सातवाहन काल की सामाजिक , आर्थिक , धार्मिक दशा , कला तथा साहित्य का वर्णन
सातवाहन काल की सामाजिक , आर्थिक , धार्मिक दशा , कला तथा साहित्य का वर्णन -Give a brief account of the social , economic , religious conditions , art and literature of the Satavahanas
1. सामाजिक स्थिति-Social Condition-सातवाहन काल में समाज चार वर्गों में विभाजित था । प्रथम वर्ग में महारथी , महासेनापति और महाभोज सम्मिलित थे । द्वितीय वर्ग में सरकारी अधिकारी जैसे आमात्य , महामात्र और भण्डागारिक इत्यादि तथा बड़े – बड़े व्यापारी और शिल्पकार सम्मिलित थे । तृतीय वर्ग में वैद्य , मुंशी , सुनार , गान्धिक और कृषक इत्यादि सम्मिलित थे । चतुर्थ वर्ग में निम्न श्रेणी के लोग जैसे माली , लोहार , मछुआरे और कामगर इत्यादि सम्मिलित थे । इन चार वर्गों के अतिरिक्त सातवाहन समाज चार मुख्य जातियों में भी विभाजित था । ये जातियां थीं- ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र समाज में ब्राह्मणों का बहुत सम्मान किया जाता था । इस काल में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी ।
परिवार के मुखिया को गृहपति कहते थे । परिवार के सभी सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते थे । समाज में स्त्रियों का बहुत सम्मान किया जाता था । उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त थी । वे शिक्षित होती थीं । वे प्रशासन में भाग लेती थीं । इसके अतिरिक्त वे सभी धार्मिक कार्यों में अपने पति के साथ सम्मिलित होती थीं । सातवाहन शासक अपने नाम से पूर्व अपनी माता का नाम जोड़ने में बहुत गर्व अनुभव करते थे । समाज में विधवा का भी पूर्ण सम्मान किया जाता था । समाज में स्त्रियों के इतने सम्मान का एक मुख्य कारण यह था कि उनका समाज मातृतन्त्रात्मक ( माता प्रधान ) था । समाज में अन्तर्जातीय विवाह प्रथा प्रचलित थी । सातवाहनों ने शकों से विवाह करवाए । इसके अतिरिक्त इस काल में बहु – विवाह प्रथा भी प्रचलित थी । राज परिवार एवं अन्य उच्च घरानों के लोग एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करवाने लग पड़े थे । नृत्य – गान तत्कालीन लोगों के मनोरंजन का मुख्य साधन था ।
2 . आर्थिक स्थिति-Economic Condition –सातवाहन काल में लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी । लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था । सातवाहन शासकों के द्वारा कृषकों को विशेष सुविधाएं प्रदान किए जाने के कारण इस व्यवसाय ने बहुत विकास किया । यह क्षेत्र चावल और कपास की पैदावार के लिए विशेष रूप से विख्यात था । इस काल में उद्योग व्यवसाय भी बहुत विकसित था । भिन्न – भिन्न व्यवसायियों ने अपनी श्रेणियां स्थापित की थीं । ये श्रेणियां लोगों का रुपया भी जमा करती थीं और उन्हें ब्याज भी देती थीं । गान्धिक नामक शिल्पकारों की श्रेणी ने मन्दिरों के निर्माण के लिए बहुत दान दिया ।
गान्धिक इत्र बनाते थे । बाद में यह नाम सभी प्रकार के दुकानदारों के लिए प्रयुक्त होने लगा । वर्तमान नाम गान्धी भी इसी प्राचीन शब्द से निकला है । सातवाहन काल में शान्ति व्यवस्था के कारण तथा यातायात के साधनों के विकसित होने के कारण आन्तरिक एवं विदेशी व्यापार को बहुत प्रोत्साहन मिला । भड़ौच , सोपारा और कल्याण नामक बन्दरगाहों से जहाजों के द्वारा विदेशों को माल भेजा जाता था । भारतीय माल की रोम , दक्षिण – पूर्वी तथा पश्चिमी एशिया के देशों में बहुत मांग थी । भारत से इन देशों को बढ़िया किस्म की मलमल , सूती वस्त्र , रेशम , कपास , हाथी दान्त , सुगन्धित इत्र , औषधियां , जानवरों की खालें , गर्म मसाले और मोती इत्यादि भेजे जाते थे । इनके बदले में सातवाहन शासक विदेशों से शीशे का सामान , मदिरा और भोग – विलास की वस्तुएं मंगवाते थे ।
