आरम्भिक कुषाण-Early Kushanas

कुषाण कौन थे –

मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात् भारत के विभिन्न भागों की बागडोर शुंग , कण्व , आन्ध्र आदि राजवंशों के हाथ में रही । परन्तु इनमें से कोई भी राजवंश भारत में विशाल साम्राज्य स्थापित करने में सफल न हो सका । तत्पश्चात् प्रथम शताब्दी ई ० पू ० में भारत का भाग्य एक बार फिर जगमगाया और यहां एक विशाल एवं शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना हुई । इसका श्रेय कुषाण जाति के शासकों को जाता है । कुषाण लोग कौन थे और कहां से आए थे ? इस विषय में यद्यपि कोई विस्तृत विवरण प्राप्त नहीं है फिर भी हम चीनी सूत्रों के आधार पर कह सकते हैं कि कुषाण लोग यू ची नामक जाति की एक शाखा थे । यू – ची जाति चीन के गोबी प्रदेश में रहती थी ।

कुषाण कौन थे

लगभग 165 ई ० पू ० में हूण जाति ने गोबी प्रदेश पर आक्रमण करके यू- ची जाति को पश्चिम की ओर खदेड़ दिया । पश्चिम की ओर जाने वाले इस जाति के लोगों को मार्ग में वु – सुन जाति के लोगों से संघर्ष करना पड़ा ।  इस संघर्ष में वु – सुन जाति पराजित हुई । तत्पश्चात् यू- ची जाति के कुछ लोग तिब्बत की सीमा पर जा बसे और शेष पश्चिम की ओर बढ़ते रहे । आगे बढ़ते हुए यू- ची जाति के लोगों ने मार्ग में शकों से टक्कर ली और उन्हें पराजित करके उनसे सर प्रदेश की खाड़ी छीन ली । परन्तु वु- सुन जाति के लोगों ने हूणों की सहायता से उन्हें वहां से मार भगाया । तत्पश्चात् यू – ची पश्चिम तथा दक्षिण की ओर बढ़े । आक्सस की खाड़ी के निकट उनकी टक्कर फिर शकों से हुई । इस संघर्ष में उन्होंने शकों से बैक्ट्रिया अथवा ताहिया प्रदेश छीन लिया और वहीं रहने लगे । उन्होंने आधुनिक बुखारा प्रदेश को अपनी राजधानी बनाया । चीनी इतिहासकारों के अनुसार उस समय इस प्रदेश का नाम कीनशे था । बैक्ट्रिया प्रदेश में स्थायी रूप से बस जाने के पश्चात् यू- ची जाति पांच शाखाओं हिऊमी , चाऊआंग – मी , कोई – चाउआंग , ही – तुन तथा ताउ – मी में बंट गई । इस विभाजन के लगभग 100 वर्ष बाद अर्थात् ईसा की पहली शताब्दी के आरम्भ में कोई – चाउआंग शाखा ने अन्य शाखाओं के राज्यों को बलपूर्वक अपने अधीन कर लिया । इस शाखा का नेता कुजुल कैडफिसिज उनका बोग ( राजा ) बना । यही जाति आगे चलकर ‘ कुषाण ‘ कहलाई ।

