मौर्यकालीन भारत के सामाजिक और आर्थिक जीवन-Social and Economic Life of Mauryan India.

मौर्यकालीन भारत के जीवन को जानने के लिए हमारे पास तीन प्रमुख स्रोत हैं —

  1.  मैगस्थनीज़ का वर्णन
  2. कौटिल्य का अर्थशास्त्र
  3. अशोक के अभिलेख ।

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इनसे हमें मौर्य काल के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन का ज्ञान होता है । उस समय संयुक्त परिवार की व्यवस्था थी । स्त्रियों पर कुछ पाबन्दियां थीं , तो उन्हें कुछ अधिकार भी प्राप्त थे । दासों की दशा ठीक थी । दूसरी ओर कृषि , उद्योग तथा व्यापार उन्नत अवस्था में थे । मौर्यकालीन लोग आर्थिक पक्ष से समृद्ध थे । निःसन्देह मौर्य शासकों की यह महान् सफलता थी । मौर्य काल के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन का वर्णन इस प्रकार से है

1. सामाजिक जीवन-Social Life

1. संयुक्त परिवार-Joint Family – उस समय संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी । परिवार का सबसे वृद्ध व्यक्ति इसका मुखिया होता था । परिवार के सभी सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते थे । लड़के के जन्म को शुभ तथा आवश्यक माना जाता था । परिवार के मुखिया के निधन के बाद सबसे बड़ा पुत्र उसका स्थान सम्भालता था ।

2. जाति प्रथा-Caste System– मौर्य काल में जाति प्रथा बहुत जटिल हो चुकी थी । मौर्य समाज में कई जातियां थीं । समाज में ब्राह्मणों का विशेष आदर था । मैगस्थनीज़ लिखता है कि ब्राह्मणों को न तो कर देने पड़ते थे और न ही विवाह सम्बन्धी विषयों में उन पर कोई रोक थी । वे अपनी जाति के बाहर भी विवाह कर सकते थे । ब्राह्मणों के अतिरिक्त वैश्यों का भी समाज में आदर था क्षत्रियों का उल्लेख कम मिलता है । परन्तु क्षत्रिय समाज में माननीय स्थान रखते थे । शूद्रों पर दया की जाती थी । शिलालेखों में अशोक ने बार – बार आदेश दिया है कि लोग उनसे अच्छा व्यवहार करें । मैगस्थनीज़ ने उस समय की सात जातियों का वर्णन किया है । ये सात जातियां हैं : दार्शनिक , कृषक , सैनिक , शिकारी , शिल्पकार , गडरिए तथा मन्त्री । परन्तु रोमिला थापर के शब्दों में , ” मैगस्थनीज़ द्वारा वर्णित विभाजन सामाजिक विभाजन की अपेक्षा आर्थिक विभाजन प्रतीत होता

3. स्त्रियों की दशा-Position of Women — मौर्यकालीन समाज में स्त्रियों की दशा अधिक सन्तोषजनक न थी । लड़की का जन्म कोई खुशी का अवसर न होता था । वे प्रायः घरों में ही रहती थीं । वे सन्तान उत्पत्ति का साधन मात्र समझी जाती थीं । स्त्रियों को उच्च शिक्षा प्रदान नहीं की जाती थी । मौर्य काल में वेश्यावृत्ति आम थी । परन्तु इन बातों से पता चलता है कि स्त्रियों की दशा पूर्णतः बिगड़ी न थी । उदाहरण के लिए समाज में विधवा को पुनः विवाह का अधिकार था , वे अपने पति से तलाक ले सकती थीं , दहेज पर उनका अधिकार होता था तथा पारिवारिक सम्पत्ति में भी उनका हिस्सा होता था । स्त्री हत्या को ब्रह्म हत्या के समान समझा जाता था ।

