निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए  संभाव्य उत्तराधिकार, |

निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए |

( 1 )सम्भाव्य उत्तराधिकार ( 2 ) अप्रतिबद्ध दाय , ( 3 ) सप्रति बद्ध दाय ,  ( 4 ) गोत्रस सपिण्ड ,   ( 5 ) समानोदाक , ( 6 ) बन्धु ।

Write short notes on the following

( 1 ) Spes succession , ( 2 ) Unobstructed Heritage , ( 3 ) Obstructed Heritage , ( 4 ) Gortraj Sapinda , ( 5 ) Samanodakos  ( 6 ) Bandus.

सम्भाव्य उत्तराधिकार – ( Spes Successions ) – सम्भाव्य उत्तराधिकार से हमारा अभिप्राय उत्तराधिकार के अवसर से है जो एक व्यक्ति को प्राप्त होता है । एक समाश्रित निर्वतन मान्य नहीं समझा जाता । इसलिए कहा गया है कि समाश्रित हक का वैध हस्तान्तरण नहीं किया जा सकता । सम्भाव्य उत्तराधिकार द्वारा दायदी सम्पत्ति के निर्वतन के सम्बन्धम किया गया कोई भी समझौता बाध्यकर नहीं होता है । ऐसा समझौता वास्तविक दाय प्राप्त करने वाले उत्तराधिकारी को सम्पत्ति में से दाय प्राप्त करने से नहीं रोक सकता । सम्भावित उत्तराधिकार संविदा का विषय भी नहीं बन सकता क्योंकि इस सम्बन्ध में सम्पन्न संविदा प्राप्त स्वामी के  निर्वतन द्वारा किसी समय निष्प्रभ की जा सकती है ।

उदाहरण

‘ क ‘ के एक भाई ‘ ख ‘ तथा चाचा ‘ ग ‘ हैं । ‘ ख ‘ की पत्नी ‘ घ ‘ है । यदि ‘ क ‘ की मृत्यु हो जाती है तो ‘ ख ‘ उसका सबसे निकट का उत्तराधिकारी होने के कारण दाय प्राप्त करेगा , यदि वह उस समय तक जीवित रहेगा । किन्तु ‘ क ‘ के जीवनकाल में ‘ ख ‘ को ‘ क ‘ की सम्पत्ति में कोई हक नहीं है । उसे केवल सम्भाव्य उत्तराधिकार का हक है । यदि ‘ ख ‘ , ‘ क ‘ के जीवनकाल में ही मर जाता है तो ‘ ग ‘ , ‘ क ‘ का उत्तराधिकारी होगा , न कि ‘ ख ‘ की पत्नी ‘ घ ‘ । ‘ ख ‘ को ‘ क ‘ की सम्पत्ति में उसके जीवित रहते कोई हक प्राप्त नहीं है । अतः ‘ ख ‘ ‘ घ ‘ को सम्पत्ति हस्तान्तरित नहीं कर सकता और इस कारण से ‘ ख ‘ के द्वारा उस सम्भाव्य उत्तराधिकार का विक्रय अथवा बन्धक प्रभाव शून्य होगा । इसी प्रकार ‘ ख ‘ यदि ‘ क ‘ के जीवनकाल में उस दाय के विषय में कोई संविदा कर देता है ‘ क ’ के पूर्व ही मर जाता है तथा उसके स्थान पर ‘ ग ‘ उत्तराधिकारी बन जाता है तो ‘ ग ‘ , ‘ ख ‘ के द्वारा सम्पन्न की गई संविदा से बाध्य नहीं है ।

संभाव्य उत्तराधिकार
संभाव्य उत्तराधिकार

( 2 ) अप्रतिबद्ध दाय ( Unobstructed heritage ) – अप्रतिबद्ध दाय से तात्पर्य है ” जिस सम्पत्ति का कोई व्यक्ति जन्म से ही हकदार बन जाता है वह अप्रतिबद्ध दाय कहलाती है । अप्रतिबद्ध दाय में मृतक के जीवन काल में ही पुत्र , पौत्रादि का सम्पत्ति में एक अधिकार निश्चित हो जाता है । इसे अप्रतिबद्ध दाय इसलिए कहा जाता है कि सम्पत्ति के स्वामी के जीवित होते हुए इस पर सहदायिकी अर्थात् तीन पीढ़ी तक के पुरुष सन्तानों का अधिकार उत्पन्न हो जाता है और ऐसे अधिकार के ऊपर कोई रोक नहीं होती क्योंकि सम्पत्ति के स्वामी के जिन्दा रहने पर उसके अधिकार पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता ।

उदाहरण

‘ क ’ अपने पिता से उत्तराधिकार में सम्पत्ति प्राप्त करता है । उसके बाद में उसके एक पुत्र ‘ ख ‘ पैदा होता है । ‘ क ‘ का पुत्र ‘ ख ‘ जन्म से ही उस सम्पत्ति में उसमें दाय सहदायिक बन जाता है और सम्पत्ति में आधे का हिस्सेदार हो जाता है । ‘ क ‘ के दाय की सम्पत्ति अप्रतिबद्ध दाय है । क्योंकि उसके दाय में सम्पत्ति रहते हुए भी ‘ ल ‘ की उस सम्पत्ति के अपना हिस्सा लेने में कोई रुकावट नहीं होगी ।

( 3 ) सप्रतिबन्ध दाय ( Obstructed Heritage ) – सप्रतिबन्ध दाय से हमारा अभिप्राय ऐसी सम्पत्ति से है जिस पर व्यक्ति का जन्म से अधिकार नहीं होता है किन्तु स्वामी की सन्तानहीन मृत्यु के बाद अधिकार उत्पन्न होता है । यह सप्रतिबन्ध इसलिए कही जाती है , क्योंकि सम्पत्ति का न्यायगत- स्वामी के जीवन काल में बाधित रहता है । इस प्रकार का दाय केवल स्वर्जित अथवा पृथक् सम्पत्ति के सम्बन्ध में ही लागू होता है ।

