कुषाणों के अधीन कला तथा साहित्य का विकास  Development of Art And Literature Under the Kushanas

कुषाणों के अधीन कला तथा साहित्य के विकास –

कुषाणों के अधीन कला तथा साहित्य का विकासकुषाण

गान्धार कला-Gandhara Art

गान्धार कला में गान्धार कला को भारतीय कला के मूर्ति इतिहास में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है । इस कला शैली का जन्म कुषाण काल में हुआ । आरम्भ में बौद्ध धर्म में महात्मा बुद्ध की मूर्ति बनाना निषेध था । उनका अस्तित्व घोड़े , छत्र , सिंहासन अथवा चरणपादुकाओं से प्रदर्शित किया जाता था । महायान शाखा के उदय के कारण महात्मा बुद्ध की मूर्तियां अस्तित्व में आईं । ये मूर्तियां अधिकांश गान्धार प्रदेश में पाई गई हैं । इसलिए इसे गान्धार कला का नाम दिया गया है । इस कला की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. अधिकांश मूर्तियों में भूरे पत्थर का उपयोग किया गया है , परन्तु कुछ मूर्तियों में काले स्लेटी पत्थर का उपयोग भी किया गया है ।
  2. इन मूर्तियों का विषय भारतीय है परन्तु उनका निर्माण यूनानी शैली में हुआ है । इसी कारण यह कला भारतीय- यूनानी कला के नाम से भी विख्यात हुई ।
  3. महात्मा बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण घटनाओं जैसे जन्म , धर्म चक्र प्रवर्तन तथा महापरिनिर्वाण आदि को कलाकारों ने मूर्तियों के माध्यम से प्रदर्शित किया है ।
  4. वास्तविकता को दिखाने के लिए शरीर के अंगों को बड़ी सूक्ष्मता से दर्शाया गया है ।
  5. महात्मा बुद्ध का आकार प्रकार यूनानी देवता अपोलो का सा लगता है ।
  6. गान्धार कला के अन्तर्गत बनी मूर्तियों में महात्मा बुद्ध के सिर के बाल घुंघराले दर्शाए गए हैं तथा मूछों की तरफ विशेष ध्यान दिया गया है ।
  7. मूर्तियों के मुखमण्डल के चारों ओर बनाया गया प्रभा मण्डल अलंकरण से रहित है ।
  8. गान्धार कलाकारों की मूर्तियों में शारीरिक सौन्दर्य और बौद्धिकता पर अधिक बल दिया गया है ।
  9. गान्धार कला में शिल्पकारों ने स्त्रियों की मूर्तियों को कोई महत्त्व नहीं दिया है ।
  10. महात्मा बुद्ध के मुख पर कहीं भी विश्व कल्याण की भावना दिखाई नहीं देती । अतः मूर्तियों में आध्यात्मिकता तथा भावुकता का अभाव है ।

 

साहित्य एवं ज्ञान-Literature and Learning

 कुषाण काल कला के विकास के अतिरिक्त साहित्य एवं ज्ञान के विकास के लिए भी प्रसिद्ध है । उस काल की अधिकांश साहित्यिक रचनाएं संस्कृत भाषा में हैं । परिणामस्वरूप कुषाण काल में संस्कृत भाषा में पर्याप्त उन्नति । कुषाण राजा कनिष्क ने अपने दरबार में अनेक प्रसिद्ध विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया था । इनमें अश्वघोष , र्जुन , वसुमित्र तथा चरक के नाम उल्लेखनीय हैं । डॉ ० आर ० एस ० त्रिपाठी के अनुसार , ” कनिष्क का दरबार प्रतिभावान तथा प्रतिष्ठित विद्वान् मण्डली एवं नेताओं से सुशोभित था ।

 कुषाण काल के प्रमुख विद्वान् और उनकी साहित्यिक रचनाओं का वर्णन निम्नलिखित है –

1. अश्वघोष-Asvaghosa — अश्वघोष कनिष्क के दरबार का सर्वाधिक प्रसिद्ध विद्वान् था । वह बहुमुखी तिभा का धनी था । वह एक महान् कवि , एक महान् नाटककार , एक उच्चकोटि का संगीतकार , एक महान् शिक्षक था दार्शनिक था । उसकी रचनाओं में बुद्धचरित , सौन्दरानन्द , सारिपुत्र प्रकरण तथा वज्रसूची प्रमुख हैं । इनमें

  1. बुद्धचरित ( Buddha Charita ) – बुद्धचरित में महात्मा बुद्ध के जीवन को एक महाकाव्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है । इस ग्रन्थ की शैली पर महाऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का स्पष्ट प्रभाव है ।
  2. सौन्दरानन्द -Saundrananda – सौन्दरानन्द अश्वघोष द्वारा संस्कृत में रचित दूसरा काव्य है । इसके 18 सर्गों में महात्मा बुद्ध के चचेरे भाई राजानन्द के बौद्ध धर्म में दीक्षित होने का उल्लेख किया गया है ।
  3. सारिपुत्र प्रकरण-Sariputra Prakarana -– सारिपुत्र प्रकरण संस्कृत में उपलब्ध सबसे प्राचीन नाटक है । यह 9 खण्डों में लिखा गया है । इसमें महात्मा बुद्ध द्वारा सारिपुत्र को बौद्ध धर्म दीक्षित करने का उल्लेख किया गया है ।
  4. वज्रसूची-Vajrasuchi – वज्रसूची में अश्वघोष ने ब्राह्मण वर्ग तथा जाति प्रथा के विरुद्ध विचार व्यक्त किए हैं । एन ० एन ० घोष ने अश्वघोष के सम्बन्ध में कहा है , – – ” उसमें विद्यमान नाना प्रकार के गुण मिल्टन , गोथे , काण्ट तथा वाल्टेयर की याद दिलाते हैं ।

2. नागार्जुन-Nagarjuna- नागार्जुन कनिष्क के समय का एक महान् दार्शनिक तथा वैज्ञानिक था । उसने लगभग बीस ग्रन्थों की रचना की । इनमें सुहरलेखा तथा माध्यमिक सूत्र उल्लेखनीय हैं । इनमें –

( i ) सुहरलेखा इस ग्रन्थ में नागार्जुन ने बौद्ध दर्शन का मनोहर वर्णन किया है ।

( ii ) माध्यमिक सूत्र – इस ग्रन्थ में नागार्जुन ने सापेक्षता सिद्धान्त का वर्णन किया है । इसलिए उसे भारतीय आइन्स्टाइन कहा जाता है । ह्यूनसांग के अनुसार नागार्जुन को बौद्ध दर्शन के इतिहास में एक नये युग को आरम्भ करने का श्रेय प्राप्त है । इसी कारण उसकी लूथर से भी की जाती है । तुलना मार्टिन

3 . वसुमित्र-Vasumitra – वह कनिष्क के दरबार का एक अन्य प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् था । उसने कनिष्क द्वारा बौद्धों की आयोजित की गई चौथी महासभा की अध्यक्षता की थी । उसने ‘ महाविभाष ‘ नामक ग्रन्थ की रचना की जिसे बौद्ध धर्म का विश्वकोष माना जाता है । –

4. चरक-Charka– चरक कनिष्क का राजवैद्य था । उसने आयुर्वेद विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया । उसका लिखा हुआ ‘ चरक संहिता ‘ नामक ग्रन्थ भारतीय आयुर्वेद की अमूल्य निधि है । चरक संहिता का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है ।

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