4. विवाह-Marriage— उन दिनों आठ प्रकार के विवाह प्रचलित थे । अर्थशास्त्र में इन विवाहों का वर्णन आता है । इनके नाम थे ब्रह्म विवाह , प्रजापति विवाह , आर्ष विवाह , देव विवाह , असुर विवाह , गान्धर्व विवाह, राक्षस विवाह तथा पैशाच विवाह । इनमें पहले चार धार्मिक माने जाते । तथा दूसरे चार अधार्मिक । लड़की की शादी की आयु 12 वर्ष तथा लड़के की आयु 16 वर्ष होती थी । उच्च समाज में बहु – विवाह की प्रथा प्रचलित थी । बिन्दुसार की 16 पत्नियों का तथा अशोक की 5 पत्नियों का उल्लेख मिलता है । मैगस्थनीज़ भी लिखता है कि भारत के लोग कई स्त्रियों से विवाह करते थे । कुछ विशेष परिस्थितियों में पति पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद भी हो सकता था । का वध । समाज

5. भोजन-Food — मौर्य काल में लोग शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों तरह के थे । परन्तु बौद्ध धर्म के प्रसार के बाद शाकाहारी लोगों की संख्या बढ़ने लगी थी । स्वयं अशोक ने राजकीय पाकशाला के लिए पशुओं बन्द करवा दिया था । मौर्य काल में लोगों का मुख्य भोजन चावल , गेहूं , जौ , सब्जियां , फल तथा दूध में मदिरा का भी प्रयोग होता था । परन्तु उसका प्रयोग अधिकतर यज्ञ के अवसरों पर ही होता था ।

6. दास प्रथा-Slavery — मौर्य काल में दास भी थे । ये सम्भवतः अनार्य थे । इस काल में दासों के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जाता था । धन चुकाने पर दास मुक्त कर दिये जाते थे । कानून के अनुसार दासों को न तो कोई गाली दे सकता था और न ही पीट सकता था । दासियों के साथ भी अच्छा व्यवहार किया जाता था । सम्भवतः दासों के प्रति कुछ लोगों का व्यवहार अच्छा नहीं था । इसलिए अशोक ने लोगों को दासों से अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया । दासों की इस उत्तम स्थिति के कारण ही मैगस्थनीज़ उन्हें पहचान न सका और उसने भारत में दास प्रथा का वर्णन नहीं किया ।

7. आमोद – प्रमोद-Recreation — मौर्य काल में राजा शिकार ( अंग मृग ) द्वारा अपना मन बहलाया करता था । शिकार पर राजा पूरी सज – धज से जाता था । उसके साथ अंगरक्षिकाएं , सैनिक तथा अनेक लोग जाते थे । नट , वादक , नर्तक आदि अपने – अपने ढंग से जनता का मनोरंजन करते थे । इसके लिए उन्हें राज्य की ओर से आज्ञा लेनी पड़ती थी । जुआ खेलने का भी रिवाज था । अनेक लोग घुड़दौड़ , रथदौड़ तथा हाथी दौड़ में शामिल होकर अपना मनोरंजन करते थे ।

8. नैतिक स्तर-Morality— उस समय लोगों का नैतिक स्तर काफ़ी उन्नत था । चोरी आदि की घटनाएं कम होती थीं । कहते हैं कि लोग अपने घरों को ताले भी नहीं लगाते थे और घर खुले छोड़कर बाहर जाया करते थे । लोग बहुत कम अवसरों पर न्यायालयों की शरण लेते थे । अशोक के धर्म प्रचार के कारण समाज नवीन आदर्शों में ढल गया था ।

9. शिक्षा-Education — मौर्य काल में अधिकांश लोग शिक्षित थे । सामान्य शिक्षा गुरुकुलों , मठों तथा विहारों में ब्राह्मणों तथा बौद्ध भिक्षुओं द्वारा दी जाती थी । तक्षशिला , बनारस तथा उज्जैन उस समय की उच्च शिक्षा के विख्यात केन्द्र थे । यहां शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी न केवल भारत के विभिन्न भागों अपितु विदेशों से भी आते थे । इनमें विज्ञान , चिकित्सा , राजनीति , ज्योतिष , व्याकरण तथा गणित अनेक विषय पढ़ाए जाते थे । प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ ० वी ० ए ० स्मिथ का कहना है कि मौर्य काल में भारत के लोग अंग्रेज़ी भारत के लोगों की अपेक्षा शिक्षित थे ।