I. आरम्भिक कुषाण शासक-The Early Kushanas-आरम्भिक कुषाण शासकों का वर्णन इस प्रकार से हैं

1. कुजुल कैडफिसिज 40-78 ई ०- Kujula Kadphises 40-78A.D .— कुजुल कैडफिसिज ही भारत में कुषाण वंश का संस्थापक था । उसे कैडफिसिज प्रथम के नाम से भी पुकारा जाता है । अपने राज्य का विस्तार करने 165 काबुल के के लिए उसने अनेक देशों पर आक्रमण किए । बैक्ट्रिया में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के पश्चात् उसने सर्वप्रथम पार्थिया ( ईरान ) पर आक्रमण किया और वहां के कुछ प्रदेशों पर अधिकार जमा लिया । तत्पश्चात् उसने की घाटी तथा गान्धार प्रदेश पर आक्रमण कर यहां के यूनानी शासक को पराजित किया । इस प्रकार कुजुल कैडफिसिज ने एक विशाल राज्य की स्थापना की जिसके अन्तर्गत बैक्ट्रिया , काबुल घाटी , गान्धार और पूर्वी ईरान शामिल थे । दूसरे शब्दों में उसका राज्य आक्सस नदी से तक्षशिला तक फैला हुआ था । तत्पश्चात् उसने यू- ची जाति की परम्परागत छोटी – सी उपाधि यवुग ( सरदार ) को छोड़कर ‘ महाराजाधिराज ‘ की उपाधि धारण की । कुजुल कैडफिसिज पहला कुषाण शासक था जिसने हिन्दूकुश के दक्षिण में अपनी मुद्राएं चलायीं । उसके तांबे के सिक्के बहुत बड़ी संख्या में मिले हैं । इनमें से कुछ सिक्कों पर ‘ सत्यधर्मस्थित ‘ शब्द खुदे हुए हैं । इससे यह अनुमान लगाया गया कि वह सच्चे धर्म अर्थात् बौद्ध मत का अनुयायी था । उसके सिक्कों पर विदेशी प्रभाव के स्पष्ट लक्षण दिखाई देते हैं । इससे यह सिद्ध होता है कि उस समय भारत का रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार चलता था । 78 ई ० में कुजुल कैडफिसिज की मृत्यु हो गई ।

2. विम कैडफिसिज 78-110 ई ०- Vima Kadphises 78-110 A.D — कुजुल कैडफिसिज की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र विम कैडफिसिज अथवा कैडफिसिज द्वितीय उसका उत्तराधिकारी बना । वह बड़ा ही वीर तथा साहसी योद्धा था । उसने अपने पिता की साम्राज्यवादी नीति को जारी रखा । उसने सिन्धु नदी पार करके पंजाब और उत्तर प्रदेश पर अपना अधिकार जमा लिया । कश्मीर और सिन्ध के भारतीय प्रान्तों पर शासन करने के लिए उसने अपने सूबेदार अथवा प्रतिनिधि नियुक्त किए । विम कैडफिसिज एक कुशल शासन प्रबन्धक भी था । उसने अपने राज्य को अनेक छोटे – छोटे प्रान्तों में विभाजित किया । इन्हें स्ट्रेपीज़ कहा जाता था । इनका शासन चलाने के लिए बड़े योग्य राज्यपाल नियुक्त किए गए जिन्हें क्षत्रप कहा जाता था ।

विम ने रोमन सम्राट् ट्राजन के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किए । उसके शासनकाल में भारत तथा रोमन साम्राज्य के मध्य व्यापार में अत्यधिक वृद्धि हुई । रोम का सोना बड़ी मात्रा में भारत पहुंचने लगा क्योंकि व्यापार भारत के पक्ष में था । विम कैडफिसिज के समय के सोने और तांबे के सुन्दर सिक्के मिले हैं । सिक्कों के मुख भाग पर उसका सजीव चित्र है और दूसरी ओर त्रिशूलधारी शिव तथा नदी के चित्र अंकित हैं । इससे पता चलता है कि वह शैव धर्म का • अनुयायी था । स्पष्ट है कि कुषाण आक्रमणकारी शीघ्र ही हिन्दू धर्म में घुल – मिल गए थे । सिक्कों में विम कैडफिसिज को ‘ माहेश्वर ‘ कहा गया है । उसने ‘ महाराजा ‘ , ‘ राजाधिराज ‘ , ‘ सर्वलोकेश्वर ‘ आदि उपाधियां भी धारण की हुई थीं । अपने शासनकाल के अन्तिम वर्षों में विम ने चीन पर आक्रमण किया किन्तु उसे पराजय का सामना करना पड़ा था ।

3. सोटर मेगस-Soter Megas – कुषाण काल की कुछ तांबे की मुद्राओं पर सोटर मेगस नामक शासक का नाम आता है । परन्तु सोटर मेगस कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ? अन्य कुषाण शासकों से उसका क्या सम्बन्ध था ? इन प्रश्नों के लिए इतिहासकारों के पास कोई उपयुक्त उत्तर नहीं हैं । कुछ इतिहासकार विम कैडफिसिज तथा सोटर मेगस को एक ही व्यक्ति मानते हैं । परन्तु यह बात सत्य नहीं है । कुछ अन्य विद्वान् सोटर मेगस को विम कैडफिसिज का गवर्नर मानते हैं । परन्तु यह बात भी सत्य नहीं । अत : सोटर मेगस इतिहासकारों के लिए एक ऐतिहासिक पहेली बनकर रह गया है ।

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Powered By
100% Free SEO Tools - Tool Kits PRO