बौद्ध धर्म और जैन धर्म की तुलना
बौद्ध धर्म और जैन धर्म की तुलना-Compare and contrast Buddhism and Jainism-
धार्मिक ग्रंथों में अंतर-बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का जन्म समान वातावरण में हुआ । दोनों धर्म हिन्दू धर्म की जटिलता की प्रतिक्रिया के रूप में हमारे सम्मुख आए । अतः दोनों धर्मों में कुछ समान बातें पाया जाना स्वाभाविक ही है । परन्तु दोनों धर्मों के संस्थापक अलग – अलग थे तथा दोनों धर्मों ने भिन्न – भिन्न ढंगों से प्रचार कार्य आरम्भ किया । इसलिए दोनों धर्मों में कुछ ऐसी बातें भी पाई जाती हैं , जो अपने में मेल नहीं खातीं । इन दोनों पक्षों का वर्णन इस प्रकार
1. सिद्धान्तों में समानता ( Similarity in Principles )
1. अहिंसा पर जोर-Stress on Nonviolence— दोनों धर्मों ने अहिंसा पर विशेष बल दिया । दोनों के प्रवर्त्तकों ने लोगों को जीव – हत्या से दूर रहने का उपदेश दिया है । जीव को आघात न पहुंचाना दोनों धर्मों का मूल सिद्धान्त था । मांस भक्षण दोनों धर्मों में पाप समझा जाता था । दोनों धर्मों में स्पष्ट रूप से कहा जाता है कि मन , वचन तथा कर्म से किसी जीव को कष्ट न दो ।
2.पवित्र और सदाचारी जीवन पर जोर-Emphasis on Holy and Virtuous Life— दोनों धर्मों में पवित्र तथा सदाचारी जीवन पर बल दिया गया है । दोनों ने लोगों को इस बात की प्रेरणा दी कि वे चोरी न करें , झूठ न बोलें , किसी के लिए कटु शब्द प्रयोग न करें और न ही वह व्यभिचारी बनें । दोनों के अनुसार सदाचारी मनुष्य कर्मों के बन्धन से शीघ्र मुक्त हो जाता है ।
3. कर्मफल में विश्वास-Faith in Fruit — दोनों धर्म कर्म सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं । उनके अनुसार प्रत्येक मनुष्य को अपने अच्छे अथवा बुरे कर्मों का फल भोगना पड़ता है । प्रत्येक मनुष्य का जन्म उसके कर्मों के अनुसार होता है । कर्मों का फल भोगने के लिए ही मनुष्य बार – बार जन्म लेता है । मोक्ष अथवा निर्वाण प्राप्त करके ही मनुष्य आवागमन के चक्र से छुटकारा पा सकता है ।
4. ब्राह्मणों के वर्चस्व का विरोध-Opposition to The Domination of Brahmins— दोनों धर्म ब्राह्मणों के प्रभुत्व के विरुद्ध थे । दोनों ही ब्राह्मणों को श्रेष्ठ मानने को तैयार न थे । दोनों के अनुसार धर्म की व्याख्या के लिए भी ब्राह्मणों की कोई आवश्यकता नहीं है ।
5. हिंदू धर्म के खिलाफ प्रतिक्रिया-Reaction Against Hindu Religion— दोनों धर्म हिन्दू धर्म की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप हमारे सामने आए थे । वैदिक धर्म जटिल हो गया था । उसमें पशु बलि , यज्ञ तथा व्यर्थ के आडम्बरों पर बहुत बल दिया जाने लगा था । जनता को इन व्यर्थ के रीति – रिवाजों से छुटकारा दिलाने के लिए ही दोनों धर्मों का उदय हुआ ।
6. जाति का विरोध-Opposition to Caste — दोनों धर्म जाति – पाति का विरोध करते हैं । दोनों धर्मों के अनुसार सभी मनुष्य समान हैं । सभी मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं । जन्म के आधार पर किसी को छोटा बड़ा कहना धर्म के विरुद्ध है । ब्राह्मण तथा शूद्र में कोई भेदभाव नहीं है ।