II . आर्थिक जीवन -Economic Life

1. कृषि-Agriculture— मौर्य काल में लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था । इसलिए मौर्य शासकों ने इसे प्रोत्साहन देने के लिए विशेष पग उठाए । कृषकों को युद्ध एवं अन्य सार्वजनिक सेवाओं के कर्त्तव्यों से मुक्त रखा जाता था । भूमि के नाप तथा सिंचाई व्यवस्था की देखभाल के लिए राजकीय पदाधिकारी नियुक्त किए जाते थे । अकाल तथा अन्य किसी संकट के समय राज्य कृषकों की प्रत्येक प्रकार से सहायता करता था । कृषि के औज़ार बनाने वालों को करों से मुक्त रखा जाता था । नई भूमि को कृषि के अधीन लाने के लिए कृषकों को राज्य की ओर से विशेष सहायता दी जाती थी । मौर्य काल में कृषक वर्ष में दो फसलें पैदा करते थे । इस काल की मुख्य फसलें चावल , जौ , कपास , गेहूं , गन्ना , ज्वार , बाजरा , दालें , सब्ज़ियां तथा फल थे । सिंचाई के लिए कृषक मुख्यतः वर्षा पर निर्भर थे । इसके अतिरिक्त नहरों , झीलों , कुओं तथा तालाबों आदि से भी सिंचाई की जाती थी । सरकार भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर 1/6 से 1/4 भाग तक भू – राजस्व प्राप्त करती थी । फसलों के अच्छे उत्पादन के कारण मौर्य काल के कृषक सुखी तथा समृद्ध जीवन व्यतीत करते थे ।

2. पशुपालन तथा वन व्यवसाय-Domestication of Animals and Forestry  – कृषि के पश्चात् मौर्य काल में लोगों का दूसरा प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था । सरकार कृषि की आवश्यकताओं के लिए पशुपालन को प्रोत्साहन देती थी । इनसे दूध , ऊन तथा खाल प्राप्त की जाती थी । पशुओं के लिए चरागाह की व्यवस्था राज्य की ओर से की जाती थी । मौर्य काल में लोग गाय , भैंस , भेड़ , बकरी तथा कुत्ते पालते थे । परन्तु हाथियों तथा घोड़ों पर राज्य का एकाधिकार होता था । वनों से राज्य को बहुत आमदनी होती थी । अर्थशास्त्र में चार प्रकार के वनों का विवरण मिलता है – पशुवन , मृगवन , द्रव्यवन तथा हस्तिवन । पशुवन में जंगली जानवर रहते थे । मृगवन में पालतू जानवर रहते थे । द्रव्यवन में बहुमूल्य लकड़ी तथा खानें आदि थीं । हस्तिवन में हाथी पाए जाते थे । ग़ैर कानूनी ढंग से पेड़ों को काटने वालों को दण्ड दिए जाते थे ।

3. उद्योग-Industries — मौर्य काल में उद्योग भी पर्याप्त उन्नत थे । इस काल का सर्वाधिक प्रसिद्ध उद्योग कपड़ा उद्योग था । इसका कारण यह था कि देश में कपास की बहुत पैदावार होती थी । काशी , मगध , वत्स तथा मदुरा सूती कपड़ा उद्योग के प्रसिद्ध केन्द्र थे । बंगाल अपनी मलमल के लिए प्रसिद्ध था । नेपाल ऊनी कपड़ों के लिए प्रसिद्ध था । अनेक लोग सोने , चांदी , तांबे तथा लोहे की खानों में काम करते थे । खानों का प्रबन्ध प्रायः सरकार स्वयं करती थी । मौर्य काल में लकड़ी का व्यवसाय भी काफ़ी उन्नत था । लकड़ी से अच्छी प्रकार की नौकाएं तथा जहाज़ तैयार किए जाते थे । इन उद्योगों के अतिरिक्त मौर्य काल में चमड़ा उद्योग , शिल्प उद्योग , आभूषण उद्योग तथा बर्तन उद्योग भी उन्नत थे । कुछ लोग शराब , नमक , चिकित्सक तथा समुद्र निकालने का कार्य भी करते थे । मौर्य शासक विभिन्न उद्योगों की उन्नति के लिए प्रोत्साहन देते थे । रत्न आदि

