मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण-Causes of the Decline of the Mauryan Empire 

प्रकृति में उत्थान के साथ पतन बंधा हुआ है । चरम सीमा छूने वालों को पतनोन्मुख होना ही पड़ता  है । सिन्धु घाटी सभ्यता अपनी पराकाष्ठा पर पहुंची , परन्तु उसे लुप्त होना पड़ा । नेपोलियन सारे यूरोप पर छा गया था , परन्तु उसका अन्त एक कैदी के रूप में हुआ । मौर्य राजा उत्कर्ष की सीमाओं को छूने लगे थे । अतः उनका पतन भी अवश्यम्भावी था । मौर्य साम्राज्य अशोक की मृत्यु के 50 वर्षों के भीतर ही पूरी तरह छिन्न – भिन्न हो गया । यह कोई आकस्मिक घटना न थी । मौर्य साम्राज्य के पतन के कई कारण थे । मौर्य साम्राज्य के पतन के  कारणों का वर्णन इस प्रकार से है 

मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण

1. अशोक का उत्तरदायित्व-Ashoka’s Responsibility – मौर्य साम्राज्य के पतन का एक प्रमुख कारण अशोक की शान्तिप्रियता की नीति थी । कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने अहिंसा के सिद्धान्त को अपना लिया और युद्धों से मुंह मोड़ लिया था । उसके उत्तराधिकारियों ने भी सैनिक संगठन की ओर विशेष ध्यान न दिया । अतः मौर्य सैनिक युद्ध विधि भूल गये और वे मानसिक रूप से कायर बन गए । ये कायर सैनिक न तो विदेशी आक्रमणों से और न ही आन्तरिक विद्रोहों से साम्राज्य की रक्षा कर सके । डॉ ० आर ० सी ० मजूमदार का यह कहना पूर्णत : मुख्य ठीक है  साम्राज्य की स्थापना रक्त और लौह की नीति से हुई थी और उसी के द्वारा उसकी रक्षा हो सकती थी किन्तु युद्ध और आक्रामक साम्राज्यवादी नीति को त्यागकर अशोक ने साम्राज्य की नींव को कमज़ोर बना दिया । 

2. उत्तराधिकारी प्रणाली की कमी -Lack of Successor System– मौर्य वंश में उत्तराधिकार सम्बन्धी कोई उचित सिद्धान्त नहीं था । बड़े सम्राटों के पश्चात् उनकी पत्नियां तथा राजकुमार सिंहासन प्राप्ति के लिए एक दूसरे के विरुद्ध षड्यन्त्र रचते रहते थे । अशोक ने बड़े भाई का वध करके राज्य प्राप्त किया था । इसी प्रकार अशोक की मृत्यु के पश्चात् भी सिंहासन के लिए युद्ध होते रहे । कहा जाता है कि कुणाल को , जो वास्तविक उत्तराधिकारी था , उसकी सौतेली माँ ने अन्धा करवा दिया था । उत्तराधिकार के इन युद्धों के कारण मौर्य साम्राज्य की शक्ति का क्षीण होना तथा उसका पतन होना स्वाभाविक ही था ।

3. आन्तरिक विद्रोह-Internal Rebellion मौर्य वंश के उत्तराधिकारी बहुत निर्बल थे । इसका परि हुआ कि सुदूर प्रान्तों में कई गवर्नरों ने विद्रोह कर दिया । कश्मीर में जालोक और कन्धार में वीरसेन ने स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया । कलिंग और विदर्भ भी साम्राज्य से पृथक् हो गए । निर्बल राजा दूर के प्रान्तों के विद्रोह का दमन करने में असमर्थ थे । इस प्रकार धीरे – धीरे सारा राज्य छिन्न – भिन्न होता चला गया ।

4. तानाशाही शासन -Despotic Rule — मौर्य शासकों ने तानाशाही शासन की स्थापना की थी । राज्य की सभी शक्तियां राजा के हाथों में थीं । उसका हर शब्द कानून था । राजा की आज्ञा का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य माना जाता था । इतिहास साक्षी है कि जब तक ऐसा शासन योग्य व्यक्तियों के हाथ में रहता है तभी तक साम्राज्य स्थिर रहता है । इसी प्रकार चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक के योग्य नेतृत्व के अधीन तो मौर्य साम्राज्य उन्नति करता रहा , परन्तु अशोक के अयोग्य उत्तराधिकारियों के अधीन मौर्य साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया । परिणामस्वरूप केन्द्रीय सूत्र ढीले होने लगे और साम्राज्य खण्डित होने लगा ।

