हर्षवर्धन में समुद्रगुप्त तथा अशोक दोनों के ही कुछ गुण विद्यमान् थे

हर्षवर्धन में समुद्रगुप्त तथा अशोक दोनों के ही कुछ गुण विद्यमान् थे | Harshavardhan Mein Samudragupt Aur Ashok Donon Ke Kuch Gun The

हर्षवर्धन उत्तरी भारत का एक प्रतापी शासक था । वह एक महान् योद्धा होने के साथ – साथ धर्म – परायण तथा साहित्य – स्नेही सम्राट् भी था । उसकी सफलताओं के सूक्ष्म निरीक्षण से यूं प्रतीत होता है , मानो वह अशोक तथा समुद्रगुप्त के जीवन का मिश्रण हो । अशोक ने अपने जीवन में युद्ध तो किया , परन्तु उसकी महानता धर्म प्रचार में निहित थी ।

समुद्रगुप्त विद्वान् तथा कला – प्रेमी तो था , परन्तु इतिहास में उसे महान् योद्धा के रूप में याद किया जाता है । परन्तु हर्षवर्धन अशोक की भान्ति महान् धर्म प्रचारक और समुद्रगुप्त की भान्ति महान् योद्धा दोनों था । वह इन दोनों की कलाप्रियता के गुणों से भी सुसज्जित था । निम्नवर्णित बातों से यह स्पष्ट हो जाएगा कि हर्ष में अशोक तथा समुद्रगुप्त दोनों के गुण विद्यमान थे

हर्षवर्धन में अशोक के गुण -Qualities of Ashoka in Harsha

1. महान् धर्म प्रचारक -Great Religious Preacher  — हर्षवर्धन अशोक की भान्ति महान् धर्म प्रचारक था । अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म का आश्रय लिया था । उसने बौद्ध धर्म के विकास के लिए भिक्षुओं की धन से सहायता की , बौद्ध तीर्थ यात्राएं कीं तथा बौद्ध सभा का आयोजन किया । उसने बौद्ध धर्म को विश्व धर्म बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।

हर्ष ने भी अशोक की तरह बौद्ध धर्म के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । नालन्दा विश्वविद्यालय उस युग में बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा केन्द्र था । उसने इसे संरक्षण प्रदान किया हुआ था । वह प्रतिदिन एक हज़ार बौद्ध भिक्षुओं को दान दिया करता था । बौद्ध धर्म के अहिंसा के सिद्धान्त विशाल बौद्ध सभा का आयोजन करवाया तथा समय – समय पर विभिन्न स्थानों पर बौद्ध प्रचारक भेजे । का पालन करते हुए उसने राज्य में पशु वध पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । इसके अतिरिक्त उसने कन्नौज में एक युद्ध के पश्चात् अशोक ने अपना समस्त जीवन प्रजा को अर्पित कर दिया । अशोक के प्रजा प्रेम की चरम

2. प्रजा – प्रेमी -Lover of the Subject – हर्षवर्धन अशोक की भान्ति प्रजा – हितैषी शासक था । कलिंग के सीमा उसके शिलालेख VI में कही गईं इन पंक्तियों से स्पष्ट हो जाती है , ” किसी भी समय जब मैं खाना खा रहा हूं अथवा रनिवास में हूं अथवा सोने के कमरे में हूं अथवा पशुशाला में हूं अथवा धार्मिक शिक्षा गृह में हूं …. सभी स्थानों पर कर्मचारी मुझे प्रजा की सूचना देते रहें.मुझे सारी प्रजा की भलाई हेतु कार्य क्योंकि सारी प्रजा की भलाई से अधिक आवश्यक कोई अन्य कार्य नहीं है । ” हर्षवर्धन प्रजा हितार्थ कार्यों के लिए प्रसिद्ध है ।

वह जनता के दुःखों के प्रति सजग रहता था । प्रजा के दुःखों का भी करना चाहिए अपने पता लगाने के लिए वह राज्य का भ्रमण किया करता था । प्रजा हितार्थ कार्यों में वह राज्य की आय का एक भाग व्यय कर दिया करता था । उसने अशोक की भान्ति धर्मशालाएं बनवाई , औषधालय खुलवाए तथा सड़कों की व्यवस्था की । परिणामस्वरूप हर्षवर्धन के काल में प्रजा सुखी और समृद्ध थी । के

3. सादा जीवन -Simple Life – हर्षवर्धन अशोक की भान्ति सादा जीवन व्यतीत करता था । अशोक का व्यक्तिगत जीवन अनुकरणीय था । वह कलिंग युद्ध से पूर्व बड़ी ठाठ – बाट से रहता था , परन्तु इस युद्ध वह भिक्षु का – सा जीवन व्यतीत करने लगा । अब वह न तो राजकीय ठाठ – बाट से रहता था और न ही सुन्दर वस्त्र पश्चात् धारण करता था । उसने मांस खाना तक छोड़ दिया था । इस प्रकार राजा भिक्षु बनकर जनता के सम्मुख आया । इधर हर्ष के जीवन पर दृष्टिपात कीजिए ।

