कनिष्क का चरित्र एवं सफलताएं -Character and Achievements of Kanishka

कनिष्क की गणना न केवल कुषाण वंश , अपितु भारत के महान् शासकों में की जाती है । वह एक महान् विजेता , कुशल शासन प्रबन्धक , धार्मिक नेता तथा कला और साहित्य का महान संरक्षक था । परिणामस्वरूप उसके  शासनकाल में भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में अद्वितीय प्रगति की । कनिष्क का भारतीय इतिहास में स्थान बताते हुए डॉक्टर के ० सी ० चौधरी कहते हैं , ” कुषाण शासकों में केवल कनिष्क ही एक ऐसा नाम छोड़ गया है जिसे भारत में प्यार से याद किया जाता है तथा भारत से बाहर भी लोग उसे मानते हैं ।  कनिष्क की महानता का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित दिया गया है

कनिष्क

1. एक महान् विजेता-A Great Conqueror — कनिष्क एक महान् विजेता था । उसने एक विशाल तथा शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की । उसका साम्राज्य न केवल भारत अपितु मध्य एशिया में भी फैला हुआ था । किसी भी भारतीय शासक के अधीन मध्य एशिया का इतना बड़ा भाग नहीं रहा जितना कि कनिष्क के अधीन रहा । उसने तत्कालीन पार्थियन साम्राज्य तथा चीन साम्राज्य को परास्त करके अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी । निस्सन्देह कनिष्क के अधीन कुषाण साम्राज्य अपनी पराकाष्ठा पर था ।

2. कला का एक महान् प्रेमी-As a Great Lover of Art  — कनिष्क कल ा का महान् प्रेमी था । उसके • शासनकाल में कला के अलग – अलग क्षेत्रों में आश्चर्यजनक प्रगति हुई । उसने अनेक शहरों , स्तूपों और विहारों का निर्माण करवाया । उसके द्वारा बनवाए गए शहरों में कनिष्कपुर ( कश्मीर ) तथा तक्षशिला ( रावलपिण्डी ) शहर सुविख्यात हैं । उसने अपनी राजधानी पुरुषपुर ( पेशावर ) में 400 फीट ऊंचा स्तूप बनवाया । इसका निर्माण इसके अतिरिक्त कनिष्क के काल में बहुत मनमोहक मूर्तियां बनाई गईं । गान्धार और मथुरा इस कला के दो कार्य यूनानी शिल्पकार एजीलीसस के अन्तर्गत किया गया । शताब्दियों तक यह चैत्य आकर्षण का केन्द्र बना रहा । • सर्वाधिक विख्यात केन्द्र थे । कनिष्क ऐसा प्रथम शसक था जिसने रोमन शासकों की भान्ति प्रथम बार अति उत्तम कोटि के सिक्के चलाए । ये सिक्के अधिकतर स्वर्ण के थे । संक्षेप में , कनिष्क के समय भवन निर्माण कलाम  मूर्तिकला और सिक्के बनाने की कला में महत्त्वपूर्ण विकास हुआ ।

3. एक कुशल प्रशासक-An Efficient Administrator – कनिष्क ने अपने विस्तृत साम्राज्य में एक प्रभावशाली प्रशासकीय व्यवस्था स्थापित करके स्वयं को एक कुशल प्रशासक सिद्ध कर दिया । उसके प्रशासन का मुख्य उद्देश्य प्रजा की भलाई था । अपने विस्तृत साम्राज्य की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसने समस्त साम्राज्य को अनेक स्ट्रेपीज़ ( प्रान्तों ) में विभाजित कर दिया । ये स्ट्रेपीज़ क्षत्रप अथवा महाक्षत्रप ( गवर्नर ) के अधीन थे । ये क्षत्रप अथवा महाक्षत्रप अपने – अपने प्रान्तों की शासन व्यवस्था सम्भालते थे तथा अपने प्रत्येक कार्य के लिए सम्राट् के प्रति उत्तरदायी होते थे । कनिष्क की शासन व्यवस्था की कुशलता का एक उदाहरण यह है कि उसके शासनकाल में कभी विद्रोह नहीं हुआ । डॉक्टर के ० सी ० चौधरी के अनुसार , ” कनिष्क न केवल एक वीर योद्धा और महान् विजेता ही था , अपितु उतना ही महान् शासन प्रबन्धक भी था । 12 मे

