चन्द्रगुप्त मौर्य का चरित्र तथा मूल्यांकन
चन्द्रगुप्त मौर्य का चरित्र तथा मूल्यांकन-Character and Estimate of Chandragupta Maurya
चन्द्रगुप्त मौर्य निःसन्देह भारत का प्रथम ऐतिहासिक राजा था । उसने अपने शासनकाल में अनेक महत्त्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त कीं । वह एक साधारण परिवार से सम्बन्ध रखता था । उसने अपने परिश्रम के बल पर एक महान् साम्राज्य की स्थापना की । वह अनेक गुणों का स्वामी था । इन्हीं गुणों के कारण भारतीय इतिहास में उसे अद्वितीय स्थान प्राप्त है । I. एक मनुष्य के रूप में ( As a Man ) एक मनुष्य के रूप में चन्द्रगुप्त के चरित्र का वर्णन इस प्रकार है
1. सुन्दरता तथा प्रकृति से प्रेम-Lover of Beauty and Nature- चन्द्रगुप्त मौर्य सौन्दर्य तथा प्रकृति का महान् प्रेमी था । उसका पाटलिपुत्र में बना राजमहल भव्यता में ईरानी सम्राटों के राजमहलों को भी पीछे छोड़ गया था । इस राजमहल के चारों ओर एक अत्यन्त सुन्दर उद्यान बनाया गया था । इस उद्यान में लगे अनेक वृक्ष तथा फूल न केवल भारत के विभिन्न भागों से अपितु विदेशों से भी मंगवाए गए थे । इस उद्यान में अनेक तरह के पक्षी पाले गए थे । इसके अतिरिक्त यहां बनी झीलों एवं सरोवरों में अनेक प्रकार की रंग – बिरंगी मछलियां पाली गई थीं ।
2. शिकार का प्रेमी-Lover of Hunting – चन्द्रगुप्त मौर्य को शिकार का बहुत शौक था । इस कार्य के लिए विशेष वनों का प्रबन्ध किया गया था । शिकार पर जाते समय वह हाथी पर जाता था तथा उसकी अंगरक्षिकाएं साथ होती थीं ।
3. एक चतुर राजनीतिज्ञ-A Clever Diplomat — चन्द्रगुप्त मौर्य एक चतुर राजनीतिज्ञ था । आरम्भ में उसके पास न तो कोई सेना थी और न ही कोई प्रदेश उसे विरासत में मिला था । इसके बावजूद उसने विशाल साम्राज्य की स्थापना की । एक निपुण कूटनीतिज्ञ के रूप में उसने प्रवर्त्तक नामक राजा के साथ गठजोड़ करके मगध के शक्तिशाली शासक धनानन्द को पराजित कर दिया । इसी प्रकार 305 ई ० पू ० में चन्द्रगुप्त मौर्य ने यूनानी शासक सैल्यूकस के साथ मैत्रीपूर्ण सन्धि करके अपनी बुद्धिमत्ता का प्रमाण दिया ।
4. परिश्रमी-Hardworking– चन्द्रगुप्त मौर्य बहुत परिश्रमी था । वह अपने परिश्रम के बल पर ही एक साधारण स्थिति से सम्राट् के पद पर जा पहुंचा था । सम्राट् बनने के बाद भी उसने अपनी परिश्रम की आदत को न छोड़ा । वह प्रातः काल स्नान तथा पूजा – पाठ करने के बाद दरबार में मन्त्रियों से परामर्श करता तथा गुप्तचरों से रिपोर्टें सुनता था । इसके बाद वह पत्र – व्यवहार को देखता था । वह सन्ध्या के समय सेनाओं तथा दुर्गों का निरीक्षण करता था ।
5. सहनशील-Tolerant – चन्द्रगुप्त मौर्य एक धर्म -परायण एवं सहनशील व्यक्ति था । वह हिन्दू धर्म में विश्वास रखता था , इसके बावजूद वह सभी धर्मों का सम्मान करता था । सभी धर्मों के लोगों को अपने – अपने रीति – रिवाज मनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी । उसने सर्वप्रथम सैल्यूकस की पुत्री हेलन से विवाह करके तथा बाद में जैन धर्म को अपना कर सहनशीलता का प्रमाण दिया था ।
