कौटिल्य का अर्थशास्त्र
कौटिल्य का अर्थशास्त्र-Kautilya’s Arthashastra
कौटिल्य के अर्थशास्त्र – भारत ने अनेक राजाओं को जन्म दिया जिन्होंने अपनी जनता पर शासन किया । परन्तु ऐसे लोगों को कभी – कभी जन्म दिया जिन्होंने राजाओं पर शासन किया । कौटिल्य ऐसे ही भाग्यशाली व्यक्तियों में से था जिसने राजा न होकर भी राजाओं जैसा गौरव पाया । कौटिल्य मौर्य काल की एक महान् विभूति था । वह जाति का ब्राह्मण था । उसे विष्णुगुप्त तथा चाणक्य के नाम से भी पुकारा जाता है । उसने नन्द वंश को समाप्त करने की शपथ ली थी और उसने अपनी शपथ पूरी की । उसने प्रधानमन्त्री के रूप में शासन प्रबन्ध का रूप निखारने में चन्द्रगुप्त मौर्य की काफ़ी सहायता की । कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र भारत का एक प्राचीन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । कुछ विद्वानों का कथन है कि अर्थशास्त्र कौटिल्य की रचना नहीं है तथा इसकी रचना चन्द्रगुप्त के शासनकाल के बहुत समय पश्चात् हुई । परन्तु अन्य इतिहासकार उनके इस मत से सहमत नहीं हैं । उनका कहना है कि इस ग्रन्थ की रचना कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त के शासनकाल ही की थी । इसमें उसने राजनीतिक सिद्धान्तों का उल्लेख किया है । इसके सूक्ष्म अध्ययन से हम मौर्यों के शासनकाल के विषय में उपयोगी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । यह ग्रन्थ 15 अधिकरणों तथा 180 प्रकरणों में बंटा हुआ है । प्रायः इसकी तुलना प्रसिद्ध दार्शनिक मैक्यावली की पुस्तक ‘ दिप्रिंस ‘ से की जाती है । अर्थशास्त्र से हमें मौर्य काल की निम्नलिखित बातों की जानकारी मिलती है
1. राजा के विषय में-About the King – कौटिल्य के अनुसार राजा को निरंकुश होना चाहिए । उसकी शक्तियां असीम होनी चाहिएं और इन शक्तियों पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए । परन्तु फिर भी राजा को अपने मन्त्रियों के परामर्श से शासन कार्य चलाना चाहिए । उसे सदाचारी तथा विद्वान् होना चाहिए । उसे ब्राह्मणों का मान करना चाहिए । कौटिल्य के अनुसार प्रत्येक राजा को योद्धा होना चाहिए । उसे अपने राज्य का विस्तार करना चाहिए । इसके लिए उसे एक विशाल सेना का गठन करना चाहिए । राजा को चाहिए कि वह युद्ध के समय सैनिकों को धार्मिक भावना से प्रेरित करे । कौटिल्य के अनुसार धार्मिक उद्देश्य से लड़ी जाने वाली लड़ाई में सैनिक अधिक वीरता का प्रदर्शन करते हैं और अवश्य विजयी रहते हैं । कौटिल्य युद्ध जीतने के लिए सभी साधन उचित मानता है । उसके अनुसार शत्रु को पराजित करने के लिए राजा को धोखेबाजी , षड्यन्त्रों तथा अन्य गुप्त चालों से भी काम लेने में संकोच नहीं करना चाहिए ।