5. कमजोर उत्तराधिकारी -Weak Successor — राज्यों की उन्नति सदैव योग्य शासकों पर निर्भर करती है । चन्द्रगुप्त तथा अशोक जैसे वीर एवं योग्य शासकों ने मौर्य साम्राज्य की प्रतिष्ठा को चार चांद लगा दिए । परन्तु अशोक के पश्चात् राज्य की बागडोर कुणाल , सम्प्रति , दशरथ तथा बृहद्रथ आदि अयोग्य उत्तराधिकारियों के हाथ में आ गई । इन शासकों के विषय में डॉ ० आर ० के ० मुखर्जी ने यूं कहा है , ‘ अशोक के उत्तराधिकारी बौनों की सन्तान के समान थे जिनके कन्धे उसके शक्तिशाली राज्य के भार को सहन करने में असमर्थ थे । ” 1 वे न तो राज्य में होने वाले विद्रोहों को दबा सके और न • विदेशी आक्रमणकारियों का सफलतापूर्वक सामना कर सके । अतः धीरे – धीरे राज्य उनके हाथों से छीनता चला गया ।

6. साम्राज्य की विशालता-The Vastness of The Empire — अशोक के काल में मौर्य साम्राज्य बहुत विस्तृत हो चुका था । इस साम्राज्य की सीमाएं उत्तर में हिमालय , दक्षिण में मैसूर , पूर्व में बंगाल तथा उत्तर – पश्चिम में अफ़गानिस्तान को छूती थीं । इतने विशाल राज्य में सुदूर प्रान्तों से सीधा सम्पर्क स्थापित करने के लिए एक योग्य शासक तथा यातायात के उन्नत साधनों का होना अनिवार्य था । परन्तु मौर्य वंश के पास इन दोनों चीज़ों का अभाव था । अतः इस वंश का पतन होना अनिवार्य ही था ।

7. धन की भारी कमी -Severe Shortage of Funds — मौर्य साम्राज्य की शिथिलता का सबसे बड़ा कारण धन का अभाव था । राज्य कार्य को सुचारू रूप से चलाने , विद्रोहों को दबाने तथा सेना को संगठित करने के लिए धन की आवश्यकता होती है । परन्तु अशोक ने प्रजा हितैषी कार्यो , स्तूपों , विहारों , शिलालेखों तथा धर्म प्रचार धन खर्च कर दिया । इससे राजकोष खाली हो गया । धन के अभाव के कारण अशोक के उत्तराधिकारियों को मिश्रित सिक्के चलाने पड़े तथा सोने की मूर्तियों को ढालना पड़ा । परिणामस्वरूप मौर्य साम्राज्य की नींव डगमगाने लगी ।

8. राजधानी का केन्द्र में न होना -Capital not to be in the Centre of the Empire — मौर्य शासकों ने पाटलिपुत्र को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया हुआ था । परन्तु यह नगर उनके मैसूर तथा अफ़गानिस्तान आदि सीमान्त प्रदेशों से काफ़ी दूरी पर स्थित था । पाटलिपुत्र से सुदूर प्रदेशों पर नियन्त्रण करना कोई सुगम कार्य न था । परिणामस्वरूप इन प्रदेशों के गवर्नर अपने आपको स्वतन्त्र घोषित करने लगे और मौर्य साम्राज्य छिन्न – भिन्न हो गया । 

9. सुदूर प्रांतों में मजदूरों पर अत्याचार -Atrocities of Workers in Remote Provinces— मौर्य साम्राज्य के सुदूर प्रान्तों में शासन प्रबन्ध सन्तोषजनक नहीं था । सरकारी कर्मचारी लोगों पर अत्याचार किया करते थे । जब बिन्दुसार ने अशोक को तक्षशिला के विद्रोह को दबाने के लिए भेजा तो वहां के लोगों ने उससे कहा , “ न तो हम कुमार के विरुद्ध हैं और न सम्राट् बिन्दुसार के । परन्तु दुष्ट आमात्य हमें बहुत तंग करते हैं । ” इससे स्पष्ट है कि यह विद्रोह कर्मचारियों के अत्याचार के कारण हुआ । इसी प्रकार अशोक के शासनकाल ‘ हुए तक्षशिला के दूसरे विद्रोह का कारण भी कर्मचारियों द्वारा प्रजा पर अत्याचार करना था । ऐसे ही अत्याचार बाद के मौर्य शासकों के काल में भी होते रहे । अधिकारियों के इन अत्याचारों ने इन विद्रोहों को जन्म दिया जो मौर्य साम्राज्य को ले डूबे । 