6. कला तथा साहित्य का प्रेमी-Lover of Art and Literature – चन्द्रगुप्त मौर्य को कला तथा साहित्य से बहुत प्यार था । उसके राजमहल के चित्र मौर्यकाल की चित्रकला के क्षेत्र में हुए विकास की झलक प्रस्तुत करते थे । इसके अतिरिक्त चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने दरबार में अनेक विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया था । इनमें कौटिल्य तथा भद्रबाहु के नाम उल्लेखनीय हैं । कौटिल्य ने ‘ अर्थशास्त्र ‘ तथा भद्रबाहु ने ‘ कल्पसूत्र ‘ नामक बहुमूल्य ग्रन्थों की रचना की ।
II . विजेता के रूप में ( As a Conqueror )
चन्द्रगुप्त मौर्य एक सफल विजेता था । विजेता के रूप में उसकी तुलना नेपोलियन तथा अकबर के साथ की जाती है । वह बड़ा ही वीर और साहसी था । उसने एक विशाल सेना का आयोजन किया जिसमें 6 लाख पैदल , 30 हजार घुड़सवार , 9 हज़ार हाथी और 8 हज़ार रथवान शामिल थे । इस सेना की सहायता से उसने निम्नलिखित विजयें प्राप्त कीं
1. पंजाब विजय-Conquest of Punjab – चन्द्रगुप्त मौर्य ने सबसे पहले पंजाब को जीता । यह प्रदेश उन दिनों सिकन्दर के प्रतिनिधि फिलिप के अधीन था । परन्तु 325 ई ० पू ० फिलिप्स का वध कर दिया गया जिससे राज्य में असन्तोष फैल गया । 323 ई ० पू ० में सिकन्दर की भी मृत्यु हो गई । इस अवसर का लाभ उठाकर चन्द्रगुप्त ने पंजाब पर आक्रमण कर दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया ।
2. बंगाल विजय-Conquest of Bengal – चन्द्रगुप्त ने अब अपना ध्यान अन्य पूर्वी राजाओं की ओर लगाया । कुछ समय पश्चात् उसने बंगाल पर भी अधिकार कर लिया ।
3. मगध विजय-Conquest of Magdha – मगध उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था । यहां नन्द वंश का शासन था । कहते हैं कि नन्द राजाओं की सेना में 6 लाख पैदल , 10 हज़ार घुड़सवार , 2 हज़ार रथ तथा 3 हज़ार हाथी शामिल थे । नन्द शासक ने चन्द्रगुप्त के गुरु चाणक्य का अपमान किया था और चाणक्य ने नन्द वंश का समूल नाश करने की शपथ ले रखी थी । मगध विजय के लिए 321 ई ० पू ० में एक बड़ा भयंकर युद्ध लड़ा गया । इस युद्ध में राजा धनानन्द , उसके परिवार के कई सदस्य और अनगिनत सैनिक मारे गये । मगध विजय के बाद चन्द्रगुप्त राजसिंहासन पर बैठा ।
4. उत्तर पश्चिमी भारत की विजय-Conquest of Northern Western India – पंजाब विजय के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने उत्तर – पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया और यह प्रदेश भी अपने अधिकार में ले लिया । इस प्रकार उसके राज्य की सीमा सिन्धु नदी के पूर्वी तट को छूने लगी ।
5. सैल्यूकस की पराजय-Defeat of Seleucus — सैल्यूकस सिकन्दर का सेनापति था । सिकन्दर की मृत्यु के बाद उसने लगभग पूरे पश्चिमी तथा मध्य एशिया पर अपना अधिकार कर लिया था । अब वह भारत के उन सभी प्रदेशों को भी विजय करना चाहता था जो कभी सिकन्दर के अधीन थे । 305 ई ० पू ० में उसने भारत पर आक्रमण कर दिया । यूनानी लेखकों के विवरण से पता चलता है कि सैल्यूकस इस युद्ध में पराजित हुआ और उसे चन्द्रगुप्त के साथ इन शर्तों पर सन्धि करनी पड़ी-
- सैल्यूकस ने आधुनिक काबुल , कंधार तथा बिलोचिस्तान के प्रदेश चन्द्रगुप्त को दे दिए ।
- मैगस्थनीज़ सैल्यूकस की ओर से राजदूत के रूप में पाटलिपुत्र आया ।
- सैल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलन का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया ।
