मौर्य कला पर एक विस्तारपूर्वक लेख लिखें-Write a Detailed Essay on Mauryan Art.

मौर्य कला का स्थान भारत की प्राचीनतम कलाओं में है । वास्तव में भारतीय कला का इतिहास मौर्य काल से ही प्रारम्भ होता है । सिन्धु घाटी के उन्नत कला अवशेषों के उपरान्त हमें उन्नत कला अवशेष मौर्य काल से ही प्राप्त होते हैं । मौर्य सम्राट् अशोक ने स्थापत्य कला में पत्थर का प्रयोग शुरू करके एक नवीन इतिहास का आरम्भ किया । इसके कारण ही हम आज भी मौर्य कला के दर्शन कर सकते हैं । मौर्य काल में नगरों , राज महलों , स्तूपों , स्तम्भों , गुफाओं , मूर्तिकला तथा आभूषण बनाने की कलाओं में उल्लेखनीय विकास हुआ । मौर्य काल की कलाओं का वर्णन इस प्रकार से है

मौर्य कला

1. नगर-Towns– यूनानी लेखकों ने चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी पाटलिपुत्र को एक सुन्दर , सुव्यवस्थित तथा भव्य नगर बताया है । स्ट्रेबो के अनुसार पोलीब्रोथा ( पाटलिपुत्र ) गंगा तथा सोन के संगम पर स्थित था । इसकी लम्बाई 80 स्टेडिया ( 13 किलोमीटर ) तथा चौड़ाई 15 स्टेडिया ( 212 किलोमीटर ) थी । पाटलिपुत्र का आकार एक समानान्तर चतुर्भुज की तरह था । नगर के चारों ओर लकड़ी की दीवार थी । इसमें 64 दरवाज़े और 570 बुर्ज थे । इस दीवार में तीर छोड़ने के लिए छेद बने हुए थे । इस दीवार के चारों ओर पानी से भरी हुई 700 फीट चौड़ी खाई थी । मौर्य शासक अशोक ने श्रीनगर तथा ललितापाटन नामक दो नये नगर बसाए । कल्हण ने अपनी पुस्तक राजतरंगिणी में बताया है कि श्रीनगर में 96 लाख घर थे तथा अशोक ने यहां 500 विहार और अनेक स्तूप बनाये । ललितापाटन का निर्माण नेपाल में किया गया तथा यहां अशोक ने 5 स्तूपों का निर्माण करवाया । इसके अतिरिक्त इन नगरों में उद्यानों , फव्वारों तथा झीलों आदि का निर्माण करके इनकी सुन्दरता में पर्याप्त वृद्धि कर दी गई ।

2. राजमहल-Royal Palaces — मौर्य काल में भवन निर्माण कला में अभूतपूर्व उन्नति हुई । मौर्य शासक चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक ने पाटलिपुत्र में विशाल तथा भव्य महलों का निर्माण करवाया था । चन्द्रगुप्त मौर्य के राजमहल के अवशेष पटना के निकट बुलन्दीबाग से प्राप्त हुए हैं । यह लकड़ी का बना हुआ था । इसमें एक सभा मण्डल था जिसकी छत स्तम्भों पर टिकी होती थी । इन स्तम्भों पर सोने चांदी का काम किया हुआ था तथा इन्हें लताओं , पत्तियों , फूलों तथा पक्षियों की आकृतियों से सजाया गया था । चन्द्रगुप्त मौर्य के राजमहल की तरह अशोक पटना के पास कुम्रहार में प्राप्त हुए हैं । इसमें भी एक कक्ष था जिसकी इन स्तम्भों पर राजमहल को 700 वर्ष बाद फाह्यान नामक का राजमहल भी अत्यन्त भव्य तथा कलात्मक था । इसके अवशेष छत पत्थर के 80 स्तम्भों पर टिकी हुई थी । चमकदार पॉलिश की गई थी । यह कक्ष 140 फुट लम्बा तथा 130 फुट चौड़ा था । अशोक के चीनी यात्री ने देखा था । इसे देखते ही वह कह उठा कि इसका निर्माण अवश्य ही देवआत्माओं ने किया होगा ।

