प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त की व्याख्या और माँ के गर्भ में स्थित बालक के अधिकार

प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए । इस सिद्धान्त का अधिनियम पर क्या प्रभाव पड़ता है ? ( Explain the doctrine of Representation . What is the effect of the Act on doctrine ? )

प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त ( Doctrine of representation ) – प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त से हमारा अभिप्राय है पुत्र , पौत्र जिसका पिता मर चुका है , तथा प्रपौत्र जिसका पिता तथा पितामह मर चुका है , सभी एक होकर पैतृक पूर्वजों को स्वर्जित तथा पृथक् सम्पत्ति को एक साथ उत्तराधिकार में प्राप्त करते हैं । ” अतः जहाँ किसी व्यक्ति को पिता तथा पितामह मर चुका है वह अपने पिता तथा पितामह की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी होगा । इसके अलावा पुत्र का पिता तथा पितामह मर चुका है

वहाँ पुत्र तथा पिता एक साथ पैतृक पूर्वजों की स्वर्जित सम्पत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त करेंगे । इस सिद्धान्त का आधार यह है कि पौत्र अपने मृत पिता का प्रतिनिधित्व करता है तथा प्रपौत्र अपने मृत पिता तथा मृत पितामह दोनों की सम्पत्ति के बँटवारे के समय प्रतिनिधित्व करता है ।

प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त का दूसरा आधार पैतृक सम्पत्ति पर उनका जन्म से स्वत्व – लाभ प्राप्त करना रहा है । हिन्दू परिवार के अन्दर अब कोई व्यक्ति पैदा होता है तो पैदा होते ही वह पितामह की सम्पत्ति में अंश पाने का हकदार हो जाता है क्योंकि वह अपने पितामह का प्रतिनिधित्व करता है । किसी एक व्यक्ति के मरने पर उसकी सम्पत्ति में पुत्र , पौत्र तथा प्रपौत्र सब एक साथ अंश पाने के भागीदार होंगे क्योंकि यही सब मिलकर दायभागी का निर्माण करते हैं । इस सिद्धान्त के अनुसार मृतक सहित चार डिक्री तक वंशजों • को लिया जायेगा । चौथा दायभागी में सम्मिलित नहीं किया जायेगा । इसलिए प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त के अन्तर्गत केवल पुत्र , पौत्र तथा प्रपौत्र को ही सम्मिलित किया गया है ।

प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त की व्याख्या और माँ के गर्भ में स्थित बालक के अधिकार

उदाहरण- ‘ ‘ क ‘ की मृत्यु के पश्चात् उसके एक पुत्र ‘ ख ‘ , पौत्र ग ‘ और ‘ प्रपोत्र च च च और एक प्रपौत्र का पुत्र ‘ झ ‘ है । इनको निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है , क ख ( पुत्र ) ग पुत्र ( पुत्र मृतक ) घ ( पुत्र मृतक ) च ( पुत्र मृतक ) ङ ( मृतक ) छ ( मृतक ) ज ( मृतक ) च झ इसमें संयुक्त परिवर की चार शाखाएँ हैं जिसे ‘ ख ‘ , ‘ ग ‘ , ‘ घ ‘ और ‘ ङ ‘ द्वारा किया गया है ।

‘ क ‘ की मृत्यु होने पर सम्पत्ति 3 बराबर भागों में बाँटी जायेगी । ‘ ख ‘ सम्पत्ति का 1/3 भाग प्राप्त करे । ग तथा गग ‘ भाग आधा – आधा धन प्राप्त करेंगे अर्थात् प्रत्येक 1/6 हिस्सा ।

प्राप्त करेगा । चौ चौ , च ‘ भी घ के हिस्से का 1/3 भाग का बराबर तीन हिस्सों में प्राप्त करेंगे यानी प्रत्येक 1/9 . भाग प्राप्त करेगा । ‘ झ ‘ को कुछ न मिलेगा क्योंकि वह सहदायिकी से बाहर है । संयुक्त परिवार का विभाजन होगा , न कि व्यक्तिवार ।

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अन्तर्गत माँ के गर्भ में स्थित बालक के क्या अधिकार होते हैं ?  ( What is the right of a child in womb under Hindu Succession Act ? ) 

धारा 20 के अन्तर्गत , जो बालक निर्वसीयती की मृत्यु के साथ गर्भ में स्थित था और जो कि तत्पश्चात् जीवित पैदा हुआ है , निर्वसीयती दायभाग के सम्बन्ध में उसके वही अधिकार होंगे जो कि यदि वह निर्वसीयत की मृत्यु के पूर्व पैदा हुआ होता तो उसके होते और ऐसी अवस्था में वाद निर्वसीयती की तारीख से प्रभावशील होकर उसमें निहित समझा जायेगा । इस धारा के अनुसार गर्भस्थ बालक उस दशा में दाय प्राप्त करता है , यदि –

( 1 ) इस प्रकार का बालक निर्वसीयती की मृत्यु के समय गर्भ में आ गया था ।

( 2 ) इस प्रकार का बालक वाद में जीवित उत्पन्न हुआ था । इस प्रकार का बालक उसी प्रकार से दाय प्राप्त करता है जैसे कि वह निर्वसीयती मृत्यु के पूर्व जीवित होता तो करता । कोई भी पुत्र अथवा पुत्री जो निर्वसीयती की मृत्यु के समय माता के गर्भ में है , विधि की दृष्टि में वह वास्तविक रूप से अस्तित्व में समझा जाता है ।

वह अपने जन्म के बाद वह ऐसे व्यक्ति को सम्पत्ति से अनिहित कर देता है जिसने कुछ काल के लिए सम्पत्ति ले ली थी । प्राचीन हिन्दू विधि में यह नियम था । हिन्दू विधि के अतिरिक्त विश्व के तमाम विधि तन्त्र में यह नियम थोड़े बहुत हेर – फेर के साथ पाया जाता है । दाय के प्रयोजन के लिए गर्भ स्थित सन्तान दाय पाने के समय अस्तित्व में मानी जाती है । गर्भस्थित सन्तान से तात्पर्य निर्वसीयती की अपनी सन्तान से ही नहीं बल्कि उन समस्त सम्बन्धियों से है जो उत्तराधिकारी अधिनियम के अधीन उसके दायद हैं ।

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