ऋग्वैदिक तथा उत्तर वैदिक सभ्यता मै क्या अंतर  है

ऋग्वैदिक तथा उत्तर वैदिक सभ्यता की तुलना | Comparison between the Rigvedic and Later Vedic Civilization

ऋग्वैदिक तथा उत्तर वैदिक दोनों ही सभ्यताओं का सम्बन्ध भारतीय आर्यों से था । अतः इन दोनों सभ्यताओं में कुछ समान बातों का पाया जाना स्वाभाविक ही है । परन्तु समय के साथ – साथ आर्यों द्वारा की गई प्रगति के कारण दोनों सभ्यताओं में कुछ अन्तर भी आए । इन समानताओं तथा असमानताओं का वर्णन इस प्रकार है I

समानताएं – Similarities

  1. दोनों कालों में राज्य का मुखिया जनता के हितों के लिए कार्य करता था । दोनों ही कालों में शान्ति व्यवस्था बनाए रखना , युद्ध के समय लोगों का नेतृत्व करना तथा शान्ति के समय अपनी प्रजा के विकास की ओर ध्यान देना राजा के मुख्य कर्त्तव्य थे ।राजा चुन लिया जाता था ।
  2. दोनों कालों में समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार थी तथा संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित थी ।
  3. दोनों कालों में लोगों का आर्थिक जीवन भी लगभग एक – समान रहा । कृषि लोगों का मुख्य व्यवसाय था । खेती बैलों की सहायता से की जाती थी ।
  4. दोनों कालों में लोगों की वेशभूषा तथा खान – पान लगभग समान थे । भोजन में गेहूं , जौ , दालें , घी , फल तथा सब्ज़ियां प्रमुख थीं । वस्त्रों में लोग ऊनी , सूती तथा रेशमी वस्त्र ही पहनते थे ।
  5. दोनों कालों में राजा का पद प्रायः पैतृक होता था
  6. दोनों कालों में व्यापार उन्नत था तथा यह जल तथा स्थल मार्गों द्वारा होता था ।
  7. दोनों कालों में राजा अपनी सहायता के लिए सेनापति तथा पुरोहित आदि कई अधिकारियों की नियुक्ति करता था ।
  8. दोनों कालों के लोगों के मनोरंजन के साधन भी एक से ही थे । घुड़दौड़ , रथदौड़ , जुआ खेलना , नृत्य तथा संगीत उनके मनोरंजन के प्रमुख साधन थे ।
  9. दोनों कालों में गाय का बड़ा आदर किया जाता था ।
  10. दोनों कालों में शिक्षा का महत्त्व बना रहा । स्त्रियों की शिक्षा की ओर दोनों कालों में विशेष ध्यान दिया जाता था ।
  11. दोनों कालों में कृषि के अतिरिक्त पशुपालन भी लोगों का मुख्य व्यवसाय था । लोग गाय , बैल , घोड़ा , बकरी आदि पशु पालते थे ।
  12. दोनों कालों में पर्दा – प्रथा तथा सती – प्रथा आदि सामाजिक कुरीतियां प्रचलित न थीं तथा विधवाओं को पुनर्विवाह की आज्ञा थी ।

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ऋग्वैदिक तथा उत्तर वैदिक सभ्यता की तुलना

ऋग्वैदिक सभ्यता

  1. यह सभ्यता सप्त – सिन्धु प्रदेश तक ही सीमित थी ।
  2. ऋग्वैदिक काल की सभ्यता का ज्ञान हमें ऋग्वेद से प्राप्त होता है ।
  3. इस काल में व्यापार वस्तु विनिमय द्वारा होता था । अन्य देशों से इन लोगों के कोई विशेष व्यापारिक सम्बन्ध नहीं थे ।
  4. ऋग्वैदिक काल में राजा को सीमित शक्तियां प्राप्त थीं । वह प्रत्येक कार्य धर्म के अनुसार करता था । राजा की शक्ति पर सभा तथा समिति का पूर्ण नियन्त्रण होता था । उसे इनके निर्णयों को स्वीकार करना पड़ता था ।
  5. ऋग्वैदिक काल में ‘ जन ‘ शासन की सबसे बड़ी इकाई था । बड़े – बड़े साम्राज्यों की स्थापना अभी नहीं हुई थी । जन के मुखिया को ‘ राजा ‘ कहते थे । उसका उद्देश्य प्रजा की भलाई करना था ।
  6. इस काल में युद्ध – प्रणाली बड़ी अच्छी थी । आर्य निहत्थे शत्रु , स्त्रियों तथा बच्चों पर वार करना पाप समझते थे ।
  7. इस काल में स्त्रियों का समाज में काफ़ी सम्मान था । उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे । उनकी उपस्थिति के बिना कोई भी धार्मिक कार्य पूर्ण नहीं समझा जाता था । उनकी शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था । विश्ववरा , घोषा , इन्द्राणी आदि इस काल की प्रसिद्ध विदुषियां थीं ।
  8. इस काल में लोग अधिकतर गांवों में रहते थे । अभी तक बड़े – बड़े नगरों का उदय नहीं हुआ था ।
  9. ऋग्वैदिक काल में जाति प्रथा का आधार रंग तथा श्रम था । केवल आर्यों तथा अनार्यों का भेद था । श्रम पर आधारित जाति बन्धन अभी कठोर नहीं हुए थे
  10. ऋग्वैदिक काल में आश्रम प्रथा का प्रचलन नहीं हुआ था ।
  11. इस काल में लोग सोमरस नामक पेय पदार्थ का सेवन करते थे ।
  12. ऋग्वैदिक काल में धर्म का रूप बड़ा सरल था । लोग प्रकृति की उपासना करते थे । वे खुली हवा में बैठ कर यज्ञ आदि कर लिया करते थे । इन्द्र तथा वरुण इस काल के महत्त्वपूर्ण देवता थे ।
  13. प्रशासनिक ढांचा बड़ा साधारण था । राजा अपनी सहायता के लिए पुरोहित तथा सेनानी आदि अधिकारियों की नियुक्ति करता था ।