3. स्तूप-Stupas – स्तूप का अर्थ साधारणतया समाधि से है जिसमें किसी व्यक्ति के अवशेष गाड़कर सुरक्षित रखे जाते हैं । स्तूपों का निर्माण यद्यपि वैदिक काल में होता था , किन्तु उसका पूर्णतः विकास मौर्य काल में हुआ । स्तूप पत्थर अथवा ईंटों से बने होते थे तथा यह रूप में अर्द्ध गोलाकार थे । सामान्यतः स्तूप का व्यास 70 फुट तथा ऊंचाई 35 फुट तक होती थी । स्तूप की परिक्रमा करने के लिए उसके चारों ओर प्रदक्षिणा पथ बना होता था । स्तूप की चोटी पर लकड़ी अथवा पत्थर की एक छतरी बनी होती थी । यह अण्ड कहलाती थी । इस स्तूप तक पहुंचने के लिए एक या अधिक भव्य द्वार थे जिन्हें तोरण कहा जाता था । इन पर अति सुन्दर मूर्तियों का निर्माण किया जाता था । बौद्ध धर्म ग्रन्थों के अनुसार अशोक ने अपने साम्राज्य के विभिन्न भागों में 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया था ।

चीनी यात्री ह्यूनसांग ने तक्षशिला , श्रीनगर थानेश्वर , मथुरा , कन्नौज , अयोध्या , प्रयाग , कौशाम्बी , कपिलवस्तु , कुशीनगर , बनारस , वैशाली , गया तथा ताम्रलिप्त में अनेक स्तूपों को देखा था । इनमें से अधिकांश स्तूप अब नष्ट हो चुके हैं । मौर्यकालीन स्तूपों में सांची के स्तूप को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है । इसका निर्माण तीसरी शताब्दी ई ० पू ० में अशोक द्वारा किया गया था । इस स्तूप के आधार तल का व्यास 121 फुट तथा ऊंचाई 77 फुट है । यह स्तूप लाल बलुए पत्थर से बना हुआ है । स्तूप के चारों ओर दो प्रदक्षिणापथ हैं । इस स्तूप में प्रवेश के लिए चारों ओर एक – एक तोरण है । प्रत्येक तोरण की ऊंचाई 34 फुट है । ई ० बी ० हेवैल के अनुसार , ” सांची कला सम्पूर्ण रूप से आश्चर्यजनक ढंग से शक्तिशाली , नई तथा मौलिक है ।

4. स्तम्भ-Pillars — मौर्य कला के सर्वश्रेष्ठ नमूने अशोक द्वारा बनाए गए पत्थर के स्तम्भ हैं । इनके निर्माण से पत्थर तराशने की कला अपनी पराकाष्ठा पर जा पहुंची । अशोक ने 30 से 40 के मध्य स्तम्भों का निर्माण करवाया था । अशोक के स्तम्भ हमें सारनाथ , लौरिया – नंदनगढ़ , लौरिया अराराज , मेरठ , प्रयाग , टोपरा और सांची आदि स्थानों से प्राप्त हुए हैं । सभी स्तम्भ पत्थर के एक ही टुकड़े से बने हुए हैं । ये 40 से 50 फुट तक ऊंचे हैं । प्रत्येक बड़े स्तम्भ का भार  टन है । इनके निर्माण में चुनार का बलुआ पत्थर प्रयोग में लाया गया है । ये स्तम्भ दर्पण की तरह चमकीले हैं क्योंकि इन पर चमकीली पॉलिश की गई है । प्रत्येक स्तम्भ के तीन मुख्य भाग हैं आधार , मुख्य स्तम्भ तथा मस्तक । स्तम्भ का आधार भाग पृथ्वी में गढ़ा हुआ है ।

