पूर्व ऐतिहासिक काल
आज हम जानेगे पूर्व ऐतिहासिक काल क्या है
पूर्व ऐतिहासिक काल को मुख्या रूप से तीन भागो में बाटा गया है |
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- प्राचीन-पाषण काल
- मध्य-पाषण काल
- नव-पाषण काल
1.प्राचीन-पाषण काल —अफ्रीका , एशिया तथा यूरोप से प्राप्त पत्थर के बहुत से औज़ारों मिले है जिससे यह पता चलता कि आज से 26 लाख वर्ष पूर्व भी मानव इस धरा पर उपस्थित था । उस युग को प्राचीन – पाषाण काल कहा जाता है । प्राचीन षाण युग को 2,50,000 ई ० पू ० से 10,000 ई ० पू ० तक का माना गया है ।पूर्व ऐतिहासिक काल से पूर्व भारत में प्राचीन – पाषाण युग का विकास हिम युग में हुआ था । पंजाब की सोहन घाटी , आन्ध्र प्रदेश की करनूल , बिहार की सिंहभूम , मध्य प्रदेश की भोपाल , तथा गुजरात की साबरमती भारत में प्राचीन – पाषाण युग के प्रमुख केन्द्र हैं ।
पूर्व ऐतिहासिक काल प्राचीन – पाषाण युग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार से है
1. जीवन ( Life ) — पुरा – पाषाण काल में मानव जीवन स्थिर नहीं था । वह भोजन की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह घूमता रहता था । जंगली जानवरों से रक्षा के लिए उसने समूहों में रहना आरम्भ कर दिया था ।
2. निवास स्थान ( Habitat) – प्राचीन – पाषाण काल का मानव घर बनाना नहीं जानता था । अतः वर्षा , सर्दी तथा धूप से बचने के लिए वह गुफ़ाओं में निवास करता था । इसके अतिरिक्त वह वृक्षों के नीचे तथा नदियों व झीलों के कगारों में भी शरण लेता था ।
3. भोजन ( food) — प्राचीन – पाषाण काल में मानव पशु पालन व कृषि नहीं जानता था । इसलिए वह जीवन के लिए प्रकृति से मिलने वाले कन्दमूल तथा फलों पर निर्भर था । वह पशुओं तथा पक्षियों को मारकर उनका मांस भी खाता था । इनके अतिरिक्त वह मछली का सेवन करता था । पूर्व ऐतिहासिक काल के बाद इस काल में मनुष्य को आग की जानकारी नहीं थी । अतः वह कच्चा भोजन ही खाता था ।
4 . पहरावा ( Dress up) — प्रारम्भ में मानव नग्न रहता था । बाद में गर्मी तथा ठण्ड से बचने के लिए उसने वृक्षों की छाल , पत्तों तथा पशुओं की खाल से शरीर ढांपना आरम्भ कर दिया । इस युग में स्त्री तथा पुरुष दोनों ने आभूषण पहनने आरम्भ कर दिए थे । ये आभूषण पत्थर तथा जानवरों की हड्डियों से निर्मित होते थे ।
5. कला ( Arts ) — पुरा – पाषाण काल में मानव को कला के साथ प्यार था । उसने गुफ़ाओं की दीवारों पर पशु पक्षियों के चित्र बनाने प्रारम्भ कर दिये थे । ये चित्र यद्यपि इतने सुन्दर नहीं हैं परन्तु इसे कला की प्रगति की ओर मानव का पहला कदम माना जाता है ।
6. धार्मिक विश्वास ( Religious Beliefs ) – पुरा – पाषाण काल के मानव के धार्मिक विश्वासों के बारे में इतिहासकारों में एक राय नहीं है । कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इस समय मानव में किसी प्रकार की धार्मिक भावना का उदय नहीं हुआ था । दूसरी ओर कुछ का विचार है कि उस समय के लोग शवों को दफनाते समय उनके साथ उनके औज़ार आदि रख देते थे । इससे संकेत मिलता है कि वे कुछ मान्यताओं अथवा परम्पराओं का अनुसरण करने लग पड़े थे ।