4. साहित्य का एक महान् संरक्षक-As a Great Patron of Literature – कनिष्क साहित्य का महान् संरक्षक था । उसने अपने दरबार में साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया हुआ था । कनिष्क के दरबार का सर्वाधिक प्रसिद्ध रत्न अश्वघोष था । वह एक महान् कवि तथा नाटककार था । उसकी तुलना पश्चिमी जगत् के मिल्टन तथा कांट से की जाती है । उसके द्वारा रचित विख्यात ग्रन्थ ‘ बुद्धचरित ‘ की तुलना महाकाव्य की जाती है । इसमें उसने महात्मा बुद्ध के जीवन का अति सुन्दर वर्णन किया है । अश्वघोष द्वारा रचित अन्य ग्रन्थों में ‘ सौंदरानन्द ‘ , ‘ सूत्रालंकार ‘ तथा ‘ वज्रसूची ‘ प्रसिद्ध हैं ।

नागार्जुन उसके दरबार का प्रसिद्ध दार्शनिक था । उसने ‘ माध्यमिक सूत्र ‘ नामक ग्रन्थ की रचना की । इस ग्रन्थ से हमें बौद्ध धर्म से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रात होती है । कनिष्क के दरबार के अन्य रत्नों में वसुमित्र का नाम उल्लेखनीय है । उसने ‘ महाविभाष ‘ नामक विख्यात ग्रन्थ की रचना की । चरक उस काल का सर्वाधिक प्रसिद्ध वैद्य था । उसके द्वारा रचित ‘ चरक संहिता ‘ से हमें आयुर्वेद से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है । इस प्रकार हम देखते हैं कि कनिष्क काल साहित्यिक रूप से अति समृद्ध था । अन्त में डॉ ० आर ० एस ० त्रिपाठी के अनुसार , ” निःसन्देह भारत के कुषाण सम्राटों में कनिष्क का सबसे अधिक आकर्षक व्यक्तित्व है । वह एक महान् विजेता और बौद्ध धर्म का संरक्षक था और इस रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य की सैनिक योग्यता तथा अशोक का धार्मिक उत्साह दोनों उसमें समान मात्रा में उपलब्ध थे ।

5. बौद्ध धर्म का प्रचारक -As a Preacher of Buddhism  – कनिष्क का बौद्ध धर्म को लोकप्रिय बनाने बहुत ही प्रशंसनीय योगदान है । बौद्ध उसे दूसरा अशोक मानते हैं । सर्वप्रथम , कनिष्क ने बौद्ध धर्म में वांछित सुधार किए । दूसरा , बौद्ध भिक्षुओं को संरक्षण प्रदान किया गया । तीसरा , समूचे राज्य में बौद्ध विहारों और मठों की स्थापना की गई । चौथा , महात्मा बुद्ध तथा बोधिसत्वों की सुन्दर मूर्तियां बनवाई गईं । पांचवां , बौद्ध धर्म से सम्बन्धित साहित्य की रचना को प्रोत्साहन दिया गया । छठा , कश्मीर में बौद्ध विद्वानों की चतुर्थ सभा बुलवाई गई । सातवां , बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए चीन , जापान , तिब्बत तथा अन्य देशों में बौद्ध प्रचारक भेजे । इन प्रयासों के परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म ने अत्यधिक प्रगति की । कनिष्क के चरित्र की एक अन्य महानता यह थी कि उसने अन्य धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई ।

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