ऋग्वैदिक तथा उत्तर वैदिक सभ्यता की तुलना

ऋग्वैदिक तथा उत्तर वैदिक

उत्तर वैदिक सभ्यता

  1. सभ्यता समस्त उत्तरी भारत ( आर्यावर्त्त ) तथा दक्षिणी भारत के कुछ भागों तक विस्तृत थी ।
  2. उत्तर वैदिक काल में व्यापार निष्क , शतमान तथा कर्षमान आदि सिक्कों के माध्यम से होने लगा था । इस काल में अन्य देशों से व्यापारिक सम्बन्ध भी स्थापित किये जाने लगे थे ।
  3. उत्तर वैदिक काल में बड़े – बड़े साम्राज्यों का उद्भव हुआ । अब राजा साम्राज्यवादी हो चुके थे । अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए अब वे अश्वमेध तथा राजसूय आदि यज्ञ रचाने लगे थे । अब वे ‘ महाराजा ‘ तथा ‘ विराट् ‘ आदि उपाधियां भी धारण करने लगे थे ।
  4. इस काल में राजाओं ने स्थायी सेना का आयोजन कर रखा था । युद्ध में वे छल – कपट तथा कूटनीति का प्रयोग करने लगे थे ।
  5. उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की दशा निरन्तर गिरती चली गई । कन्या के जन्म को दुःखों का कारण समझा जाता था , परन्तु स्त्रियों को अभी भी शिक्षा प्राप्त करने की स्वतन्त्रता प्राप्त थी । इस काल में गार्गी जैसी विदुषियों ने जन्म लिया |
  6. इस काल में काशी , कौशल , अयोध्या , मथुरा आदि प्रसिद्ध नगरों का उद्भव हुआ । ये नगर महान् व्यापारिक केन्द्र बने ।
  7. उत्तर वैदिक काल में चार जातियां बन गई थीं । जाति बन्धन बहुत कड़े हो गये थे । अब लोग एक जाति से दूसरी जाति में नहीं जा सकते थे । शूद्रों की दशा बहुत खराब होती जा रही थी ।
  8. उत्तर वैदिक काल में मनुष्य की आयु को 100 वर्ष मानकर उसे ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ तथा संन्यास नामक चार आश्रमों में विभक्त किया हुआ था ।
  9. इस काल में यूतिका तथा अर्जुनानी आदि पेयों का सेवन होने लगा था तथा नशीली वस्तुओं से घृणा की जाने लगी थी ।
  10. उत्तर वैदिक काल में धर्म का रूप जटिल हो गया । अब यज्ञों की विधि बड़ी जटिल हो गई थी । ब्राह्मणों के बिना यज्ञ सम्पन्न नहीं हो सकते थे । इस काल के देवताओं में ब्रह्मा , विष्णु तथा शिव का महत्त्व बढ़ गया था ।
  11. शासन का ढांचा बड़ा जटिल हो चुका था । राजा अब अपनी सहायता के लिए पुरोहित तथा सेनानी के अतिरिक्त अन्य अधिकारियों की नियुक्ति भी करने लगा था ।
  12. उत्तर वैदिक काल में राजा को असीम शक्तियां प्राप्त थीं । वह प्रत्येक कार्य स्वेच्छा से करता था । सभा तथा समिति का अब उस पर कोई नियन्त्रण नहीं रहा था । उसकी शक्तियों पर केवल जनता की इच्छा ही अंकुश मात्र थी
  13. उत्तर वैदिक काल की सभ्यता का ज्ञान हमें यजुर्वेद , अथर्ववेद , सामवेद , ब्राह्मण ग्रन्थों , उपनिषदों तथा महाकाव्यों से प्राप्त होता है ।
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