मौर्य काल के मुख्य स्रोत
मौर्य काल के मुख्य स्रोत-Main Sources of the Mauryan Age
मौर्य काल के मुख्य स्रोतों – मौर्य वंश भारत का प्रथम ऐसा वंश था , जिससे सम्बन्धित हमें अनेक महत्त्वपूर्ण स्रोत प्राप्त हुए हैं । इनमें मैगस्थनीज़ का वृत्तान्त , कौटिल्य का अर्थशास्त्र तथा अशोक के शिलालेखों को मुख्य स्थान प्राप्त है । इनके अतिरिक्त विशाखदत्त का मुद्राराक्षस , पुराण , जैन तथा बौद्ध ग्रन्थ भी मौर्य काल के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं । इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है
1. मैगस्थनीज़ का वृत्तान्त -Account of Megasthenes— मौर्य काल के विषय में ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख साधन मैगस्थनीज़ का वृत्तान्त है । वह यूनान का निवासी था और सैल्यूकस की ओर से चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में 302 ई ० पू ० से लेकर 298 ई ० पू ० तक राजदूत के रूप में रहा । इस काल में मैगस्थनीज ने भारत में जो कुछ देखा , सुना अथवा अनुभव किया उसी के आधार पर उसने ‘ इण्डिका ‘ नामक पुस्तक की रचना की । दुर्भाग्य से अब यह पुस्तक उपलब्ध नहीं है परन्तु इस पुस्तक के कुछ अंश यूनान की कुछ अन्य पुस्तकों में मिलते हैं । प्रसिद्ध इतिहासकार के ० ए ० नीलकण्ठ शास्त्री के अनुसार , ” प्राचीन यूरोप को भारत के विषय में जो भी ज्ञान प्राप्त था , उस ज्ञान का शीर्ष मैगस्थनीज़ का वृत्तान्त था ।अपने वृत्तान्त द्वारा वह मौर्य काल की निम्नलिखित विशेषताओं पर प्रकाश डालता है-
- मौर्य काल का सम्राट् निरंकुश होता था । वह सेना तथा न्याय का मुख्याधिकारी होता था । वह भव्य महलों में निवास करता था
- चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी । इस नगर का सारा शासन प्रबन्ध 6 परिषदों को सौंपा गया था । प्रत्येक परिषद् में 5 सदस्य होते थे ।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के पास 7 लाख की सेना थी । इसमें 6 लाख पैदल , 30 हज़ार घुड़सवार , 9 हज़ार हाथी और 8 हज़ार रथ थे ।
- समाज में स्त्रियों की दशा बहुत अच्छी थी । सती प्रथा तथा पर्दा प्रथा आदि कुप्रथाओं को कोई नहीं जानता था ।
- उस समय प्रजा मुख्यतः सात जातियों में विभक्त थी । प्रत्येक जाति के लोग एक विशेष व्यवसाय में लगे हुए थे तथा जाति – बन्धन कठोर थे ।
2. कौटिल्य का अर्थशास्त्र -Kautilya’s Arthashastra— कौटिल्य सम्राट् चन्द्रगुप्त का गुरु तथा प्रधानमन्त्री था । उसे विष्णुगुप्त अथवा चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है । उसने ‘ अर्थशास्त्र ‘ नामक एक महान् ग्रन्थ की रचना की । यह एक अद्वितीय पुस्तक है के ० ए ० नीलकण्ठ शास्त्री के अनुसार , कौटिल्य के अर्थशास्त्र को भारतीय राजनीति के साहित्य में वही स्थान प्राप्त है जो कि भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य को । इस पुस्तक के 15 भाग हैं । इस ग्रन्थ को मौर्य शासन का पथ – प्रदर्शक कहा जा सकता है । कौटिल्य के राज्य शासन प्रबन्ध के सम्बन्ध में विचार इस प्रकार थे –
- कौटिल्य के अनुसार राजा को वीर योद्धा होना चाहिए ।
- उसे अपने राज्य को सुरक्षित रखने के लिए काम , क्रोध , अहंकार , लोभ , चापलूसी , विलासिता नामक छः शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए ।
- शासन – प्रबन्ध को सुचारु रूप से चलाने के लिए राजा को मन्त्रियों की सहायता लेनी चाहिए ।
- उसे पड़ोसी राज्यों से सदा सावधान रहना चाहिए ।
- राजा को प्रजा हितार्थ कार्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए ।
- राज्य में खाने पीने की वस्तुओं का अभाव नहीं होना चाहिए , क्योंकि इससे विद्रोह की भावना उत्पन्न होती है ।
- राजा को अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए गुप्तचर रखने चाहिएं ।