7. मोक्ष पर जोर-Emphasis on Salvation— दोनों ही धर्म मोक्ष प्राप्ति पर विशेष बल देते हैं । दोनों के अनुसार मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य निर्वाण प्राप्त होना चाहिए । निर्वाण या मोक्ष के बिना उसे बार – बार जन्म लेना और मरना पड़ेगा । वह जन्म – मरण के चक्र में ही फंसा रहेगा । अतैव मनुष्य के लिए निर्वाण प्राप्ति आवश्यक है ।
8. यज्ञ तथा पशु बलि का विरोध-Opposition To Yagya and Animal Sacrifice— दोनों धर्म यज्ञों में दी जाने वाली बलि को भी व्यर्थ मानते थे । वे इस बात में विश्वास रखते थे कि मोक्ष प्राप्ति यज्ञों से नहीं , अपितु अच्छे कर्म करने से होती है ।
9. दोनों धर्मों के प्रवर्तकों के बीच समानताएं-Similarities Between the Promoters of Both Religions— दोनों ही धर्मों के प्रवर्तक क्षत्रिय राजकुमार थे । दोनों का जन्म छठी ई ० पू ० में हुआ । दोनों ने गृहस्थ जीवन भोगा । तत्पश्चात् दोनों ने तपस्या की और सच्चा ज्ञान प्राप्त किया । अपने धर्म का प्रचार कार्य सम्पन्न करने के पश्चात् दोनों का देहान्त भी 5 वीं शताब्दी ई ० पू ० में हुआ था ।
10. वेदों की प्रामाणिकता में अविश्वास-Disbelief in the Authenticity of Vedas— दोनों ही धर्म वेदों की प्रामाणिकता में विश्वास नहीं रखते । वे वेदों को ईश्वरीय ज्ञान नहीं मानते । वे संस्कृत भाषा को भी इतना महत्त्व नहीं देते । यही कारण था कि महात्मा बुद्ध तथा महावीर दोनों ने ही लोक भाषा में अपना प्रचार किया ।
2. सिद्धान्तों में भिन्नता ( Difference in Principles )
1. प्रचार क्षेत्र में बदलाव-Variation in promotion area– बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के साथ विदेशों में भी हुआ । आज भी विश्व का एक – तिहाई भाग इसी धर्म को अपनाए हुए है । इसके विपरीत जैन धर्म इतना व्यापक रूप धारण न कर सका । वह केवल भारत के कुछ भागों तक ही सीमित रहा ।
2. अहिंसा के सिद्धांतों में अंतर-Differences in the Principles of Non-Violence — दोनों धर्मों में अहिंसा का पालन किया जाता है । परन्तु अन्तर केवल इस बात में है कि वे किस सीमा तक इस सिद्धान्त को अपनाते हैं । बौद्ध धर्म के अनुसार मन , वचन और कर्म से किसी जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए । उनके नुसार सब प्राणियों का आदर करना चाहिए । दूसरी ओर जैन धर्म वाले अहिंसा के गहन सिद्धान्त को अपनाए हुए हैं । वे प्रत्येक वस्तु में आत्मा का निवास मानते हैं । वे छोटे – छोटे कीटाणुओं की हत्या करना भी पाप समझते हैं । यही कारण है कि जैन मुनि पानी छान कर पीते हैं , नंगे पांव चलते हैं तथा मुंह पर पट्टी बांध कर रखते हैं ।