वह भी बिल्कुल तप और त्याग की मूर्ति दिखाई देता है । वह निर्धनों की दिल खोल कर सहायता करता था । हर पांच वर्ष बाद वह प्रयाग सम्मेलन में अपनी अधिकांश आय दान कर देता था । 643 ई ० में प्रयाग की सभा में उसने अपने बहुमूल्य वस्त्र तथा आभूषण तक दान में दे दिए थे । हर्ष ने अशोक की ही भान्ति अपनी जनता के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत किया । उसने भी मांस खाना छोड़ दिया तथा शिकार खेलना बन्द कर दिया । यह सादगी की चरम सीमा थी और इसी कारण हम उसे अशोक की पंक्ति में खड़ा कर सकते हैं ।

4. धार्मिक सहनशीलता -Religious Toleration – हर्षवर्धन में अशोक के समान धार्मिक सहनशीलता का गुण भी विद्यमान था । अशोक स्वयं बौद्ध मत का अनुयायी था , परन्तु वह अन्य धर्मों का भी समान आदर करता था । जहां वह बौद्ध भिक्षुओं की धन से सहायता करता था , वहां वह ब्राह्मणों को दान देने में भी कभी पीछे नहीं रहा । उसने लोगों में बौद्ध धर्म के प्रसार का भरसक प्रयास किया , परन्तु किसी को बौद्ध मत अपनाने के लिए कभी विवश नहीं किया ।

अशोक की धार्मिक सहनशीलता उसके एक अभिलेख में कहे गए इन शब्दों से स्पष्ट हो जाती है , ” केवल अपने धर्म का आदर और अन्य धर्मों की निन्दा नहीं करनी चाहिए , अपितु प्रत्येक अवसर पर दूसरे धर्मों का भी सम्मान करना चाहिए । ऐसा करके व्यक्ति जहां अपने धर्म को ऊंचा उठाता है , वहां अन्य धर्मों का भी हित करता है । ” इसी प्रकार हर्ष भी इस गुण में अशोक की है । उसने अशोक की भान्ति बौद्ध धर्म का प्रसार करने के लिए अनेक कार्य किए , परन्तु कभी भी किसी को बौद्ध तुलना में पूरा उतरता मत ग्रहण करने के लिए बाध्य नहीं किया । वह सभी धर्मों का समान आदर करता था । बौद्ध भिक्षुओं के साथ साथ ब्राह्मणों को दान देना वह अपना कर्त्तव्य मानता था ।

समय – समय पर वह बौद्ध धर्म के साथ – साथ अन्य धर्मों के देवी – देवताओं की उपासना करता था । प्रयाग की एक सभा में उसने अपनी प्रजा के सम्मुख धार्मिक सहनशीलता का एक महान् आदर्श प्रस्तुत किया । इस सभा में उसने पहले दिन महात्मा बुद्ध की , दूसरे दिन सूर्य की तथा तीसरे दिन शिव की आराधना की । तत्पश्चात् उसने कई दिनों तक भिक्षुओं तथा ब्राह्मणों में धन बांटा ।

5. महान् शासन प्रबन्धक -reat Administrator – हर्षवर्धन भी अशोक की भान्ति एक महान् शासन प्रबन्धक था । अशोक ने एक उच्च कोटि के शासन की व्यवस्था की थी । प्रजा की भलाई करना उसके शासन का मुख्य उद्देश्य था । उसका केन्द्रीय प्रबन्ध , प्रान्तीय प्रबन्ध , स्थानीय प्रबन्ध तथा न्याय प्रबन्ध अत्यन्त सराहनीय एवं कुशल था । अशोक का सबसे श्रेष्ठ शासन सम्बन्धी कार्य महामात्र , राजुक तथा युक्त आदि कर्मचारियों की नियुक्ति करना था ।

हर्षवर्धन में समुद्रगुप्त तथा अशोक दोनों के ही कुछ गुण विद्यमान् थे

इनके सहयोग से उसने जहां अपनी प्रजा को हर सम्भव सुविधा प्रदान की , वहां लोगों का नैतिक उत्थान में चारों ओर शान्ति थी । ठीक यही बात हर्ष के शासन प्रबन्ध में भी झलकती प्रान्तीय , स्थानीय तथा न्याय भी किया । परिणामस्वरूप उसके है । उसने भी प्रजा हित को अपने शासन का मुख्य आधार बनाया । उसका केन्द्रीय , अशोक की भान्ति प्रजा को प्रत्येक व्यय करता था । हर्षवर्धन द्वारा एक अभिलेख प्रबन्ध अशोक से कम कुशल नहीं था । उसने आय का एक भाग शासन सम्बन्धी कार्यों पर करना उसका अत्यन्त प्रशंसनीय प्रशासनिक कार्य था । सुविधा प्रदान

