गुप्त साम्राज्य का पतन
गुप्त साम्राज्य का पतन | Gupt Saamraajy Ka Patan
गुप्त शासकों ने 275 ई ० से लेकर लगभग 550 ई ० तक शासन किया । गुप्त वंश ने समुद्रगुप्त , चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य , स्कन्दगुप्त जैसे प्रतापी राजाओं को जन्म दिया । उन्होंने जहां विजयों द्वारा साम्राज्य का विस्तार किया , वहां कुशल शासन प्रबन्ध की भी व्यवस्था की । परन्तु बाद के गुप्त राजा इस महान् साम्राज्य को सम्भालने में असमर्थ रहे । परिणामस्वरूप गुप्त साम्राज्य छिन्न – भिन्न हो गया । प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ ० आर ० सी ० मजूमदार का मानना है कि गुप्त साम्राज्य के पतन के लिए वही कारण उत्तरदायी थे , जो पूर्वकालीन मौर्य साम्राज्य के लिए उत्तरदायी थे । इन कारणों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी उनके पतन के लिए उत्तरदायी थे । इन सभी कारणों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है
1. निर्बल उत्तराधिकारी -Weak Successors – गुप्त साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण स्कन्दगुप्त के बाद के निर्बल गुप्त शासक थे । स्कन्दगुप्त के पश्चात् पुरुगुप्त , नरसिंह गुप्त , बालादित्य गुप्त , बुद्धगुप्त और भानुगुप्त आदि सभी गुप्त शासक इस विशाल साम्राज्य को सम्भालने में असमर्थ रहे । उनमें महान् शासकों जैसे गुण नहीं थे । वे न तो महान् सैनिक ही थे और न ही महान् शासक प्रबन्धक कमज़ोर उत्तराधिकारी भला कब तक राज्य सम्भालते । अतः गुप्त वंश पतन की ओर अग्रसर हुआ ।
2. उत्तराधिकारी व्यवस्था का अभाव -Absence of the Law of Succession – गुप्त राजाओं में उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम नहीं था । लगभग प्रत्येक राजा की मृत्यु के पश्चात् गृह युद्ध छिड़ते रहे । उदाहरणस्वरूप चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को राजगद्दी के लिए अपने बड़े भाई रामगुप्त का वध करना पड़ा था । इन गृह युद्धों से राज्य की शक्ति क्षीण होती चली गई । उसकी मान – मर्यादा को भी काफ़ी ठेस पहुंची । यही बात अन्त में गुप्त साम्राज्य को ले डूबी ।
3. आन्तरिक विद्रोह -Internal Revolts – समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त की असीम सैनिक शक्ति के सामने अनेक भारतीय राजाओं ने घुटने टेक दिए थे । परन्तु बाद के गुप्त शासकों के काल में इन शक्तियों ने फिर से ज़ोर पकड़ना आरम्भ कर दिया । राज्य में अनेक विद्रोह होने लगे । मालवा के राजा यशोधर्मा ने विद्रोह करके स्वयं को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया । उसकी सफलता से प्रेरित होकर कन्नौज में हरिवर्मन , सौराष्ट्र में भटारक , उत्तरी बंगाल में वैन्यगुप्त तथा पूर्वी बंगाल में धर्मादित्य ने स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया । परिणामस्वरूप साम्राज्य छिन्न – भिन्न होता चला गया । डॉक्टर आर ० सी ० मजूमदार के अनुसार , 4 ” इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यशोधर्मा ने गुप्तों के सम्मान व प्रभुत्व को गहरा आघात पहुंचाया । इसने पहले से कार्यरत समस्त विघटनकारी शक्तियों को प्रोत्साहित किया ।
4. साम्राज्य की विशालता -Vastness of Empire ) — अपनी विजयों के परिणामस्वरूप समुद्रगुप्त तथा • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने गुप्त साम्राज्य को विशालता प्रदान की । यह साम्राज्य हिमालय से लेकर नर्मदा तक तथा ब्रह्मपुत्र से लेकर अरब सागर तक विस्तृत था । इतने विशाल साम्राज्य को उन दिनों नियन्त्रण में रखना कोई सुगम कार्य नहीं था । यातायात के साधन सुलभ न थे । शक्तिशाली गुप्त शासकों ने तो इतने बड़े साम्राज्य पर पूरा रखा । परन्तु दुर्बल राजाओं के काल में दूर स्थित प्रान्तों ने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी । परिणामस्वरूप गुप्त साम्राज्य का पतन अवश्यम्भावी हो गया ।