7. औज़ार ( instrument) – पुरा – पाषाण युग में मानव का जीवन पशुओं की ही भान्ति था । चूंकि उसे भोजन के लिए मांस की आवश्यकता थी और उसे अपना अन्य जानवरों से बचाव करना होता था । अतः उसने कुछ औज़ार बना लिये थे । ये औज़ार क्वार्टजाइट नामक पत्थर के होते थे , जो बहुत ही सख्त होता था । उनके हथियार आकार और आकृति में अच्छे नहीं थे । पुरा – पाषाण युग के हथियारों में कुल्हाड़े , गंडासे , भाले तथा चाकू आदि होते थे ।
2. मध्य-पाषण काल ( Mesolithic Age ) —- -लगभग 9000 ई ० पू ० में हिमयुग के अन्त के साथ ही भारत में पुरा – पाषाण काल का भी अन्त हो गया । इसके बाद मध्य – पाषाण काल का आरम्भ हुआ । इस काल में मानव सभ्यता के विकास की ओर एक कदम आगे बढ़ा । इस काल में जलवायु प्राचीन – पाषाण काल की जलवायु की अपेक्षा अधिक गर्म एवं शुष्क हो गई थी । अतः लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना अधिक सुगम हो गया था । , बीरभान ( पश्चिम बंगाल ) , बागोर ( राजस्थान ) , आदमगढ़ ( मध्य प्रदेश ) , , उचाली ( पंजाब ) तथा लंघनज ( गुजरात ) मध्य – पाषाण काल के प्रसिद्ध केन्द्र थे ।
पूर्व ऐतिहासिक काल में मध्य-पाषण काल इस काल की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं
1. निवास स्थान ( Dwellings ) मध्य – पाषाण काल के लोग भी खानाबदोशी जीवन व्यतीत करते थे । अब वे गुफ़ाओं के अतिरिक्त पहाड़ों के समतल भागों तथा नदियों के किनारों पर अपनी अस्थायी झोंपड़ियां डाल कर रहने लग गए थे । ये झोंपड़ियां घास – फूस से निर्मित होती थीं । वे सदैव झुण्डों में रहते थे ।
2 . भोजन ( Food ) -मध्य – पाषाण काल के भेड़ तथा बकरी आदि का शिकार करते लोग पशुओं का शिकार करके उनका मांस खाते थे । वे गाय , भैंस , थे । वे मछली भी खाते थे । आग की जानकारी न होने के कारण वै कच्चा मांस खाते थे । इसके अतिरिक्त वे कन्दमूल तथा जंगली फलों का भी प्रयोग करते थे ।
3 . पहरावा ( Dress ) — मध्य – पाषाण काल के लोग पशुओं की खालों तथा वृक्षों की छालों से अपने शरीर को ढांपने थे । स्त्री एवं पुरुष दोनों ही आभूषणों के शौकीन थे । ये आभूषण पत्थरों एवं जानवरों की हड्डियों से बने होते थे ।
4 . धार्मिक विश्वास ( Religious Beliefs )- मध्य पाषाण काल के मानव ने शवों को विधिपूर्वक दफनाना शुरू कर दिया था । वह जादू – टोनों का सहारा लेने लगे थे ।
5. औज़ार ( Tools ) – मध्य – पाषाण काल में मनुष्य ने अपनी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के पत्थरों के औज़ार बना लिए थे । इनमें से अधिकतर औज़ार तेजधारी हैं जो सम्भवतः काटने तथा खुरचने के लिए प्रयोग किये जाते होंगे । अनेक छेद करने वाले नुकीले औज़ार भी मिले हैं । इनके अतिरिक्त त्रिभुजाकार एवं चतुर्भुजाकार औज़ार भी प्राप्त हुए हैं । ये सभी औज़ार बहुत ही छोटे आकार के हैं । इसलिए इन्हें लघु औज़ार के नाम से जाना जाता है । ये औज़ार भारत के लगभग सभी भागों से प्राप्त हुए हैं ।
3. नव-पाषण काल(Neolithic period) –आधुनिक मानव के पूर्वजों ने जिस काल में सभ्य बनना आरम्भ किया , उसे नव – पाषाण काल के नाम से जाना जाता है । इस काल में मानव जीवन में अनेक परिवर्तन हुए । नव – पाषाण काल का आरम्भ 9000 ई ० पू ०परन्तु भारत में इसका प्रारम्भ 7000 ई ० पू ० ही हुआ । इस काल में मानव ने कृषि आरम्भ की , पशुपालन आरम्भ किया , कपड़ा बनाना सीखा , गृह निर्माण किया तथा अग्नि एवं पहिए का आविष्कार किया । भारत में यह काल 2500 ई ० पू ० तक रहा । भारत में इस काल के प्रमुख केन्द्र पंजाब में जलीलपुर , कश्मीर में बुर्जाहोम , तमिलनाडु में पैयमपल्ली , कर्नाटक में मास्की तथा बिहार में चिरांद आदि हैं ।