हर्ष में समुद्रगुप्त के गुण-Qualities of Samudragupta in Harsha

1. महान् योद्धा -Great Warrior  – हर्षवर्धन समुद्रगुप्त की भान्ति एक महान् योद्धा था । समुद्रगुप्त पूरा जीवन युद्धों में उलझा रहा । उसने उत्तरी भारत के 9 राजाओं तथा दक्षिणी भारत के 12 राजाओं को पराजित किया था । वह आजीवन अजेय रहा । उसके शौर्य के सम्मुख सभी राजा नत – मस्तक हो गए । हर्ष भी एक महान् योद्धा था । यह ठीक है कि वह अपने दक्षिणी अभियान में असफल रहा , परन्तु उसने सारे उत्तरी भारत में अपनी शक्ति का डंका बजा दिया था ।

उसने पंजाब , बंगाल , कन्नौज , बिहार तथा उड़ीसा ( गंजम ) पर अपनी पताका फहराई । कामरूप ( आसाम ) के राजा ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली । बाण के कथनानुसार कन्नौज की सभा में 20 राजाओं ने भाग लिया था । इससे स्पष्ट है कि समस्त उत्तरी भारत पर उसकी वीरता का प्रभाव था ।

2. राजनीतिक एकता का संस्थापक -Founder of Political Unity – हर्षवर्धन ने समुद्रगुप्त की भान्ति भारत में राजनीतिक एकता स्थापित की थी । मौर्यकाल के पश्चात् देश की राजनीतिक एकता भंग हो चुकी थी । देश में अनेक छोटे – छोटे राज्य स्थापित हो चुके थे । कनिष्क ने कुछ समय के लिए अपना तेज अवश्य दिखाया , परन्तु यह चिरस्थायी सिद्ध न हुआ । अतः देश को एक सूत्र में बांधने का कार्यभार समुद्रगुप्त के कन्धों पर आ पड़ा ।

उसने उत्तरी भारत के राजाओं को पराजित करके उनके राज्यों को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया । इस प्रकार एक शक्तिशाली केन्द्रीय राज्य की स्थापना हुई । ठीक ऐसा ही महान् कार्य हर्षवर्धन ने भी किया । जब वह सिंहासन पर बैठा , तो उस समय देश अनेक छोटे – छोटे राज्यों में विभक्त था । देश की राजनीतिक एकता भंग हो चुकी थी । ऐसे में हर्ष ने उत्तर के राज्यों पर विजय प्राप्त कर समस्त उत्तरी भारत एक झण्डे तले ला खड़ा किया । इस प्रकार उसने देश में अव्यवस्था का अन्त करके राजनीतिक एकता की स्थापना की ।

3. कला और साहित्य प्रेमी -Lover of Art and Literature  – हर्षवर्धन समुद्रगुप्त की भान्ति कला और साहित्य का प्रेमी था । समुद्रगुप्त एक उच्चकोटि का संगीतज्ञ था । संगीत कला में वह नारद और तुम्बरू को भी लज्जित करता था । कला – प्रेमी होने के साथ – साथ वह उच्च कोटि का विद्वान् भी था । उसने अनेक कविताओं की रचना की थी । इलाहाबाद प्रशस्ति इस बात की पुष्टि करती है । उसमें लिखा है कि उसने ‘ कविराज ‘ की उपाधि ग्रहण की थी । समुद्रगुप्त विद्वानों का भी बड़ा आदर करता था । हरिसेन , असंग , वसुबन्धु जैसे उच्च कोटि के विद्वान् उसके दरबार की शोभा थे ।

उसके संरक्षण में शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण विकास हुआ था । हर्षवर्धन को भी इतिहास में कला और साहित्य के क्षेत्र में विशेष स्थान प्राप्त है । वह एक महान् विद्वान् तथा उच्च कोटि का नाटककार था । ई ० बी ० हैवेल के शब्दों में , ” हर्ष कलम के प्रयोग में उतना ही निपुण था , जितना कि तलवार के प्रयोग में । ” ” बाण ने हर्ष की काव्यकला की भी विशेष सराहना की है । हर्षवर्धन स्वयं विद्वानों का विशेष आर करता था । उसका दरबार बाणभट्ट , जयसेन , दिवाकर , भर्तृहरि जैसे उच्च कोटि के विद्वानों से सुशोभित था । वह अपनी आय का एक भाग इन विद्वानों पर खर्च कर देता था । उसके काल में शिक्षा का भी खूब विकास हुआ । हर्षवर्धन उस समय के प्रमुख शिक्षा केन्द्र नालन्दा विश्वविद्यालय की उदार हृदय सहायता करता था ।

सच यह है कि हर्षवर्धन के जीवन का एक पहलू अशोक से मेल खाता था और दूसरा समुद्रगुप्त से । दूसरे शब्दों में , धर्मपरायणता में अगर वह अशोक की बराबरी करता था , तो सैन्य योग्यता में वह समुद्रगुप्त से किसी प्रकार भी कम न था । अत : डॉ ० आर ० के ० मुखर्जी के ये शब्द पूर्णतः उचित प्रतीत होते हैं कि , ” हर्ष प्राचीन भारत के इतिहास के श्रेष्ठतम् सम्राटों में से एक है । उसमें समुद्रगुप्त और अशोक दोनों के गुण मिश्रित थे । उसका जीवन हमें पहले की सैनिक सफलताओं और दूसरे की पवित्रता की याद दिलाता

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