10. तत्कालीन कारण -The Current Reason  – पुष्यमित्र मौर्य शासक बृहद्रथ का सेनापति था । वह स्वयं सम्राट् बनने के स्वप्न देख रहा था । उसने हिन्दुओं में तथा विशेष रूप से ब्राह्मणों में साम्राज्य के विरुद्ध ईर्ष्या उत्पन्न कर दी थी । उनके सहयोग से उसने 184 ई ० पू ० में बृहद्रथ की हत्या कर दी और शुंग वंश की स्थापना की । इस प्रकार महान् मौर्य साम्राज्य का दुःखद अन्त हुआ । अन्त में हम डॉ ० के ० सी ० चौधरी के इन शब्दों से में सहमत हैं , ” इसमें पश्चात्ताप करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अशोक का साम्राज्य विश्व के अन्य साम्राज्यों की तरह विनष्ट होना ही था चाहे वह आक्रमणकारी नीति को जारी रखता । यह केवल समय की बात थी

11. ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया -Brahmanical Reaction – श्री हरप्रसाद शास्त्री ने ब्राह्मणों के विरोध को मौर्य साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण बताया है । उनके अनुसार अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी था । उसने बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए हर सम्भव प्रयास किया । उसने अपनी प्रजा को नैतिक सिद्धान्तों से अवगत कराने के लिए ‘ धर्म महामात्रों ‘ की नियुक्ति की । परन्तु ब्राह्मण ये बातें सहन न कर सके । नैतिकता का प्रचार करना तो वे केवल अपना कर्त्तव्य समझते थे , इसलिए वे अशोक के विरुद्ध हो गए । दूसरे , वे अशोक को शूद्र मानते थे और उसकी आज्ञा मानने में अपना अपमान समझते थे । तीसरा , अशोक ने ब्रह्मगिरि शिलालेख में ब्राह्मणों को ‘ झूठा देवता ‘ कह कर उनकी निन्दा की थी । इससे भी ब्राह्मण मौर्य साम्राज्य के विरुद्ध गये थे । इसके अतिरिक्त अशोक ने पशुओं और पक्षियों का वध करना निषेध कर दिया था । इस कारण अब यज्ञों में पशु बलि नहीं दी जा सकती थी । इस पशु बलि के चढ़ावे से ब्राह्मणों को बहुत अधिक धन प्राप्त होता था जो अब समाप्त हो गया । परिणामस्वरूप ब्राह्मणों के मन में अशोक के प्रति द्वेष भावना घर कर गई । अन्त में पुष्यमित्र शुंग नामक एक ब्राह्मण सेनापति ने ही मौर्य वंश की सत्ता को समाप्त किया । परन्तु यदि हम गहराई से इस तथ्य पर विचार करें तो ब्राह्मण प्रतिक्रिया द्वारा मौर्य साम्राज्य के पतन की बात सत्य दिखाई नहीं देती । वास्तव में अशोक ब्राह्मणों के विरुद्ध नहीं था । ब्राह्मण इतिहासकार कल्हण ने तो अशोक को दयालु तथा प्रजा- हितकारी शासक बताया है ।

12. विदेशी आक्रमण -Foreign Invasions – मौर्य वंश को पतनोन्मुख देखकर विदेशियों का साहस गया और उन्होंने भारत के सीमान्त प्रदेशों पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिये । अशोक के निर्बल उत्तराधिकारी उनके आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना न कर सके । इसी प्रकार यूनानियों के आक्रमणों से मौर्य वंश और भी निर्बल हो गया । डॉ ० आर ० सी ० मजूमदार ने इस विषय में यूं कहा है  मौर्य साम्राज्य का पतन उन्हीं कारणों से हुआ है जो बाद के गुप्त तथा मुग़ल साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी थे ।

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