पूर्व ऐतिहासिक काल में नव पाषाणिक लोगों के जीवन की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार से हैं
1 . निवास स्थान ( Dwellings ) – नव – पाषाण काल की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इस काल में मनुष्य ने खानाबदोशी जीवन का त्याग कर दिया । अब वह स्थायी रूप से घरों में रहने लगा था । वैसे भी कृषि का व्यवसाय अपनाने के कारण उसके लिए स्थायी रूप से रहना आवश्यक हो गया था । उसने पत्थर , मिट्टी तथा कच्ची ईंटों आदि की झोंपड़ियां बना ली थीं । इस प्रकार परिवार तथा कबीलों का जन्म हुआ । धीरे – धीरे इन्होंने ही गांवों का रूप धारण कर लिया ।
2 भोजन ( Diet ) — नव – पाषाण काल में मनुष्य गेहूं , जौ , चावल , मक्की आदि कई प्रकार के अनाजों का प्रयोग करने लगा था । पशु पालन के कारण वह दूध का प्रयोग भी करने लगा था । साथ ही उसने मांस एवं फलों को खाना जारी रखा । आग की जानकारी हो जाने के कारण अब मानव अपने भोजन को पका कर खाने लगा था ।
3. पशु – पालन ( Domestication of Animals ) – नव – पाषाण काल से पूर्व मानव मांस के लिए पशुओं का शिकार करता था । वह उन्हें अपना प्रतिद्वन्द्वी समझता था । इन पशुओं से दूध , मांस तथा ऊन प्राप्त की जाती थी । धीरे – धीरे उसे यह अनुभव हुआ कि कुछ पशु उपयोगी हैं और उनको पाला जा सकता है । अतः उसने कुत्ता , गाय , बैल , घोड़ा , भेड़ तथा बकरी आदि पशुओं को पालना आरम्भ कर दिया । कुत्ता पहला जानवर था जिसे मनुष्य ने शिकार में सहायता के लिए पाला । इसके अतिरिक्त इनसे खेती तथा यातायात का कार्य भी लिया जाने लगा ।
4. पहरावा ( Dress ) — नव – पाषाण काल में मनुष्य ने अपने शरीर को ढकने के लिए वस्त्रों का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया था । ये वस्त्र सूती एवं ऊनी होते थे । इस काल में पुरुषों एवं स्त्रियों ने पहले की तरह पत्थरों एवं हड्डियों के आभूषणों को पहनना जारी रखा ।
5. कृषि ( Agriculture ) – नव – पाषाण काल में मानव द्वारा कृषि का आरम्भ एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी । आरम्भ में उसने पत्थर की कुदालों और डंडों से कृषि योग्य भूमि तैयार की । बाद में उसने हलों का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया । इस काल में मनुष्य गेहूं , जौ , मक्की , चावल , कपास तथा रागी आदि की खेती करता था । कृषि की जानकारी हो जाने के कारण मनुष्य को अब भोजन की तलाश में भटकने की जरूरत न रही । परिणामस्वरूप उसने स्थायी तौर पर बसना आरम्भ कर दिया ।
6. धार्मिक विश्वास ( Religious Beliefs ) – नव – पाषाण काल में मनुष्य का धार्मिक विश्वास एक दृढ़ स्वरूप ले चुका था । वह सूर्य , चन्द्रमा , तारे , वृक्षों तथा पर्वतों की उपासना करने लगा था । इस काल में शवों को विधि के अनुसार दफनाया जाता तथा उन पर स्मारक बना दिए जाते थे । इससे स्पष्ट है कि वे लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते थे । बुर्ज़ाहोम के लोग कब्रों में अपने मालिकों के शवों के साथ पालतू कुत्ते भी दफना देते थे । इसके अतिरिक्त उस समय के लोग जादू – टोनों में काफ़ी विश्वास रखते थे । अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मानव तथा पशुओं की बलि की प्रथा का आरम्भ इसी काल में हुआ था ।
