बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण

बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण-Causes of the Spread of Buddhism

बौद्ध धर्म के प्रसार के कारणबौद्ध धर्म का विकास इतिहास की एक रोमांचकारी घटना है । महात्मा बुद्ध की आज्ञा पाकर बौद्ध भिक्षु धर्म प्रचार के लिए भारत की चारों दिशाओं में फैल गए थे । आरम्भ में उनके प्रचार की गति बड़ी धीमी रही । परन्तु महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् बुद्ध धर्म जहां भारत में तीव्र गति से फैला , वहां उसने भारत की सीमाएं पार करके विदेशियों को भी अपनी ओर आकर्षित किया । इतिहास इस बात का साक्षी है कि चीन , जापान , लंका , बर्मा ( म्यांमार ) , तिब्बत , नेपाल आदि देशों के निवासियों ने प्रसन्नतापूर्वक इस धर्म को अपनाया और इसे अपने जीवन का अंग बना लिया । वहां के राजा तथा प्रजा दोनों ही बौद्ध धर्म के रंग में रंग गए । बौद्ध धर्म की इस अत्यधिक लोकप्रियता के अनेक कारण थे । इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित प्रकार है |

बौद्ध धर्म

1. अनुकूल परिस्थितियां-Favourable Circumstances- बौद्ध धर्म का उदय ऐसे वातावरण में हुआ जब लोग हिन्दू धर्म के व्यर्थ के कर्मकाण्डों , खर्चीले यज्ञों तथा अन्य रीति – रिवाजों से तंग आ चुके थे । उन्हें एक ऐसे सरल धर्म की आवश्यकता थी जो उन्हें इन व्यर्थ के आडम्बरों से छुटकारा दिला सकता । ऐसे समय में बौद्ध धर्म जैसे सरल धर्म ने लोगों को बहुत आकर्षित किया ।

2. तर्क की प्रधानता-Stress on Reason– बौद्ध धर्म अन्धविश्वास पर नहीं अपितु तर्क पर बल देता था । महात्मा बुद्ध ने लोगों को समझाया कि वे उनके उपदेशों को अपनी बुद्धि द्वारा परखें । यदि वे उन्हें ठीक समझें , तो ही उन पर आचरण का प्रयास करें । यदि वे उन्हें गलत समझें तो उनका अनुस रण न करें । किसी बात को इसलिए स्वीकार न किया जाए कि वह किस विशेष ग्रन्थ में लिखी गई है । उसको खूब सोच – समझ कर अपनाया जाना चाहिए । परिणामस्वरूप लोग उनकी विचारधारा से प्रभावित होकर उनके शिष्य बनने लगे ।

3. महात्मा बुद्ध का महान् व्यक्तित्व-Great Personality of Gautama , the Buddha— महात्मा बुद्ध का व्यक्तित्व महान् था । उन्होंने राजघराने में जन्म लेकर भी संन्यास के दुःख झेले । वह सिंहासन ग्रहण कर सकते थे , परन्तु उन्होंने आसन ग्रहण किया । सत्य की खोज में उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया । उन्होंने केवल उन्हीं बातों का प्रचार किया जिनको उन्होंने स्वयं अपना लिया था । परिणामस्वरूप लोग उनके व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित हुए ।

4. आम भाषा में प्रचार-Preaching in Common Language– हिन्दू धर्म के सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में थे । जन – साधारण के लिए इस भाषा को समझना कठिन था । उनको ब्राह्मणों द्वारा बताई गई व्याख्या पर विश्वास करना पड़ता था । इसके विपरीत महात्मा बुद्ध तथा अन्य भिक्षुओं ने अपना धर्म प्रचार बोल – चाल की भाषा पालि में किया । इससे लोग बिना कठिनाई के बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को समझने लगे । परिणामस्वरूप उन्होंने सहर्ष बौद्ध धर्म स्वीकार किया ।

5. बौद्ध भिक्षुओं का उच्च नैतिक चरित्र-High Moral Character of the Monks– बौद्ध भिक्षु चरित्रवान् होते थे । वे झूठ नहीं बोलते थे , नशीली वस्तुओं तथा सुगन्धित पदार्थों का सेवन नहीं करते थे । वे धन , स्त्री , संगीत तथा अन्य ऐश्वर्य की वस्तुओं से दूर रहते थे । इन उच्च चरित्र वाले लोगों से साधारण जनता बड़ी प्रभावित हुई थी । अतः बौद्ध धर्म का उत्थान स्वाभाविक ही था ।

6. सरल शिक्षाएं-Simple Teachings– बौद्ध धर्म की शिक्षाएं बड़ी सरल थीं । उनमें गूढ़ दर्शन की बातें न थीं । इसके अनुसार मनुष्य को नरक – स्वर्ग अथवा आत्मा – परमात्मा के वाद – विवाद में पड़ने की आवश्यकता न थी । उसे सदाचारी जीवन व्यतीत करना चाहिए । इसके अष्टमार्ग का सिद्धान्त घोर तपस्या से कहीं अच्छा है । अतः लोगों ने दिल खोलकर बौद्ध धर्म का स्वागत किया ।

