कनिष्क तथा उसकी विजय
कनिष्क तथा उसकी विजयों का वर्णन करो
कनिष्क-Kanishka
कनिष्क तथा उसकी विजय -कनिष्क कुषाण वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा पराक्रमी शासक था । प्राचीन भारत के सम्राटों में उसे अत्यन्त गौरवशाली स्थान प्राप्त है । उसने कुषाण राज्य को एक विस्तृत साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया तथा वहां एक कुशल शासन व्यवस्था की स्थापना की । इसके अतिरिक्त उसके शासन काल में बौद्ध धर्म पुनः एक विश्व विख्यात धर्म बन गया तथा कला और साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय प्रगति हुई । दुर्भाग्य से हमें कनिष्क के आरम्भिक जीवन , माता – पिता तथा उसके शासनकाल की तिथियों के सम्बन्ध में अधिक ज्ञान प्राप्त नहीं है । इसका प्रमुख कारण यह है कि अधिकतर साक्ष्य विदेशी हमलावरों द्वारा नष्ट कर दिए गए हैं । अतैव कनिष्क के शासनकाल के इतिहास का निर्माण करने के लिए हमें सिक्कों , लेखों तथा मूर्तियों की सहायता लेनी पड़ती है । यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है कि कनिष्क का विम कैडफिसिज के साथ क्या सम्बन्ध है ।
अधिकतर इतिहासकारों का मानना है कि विम की मृत्यु के बाद साम्राज्य में अव्यवस्था फैल गई थी । इसका लाभ उठाकर बनारस के क्षत्रप ( गवर्नर ) कनिष्क ने अन्य क्षत्रपों को हराकर सत्ता प्राप्त कर ली । कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि के सम्बन्ध में इतिहासकारों में बड़ा मतभेद है । कनिंघम , फ्लीट और कैनेडी आदि इतिहासकार मानते हैं कि कनिष्क ई ० पू ० प्रथम शताब्दी में सिंहासन पर बैठा । परन्तु फर्गुसन , रेपसन तथा हेमचन्द्र आदि इतिहासकारों का मानना है कि कनिष्क 78 ई ० में शासक बना डॉक्टर बी ० एन ० पुरी यह तिथि 144 ई ० तथा डॉक्टर मजूमदार इसे 248 ई ० मानते हैं । अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि कनिष्क का शासनकाल 120 ई ० से 162 ई ० तक रहा ।
कनिष्क की विजयें-Conquests of Kanishka
कनिष्क एक महान् विजेता था । उसने विरासत में प्राप्त विशाल साम्राज्य का और अधिक विस्तार किया । परिणामस्वरूप उसके साम्राज्य की सीमाएं उत्तर में बुखारा से लेकर दक्षिण में उज्जैन तक तथा पूर्व में पाटलिपुत्र से लेकर पश्चिम में हिलमन्द नदी तक फैल गईं । कनिष्क तथा उसकी विजय का संक्षिप्त उल्लेख इस प्रकार है
1. कोशल की विजय-Conquest of Koshla — तिब्बती स्त्रोतों के अनुसार कनिष्क ने कोशल प्रदेश र आक्रमण कर इसकी राजधानी अयोध्या पर अधिकार कर लिया । परन्तु हमें इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं है ।
2. कश्मीर की विजय-Conquest of Kashmir – कनिष्क की एक अन्य महान् विजय कश्मीर की विजय थी । राजतरंगिणी के लेखक कल्हण ने स्पष्ट किया है कि कश्मीर में कनिष्क का राज्य रहा तथा वहां उसने ‘ कनिष्कपुर ‘ नामक एक नगर भी बसाया । यह आधुनिक बारामूला के निकट है । चौथी बौद्ध परिषद् का आयोजन भी कश्मीर में ही हुआ था । उसके द्वारा बनवाए गए स्मारक आज भी कश्मीर की घाटी को सुशोभित किए हुए हैं । कनिष्कपुर नगर के खण्डहर आज कनिस्पोर ग्राम का रूप धारण किए हुए हैं ।