6. अन्य विजयें-Other Conquests – चन्द्रगुप्त ने कुछ अन्य प्रदेशों पर भी विजय प्राप्त की । ऐसा समझा जाता है कि सौराष्ट्र का प्रदेश चन्द्रगुप्त के अधीन था । जैन तथा तमिल साहित्य के अनुसार तो चन्द्रगुप्त का साम्राज्य दक्षिण में उत्तरी मैसूर ( कर्नाटक ) तक फैला हुआ था । इस प्रकार उसका साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में उत्तरी मैसूर तक फैला हुआ था । पूर्व में बंगाल तथा पश्चिम में हिन्दुकुश पर्वत उसके राज्य की सीमायें थीं । उसके साम्राज्य में अफ़गानिस्तान , बिलोचिस्तान , समस्त उत्तरी मैदान , सौराष्ट्र , मैसूर आदि प्रदेश सम्मिलित थे । पाटलिपुत्र ( पटना ) इस साम्राज्य की राजधानी थी । –
III . शासन प्रबन्धक के रूप में-As an Administrator
चन्द्रगुप्त मौर्य न केवल एक सैनिक था , बल्कि एक कुशल शासन प्रबन्धक भी था । उसने केन्द्रीय सरकार , प्रान्तीय सरकार तथा स्थानीय शासन का अच्छा प्रबन्ध किया । उसने सभी कार्य लोकहित को ध्यान में रखते हुए किये । असैनिक कार्यों के साथ – साथ उसने सैनिक संगठन की ओर भी पूरा – पूरा ध्यान दिया । उसके शासन प्रबन्ध का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
1. केन्द्रीय शासन-Central Administration
- सम्राट्-The King — राज्य का मुखिया सम्राट् होता था । उसकी शक्तियां असीम थीं । वह मुख्य न्यायाधीश तथा सेना का मुख्य सेनापति होता था । वह राज्य का संगठन तथा संचालन करता था ।
- मन्त्रिपरिषद्-Council of Ministers – सम्राट् ने राज्य कार्यों में अपनी सहायता तथा परामर्श के लिए एक मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था की हुई थी । मन्त्रिपरिषद् का निर्णय राजा के लिए मानना अनिवार्य नहीं था । मन्त्रियों को अलग – अलग विभाग सौंपे हुए थे । मन्त्रियों के अतिरिक्त कुछ अन्य अधिकारी भी थे । इनमें तीर्थ , आमात्य , महामात्य तथा अध्यक्ष प्रमुख थे ।
2. प्रान्तीय शासन-Provincial Administration
- चार – प्रान्त-Four Provinces – चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य को निम्नलिखित चार प्रान्तों में विभक्त किया हुआ था – मध्य प्रान्त , पश्चिमी प्रान्त , उत्तरी – पश्चिमी प्रान्त तथा दक्षिणी प्रान्त ।
- कुमार-Kumar — प्रान्तीय शासन का मुखिया ‘ कुमार ‘ कहलाता था । प्रायः राजघराने के किसी व्यक्ति को ही यह पद सौंपा जाता था । उसका मुख्य कार्य प्रान्त में शान्ति व्यवस्था बनाए रखना होता था ।
3. न्याय प्रणाली-Justice System
- विभिन्न न्यायालय-Different Courts — न्याय का सर्वोच्च अधिकारी राजा स्वयं था । न्याय सम्बन्धी सभी अन्तिम अपीलें वह स्वयं ही सुनता था । न्यायालय दो प्रकार के थे – धर्मस्थायी ( दीवानी ) तथा कंटकशोधन ( फौजदारी ) ।
- दण्ड विधान-Penal Code — चन्द्रगुप्त मौर्य का दण्ड विधान काफ़ी कठोर था । छोटे – छोटे अपराधों के लिए हज़ार पण तक जुर्माना किया जाता था । चोरी करने , डाका डालने तथा किसी की हत्या करने पर मृत्यु दण्ड दिया जाता था । कभी – कभी अपराधी का अंग भी काट दिया जाता था ।
4. नगर प्रबन्ध-City Administration
- नगर अध्यक्ष-Nagar Adhyaksh — नगर का प्रबन्ध ‘ नगर अध्यक्ष ‘ के अधीन होता था । उसका कार्य नगर में शान्ति की व्यवस्था करना , कर इकट्ठा करना तथा शिक्षा का प्रबन्ध करना था । नगर अध्यक्ष की सहायता के लिए ‘ स्थानिक ‘ तथा ‘ गोप ‘ नामक दो कर्मचारी होते थे ।