3. धार्मिक स्थिति-Religious Condition-सातवाहन शासक हिन्दू धर्म में विश्वास रखते थे । वे हिन्दू देवी – देवताओं जैसे कृष्ण , वासुदेव , शिव , इन्द्र , गौरी इत्यादि की उपासना करते थे । इन देवी – देवताओं की स्मृति में उन्होंने अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया । वे अश्वमेध और राजसूय नामक यज्ञ भी करवाते थे । वे ब्राह्मणों का बहुत सम्मान करते थे और उन्हें लगान मुक्त भूमि पुरस्कार स्वरूप देते थे । हिन्दू धर्म में विश्वास रखने के बावजूद सातवाहन शासकों ने अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता की नीति अपनाई । उनके शासनकाल में बौद्ध धर्म ने भी अद्वितीय विकास किया । उन्होंने बौद्ध स्तूपों , चैत्यों और विहारों के निर्माण के लिए खूब दान दिया । अमरावती और नागार्जुनकोंडा उस समय के विख्यात बौद्ध केन्द्र थे । यह सातवाहन शासकों की धार्मिक सहिष्णुता की नीति का ही परिणाम था कि उस समय बहुत से विदेशी भी हिन्दू धर्म अथवा बौद्ध धर्म में सम्मिलित हो गए ।
4. कला-Art –इस हाल सातवाहन शासक कला के महान् संरक्षक थे । उनके शासनकाल में बहुत मनमोहक चैत्य , विहार एवं स्तूपों को चट्टानों को काटकर निर्माण किया गया । इनकी कला को देखकर आज भी कला – विशेषज्ञ चकित रह जाते हैं । चैत्य बौद्ध मन्दिरों को कहा जाता था । यह एक बड़ा हाल होता था जिनमें अनेक स्तम्भ बने होते में जाने के लिए एक मार्ग बना होता था जो कि बरामदे में जा निकलता था । सातवाहन शासकों ने जो चैत्य बनवाए , उनमें से कार्ले का चैत्य सर्वाधिक विख्यात था । यह प्रथम शताब्दी ई ० में बनाया गया था । यह लगभग 40 मीटर लम्बा , 15 मीटर ऊंचा था । इसमें बने हाल के दोनों ओर 15-15 अत्यन्त सुन्दर स्तम्भ बनाए गए हैं । प्रत्येक स्तम्भ के शिखर पर घोड़े , हाथी और उनके शहसवारों को दिखाया गया है । इस हाल के अन्त में एक विशाल स्तूप बना हुआ है , जिसके ऊपर लकड़ी का छाता बना हुआ है ।
हाल के भीतर प्रकाश के लिए बहुत विशेष ढंग की खिड़कियां बनाई गई हैं । विख्यात् लेखक सतीश ग्रोवर का यह कहना पूर्णत : ठीक है , ” उपासना के इस अद्वितीय स्थल के गौरव को देखकर कोई भी आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सकता । कला की दृष्टि से निस्सन्देह यह चट्टानों को काटकर बनाया गया एक आश्चर्य है जो कि भारतीय निर्माताओं के लिए न समाप्त होने वाला एक स्रोत है । ‘ [ 1 ] विहार बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान को कहा जाता था । इन्हें चैत्यों के साथ बनाया जाता था ताकि वर्षा काल में भिक्षु वहां पर विश्राम कर सकें । सातवाहन काल में नासिक तथा बहुत से अन्य स्थानों पर ऐसे विहारों का निर्माण किया गया । स्तूप से अभिप्राय एक ऐसे गोल स्तम्भाकार संरचना से है जो महात्मा बुद्ध के किसी अवशेष पर बनाया जाता है । इस काल में ऐसे स्तूप अमरावती , एलोरा और नागार्जुनकोंडा में बनाए गए । इन स्तूपों में अमरावती का स्तूप सर्वाधिक विख्यात है । इस स्तूप के इर्द – गिर्द जो जंगला बना हुआ है , उस पर मनुष्यों , पशुओं और महात्मा बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित अत्यन्त सुन्दर मूर्तियां बनाई गई हैं । अन्त में हम यह कह सकते हैं कि सातवाहन काल में कला के क्षेत्र में अद्वितीय विकास हुआ ।
5. साहित्य -Literature- सातवाहन शासक साहित्य के महान् संरक्षक थे । उनके शासनकाल में प्राकृत जोकि उनकी राज्य भाषा थी , में साहित्य का पर्याप्त विकास हुआ । सातवाहन शासक हाल ने स्वयं ‘ गाथासप्तशती ‘ नामक विख्यात ग्रन्थ की रचना की । इसमें 700 श्लोक दिए गए हैं । जैन विद्वान् कुंडाकुडांचार्य ने ‘ समयसार ‘ , ‘ गयनसार ‘ और ‘ प्रभऋतसार ‘ नामक विख्यात् ग्रन्थों की रचना की । गुणाढय ने ‘ बृहत्कथा ‘ नामक ग्रन्थ की रचना की ।