7. पहिए का आविष्कार ( Discovery of Wheel ) – नव पाषाण काल में पहिए के आविष्कार के कारण मानव जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए । पहिए का प्रयोग सबसे पहले बर्तन बनाने के लिए चाक के रूप में किया गया । इससे पहले कुम्हार मिट्टी के बर्तन हाथ से बनाता था । ये बर्तन इतने सुन्दर नहीं होते थे परन्तु अब चाक की सहायता से पहले की अपेक्षा कहीं अधिक अच्छे बर्तन बनाए जाने लगे । पहिए का उपयोग जुलाहे के चरखे के रूप में भी किया जाने लगा । इस कारण अब कपास को कातना बहुत सरल हो गया । इसके अतिरिक्त अब बड़ी मात्रा में वस्त्र तैयार करना भी सम्भव हो गया । पहिए का उपयोग धीरे – धीरे गाड़ी खींचने के लिए भी किया जाने लगा । इस कारण सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना सुगम तथा आवागमन सुखद हो गया ।
8. अग्नि का आविष्कार ( Discovery of Fire ) अग्नि का आविष्कार नव – पाषाण काल के मानव की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है । उसने दो पत्थरों को रगड़कर अग्नि जलाने का तरीका सीखा । अग्नि की सहायता से अब उसने भोजन को पकाकर खाना आरम्भ कर दिया । अग्नि का उपयोग उसने प्रकाश , ठण्ड से बचने , जंगली पशुओं को डराने , मिट्टी के बर्तन पकाने तथा बढ़िया औजार बनाने के लिए भी किया । अग्नि का आविष्कार मानव के जीवन का एक परिवर्तनीय बिन्दु सिद्ध हुआ तद्उपरान्त मानव जीवन के विकास की गति तीव्र हो गई ।
9. औज़ार ( Tools ) — नव – पाषाण काल के औज़ार मध्य – पाषाण काल के औजारों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली हैं । अब औज़ारों के लिए बढ़िया किस्म के पत्थरों का प्रयोग किया जाने लगा था । ये सभी औज़ार पॉलिशदार होते थे । इस काल में बनी पत्थर की कुल्हाड़ियां तथा फलक भारत के अनेक भागों से प्राप्त हुए हैं । जबकि अब कई स्थानों से पत्थर के हथौड़े , तेज़धार चाकू तथा अन्य औज़ार प्राप्त हुए हैं । इस काल में मनुष्य लकड़ी एवं हड्डियों के भी अनेक औज़ार बनाए । हड्डियों से निर्मित औज़ार हमें बुर्जाहोम तथा चिरांद नामक स्थानों से प्राप्त हुए हैं
10. मिट्टी के बर्तन ( Pottery ) — आरम्भ में मानव मिट्टी के बर्तन हाथ से बनाता था । नव – पाषाण काल में वह उन बर्तनों को आग में भी पकाने लगा । साथ ही इस काल में चाक की सहायता से अत्यन्त सुन्दर बर्तन बनने लगे । वह इन बर्तनों पर पशु पक्षियों तथा मानवों के चित्र भी चित्रित करने लगा । नव – पाषाण काल के बर्तनों में पॉलिशदार काले मृद्भांड , धूसर मृद्धांड तथा मन्दवर्ण मृद्भांड आते हैं । में मानव ने पशु तुलना में सुन्दर
11. कला ( Art ) – नव – पाषाण काल में कला का विकास आरम्भ हो गया था । इस काल पक्षियों के अतिरिक्त मनुष्य के चित्र भी बनाने आरम्भ कर दिये थे । ये चित्र पुरा – पाषाण काल की थे । इस काल में मानव ने पक्की मिट्टी की मूर्तियां बनानी भी आरम्भ कर दी थीं । इसके अतिरिक्त उसने अपने मनोरंजन के लिए बांसुरी तथा ढोलक आदि बना लिए थे । इस प्रकार इस काल में संगीत कला का श्रीगणेश हुआ ।
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