एक सहदायिक के अधिकारों की विवेचना कीजिए
एक सहदायिक के अधिकारों की विवेचना कीजिए
सहदायिक के अधिकार ( Rigths of the Copercenner ) – सहदायिक सम्पत्ति में सहदायिकों के अग्रलिखित अधिकार हैं
( 1 ) जन्मना अधिकार – सहदायिकी सम्पत्ति में एक सहदायिक जन्म से अधिकार प्राप्त करता है और पुत्र द्वारा इस प्रकार प्राप्त किया गया हित अपने पिता के हित के बराबर होता है । सहदायिकी सम्पत्ति में प्रत्येक सहदायिक का जन्मना अधिकार होने का कारण यह है कि वह किसी अन्य सहदायिकों द्वारा सहदायिक की सम्पत्ति के सम्बन्ध में दिये गये किसी अनुचित अथवा विधि – विरुद्ध , विधवा संयुक्त हित या उपभोग के लिए क्षतिकर – कृत्य को रोकता है ।
( 2 ) सम्पत्ति के सम्मिलित कब्जे का अधिकार – एक सहदायिक को सहदायिकी सम्पत्ति के संयुक्त कब्जे और उपभोग का अधिकार है क्योंकि अविभक्त परिवार के सदस्यों के बीच परिवार की सम्पत्ति का स्वामित्व होता है और उस पर उनका सम्मिलित कब्जा होता है । अविभक्त परिवार के सदस्यों को उस सम्पत्ति पर सामूहिक रूप से उपभोग करने का अधिकार होता है । इस प्रकार जहाँ संयुक्त परिवार का कोई सदस्य अपने कब्जे में से किसी कमरे में प्रवेश पाने के किसी दरवाजे या जीने के प्रयोग से रोका जाता है वहाँ वह उस सदस्य के विरुद्ध निषेधाज्ञा का वाद इस उद्देश्य से संस्थापित कर सकता है कि उसे इस प्रकार के प्रयोग से न रोका जाय ।
( 3 ) बँटवारा कराने का अधिकार – प्रत्येक सहदायिक को यह अधिकार है कि वह सहदायिक सम्पत्ति में से अपने हित का बँटवारा करा ले । वह अपने अंश के विभाजन की माँग अपने पिता , भाई के अनुसार पृथक् होने का अधिकार रखता है चाहे परिवार के सदस्य इसकी स्वीकृति दें अथवा नहीं । किन्तु पृथक् होने वाले सहदायकी को अपनी इच्छा से अन्य सदस्यों को स्पष्ट रूप से अवगत कराना चाहिए ।
( 4 ) हिसाब – किताब माँगने का अधिकार – प्रत्येक सहदायिक को यह अधिकार होता है कि वह संयुक्त परिवार की सम्पत्ति व्यवस्था , आय – व्यय आदि के हिसाब – किताब को देख सके जिससे कि उसे परिवार की सम्पत्ति तथा आय – व्यय का ज्ञान हो सके । इस प्रकार जहाँ एक सहदायिक संयुक्त परिवार की दुकान में प्रवेश करने से रोका गया , बही – खाता निरीक्षण से मना किया गया है तथा दुकान के प्रबन्ध करने से रोका गया वहाँ न्यायालय द्वारा यह कहा गया । कि वह सदस्य अन्य सदस्यों के विरुद्ध सम्पत्ति के सम्मानित कब्जे तथा प्रबन्ध के सम्बन्ध है निषेधाज्ञा का वाद संस्थापित कर सकता है जिसके द्वारा इस प्रकार के बाधा उत्पन्न करने वाले सहदायिक को ऐसा करने से रोके जायेंगे ।
( 5 ) भरण – पोषण और आवास का अधिकार – सहदायिकी के प्रत्येक सदस्य को परिवार की सम्पत्ति से परिवार की हैसियत के अनुसार भरण – पोषण तथा आवास प्राप्त करने का अधिकार है ।