कुछ विद्वानों के अनुसार अर्थशास्त्र को मौर्य काल का महत्त्वपूर्ण स्रोत नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें कहीं भी चन्द्रगुप्त मौर्य अथवा उसकी राजधानी पाटलिपुत्र का वर्णन नहीं मिलता । उनका मानना है कि इसमें दिए गए राजनीतिक सिद्धान्त चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित एक विशाल साम्राज्य पर लागू नहीं किए जा सकते । ये सिद्धान्त केवल किसी छोटे से राज्य पर ही लागू होते हैं । इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ की रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल बहुत समय पश्चात् की गई थी ।
3. जैन तथा बौद्ध ग्रन्थ-Jaina and Buddhist Texts — जैन तथा बौद्ध ग्रन्थों से भी मौर्य काल के विषय में काफ़ी जानकारी प्राप्त होती है । बौद्ध धर्म ग्रन्थों में ‘ महावंश ‘ , ‘ दीपवंश ‘ तथा ‘ महाबोधिवंश ‘ के नाम लिए जा सकते हैं । जैन ग्रन्थों में ‘ कल्पसूत्र ‘ बड़ा उपयोगी ग्रन्थ है । जैन धर्म के ग्रन्थों से हमें पता चलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य अपने राज्य के अन्तिम दिनों में जैन धर्म का अनुयायी बन गया था । इसी धर्म से प्रभावित होकर वह राजपाट छोड़कर जैनमुनि भद्रबाहु के साथ दक्षिण की ओर चला गया था । बौद्ध ग्रन्थ हमें बताते हैं कि बौद्ध धर्म ग्रहण करने से पूर्व अशोक बड़ा निर्दयी था । परन्तु बाद में बौद्ध धर्म के प्रभाव में आकर वह दयावान तथा न्याय प्रिय शासक बन गया । अशोक द्वारा बुलाई गई बौद्धों की तृतीय महासभा की जानकारी भी हमें बौद्ध साहित्य से ही मिलती है । इससे हमें यह भी पता चलता है कि अशोक ने बौद्ध धर्म को अन्य देशों में फैलाने के लिए क्या – क्या पग उठाए ।
4. मुद्राराक्षस-Mudrarakshasa — मुद्राराक्षस एक ऐतिहासिक नाटक है जिसकी रचना पांचवीं शताब्दी में हुई थी । इसे गुप्त काल के प्रसिद्ध नाटककार विशाखदत्त ने लिखा था । इस नाटक का नायक कौटिल्य है । इससे हमें यह पता चलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने किस प्रकार नन्द वंश का नाश करके मौर्य वंश की नींव रखी । इसके अतिरिक्त इसमें चन्द्र गुप्त की जाति के विषय में भी उल्लेख मिलता है । इस ग्रन्थ में उसे नीच जाति का बताया है । कुछ विद्वान् मुद्राराक्षस को पूर्ण रूप से विश्वसनीय ऐतिहासिक ग्रन्थ स्वीकार नहीं करते । उनका कहना है कि यह नाटक चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यकाल से कई शताब्दियों बाद लिखा गया था । इस कारण इसमें सत्यता के साथ – साथ कल्पना का भी मिश्रण है । जो भी हो परन्तु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि मुद्राराक्षस चन्द्रगुप्त के प्रारम्भिक जीवन और कौटिल्य की प्रेरणा से नन्द वंश के विरुद्ध किए गए अभियान के विषय में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री जुटाता है ।
5. अभिलेख Inscriptions— अशोक ने अपने राज्य में गुफाओं तथा शिलाओं पर लेख खुदवाए हमें अशोक के राज्य प्रबन्ध , धार्मिक नीति , शिक्षा प्रचार तथा अशोक के चरित्र के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है । रुद्रदमन के जूनागढ़ शिलालेख तथा मैसूर के शिलालेखों से हमें पता चलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य दक्षिण में भी फैला हुआ था ।
6. पुराण-The Puranas— पुराणों में भी मौर्य वंश के इतिहास के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है । इनसे हमें पता चलता है कि नन्द वंश के राजा शूद्र थे । चाणक्य ने उनका नाश करके चन्द्रगुप्त नामक व्यक्ति को राजगद्दी पर बिठाया । परन्तु अब अधिकांश इतिहासकार पुराणों में वर्णित अधिकतर बातों को काल्पनिक मानते हैं ।
7. अन्य स्त्रोत Other Source — ऊपरिलिखित स्रोतों के अतिरिक्त मौर्य शासकों के सिक्कों , स्तूपों तथा भवनों से भी उस काल का इतिहास जानने में काफ़ी सहायता मिली है । सच तो यह है कि मौर्य काल के ऐसे अनेक स्रोत हैं जो हमें मौर्यकालीन भारत के इतिहास का ज्ञान कराने में सहयोगी सिद्ध हुए हैं । इतिहासकार डॉ ० वी ० ए ० स्मिथ ठीक ही कहते हैं , ” मौर्य वंश के उदय के साथ ही इतिहासकार अन्धेरे से उजाले में आ जाते हैं ।