4. श्रेणियां-Guilds — मौर्य काल में अर्थव्यवस्था को उन्नत करने में श्रेणियों ने बहुमूल्य योगदान दिया । इस काल में कारीगरों तथा शिल्पकारों ने व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए अपनी – अपनी श्रेणियां संगठित कर ली थीं । श्रेणी के अध्यक्ष को जेठक कहा जाता था । श्रेणियां काफ़ी धन्य सम्पन्न संस्थाएं होती थीं । ये प्रायः आधुनिक बैंकों की तरह कार्य करती थीं । श्रेणियों के माल का सरकार द्वारा निरीक्षण किया जाता था ।

5. व्यापारिक नियम-Trade Regulations — मौर्य शासकों ने व्यापार को उन्नत करने के लिए अनेक व्यापारिक नियम बनाए थे । इनका उल्लंघन करने वालों को दण्डित किया जाता था । वस्तुओं के मूल्यों पर सरकार द्वारा नियन्त्रण रखा जाता था । माप तौल के पैमाने सरकार की ओर से जारी किए जाते थे । व्यापारियों को देशी माल पर 5 प्रतिशत तथा विदेशी माल पर 10 प्रतिशत लाभ लेने का अधिकार था । ऋण की राशि पर ब्याज की दर सरकार की ओर से निर्धारित की जाती थी । तस्करी करने वालों , मिलावट करने वालों तथा कम तोलने वालों को कड़ा दण्ड दिया जाता था । परिणामस्वरूप मौर्य काल में व्यापार ने खूब प्रगति की ।

6. व्यापार तथा वाणिज्य-Trade and Commerce- मौर्य काल का आन्तरिक तथा विदेशी व्यापार अत्यन्त उन्नत था । भारत तथा पश्चिमी जगत् के मध्य अनेक मार्ग खुल गए थे । सुव्यवस्थित राजमार्गों का जाल बिछा हुआ था । व्यापारियों की सुविधा के लिए स्थान स्थान पर विश्रामगृह बने हुए थे । राजमार्गों तथा व्यापारियों की सुरक्षा सरकार द्वारा की जाती थी । मौर्य काल में स्थल तथा जल मार्ग दोनों से व्यापार किया जाता था । प्रमुख राजमार्ग में प्रथम राजमार्ग राजधानी पाटलिपुत्र से तक्षशिला को जाता था । यह 2100 किलोमीटर लम्बा तथा इसे राजकीय मार्ग कहा जाता था । दूसरा मार्ग पाटलिपुत्र से प्रयाग होता हुआ उज्जैन पहुंचता था । तीसरा मार्ग पाटलिपुत्र से ताम्रलिप्त बन्दरगाह को जोड़ता था । जल मार्गों में नौकाओं तथा जहाज़ों का प्रयोग किया जाता था । तक्षशिला , उज्जैन , काशी , प्रयाग , मथुरा , कोशाम्बी तथा पाटलिपुत्र मौर्य काल के प्रसिद्ध व्यापारिक नगर थे । मौर्य काल में अधिकांश विदेशी व्यापार सीरिया , मित्र , रोम , यूनान , चीन , श्रीलंका , बर्मा तथा ईरान से होता था । मौर्य साम्राज्य विदेशों को हीरे , मोती , सुगन्धित वस्तुएं , सूती तथा रेशमी वस्त्र , हाथी दांत , लकड़ी का सामान , औषधियां , गर्म मसाले तथा नील आदि का निर्यात करता था । वह विदेशों से सोना , चांदी , मूल्यवान् रत्न , रेशम तथा शराब आदि का आयात करता था । मौर्यकालीन विदेशी व्यापार भारत के पक्ष में था ।

7. मुद्रा-Currency – मौर्य काल के कोई भी सिक्के हमें प्राप्त नहीं हैं , परन्तु अर्थशास्त्र से हमें उस काल की मुद्रा के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है । मुद्रा का निर्माण केवल सरकारी टकसालों में होता था । धनी लोग सरकार को निश्चित शुल्क देकर सरकारी टकसाल से अपनी मुद्राएं भी बनवा सकते थे । टकसाल का प्रधान अधिकारी सौवर्णिक कहलाता था । मौर्य काल में सोने , चांदी तथा तांबे के सिक्के बनाए जाते थे । सोने के सिक्के को सुवर्ण , चांदी के सिक्के को पण तथा तांबे के सिक्के को माश्क कहा जाता था ।

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