बौद्ध संघ से आपका क्या अभिप्राय है

संघ संगठन-The Sangha Organization

बौद्ध संघ से आपका क्या अभिप्राय है – बौद्ध संघ बौद्ध भिक्षुओं के संगठन का नाम था । ये भिक्षु संसार त्याग कर बौद्ध धर्म का प्रचार और प्रसार करते थे । बौद्ध धर्म के दो प्रकार के अनुयायी थे – भिक्षु तथा उपासक । भिक्षु पूर्ण रूप से बौद्ध धर्म के सदस्य होते थे । उन्हें संघ के कठोर अनुशासन का पालन करना पड़ता था । दूसरी ओर उपासक गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे तथा महात्मा बुद्ध द्वारा बताए गए साधारण नियमों का पालन करते थे । महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन काल ही संघ प्रणाली का श्रीगणेश किया था । उन्होंने विस्तारपूर्वक संघ के नियम निश्चित कर दिए । इन नियमों का संग्रह ‘ विनयपिटक ‘ में किया गया है । संघ इन नियमों का पालन करते हुए बौद्ध धर्म का प्रसार करता था ।

बौद्ध संघ

संघ के प्रजातन्त्रात्मक सिद्धान्त-Democratic Principles of the Sangha

1. सदस्यता-Membership  — संघ का सदस्य बनने के लिए कुछ योग्यताएं रखी गई थीं । ये इस प्रकार थीं—

  1. 15 वर्ष से अधिक आयु वाले ही संघ का सदस्य बन सकते थे ।
  2.  सदस्य बनने के लिए अपने घर का त्याग करना पड़ता था ।
  3.  संघ का सदस्य बनने के लिए माता – पिता से भी आज्ञा लेना आवश्यक था ।
  4.  सिपाही , दास , ऋणी , अपराधी तथा रोगी आदि व्यक्ति संघ के सदस्य नहीं बन सकते थे । इसके पश्चात् सदस्यता ग्रहण करते समय यह शपथ ग्रहण करनी पड़ती थी , ” बुद्धम् शरणं गच्छामि , धम्मं शरणं गच्छामि , संघं पर न शरणं गच्छामि ।

2. दस आदेश-Ten Commandments — संघ के सदस्यों के लिए महात्मा बुद्ध ने दस आदेशों का पालन करना अनिवार्य बताया । उन्हें इनकी भी शपथ उठानी पड़ती थी । ये आदेश थे –

  1.  झूठ न बोलो ।
  2. दूसरों की सम्पत्ति पर आंख न रखो ।
  3. ( हिंसा न करो ।
  4. नशीली वस्तुओं का सेवन न करो ।
  5.  व्यभिचार न करो ।
  6. (वर्जित समय पर भोजन न करो ।
  7.  धन एकत्र न करो ।
  8.  फूलों , आभूषणों तथा सुगन्धित वस्तुओं का प्रयोग न करो ।
  9.  नाच गाने में भाग न लो ।
  10. नर्म गद्दे पर विश्राम न करो ।

संघ के किसी सदस्य को इन नियमों की छूट नहीं मिलती थी । संघ में प्रवेश करने वाले भिक्षु का सिर तथा दाढ़ी मूंछ साफ़ कर दी जाती और उसे पहनने के लिए पीले वस्त्र दिए जाते । तत्पश्चात् वह संघ के सदस्यों में से एक को अपना गुरु चुनता था । वास्तव में नवीन भिक्षु एक ‘ श्रमण ‘ के रूप में ही कार्य करता था । दस वर्षों के पश्चात् ही उसे संघ का पूर्ण सदस्य अथवा ‘ भिक्षु ‘ माना जाता था ।

3. भिक्षुणियों के लिए विशेष नियम-Special Rules for Nuns

मानव की कमजोरियों से परिचित महात्मा बुद्ध आरम्भ में स्त्रियों को संघ में प्रवेश देने के विरुद्ध थे । परन्तु अपने प्रिय शिष्य आनन्द के आग्रह पर उन्होंने कुछ शर्तों पर उन्हें प्रवेश दे दिया । ये शर्तें थीं-