5. कमज़ोर आर्थिक दशा -Weak Economic Condition — धन सुदृढ़ शासन व्यवस्था की आधारशिला माना जाता है । इतिहास इस बात का साक्षी है कि धन के अभाव के कारण कई साम्राज्य पतन के गड्ढे में जा गिरे । यही बात गुप्त साम्राज्य पर भी लागू होती है । आरम्भ के गुप्त शासकों ने कला , साहित्य और सैन्य संगठन पर अत्यधिक धन व्यय किया । इसके अतिरिक्त बाद के गुप्त राजाओं को हूणों के साथ युद्धों में काफ़ी धन व्यय करना पड़ा । इससे सरकारी कोष खाली हो गया और आर्थिक रूप से कमज़ोर राज्य एक रेत की दीवार के समान गिर गया ।
6. सैनिक निर्बलता -Weakness of the Army – गुप्त काल समृद्धि और वैभव का युग था । सभी सैनिकों को अच्छा वेतन मिलता था । परन्तु एक लम्बे समय तक युद्ध न होने के परिणामस्वरूप सैनिक विलासप्रिय तथा कमज़ोर हो गए थे । अतः जब देश पर आक्रमण होने आरम्भ हुए तो वे आक्रमणकारियों का सामना करने में असफल रहे । वे आन्तरिक विद्रोहों को भी न कुचल सके । जिस साम्राज्य की सैनिक शक्ति दुर्बल पड़ गई हो , उस राज्य का पतन स्वाभाविक ही था । डॉ ० अरुण भट्टाचार्जी के अनुसार , ” सैनिक जोश की भावना कम हो जाने के कारण साम्राज्य दुर्बल हो गया और इसने गुप्त साम्राज्य के पतन को तीव्र कर दिया ।
7. बौद्ध धर्म का प्रभाव -Effect of Buddhism – समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य जैसे आरम्भिक गुप्त शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे । इन्होंने उत्तरी तथा दक्षिणी भारत के अनेक प्रदेशों पर विजय पाई और साम्राज्य का विस्तार किया । समुद्रगुप्त ने तो महान् हिन्दू सम्राटों की भान्ति अश्वमेध यज्ञ भी रचाया था । परन्तु बुद्धगुप्त और बालादित्य जैसे बाद के गुप्त शासकों ने बौद्ध धर्म को अपना लिया । परिणामस्वरूप उन्होंने युद्ध का त्याग कर शान्ति की नीति का सहारा लिया । यह बात गुप्त साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुई ।
8. सीमान्त नीति -Frontier Policy — चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के पश्चात् किसी भी गुप्त राजा ने राज्य की सीमा सुरक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया । न तो सीमा पर कोई नए दुर्ग बनाए गए और न ही वहां सेनाएं रखी गईं । परिणामस्वरूप जब देश पर हूणों ने आक्रमण किए तो वे सीधे देश के भीतरी भागों में घुसते चले आए । हूणों को सीमाओं पर ही खदेड़ दिया जाता तो गुप्त वंश का पतन शायद रुक जाता । अतैव उचित सीमा व्यवस्था । यदि न होने के कारण गुप्त वंश का पतन आरम्भ हो गया ।
9. हूण जातियों के आक्रमण -Huna Invasions — गुप्त साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण हूण जाति के आक्रमण थे । उनके पहले आक्रमण कुमारगुप्त तथा स्कन्दगुप्त के काल में हुए । उन्होंने तो हूणों को बुरी तरह से पराजित किया था । परन्तु ये आक्रमण बाद के शासकों के काल में भी जारी रहे । अप्रत्यक्ष रूप से गुप्त राज्य पहले ही खोखला हो चुका था । आखिर गुप्त साम्राज्य उनका प्रहार सहन न कर सका और पतन के गड्ढे में जा गिरा । डॉ ० वी ० ए ० स्मिथ के शब्दों में , ” पांचवीं और छठी शताब्दी के हूणों के आक्रमणों ने उत्तरी तथा पश्चिमी भारत के राजनीतिक एवं सामाजिक इतिहास में मोड़ ला दिया । उन्होंने गुप्त साम्राज्य को छिन्न – भिन्न कर दिया और इस प्रकार कई नए राज्यों के पनपने के लिए क्षेत्र तैयार कर दिया |