवश्यक है कि बालक को वास्तविक रूप में गोद में देना चाहिए तथा वास्तविक रूप में लेना चाहिए ।

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