इसके ऊपर मुख्य स्तम्भ है । यह आधार में मोटे तथा ऊपर जाते हुए पतले होते चले गए हैं । स्तम्भ के ऊपरी भाग पर बना हुआ मस्तक कला सौन्दर्य की दृष्टि से विशेष महत्त्व रखता है । स्तम्भों के मस्तकों पर बने हुए हाथी , बैल आदि पशुओं के चित्र भी मौर्यकालीन उन्नत शिल्पकला के द्योतक हैं । मौर्य काल के स्तम्भों में सारनाथ का स्तम्भ विशेष उल्लेखनीय है । इसके मस्तक पर चार शेरों की मूर्तियां बनी हुई हैं जिनकी पीठें आपस में जुड़ी हुई हैं । शेरों के नीचे अन्य पशुओं के छोटे – छोटे चित्र हैं । इस स्तम्भ की सराहना करते हुए  डॉ ० वी ० ए ० स्मिथ यों लिखते हैं , ” विश्व के किसी भी देश में कला की इस मनोहर कृति से बढ़कर इसकी बराबरी में शिल्प – कला का उदाहरण मिलना कठिन है । 

5. मूर्तिकला-Sculpture— मौर्य काल में मूर्तिकला के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व उन्नति हुई । अशोक के स्तम्भों के शीर्ष पर बनी हुई पशुओं की मूर्तियां तो संसार भर में प्रसिद्ध हैं । इन मूर्तियों ने विश्व के विशेषज्ञों का मन मोह लिया है । सारनाथ के स्तम्भ पर पीठ सटाकर बैठे चार सिंहों की मूर्ति कला के क्षेत्र में अद्वितीय है । इसके अतिरिक्त पटना से प्राप्त यक्षिणी की मूर्ति , मथुरा से प्राप्त यक्ष मूर्ति तथा सारनाथ से प्राप्त दो पुरुष मूर्तियां कला की दृष्टि में उत्कृष्ट कोटि की हैं ।

6. गुफाएं-Caves — मौर्य काल में जैन भिक्षुओं के निवास के लिए सात गुफाओं का निर्माण किया गया था । इनमें से चार गुफाओं का निर्माण सम्राट् अशोक द्वारा गया के समीप बारबर की पहाड़ियों पर तथा तीन गुफाओं का निर्माण नागार्जुन पहाड़ियों पर उसके पौत्र दशरथ द्वारा किया गया था । इन गुफाओं को चट्टानों को काटकर बनाया गया था । इन गुफाओं की चमक सराहनीय है । इन गुफाओं में सबसे प्राचीनतम सुदामा गुफा है । इसे अशोक ने अपने शासनकाल के 12 वें वर्ष में बनवाया था । अशोक द्वारा बनाई गुफाओं में लोमश ऋषि की गुफा सर्वाधिक प्रसिद्ध है । नागार्जुनी गुफाओं में गोपी गुफा का आकार 44 x 119 फुट है तथा यह सर्वाधिक विशाल है ।

7. आभूषण कला-Art of Jewellery— मौर्य काल से प्राप्त आभूषणों से पता चलता है कि उस समय आभूषण कला में भी अद्भुत विकास हुआ । मौर्य काल के सोने – चांदी के आभूषण अति सुन्दर हैं । यूनानी लेखकों के अनुसार अशोक के समय में तो हाथी दांत के आभूषण बनाने की कला भी काफ़ी उन्नत थी । उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि मौर्य काल में कला अपने पूरे यौवन पर थी । अतः डॉक्टर एस ० सी ० रेचौधरी का यह कहना पूर्णतः ठीक है कि भारतीय कला इतिहास में मौर्य काल एक युग प्रवर्त्तक था । 

8. पॉलिश करने की कला -Art of Polishing – मौर्य काल में पॉलिश करने की कला भी उन्नति की चरम सीमा पर थी । अशोक के स्तम्भों , गुफाओं की दीवारों पर की गई पॉलिश की शोभा अद्वितीय है । ये दीवारें आज भी शीशे की भान्ति चमकती हैं । विशेष रूप से गया की गुफाओं की दीवारों की पॉलिश देखने वालों को चकाचौंध कर देती है । अशोक के स्तम्भों को तो लोग किसी धातु का बना हुआ समझते थे । आज तक यह पता नहीं चल पाया है कि यह पॉलिश किस प्रकार बनाई गई थी ।

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Powered By
100% Free SEO Tools - Tool Kits PRO