- बड़े – बड़े नगरों के प्रबन्ध के लिए बोर्ड स्थापित किए गये थे । प्रत्येक बोर्ड में 30 सदस्य होते थे । बोर्ड पांच पांच सदस्यों की 6 समितियों में बंटे हुए थे ।
5. ग्राम का शासन-Village Administration- ग्राम का प्रशासन ग्राम पंचायतों के हाथ में था | ग्राम का मुखिया ‘ ग्रामिणी ‘ कहलाता था । केन्द्रीय सरकार पंचायत के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करती थी ।
6. सैनिक प्रबन्ध-Military Administration -चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक विशाल सेना का संगठन किया हुआ था । उसकी सेना में 6 लाख पैदल , 30 हज़ार घुड़सवार , 9 हज़ार हाथी और 8 हज़ार रथ शामिल थे । कृषकों को छोड़कर राज्य में सबसे अधिक संख्या सैनिकों की थी । युद्ध में तलवार , धनुष – बाण तथा ढाल का प्रयोग होता था । इस विशाल सेना के प्रबन्ध के लिए 30 सदस्यों की एक परिषद् नियुक्त की गई थी । यह परिषद् पांच – पांच सदस्यों की 6 समितियों में विभाजित थी ।
7. गुप्तचर विभाग-Espionage Department साम्राज्य को सुदृढ़ बनाने के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने सारे राज्य में गुप्तचर छोड़ रखे थे । उसने कुछ गुप्तचर स्थायी रूप से विभिन्न स्थानों पर रखे हुए थे , जिन्हें ‘ संस्था ‘ कहते थे । कुछ गुप्तचर भेष बदलकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे । इन्हें संचार कहते थे । स्त्रियां भी गुप्तचरों के रूप में कार्य करती थीं ।
8. वित्त तथा भूमि कर प्रणाली-Financial and Land Revenue System- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमन्त्री कौटिल्य का विश्वास था कि शासन की सुदृढ़ता के लिए वित्त व्यवस्था का सुदृढ़ होना आवश्यक है । कौटिल्य के शब्दों में , ” क्योंकि राज्य के सभी कार्य धन पर आधारित हैं , इसलिए राजा को कोष की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए । ” इस बात को ध्यान में रखते हुए चन्द्रगुप्त मौर्य ने ‘ समाहर्ता ‘ नामक एक अधिकारी की नियुक्ति की हुई थी जिसका कार्य राज्य की आय को बढ़ाना था । भूमि कर राज्य की आय का प्रमुख साधन था । भूमि कर कुल उपज का 1/6 भाग होता था ।
इसके अतिरिक्त व्यापारिक वस्तुओं पर चुंगी कर वसूल किया जाता था । इससे भी राज्य कोष में काफ़ी धन आ जाता था । उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि चन्द्रगुप्त न केवल एक महान् विजेता था अपितु एक उच्चकोटि का शासन प्रबन्धक भी था । इसी कारण उसकी गणना भारत के महान् सम्राटों में की जाती है । डॉक्टर पी ० एल ० भार्गव के अनुसार , ” वह प्रायः प्रथम ऐतिहासिक भारतीय सम्राट् माना जाता है । वह निःसन्देह अपने समय का सबसे शक्तिशाली राजा और राजाओं की श्रेणी में एक बहुत चमकने वाला सितारा था ।
9. प्रजा हितार्थ कार्य-Functions for the Welfare of People चन्द्रगुप्त मौर्य प्रजा के हितों का विशेष ध्यान रखता था । उसने कृषि की उन्नति के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था की हुई थी । यात्रियों की सुविधा तथा व्यापार की उन्नति के लिए उसने समस्त साम्राज्य में सड़कों का जाल बिछा दिया था । इसके अतिरिक्त उसने सड़कों के दोनों ओर छायादार वृक्ष लगवाए , धर्मशालाएं बनवाई तथा कुएं खुदवाए ।