( 6 ) सामान्य कब्जे तक उपयोग का अधिकार – प्रत्येक सहदायिक को परिवार की समस्त सम्पत्ति को एक इकाई के रूप में उपभोग करने का अधिकार है । किसी भी सदस्य को विशेष अधिकार प्राप्त नहीं है और न ही कोई सदस्य सहभागीदारी सम्पत्ति का उपभोग अकेले ही कर सकता है ।
( 7 ) अनाधिकृत कार्यों को रोकने का अधिकार- एक सहदायिक दूसरे सहृदायिक की सहदायिकी या सम्पत्ति के सम्बन्ध में अनाधिकृत कार्यों को करने से रोक सकता है , यदि इस प्रकार का कार्य सम्मिलित उपभोग में बाधा उत्पन्न करता है ।
(8 ) अन्य संक्रमण- एक सहदायिक अन्य सहदायिक की सहमति से अपने अविभक्त हित का , अन्य संक्रामण दान , बन्धक तथा विक्रय द्वारा कर सकता है ।
( 9 ) सहदायिकी सम्पत्ति में अपने हक का परित्याग करने का अधिकार- मद्रास उच्च न्यायालय के अनुसार , “ कोई सहदायिक सहदायिकी सम्पत्ति में अपने हक का अन्य सभी सहदायिकों के पक्ष में अथवा किसी एक सहदायिकी के पक्ष में छोड़ सकता है । ” सरधाम बल बनाम सीरलाल ‘ के वाद में यह कहा गया है कि जब कभी सहदायिकी सम्पत्ति का सहदायिक अपने हक को अन्य सभी सहदायिकों के पक्ष में परित्याग कर देता है वहाँ वह हक सभी सहदायिकों में चला जाता है । यदि ऐसे सहदायिकी के कोई पुत्र हक के परित्याग के बाद उत्पन्न होते हैं तो उन पुत्रों को बँटवारा कराने का अधिकार नहीं रह जाता ।
( 10 ) उत्तरजीविता का अधिकार – किसी सहदायिक की मृत्यु पर सहदायिकी सम्पत्ति में उसका अविभाजित हित उत्तराधिकार द्वारा उसके दायदों पर न न्यागत होकर उत्तरजीविता द्वारा सहदायिकी पर न्यायगत होता है ।
मिताक्षरा विधि के अनुसार संयुक्त परिवार की सम्पत्ति में सहदायिक का हक जन्म से उत्पन्न होता है तथा उसे संयुक्त सम्पत्ति से भरण – पोषण का हक तब तक बना रहता है जब तक संयुक्त परिवार बना रहता है या उसका विभाजन नहीं होता हैं । उत्तरजीविता का अधिकार कब विफल हो जाता है उत्तरजीविता से किसी सहदायिक का हक प्राप्त करने का अधिकार निम्नलिखित अवस्थाओं में विफल हो जाता है—
- जहाँ सहदायिक जन्मतः पागल अथवा जड़ होने के कारण अयोग्य हो जाता है ।
- वह दत्तक ग्रहण से दूसरे परिवार में चला जाता है ।
- वह सहदायिकी हक का अभ्यपर्ण ( surender ) कर देता है ।
- प्रतिकूल कब्जा से सहदायिकी सम्पत्ति में अपना हक खो देता है ।
- जब मृत सहदायिक ने ( i ) अपने पीछे पुरुष सन्तान को छोड़ ( ii ) अपने हक को बेच दिया या बन्धक कर दिया है ।
- जब किसी सहदायिक का हक किसी आज्ञाप्ति के निष्पादन में कुर्क कर लिया
- जब आज्ञाप्ति उसके जीवनकाल में पास की गई हो , चाहे उसके जीवन काल में हक कुर्क न किया गया हो , यदि ऋणी ( judgement – destor ) उत्तरजीवी सहदायिकों के पिता – पितामह तथा प्रपितामह के नातेदारी में है ।
- यदि सहदायिक का हक राजकीय समनुदेशिती ( Assignee ) में निहितं हो गया है ।