2. सैनिक प्रबन्ध के विषय में-About the Military Administration – कौटिल्य अर्थशास्त्र द्वारा चन्द्रगुप्त के सैनिक प्रबन्ध पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालता है । उसने नौ – सेना की आवश्यकता पर भी विशेष बल दिया है । उसके अनुसार नदियों में आने वाली नावों तथा जहाजों की देखभाल करने के लिए प्रत्येक बन्दरगाह पर एक अधिकारी नियुक्त होना चाहिए । सभी नावों तथा जहाजों पर सरकार का नियन्त्रण होना चाहिए । सच तो यह है कि अर्थशास्त्र एक उपयोगी ग्रन्थ है । इसका महत्त्व केवल चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए ही नहीं था , बल्कि आज की सरकार के लिए भी है । अर्थशास्त्र के नियम एक ऐसे अनुशासन की व्यवस्था करते हैं जो किसी भी राष्ट्र के प्रबन्ध के लिए अति आवश्यक हैं । विन्टरनिट्ज ( Winternitz ) के शब्दों में , ” अर्थशास्त्र सम्पूर्ण भारतीय साहित्य की अद्वितीय कृति है ।
3. राजा के छःशत्रुओं के विषय में -About Six Enemies of King — कौटिल्य के अनुसार राजा के छः मुख्य शत्रु होते हैं-
( 1 ) काम
( 2 ) क्रोध
3 ) अहंकार
( 4 ) लोभ
5 ) चापलूसी
( 6 ) विलासिता ।
राजाओं के पतन में सदा इन्हीं अवगुणों का हाथ रहा है । अतः उसे इन शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए । इस बात से कौटिल्य का अभिप्राय यह नहीं है कि राजा को योगियों अथवा साधुओं जैसा जीवन व्यतीत करना चाहिए । वह • तो केवल राजा को चेतावनी देता है कि वह इन बुराइयों के जाल में न फंसे । कौटिल्य यह कहना चाहता है कि इन बुराइयों में फंसने वाला राजा कभी भी अपने कर्त्तव्य का पालन ठीक तरह से नहीं कर पाता । परिणामस्वरूप वह राजपद खो बैठता है ।
4. मन्त्रियों के विषय में-About the Ministers — कौटिल्य के अनुसार राजा को शासन सम्बन्धी कार्यों में मन्त्रियों की सहायता लेनी चाहिए । वह लिखता है , ” जिस प्रकार रथ एक पहिए से नहीं चल सकता , उसी प्रकार राजा अकेला शासन नहीं चला सकता । ” मन्त्रियों के चुनाव में राजा को बुद्धिमत्ता तथा ईमानदारी से काम लेना चाहिए । उसे सदा योग्य , वीर , बुद्धिमान् एवं ईमानदार व्यक्तियों को अपना मन्त्री नियुक्त करना चाहिए । कौटिल्य के अनुसार राजा को अपने मन्त्रियों की सलाह तो अवश्य लेनी चाहिए , परन्तु उनके सुझाव मानने के लिए उसे बाध्य नहीं होना चाहिए । कौटिल्य की इसी बात को ध्यान में रखते हुए , चन्द्रगुप्त मौर्य ने शासन के विभिन्न विभागों में योग्य मन्त्रियों की नियुक्ति की । कौटिल्य स्वयं उसका प्रधानमन्त्री था ।
5. प्रजा की भलाई के विषय में-About Welfare of the Subjects— कौटिल्य लिखता है कि प्रजा की भलाई करना राजा का महान् आदर्श होना चाहिए । उसे अपना समय ऐश्वर्य में न खोकर प्रजा की भलाई के कार्यों में लगाना चाहिए । राजा को अपनी दुःखी जनता के लिए सुख के साधन जुटाने चाहिएं । यह बात कौटिल्य के अपने शब्दों में और अधिक स्पष्ट हो जाएगी , “ प्रजा की भलाई में उसकी अपनी भलाई है । प्रजा के सुख में उसका अपना सुख है । राजा को ऐश्वर्य में अपना समय नष्ट नहीं करना चाहिए , अपितु उनके दुःखों का निवारण करने का प्रयास करना चाहिए और उनकी शिकायतों को सुनने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए ।