3. साम्राज्य का विस्तार-Extent of the Empire – कनिष्क का साम्राज्य अति विस्तृत था । उसके साम्राज्य की सीमाएं उत्तर में बुखारा से लेकर दक्षिण में उज्जैन तक तथा पूर्व में पाटलिपुत्र से लेकर पश्चिम में हिलमन्द नदी तक फैली हुई थीं । इस साम्राज्य के प्रमुख प्रदेश पंजाब , सिन्ध , कश्मीर , मगध , बंगाल , मालवा , अफ़गानिस्तान , बैक्ट्रिया , काशगर , यारकन्द और खोतान थे । उसकी राजधानी का नाम पुरुषपुर ( पेशावर ) था । अन्त में डॉक्टर एच ० वी ० श्रीनिवास मूर्ति का यह कहना पूर्णत : ठीक है , ” उस ( कनिष्क ) के अन्तर्गत कुषाण साम्राज्य अपने शिखर पर पहुंच गया था
4. उज्जैन के शक क्षत्रपों से युद्ध -माना जाता है कि कनिष्क क्षत्रपों से भी टक्कर ली । उसने शक राजा चस्तन अथवा चष्टन को पराजित किया । परिणामस्उवरुप शक कुषाणों के अधीन हो गए तथा मालवा का कुछ प्रदेश कनिष्क के साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया ।
5. चीन से युद्ध-War against China — चीन विजय कनिष्क की सबसे बड़ी सैनिक विजय कही जा सकती है । उसके पूर्वजों ने चीन से मात खाई थी और चीन को वार्षिक कर देना स्वीकार किया था । सैनिक शक्ति के बढ़ते ही उसने सबसे पहले चीन को वार्षिक कर देना बन्द कर दिया और ‘ देवपुत्र ‘ आदि उपाधियां धारण कीं । इन उपाधियों पर चीन के शासक अपना विशेषाधिकार समझते थे । अतः चीनी जनरल पान – चाओ के नेतृत्व वाली एक विशाल सेना के साथ कनिष्क की सेना की टक्कर हुई । इस युद्ध में कनिष्क पराजित हुआ । पराजय के पश्चात् कनिष्क ने अपनी सैनिक तैयारियां तेज़ कर दीं । परिणामस्वरूप फिर युद्ध हुआ और इस बार कनिष्क विजयी हुआ । इस विजय के परिणामस्वरूप कनिष्क ने काशगर , खोतान तथा यारकन्द नामक चीनी प्रान्त अपने साम्राज्य में मिला लिए ।
6. सिन्ध की विजय-Conquest of Sind –सिन्ध से प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार कनिष्क ने अपने शासनकाल के 11 वें वर्ष सिन्ध पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया ।
7. बंगाल की विजय -Conquest of Bengal — कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कनिष्क ने बंगाल पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया था । चीनी स्रोत भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि कनिष्क ने पूर्वी भारत पर आक्रमण किया था ।
8. मगध की विजय-Conquest of Magadha-– बौद्ध परम्पराओं से पता चलता है कि कनिष्क ने मगध राज्य पर भी विजय प्राप्त की थी । कनिष्क ने मगध नरेश को पराजित किया और उससे युद्ध की क्षति मांगी । मगध नरेश ने युद्ध की क्षति के स्थान पर महात्मा बुद्ध का भिक्षु कमण्डल तथा प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् अश्वघोष को सौंप दिए । इस बात का कई अन्य स्रोतों से भी प्रमाण मिलता है कि अश्वघोष कनिष्क का समकालीन था । इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए यह स्वीकार किया जाता है कि कनिष्क ने मगध पर विजय प्राप्त की होगी । इस प्रकार मथुरा , बनारस और बौद्ध गया जो कभी मगध राज्य में सम्मिलित थे , कनिष्क के साम्राज्य का अंग बन गए ।