उदाहरण

‘ क ‘ एक स्वअर्जित सम्पत्ति का स्वामी है । उसके दो पुत्र ‘ ख ‘ और ‘ ग ‘ है । जब तक क ‘ जीवित है उसकी सम्पत्ति पर ‘ ख ‘ ‘ ग ‘ का कोई अधिकार नहीं होगा । केवल ‘ क ‘ की मृत्यु पर ही ‘ ख ‘ तथा ‘ ग ‘ उस सम्पत्ति के हकदार होंगे । इस प्रकार ‘ क ‘ का जीवन ‘ ख ‘ तथा ‘ ग ‘ की दाय प्राप्त करने में प्रतिबन्ध आरोपित करता है । इस अप्रतिबद्ध दाय और प्रतिबद्ध दाय में प्रमुख अन्तर यह है कि अप्रतिबद्ध दाय में मृतक के जीवन काल में ही पुत्र , पौत्रादि का सम्पत्ति में अधिकार निर्धारित हो जाता है जबकि अप्रतिबद्ध दाय में व्यक्ति का मृतक सम्पत्ति में जन्म से अधिकार नहीं होता बल्कि स्वामी की सन्तान में मृत्यु के बाद हक उत्पन्न होता है ।

(  4 ) गोत्रज सपिण्ड (  Gotraja Sapinda ) – गोत्र सपिण्ड वे हैं जो अविच्छिन्न पुरुष श्रृंखला में सम्बन्धित होते हैं । गोत्रज सपिण्ड परिभाषित रूप में इस प्रकार हैं

1. मृतक की पुरुष वंश परम्परा में 6 पुरुष वंशज अर्थात् उसके पुत्र , पुत्र के पुत्र , पुत्र के पुत्र तथा इसी प्रकार 6 श्रेणी के पुत्र ।

2. मृतक की पुरुष पूर्वज परम्परा में 6 पुरखे और उनकी पत्नियाँ ।

3. मृतक के 6 पुरुष पुरखों में से प्रत्येक वंश परम्परा में 6 वंशज जो मृतक के सम्पार्श्विक होते हैं ।

4. मृतक की पत्नी , पुत्री और दोहित्र ।

इस प्रकार कुल सपिण्ड 6 +12+ 36+ 3 = 57 होते हैं ।

( 5 ) समानोदक – समानोदक से उन रक्त सम्बन्धियों का बोध करता है जिनका मृतक तर्पण करता है , अथवा जो मृतक को तर्पण करते हैं , अथवा वे और मृतक किसी उभयनिष्ठ पूर्वज का तर्पण करते हैं ।

समानोदक के अन्तर्गत मृतक के निम्नलिखित सम्बन्धी आते हैं –

1. मृतक के वंश – परम्परा में 7 वीं पीढ़ी से लेकर 13 वीं पीढ़ी तक के वंशज = 7

2. मृतक की पूर्वनों की परम्परा में 7 वीं पीढ़ी से लेकर 14 वीं पीढ़ी तक के पुरखे = 7 

3. मृतक की एक से 6 पीढ़ी तक के पुरखों के वंश परम्परा में प्रत्येक की 7 वीं से 13 वी पीढ़ी तक के वंशज जो मृतक के संपार्श्विक थे = 42

4. मृतक की 7 वीं पीढ़ी से लेकर 13 वीं पीढ़ी तक के पुरखों की वंश परम्परा में 1 से लेकर 13 वीं पीढ़ी तक वंशज 91

इस प्रकार कुल समानोदक = 7 + 7 + 42 + 91 = 147 होते हैं ।

( 6 ) बन्धु —– भिन्न गोत्रज सपिण्ड मृतक के वे रक्त सम्बन्धी हैं जो मृतक से भिन्न गोत्र के होते हैं उन्हें बन्धु भी कहा जाता है । बन्धुओं में वे सम्बन्धी आते थे जो स्त्रियों के द्वारा सम्बन्धित थे तथा दूसरे परिवार अथवा गोत्र के हो जाते थे । प्रत्येक बन्धु किसी स्त्री के माध्यम से या अनेक स्त्रियों के माध्यम से मृतक से सम्बन्धित होता है ।

मृतक के किसी सपिण्ड अथवा समानोदक के न होने की दशा में दाय उसके बन्धुओं को प्राप्त होती है 

मिताक्षरा के अनुसार बन्धु तीन प्रकार के होते हैं

( 1 ) आत्म बन्धु ,  ( 2 ) पितृ बन्धु ,  ( 3 ) मातृ बन्धु ।

( 1 ) आत्म बन्धु —

( क ) पिता की बहन का पुत्र ( बुआ का पुत्र ) ।

( ख ) माता की बहिन का पुत्र ( मौसी का पुत्र ) ।

( ग ) माता के भाई का पुत्र ( मामा का पुत्र ) ।

( 2 ) पितृ बन्धु ( क ) पिता के पिता की बहिन का पुत्र ( पिता की बुआ का पुत्र ) ।

( ख ) पिता की माता की बहन का पुत्र ( पिता की मौसी का पुत्र ) ।

( ग ) पिता की माता के भाई का पुत्र ( पिता के मामा का पुत्र ) ।

( 3 ) मातृ बन्धु – ( क ) माता के पिता की बहिन का पुत्र ( माता की बुआ का पुत्र ) ।

( ख ) माता की माता का पुत्र ( माता की मौसी का पुत्र ) ।

( ग ) माता की माता के भाई का पुत्र ( माता के मामा का पुत्र ) ।

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