6. गुप्तचर व्यवस्था के विषय में-About Spy System — कौटिल्य लिखता है कि राजा के लिए गुप्तचर नियुक्त करना बड़ा आवश्यक है । वे राजा की आंखों तथा कानों का काम देते हैं । गुप्तचर योग्य तथा ईमानदार होने चाहिएं । कौटिल्य के अनुसार पांच प्रकार के व्यक्तियों को गुप्तचर नियुक्त किया जाना चाहिए – ( 1 ) कृषकों के मध्य रहने वाले लोग , ( 2 ) ज्योतिषी , ( 3 ) साधु , ( 4 ) व्यापारी वर्ग में रहने वाले व्यक्ति , ( 5 ) निकम्मे रहने वाले व्यक्ति उसके अनुसार वेश्याओं तथा दाइयों को भी गुप्तचर नियुक्त करना चाहिए । राजा को चाहिए कि वह उन्हें राज्य के विभिन्न भागों में भेजे तथा उनसे राज्य की घटनाओं की जानकारी प्राप्त करे । स्त्रियों को भी गुप्तचरों का काम सौंपा जाना चाहिए । राजा को चाहिए कि पड़ोसी राज्य में अपने गुप्तचरों को भेज कर वहां की परिस्थितियों की सदा जानकारी रखे ।
7. गुप्त बैठकों के विषय में-About Secret Meetings– कौटिल्य के अनुसार राजा को मन्त्रियों की गुप्त बैठकें बुलानी चाहिएं । राज्य की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि राजा के निर्णय गुप्त रखे जाएं । कौटिल्य के अनुसार , “ दीवारों के भी कान होते हैं । इसलिए गुप्त बैठकें ऐसे स्थानों पर होनी चाहिएं , जहां चिड़िया भी न फड़क सके । ” उसके अनुसार जो राज्य अपने भेद नहीं छिपा पाता , वह राज्य अधिक देर तक स्थिर नहीं रह सकता ।
8. प्रान्तीय तथा नागरिक प्रशासन के विषय में-About the Provincial and City Administration – कौटिल्य के अनुसार शासन – प्रबन्ध को सुचारू रूप से चलाने के लिए राजा को अपना राज्य प्रान्तों में बांट देना चाहिए । प्रत्येक प्रान्त का प्रबन्ध वह किसी गवर्नर अथवा कुमार को सौंप दे जो प्रान्त में राजा के आदेशों को लागू करे । नगरों के प्रबन्ध के लिए विशेष परिषद् होनी चाहिए । कौटिल्य के विचार में नगरों में जनगणना की जानी चाहिए और प्रत्येक नगर की जनगणना का पृथक् ब्योरा रखा जाना चाहिए । अर्थशास्त्र के अनुसार उस समय राज्य चार प्रान्तों में बंटा हुआ था । प्रान्त का मुखिया ‘ कुमार ‘ कहलाता था । उसका वार्षिक वेतन 12 हजार पण था सौराष्ट्र तथा कम्बोज जैसे छोटे प्रान्तों के अध्यक्ष को राष्ट्रीय कहा जाता था । जनता से अनेक प्रकार के कर उगाहे जाते थे । इनमें से भूमि कर प्रमुख था । यह कुल उपज का 1/6 अथवा 1/4 भाग होता था । उस समय कुछ सिक्के भी प्रचलित थे जो राजा की अपनी टकसाल में बनाए जाते थे ।
9. प्रजा की आर्थिक दशा के विषय में-About the Economic Condition of the People— कौटिल्य के अनुसार राजा को अपनी प्रजा के आर्थिक उत्थान की ओर पूरा ध्यान देना चाहिए । वह लिखता है कि राजा को प्रजा के खाने – पीने की वस्तुओं का कभी अभाव नहीं होने देना चाहिए । निर्धनता के कारण असन्तोष फैलता है और असन्तोष से विद्रोह की भावना पनपती है । लोग अपने राजा के शत्रुओं से मिल जाते हैं और उनके हित के विरुद्ध काम करते हैं । अतः राजा जब निर्धनता के चिह्न देखे , उसे सावधान हो जाना चाहिए । उसे तब तक चैन से नहीं बैठना चाहिए जब तक लोग सुखी न हो जाएं ।