7. बौद्ध संघ-Buddhist San ghas-बौद्ध संघ ने बौद्ध धर्म के प्रचार में बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । यह संघ भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का प्रशिक्षण देता था । पूरी तरह दीक्षा लेने के पश्चात् भिक्षु प्रचार कार्य में लग जाते थे । वे लोग वर्ष में 8 मास प्रचार कार्य में लगे रहते । वर्ष के चार मास वे मठों में व्यतीत करते । उस समय भी वे भविष्य में प्रचार का कार्यक्रम बनाते थे । भिक्षु लोगों के इस निरन्तर प्रचार के कारण बौद्ध धर्म का काफ़ी प्रसार हुआ । इस विषय में इतिहासकार डॉ ० अरुण भट्टाचार्जी ने सत्य ही कहा है , ” इन अनुशासित संघों ने बुद्ध धर्म की सफलता के लिए स्तम्भ का काम किया ।

8. जाति प्रथा में अविश्वास-Disbelief in Caste system– बौद्ध धर्म में जाति प्रथा का कोई स्थान नहीं था । सभी जातियों के लोग बौद्ध संघ में शामिल हो सकते थे । किसी जाति का भी व्यक्ति बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों को अपना सकता था । बौद्ध धर्म के इस सिद्धान्त ने चमत्कारी प्रभाव दिखाया । दलित वर्गों के लोगों ने बौद्ध धर्म सहर्ष स्वीकार किया ।

9. राजकीय सहायता-Royal Patronage– बौद्ध धर्म एक अन्य दृष्टिकोण से भी भाग्यशाली था । उसे अशोक , कनिष्क तथा हर्ष जैसे महान् राजाओं का सहयोग प्राप्त हुआ । इतिहास इस बात का साक्षी है कि अशोक ने इस धर्म को विश्व स्तर का स्वरूप देने के लिए कोई कसर बाकी न छोड़ी थी । संसार में किस धर्म को ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ है ? कनिष्क तथा हर्षवर्धन ने भी धन तथा व्यक्तिगत सेवाओं से बौद्ध धर्म को उन्नत किया । कनिष्क के प्रयत्नों के फलस्वरूप बौद्ध धर्म चीन , जापान तथा तिब्बत जैसे देशों में भी फैल गया । अतैव राजकीय सहायता पाकर बौद्ध धर्म भारत में ही नहीं , अपितु इसकी सीमाओं के बाहर भी फैल गया ।

10. बौद्ध विश्वविद्यालयों का योगदान-Contribution of the Buddhist Universities– बौद्ध धर्म फैलाने में तक्षशिला , नालन्दा आदि बौद्ध विश्वविद्यालयों का बड़ा योगदान रहा । यहां देश – विदेश से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आया करते थे । यहां उन्हें बौद्ध धर्म के मुख्य सिद्धान्तों तथा विचारधारा से अवगत कराया जाता था । तत्पश्चात् ये विद्यार्थी जहां जाते बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे । चीन , तिब्बत , जापान , लंका , स्याम आदि देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार इन्हीं विद्यार्थियों द्वारा किया जाता था ।

11. बौद्ध महासभाओं की भूमिका-Role of Buddhist Councils — बौद्ध धर्म के प्रचार तथा प्रसार में समय – समय पर विभिन्न शासकों के संरक्षण में हुई बौद्ध महासभाओं ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । इन महासभाओं में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते थे । ऐसी कुल महासभाओं की संख्या चार है । प्रथम महासभा 487 ई ० पू ० मगध के शासक अजातशत्रु ने राजगृह में आयोजित की । दूसरी महासभा 387 ई ० पू ० वैशाली में हुई । तीसरी महासभा अशोक ने 251 ई ० पू ० में पाटलिपुत्र में बुलाई । चौथी महासभा का आयोजन कनिष्क ने कश्मीर में 100 ई ० में किया था । इन महासभाओं ने बौद्ध धर्म के प्रचलित मतभेदों को दूर करके उनमें नव प्राण फूंके ।

12. बौद्ध धर्म में लचीलापन-Flexibility in Buddhism— आरम्भ में बौद्ध धर्म मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता था । परन्तु पहली शताब्दी के पश्चात् बौद्ध धर्म की महायान शाखा ने बुद्ध को देवता के रूप में पूजना आरम्भ कर दिया । बुद्ध की मूर्तियां बनाकर बौद्ध मन्दिरों में स्थापित की गईं । इस प्रकार बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने समय – समय पर धर्म में परिवर्तन करके इसकी लोकप्रियता को बनाए रखा । भले ही आज बौद्ध धर्म भारत में लोकप्रिय नहीं है , परन्तु अपने सुधारों के कारण यह आज भी विश्व के महान् धर्मों में गिना जाता है ।

 

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