  1.  उन्हें अपने कर्त्तव्यों को समझना चाहिए ।
  2.  उन्हें भिक्षुओं से अलग रहना चाहिए ।
  3.  उन्हें 15 दिनों में एक बार भिक्षा लानी चाहिए ।
  4.  उन्हें वर्षाकाल भिक्षु गृह से दूर व्यतीत नहीं करना चाहिए ।
  5.  वे भिक्षुओं को विपथ न करें ।
  6.  वे क्रोध और पाप से मुक्त रहें ।
  7.  15 दिनों के पश्चात् किसी भिक्षु के पास अपने पापों को स्वीकार करें ।
  8.  वयोवृद्ध भिक्षुणी भी नवीन भिक्षु के प्रति आदर प्रकट करे ।

बौद्ध संघ

4. संघ की बैठकें-Meetings of the Sangha– संघ की सभाएं लगभग 15 दिन के पश्चात् होती थीं । संघ के सभी सदस्य इनमें भाग ले सकते थे । अनुपस्थित सदस्य अपना प्रतिनिधि भेज सकता था । सभा में सदस्यों को अपने स्तर तथा आयु के अनुसार स्थान दिया जाता था । सभा प्रारम्भ करने के लिए निश्चित संख्या में भिक्षुओं का होना आवश्यक था । महात्मा बुद्ध ने यह संख्या 20 निश्चित की थी । इसे ‘ कोरम ‘ ( Quorum ) कहा जाता था ।

5. बैठक की कार्यवाही-Course of the Meetings— बैठक की कार्यवाही शुरू करने से पहले एक सभापति चुना जाता था । उसकी आज्ञा से कार्यवाही आरम्भ होती थी । प्रस्ताव पेश किए जाते थे और उन पर वाद विवाद होता था । प्रस्ताव पेश करना ‘ अनुशासन ‘ कहलाता था । वाद – विवाद में सभी सदस्य भाग ले सकते थे । कोई भी सदस्य सभापति की आज्ञा के बिना नहीं बोल सकता था । विषय से हटकर भी बोलने की आज्ञा नहीं थी । सभी सदस्य निर्भीक होकर अपने मत व्यक्त करते थे । उन पर किसी प्रकार की रोक नहीं थी ।

6. निर्णय-Decisions— संघ की बैठकों में इस बात का प्रयत्न किया जाता था कि सभी प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हों । मतभेद होने पर अनेक ढंग अपनाए जाते थे । भिन्न – भिन्न समूहों के नेताओं को मिलकर बैठने के लिए कहा जाता था ताकि वे मतभेद दूर कर सकें । कई बार एक उप – समिति ( उब्बाहिका ) बना ली जाती थी और उसे जोनू अनुम प्राप्त उचित हल ढूंढने के लिए कह दिया जाता था । यदि इस समिति का निर्णय भी मान्य नहीं होता था तो आजकल की भान्ति मतदान कर लिया जाता था ।

7. मतदान-Voting— मतदान निष्पक्ष रूप से होता था । तब मत को ‘ शलाका ‘ कहा जाता था । लकड़ी की छोटी – छोटी फट्टियां बनी होती थीं जिनके अलग – अलग रंग होते थे । विभिन्न रंग अलग – अलग मतों को प्रकट करते थे । शलाकाओं को बांटने तथा इकट्ठा करने वाला अधिकारी ‘ सलाकागाहायक ‘ कहलाता था । मतदान के पश्चात् का परिणाम सबके लिए मान्य होता था । इस प्रकार बौद्ध भिक्षु प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार अपने मतभेदों को दूर करते और धर्म के प्रचार में लीन रहते थे । वे साल में 9 महीने घूम – घूम कर लोगों को सदाचार की शिक्षा देते , परन्तु वर्षा ऋतु में एक स्थान पर इकट्ठे मिलकर रहते थे । तब वे आपस में परामर्श करते और भविष्य का कार्यक्रम निश्चित करते । अतः डॉ ० एस ० एन ० सेन का यह कथन पूर्णतयाः सत्य प्रतीत होता है कि , ” बौद्ध धर्म की अद्वितीय सफलता का कारण संगठित संघ थे ।

8. आवास-Residence— बौद्ध भिक्षुओं के निवास के लिए बड़े – बड़े विहारों का निर्माण किया गया था । प्रत्येक विहार में भिक्षुओं के निवास के लिए अनेक कमरे बने हुए थे । इन्हें ‘ आवास ‘ कहते थे । विहारों का जीवन सामूहिक था । यहां तक मिलने वाली भिक्षा भी समस्त भिक्षु – भिक्षुणियों में बांट दी जाती थी । कालान्तर में यही बौद्ध विहार बौद्ध शिक्षा के प्रमुख केन्द्र बन गए ।

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