3.मोक्ष के साधनों में अंतर-Difference in Means of Salvation— दोनों धर्म मोक्ष प्राप्त करने पर बल देते हैं । परन्तु दोनों धर्मों ने मोक्ष प्राप्ति का साधन अलग – अलग बताया है । बौद्ध धर्म वाले इसका सबसे उत्तम मार्ग अष्ट मार्ग बताते हैं । वास्तव में बौद्ध धर्म मध्य मार्ग पर बल देता है अर्थात् मनुष्य को न तो संन्यास ही लेना चाहिए और न ही उसे पूरी तरह से गृहस्थ जीवन में मग्न हो जाना चाहिए । इसके विपरीत जैन धर्म घोर तपस्या को ही मोक्ष प्राप्ति का साधन मानता है । उनके अनुसार शरीर और मन को कष्ट देने से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है । वे चाहते हैं कि इन्द्रियों पर पूरी तरह से संयम रखा जाना चाहिए । उनके अनुसार त्रिरत्न सम्यक् विश्वास , सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् चरित्र ही मनुष्य को मुक्ति के मार्ग पर ले जाते हैं ।
4. भगवान के अस्तित्व के लिए असमानता-Dissimilarity to the existence of God– महात्मा बुद्ध ईश्वर के अस्तित्व के विषय में मौन रहे । वह अपने आपको व्यर्थ के वाद – विवाद में नहीं फंसाना चाहते थे । दूसरी ओर जैन धर्म वाले ईश्वर के अस्तित्व को बिल्कुल स्वीकार नहीं करते । वे इस बात को नहीं मानते कि परमात्मा ने सृष्टि की रचना की है । उनके अनुसार सृष्टि का आरम्भ जीव तथा निर्जीव के मिलाप से हुआ है ।
5. प्रचार में अंतर-Difference in Propaganda– बौद्ध धर्म एक प्रचारक धर्म था । बौद्ध भिक्षु मठों तथा विहारों में रहकर सदाचारी जीवन व्यतीत करते थे । वे स्थान – स्थान पर घूम कर महात्मा बुद्ध के सिद्धान्तों का प्रचार करते थे । इसके विपरीत जैन धर्म के अनुयायी प्रचार कार्य पर इतना महत्त्व नहीं देते थे । जैन धर्म के संन्यासी स्थान – स्थान पर घूमने की अपेक्षा तपस्या पर अधिक बल देते थे । यही कारण था कि जैन धर्म बौद्ध धर्म की भान्ति लोकप्रिय न हो सका ।
6. प्रगति की दृष्टि में अंतर-Differences in the vision of progress— बौद्ध धर्म भारत में बड़ी शीघ्रता से लोकप्रिय हुआ । परन्तु वह जिस शीघ्रता से उन्नति के शिखर पर पहुंचा उतनी ही शीघ्रता से पतन की ओर भी अग्रसर हुआ । इसके विपरीत जैन धर्म भारत में बौद्ध धर्म जितनी लोकप्रियता प्राप्त न कर सका । फिर भी यह धर्म भारत में आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुए है । अन्त में , मोनियर विलयम्स ने लिखा है , ” बौद्ध धर्म और जैन धर्म अभिभावक और बच्चे की भान्ति सम्बन्धित न होकर एक ही अभिभावक के बच्चों की भान्ति सम्बन्धित रहे और यद्यपि उनका जन्म एक ही युग में हुआ परन्तु उनके में समय का अन्तर था यद्यपि उनमें बहुत कुछ समानता है परन्तु उनकी विशेषताएं स्पष्ट रूप से पृथक् हैं
7. धार्मिक ग्रंथों में अंतर-Differences in Religious Texts— दोनों धर्मों के धार्मिक ग्रन्थ अलग – अलग हैं । बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध धर्म ग्रन्थ ‘ त्रिपिटक ‘ कहलाते हैं । जैन धर्म ‘ ग्रन्थ ‘ अंग ‘ के नाम से पुकारे जाते । इनके अतिरिक्त भी दोनों धर्मों के अनेक अलग – अलग ग्रन्थ हैं । जहां बौद्ध ग्रन्थ पाली भाषा में लिखे गए वहां जैन धर्म के ग्रन्थों की भाषा संस्कृत तथा प्राकृत ।
8.सम्मानित पात्रों में भिन्नता-Variation in Respected Characters— दोनों धर्मों के आदर के पात्र अलग – अलग व्यक्ति हैं । बौद्ध धर्म वाले अपने पूज्य व्यक्ति को बोधिसत्त्व के नाम से पुकारते हैं । परन्तु जैन धर्म में 24 तीर्थंकरों में विश्वास रखने के लिए कहा गया है ।